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हमारा मन

26 जनवरी 2015

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किसी राजा के पास एक बकरा था। एक बार उसने एलान किया की जो कोई इस बकरे को जंगल में चराकर तृप्त करेगा मैं उसे आधा राज्य दे दूंगा। किंतु बकरे का पेटपूरा भरा है या नहीं इसकी परीक्षा मैं खुद करूँगा। इस एलान को सुनकर एक मनुष्य राजा के पास आकर कहने लगा कि बकरा चराना कोई बड़ी बात नहीं है। वह बकरेको लेकर जंगल में गया और सारे दिन उसे घास चराता रहा। शाम तक उसने बकरे को खूब घास खिलाई और फिर सोचा की सारे दिन इसने इतनी घास खाई है। अब तो इसका पेट भर गया होगा। तो अब इसको राजा केपास ले चलूँ। बकरे के साथ वह राजा के पास गया। राजा ने थोड़ी सी हरी घास बकरे के सामने रखी तो बकरा उसे खाने लगा। इस पर राजा ने उस मनुष्य से कहा की तूने उसे पेट भर खिलाया ही नहीं वर्ना वह घास क्यों खाने लगता। बहुतों ने बकरे का पेट भरने का प्रयत्न किया किंतु ज्योंही दरबार में उसके सामनेघास डाली जाती कि वह खाने लगता। एक सत्संगी ने सोचा इस एलान का कोई रहस्य है। मैं युक्ति से काम लूँगा। वह बकरे को चराने के लिए ले गया। जब भी बकरा घास खाने के लिए जाता तो वह उसे लकड़ी से मारता। सारे दिन में ऐसा कई बार हुआ। अंत में बकरे ने सोचा की यदि मैं घास खाने का प्रयत्न करूँगा तो मार खानी पड़ेगी। शाम को वह सत्संगी बकरे को लेकर राजदरबार में लौटा। बकरे को उसने बिलकुल घास नहीं खिलाई थी। फिर भी राजा से कहा मैंने इसको भरपेट खिलाया है। अत: यह अब बिलकुल घास नहीं खायेगा। कर लीजिये परीक्षा। राजा ने घास डाली लेकिन उस बकरे ने उसे खाया तो क्या देखा और सूंघा तक नहीं। बकरे के मन में यह बात बैठ गयी थी की घास खाऊंगा तो मार पड़ेगी। अत: उसने घास नहीं खाई। यह बकरा हमारा मन ही है। बकरे को घास चराने ले जाने वाला जीवात्मा है। राजा परमात्मा है। मन को मारो, मन पर अंकुश रखो। मन सुधरेगा तो जीवन सुधरेगा। मन को विवेक रूपी लकड़ी से रोज पीटो। भोग से जीव तृप्त नहीं हो सकता। भोगी रोगी होता है।
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हमारा मन

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किसी राजा के पास एक बकरा था। एक बार उसने एलान किया की जो कोई इस बकरे को जंगल में चराकर तृप्त करेगा मैं उसे आधा राज्य दे दूंगा। किंतु बकरे का पेटपूरा भरा है या नहीं इसकी परीक्षा मैं खुद करूँगा। इस एलान को सुनकर एक मनुष्य राजा के पास आकर कहने लगा कि बकरा चराना कोई बड़ी बात नहीं है। वह बकरेको लेकर जंगल

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सुधार किसका होना जरूरी है

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एक बार स्वामी विवेकानंद जी से किसी ने जिज्ञासा की और अपना प्रश्न पूछा .."हिन्दुओं में बाल विवाह होता है, ये गलत है, हिन्दू धर्म में सुधार होना चाहिए ! स्वामी जी ने उस से पूछा :-"क्या हिन्दू धर्म ने कभी कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति का विवाह होना चाहिए और वह विवाह उसके बाल्यकाल में ही होना चाहिए " प्र

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