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चौहानों का गूजरों और जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)

21 मई 2020

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featured imageचौहानों का गूजरों ,जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...) ________________________________________________ यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है।  चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं ।  अठारहवीं सदी तक सम्पादित भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व के अनुसार अशोक के पुत्रों के समय राजस्थान के आबू पर्वत पर कान्यकुब्ज(कन्नौज ) के ब्राह्मणों द्वारा ब्रह्म-होम( यज्ञ) किया गया और उसमें वेद मन्त्रों के प्रभाव से चार क्षत्रिय उत्पन्न हुए।  इनमें चौहान वंश भी एक था ।👇   वीरगाथा काल के कवि  चन्द्रवरदाई भी पृथ्वीराजरासो में चौहानों की उत्पत्ति आबू पर्वत की यज्ञ से बताते हैं ।  विदेशी विद्वान कुक आदि 'ने यज्ञ से उत्पन्न होने का तात्पर्य निर्धारण किया है ; कि यज्ञ से विदेशियों को शुद्ध कर हिन्दू बनाया जाना अतः ये विदेशी थे । 'परन्तु कौन देशी है और कौन विदशी इसका निर्णय कौन करेगा ? प्राचीन काल में भारतीय संस्कृति के अनुसार यज्ञ किये जाते थे और यज्ञ के रक्षक को क्षत्रिय के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता था । _______________________________________________ (क्षतस्त्रायते त्रै क  पञ्चमी तत्पुरुष ( विनाश से रक्षा करता है वह क्षत्रिय हैै ) क्षद--संभृतौ कर्त्तरि त्र वा अर्द्धर्चा० ।  १ क्षत्रिये “यस्य ब्रह्म च क्षत्त्रं च उमे भवति ओदनः” श्रुतिः “यत्र ब्रह्म च क्षत्त्रञ्च सम्यञ्चौ चरतः सह” यजुर्वेद२० । २५ ।  “क्षत्त्रं क्षतयजातिः” – “क्षतात् किल त्रायते इत्युग्रः क्षत्त्रस्य शब्दोभुवनेषु रूढः” रघुवंश महाकाव्य ।  अत्र मल्लिनाथ टीका “क्षणु हिंसायामिति धातोः सम्पदादित्वात् क्विप् गमादीनामिति वक्तव्यादनुनासिकलोपे तुगागमे च क्षदिति रूपं सिद्धम् क्षतः न शात् त्रायते इति क्षत्त्रः सुपीति योगविभागात् कः   तामेतां व्युत्पत्तिं कविरर्थतोऽनुक्रामति क्षतादित्यादिना ।  उदग्रः उन्नतः क्षत्त्रस्य क्षत्त्रवर्णस्य वाचकः शब्दः  क्षत्त्रशब्द इत्यर्थः क्षतात् त्रायते इति अर्थात्‌ जो विनाश ( क्षद् ) से रक्षा (त्राण ) करता है वही क्षत्रिय या क्षत्त्र है ।  अतः संभव लगता है आबू पर्वत पर जो अशोक के पुत्रों के समय यज्ञ किया गया उनमें चार क्षत्रिय वीरों को यज्ञ रक्षा के लिए तैनात किया गया ताकि यज्ञ में विघ्न न हो या वैदिक धर्म के अनुसार  चलने वाले क्षत्रिय (व्रात्य) या सम्भवत: बौद्धधर्म मानने वाले चार क्षत्रियों को यज्ञ द्वारा वैदिकधर्म का संकल्प कराया होगा। ________________________________________________  इन क्षत्रियों के वंशज आगे चलकर उन्हीं के नाम से चौहान, परमार, प्रतिहार, चालुक्य हुए । अन्यथा अग्नि से आदमी कब उत्पन्न होता है ? इसी प्रकार सूर्य और चन्द्र वंश की भारतीय मिथकों में जो परिकल्पना की गयी उसका मूलाधार साम और हाम का ही वंश है । जो एब्राहम के पुत्र थे ।🌸      सूर्यवंश या अग्नि वंश के उपवंश चौहानवंश में गुर्जर राजा विजयसिंह हुए डॉ. परमेश्वर सोलंकी का हरपालीया कीर्तिस्तम्भ का मूल शिलालेख सम्बन्धी लेख (मरू भर्ती पिलानी) अचलेश्वर शिलालेख (विक्रम संवत् 1377) है जिसमें चौहान आसराज के प्रसंग में लिखा है – ___________ राघर्यथा वंश करोहिवंशे सूर्यस्यशूरोभूतिमण्डलाग्रे | तथा बभूवत्र पराक्रमेणा स्वानामसिद्ध: प्रभुरामासराजः | 16 || अर्थात पृथ्वीतल पर जिस प्रकार पहले सूर्यवंश में पराक्रमी (राजा) रघु हुए उसी प्रकार यहाँ पर (इस वंश) में अपने पराक्रम से प्रसिद्ध कीर्तिवाला आसराज (नामक) राजा हुआ |        इन शिलालेखों व साहित्य से मालूम होता है कि चौहान सूर्यवंशी रघु के कुल में थे । 'परन्तु यह मात्र एक स्थापना ही है सूर्य या रघु वंश का सत्य अभी भी अन्वेषणीय है । _________________________________________________________________________ सोमेश्वर प्रथम प्रसिद्ध  चालुक्यराज जयसिंह द्वितीय जगदेकमल्ल का पुत्र जो 1042 ई. में सिंहासन पर बैठा। पृथ्वीराज के पूर्वजों सोमेश्वर प्रथम को गुर्जर कहा है। और पिता का समृद्ध राज्य प्राप्त कर उसने दिग्विजय करने का निश्चय किया।  चोल और परमार दोनों उसके शत्रु थे।  पहले वह परमारों की ओर बढ़ा। राजा भोज धारा और मांडू छोड़ उज्जैन भागा और सोमेश्वर दोनों नगरों को लूटता उज्जैन जा चढ़ा।   हमीर महाकाव्य, और अजमेर के शिलालेख आदि भी चौहानों को सूर्यवंशी ही सिद्ध करते है। और कालान्तरण में अग्नि से सूर्य की तरफ अग्रसर हो गया ये वंश । परवर्ती इतिहास कारों ने चौहानों को राजपूत लिखा  (अ) राजपूताने चौहानों का इतिहास प्रथम भाग- ओझा पृ. 64  (ब) हिन्दू भारत का उत्कर्ष सी. वी. वैद्य पृ. 147)  इन आधारों  पं० गौरीशंकर ओझा, सी. वी. वैद्य आदि ने चौहानों को सूर्यवंशी क्षत्रिय सिद्ध किया है।  (हिन्दू भारत का उत्कर्ष पृष्ठ संख्या 140)  __________ 'परन्तु यह तथ्य भी पूर्ण रूप से प्रमाणित नहीं है । क्योंकि चौहान शब्द  भारत में लगभग चतुर्थ सदी के बाद में उदय हुआ है । श्वेत- हूणों को चाउ-हूण के नामान्तरण से भी सम्बोधित किया गया है ।  यूरोपीय इतिहास में चाउ-हूण  चोल या चॉहल्स के वंशज हैं । चौहल्स नाम लेबनान, इज़राइल और मध्य एशियाई देशों के मूल निवासीयों में भी पाया जाता है। यही वह अवधि थी जब चहल गजनी क्षेत्र में ज़बुलिस्तान पर कब्जा कर रहे थे। यह वंश मध्य एशियाई है और मूल निवासीयों के साथ अंतःक्रिया के कारण यह भारतीय, ईरानी और तुर्की है।  इस चौहान शब्द का प्रयोग आज भी विभिन्न देशों में विभिन्न जातियों में प्रचलित है । जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात , पाकिस्तान, कन्या ,कनाडा ,औमान , फिजी ,आदि । चाउ-हूण कबीले के लोग चतुर्थ  सदी में कैस्पीयन समुद्र के पूर्व में वस गये थे । भारत में लगभग छठवीं और सातवीं सदी में इस चौहान शब्द का भारत में आगमन भी हुआ। भारत में चौहानों का प्राचीन इतिहास का प्रारम्भ...👇 चौहानों के राज्य :- 1. अजमेर राज्य :- पृथ्वीराज प्रथम के पुत्र अजयराज हुए ; उन्होंने ही उज्जैन  पर आक्रमण कर मालवा के परमार शासक नरवर्मन को पराजित किया था ।  अपनी सुरक्षा के लिए उन्होनें विक्रम संवत् 1113  से 1170 के लगभग अजमेर नगर की स्थापना की यही से सांभर-अजमेर राजवंश का उदय हुआ  जिसमे वासुदेव प्रथम राजा थे ।👇 १-वासुदेव २-सामंत ३-नरदेव ४-जयराज ५-विग्रहराज ६-चन्द्रराज (प्रथम) ७-गोपेन्द्रराज (प्रथम) ८-दुर्लभराज ९-गोपेन्द्रराज (गुहक) १०-चन्द्रराज (चन्दनराज)   ११-गुहक   १२-चन्द्रराज  १३-वाक्पतिराज (प्रथम) १४-सिंहराज  १५-सिंहराज (950) १६-विग्रहराज द्वितीय (973) १७-दुर्लभराज  (973-997) १८-गोविन्दराज  १९-वाक्पतिराज  २०-वीर्यराज  २१-चामुंडराज २२-सिंहट  २३दुर्लभराज  (1075-1080) २४-विग्रहराज (1080-1105) _________________________ ✍२५-पृथ्वीराज ( प्रथम)1105-1113) २६-अजयराज (1113-1133) २७-अर्णोराज (1133-1151) २८-विग्रहदेव (विसलदेव)(1152-1163) २९-अपर गांगये (1163-1166) ________________________ ✍३०-पृथ्वीराज  (द्वितीय )(1167-1169) ३१-सोमेश्वर (1170-1177)👇 ✍३२-पृथ्वीराज (तृत्तीय) (1179-1192) ३३-गोविन्दराज (1192-) ३४-हरिराज (1192-1194) __________________________________________ 2. रणथम्भौर राज्य :-👇 पृथ्वीराज चौहान(तृत्तीय) (सन् 1179-1192)  गुर्जरों के चाउ-हूण कबीले के ही राजा थे । चौहान चैची   गुर्जरों का गोत्र है । 12 वीं सदी के उत्तरार्ध में राजस्थान(अजमेर) और दिल्ली पर राज्य किया।  रासो ग्रन्थों में पृथ्वीराज को 'राय पिथौरा' भी कहा गया है।  वह गुर्जरों के चौहान गौत्र के प्रसिद्ध राजा थे। 👇 पृथ्वीराज चौहान का जन्म अजमेर राज्य के वीर गुर्जर महाराजा सोमश्वर के यहाँ हुआ था। वही सोमेश्वर जो चालुक्यराज जयसिंह द्वितीय जगदेकमल्ल के पुत्र थे।  इनकी माता का नाम कपूरी देवी था जिन्हें पूरे बारह वर्ष के बाद पुत्र रत्न कि प्राप्ति हुई थी।  पृथ्वीराज के जन्म से राज्य में राजनैतिक खलबली मच गई उन्हें बचपन में ही मारने के कई प्रयत्न किए गए 'परन्तु वे बचते गए।  पृथ्वीराज चौहान जो कि  मूलत: गुर्जर  ही थे बचपन से ही तीर और तलवारबाजी के शौकिन थे।  उन्होंने बाल अवस्था में ही शेर से लड़ाई कर उसका जबड़ा फार डाला।  पृथ्वीराज के जन्म के समय ही महाराजा सोमेश्वर को एक अनाथ बालक मिला जिसका नाम चन्दबरदाई रखा गया।  जिसे  कविताऐं लिखने का शौक था ; चन्दबरदाई और पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही अच्छे मित्र और परस्पर भाई के समान व्यवहार करते थे।  पृथ्वीराज की ननिहाल दिल्ली में ही थी ।  नाना अनंगपाल द्वितीय 1046 (1052 महरौली के लौह स्तंभ पर शिलालेख) से  पृथ्वीराज को विरासत में दिल्ली  का राज्य मिला । दिल्ली नामकरण भी  दिल्लों नाम के  गुर्जर या जाट  राजाओं के आधार पर हुआ । _______ आज ढिल्लों एक जाट गोत्र है।✍ सन्दर्भ:-👇 ✍↑ डॉ ओमपाल सिंह तुगानिया (2010). जाट समुदाय के प्रमुख आधार बिंदु. जयपाल एजेन्सीज. पृ॰ 42. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-86103-96-1. _________ विदित हो की तोमर भी जाट और गुर्जर गोत्र हैं जो कालान्तरण में राजपूत संघ में भी समाहित हो गये  एक समय दिल्ली में अनंगपाल तंवर ( तोमर) गुर्जर राजा शासन करते थे । यद्यपि तोमर गुर्जरों के सहवर्ती ही थे । पृथ्वीराज के नाना तोमर थे । लोहाया तौंबर अभंग मुहर सब्ब सामंत ।—पृथ्वीराजसो, ४ । १९ । ________ चौहान और तोमर जाटों के गौत्र भी हैं ।👇 तोमर जाटों का वह समूह, जो राजस्थान में बधाल नामक स्थान पर बसा था, वह बधाला गोत्र के नाम से मशहूर हुआ। तोमर जाट जो भिण्ड शहर से फैल उन्हें भिण्ड तोमर कहा गया तोमर जाट गोत्र का उप गोत्र भिंडा (भिण्ड तोमर) है। भिण्ड मध्य प्रदेश में एक जिला है तोअर (तुअर) जाट गोत्र हिन्दी में तोमर और पंजाबी और देसी बोली में (तुअर जट) कहा जाता है। जब दिल्ली के अंतिम तोमर राजा अनंगपाल ने अपने राज्यों को खो दिया तो सलाक्शपाल तोमर फिर से अपने परिवार के 84 गांवों के 84 तोमर देश खाप की स्थापना की , । राजा सलाक्शपाल तोमर की समाधि स्थल बदोत नई ब्लॉक कृषि प्रसार विभाग से सटे दिल्ली सहारनपुर रोड पर है।  महाभारत में तोमर जाति का उल्लेख है :- महाभारत के भीष्म पर्व । 👇 प्रोषकाश्च कलिङ्गाश्च किरातानां च जातयः।  तोमरा हन्यमानाश्च तथैव करभञ्जकाः ॥  6-9-69 (39002)  ये किरात जातियों के जनपद, तोमर, हन्यमान् और करभञ्जक इ‍त्यादि है।  कालान्तरण में ये राजपूतों में या गूजरों मेंं समाहित हो गये । वायु पुराण (47/56) का कहना है कि नदी नलिनी बिंदुसारा से मध्य एशिया में बढ़ती है तोमर की भूमि के माध्यम से पारित वे वायु ब्रह्माण्ड, और विष्णु पुराण में नाम हैं. 1337 ई.के बोहर शिलालेख के अनुसार तोमर दिल्ली में चौहान से पहले सत्तारूढ़ थे पेहोवा शिलालेख में एक तोमर जायूला राजा से उतरते परिवार का उल्लेख है.  महाभारत में भीष्म पर्व, महाभारत / खण्ड छठे में 68वें श्लोक में उल्लेख तोमर (VI.68.17)   कर्ण पर्व महाभारत खण्ड अष्टम के 17 अध्याय विभिन्न श्लोकों में तोमर जाति का वर्णन 👇 VIII.17.3, VIII.17.4, VIII.17.16, VIII.17.20, VIII.17.22, VIII.17.104  _____ -an eastern hill tribe; फलकम्:F1: Br. II. १६. ५१; M. १२१. ५८; वा. ४५. १२०; ४७. ५६.फलकम्:/F an eastern kingdom; फलकम्:F2: Br. II. १६. ६८.फलकम्:/F country of the, watered by the नलिनी. फलकम्:F3: Ib. II. १८. ५९.फलकम्:/F TOMARA : A place of habitation situated on the north- east part of Bhārata. (Śloka 69, Chapter 9, Bhīṣma Parva). __________🌸🐵 संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'तोमर' ५ । उ०— कमध्वज कूरम गोड़ तँबर परिहार अमानो ।— ह० रासो०, पृ० १२२ । पृथ्वीराज को नाना से विरासत में दिल्ली का राज्य भी मिल गया । एक देश का नाम जिसका उल्लेख कई पुराणों में है । ४. इस देश का निवासी । ये किरात जातियों के जनपद, तोमर, हन्यमान् और करभञ्जक इ‍त्यादि है।  कालान्तरण में ये राजपूतों में या गूजरों मेंं समाहित हो गये । यह एक प्राचीन राजवंश जिसका राज्य दिल्ली में आठवीं से बारहवीं शताब्दी तक था ।  विशेष—प्रसिद्ध राजा अनंगपाल (पृथ्वीराज के नाना) इसी वंश को थे ।  पीछे से तोमरों ने कन्नौज को अपना राजनगर बनाया था   कन्नौज में इस वंश के प्रसिद्ध राजा जयपाल हुए थे । आजकल इस वंश के बहुत ही कम राजपूत पाए जाते हैं   उसके अधिकार में दिल्ली से लेकर अजमेर तक का विस्तृत भूभाग हो गया था। _________________________ पृथ्वीराज ने अपनी राजधानी दिल्ली का निर्माण नये सिरे से किया।  तोमर नरेश ने एक गढ़ के निर्माण का शुभारंभ किया था, जिसे पृथ्वीराज ने सबसे पहले इसे विशाल रूप देकर पूर्ण किया।  वह उनके नाम पर पिथौरागढ़ कहलाता है औरआज भी  दिल्ली के पुराने क़िले के नाम से जीर्णावस्था में विद्यमान है।  कई इतिहासकारों के अनुसार अग्निकुल गुट मूल रूप से गुर्जर थे और चौहान गुर्जर के प्रमुख कबीले था।  चौहान गुर्जर के चेची कबीले से मूल निकाले जाते हैं।  यह बता चुके हैं।   मुब्बई गजेटियर के अनुसार चेची गुर्जर ने अजमेर पर 700 साल राज किया।  इससे पहले मध्य एशिया में तारिम बेन (झिंजियांग प्रांत) के रूप में जाना जाता था; ये उस क्षेत्र में रहते थे। हूण गुर्जरों से सम्बद्ध थे।  या गूजरों का सम्बन्ध हूणों से था। यह विषय अलग-अलग है। (चीन के झिंजियांग प्रांत) से (Chau- han) शब्द का प्रकाशन हुआ । यह समय लगभग (200 ईसा पूर्व)का है । चीन के  "चू" (चाउ) राजवंश और चीन के "हान" राजवंश के बीच वर्चस्व की लड़ाई जिसमे (yuechis / Gujars) भी इस विवाद का हिस्सा थे।  ये लोग चाउ औरहूण के संयोजन थे। वहाँ ये गुर्जर  कजर कहलाते थे। गुर्जर जब भारत में अरब सैनिकों से लड़ते थे ।  जब वे "चू-हान" (चाउ-हून) शीर्षक अपने बहादुर सैनिकों को सम्मानित करने के लिए प्रयोग किया जाता था जो बाद मे चौहान कहा जाने लगा। _____________________________________________   पृथ्वीराज चौहान की माता  कपूरी देवी, एक कलचुरी (चेडी) की राजकुमारी, (त्रपूरी के अचलराजा की पुत्री) थीं  मुहम्मद गौरी ने भारत पर कई बार हमला किया था । पहली लड़ाई 1178 ईसवी में माउंट आबू के पास कायादर्रा पहाड़ी पर लड़ी गयी और पृथ्वीराज ने गौरी को पूर्ण हराया था।  इस हार के बाद गौरी गुजरात के माध्यम भारत में कभी नही घुसा । 1191 में तारोरी की पहली लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान ने घुड़सवार सेना और गोरी पर कब्जा कर लिया।  गोरी ने अपने जीवन की भीख मांग ली ।  पृथ्वीराज ने उसे दोबारा ना घुसने की चेतावनी देकर उसको सेनापतियों के साथ जाने की अनुमति दी। मोहम्मद गोरी और गयासुद्दीन गजनी ने 1175. में भारत आक्रमण शुरू कर दिया।  और 1176 में मुल्तान पर कब्जा कर लिया .. 1178 ईस्वी में मोहम्मद गोरी ने गुजरात पर आक्रमण किया और गुर्जरेश्वर भीमदेव सौलंकी ने अच्छी तरह से हरा दिया और गुजरात से वापस भगा दिया ।  यह वही समय था जब पृथ्वीराज चौहान अजमेर और दिल्ली के सिंहासन पर चढ़े थे ।  उस समय तक"गुर्जर शासक " गोरी के आगामी खतरे से अच्छी तरह परिचित थे।  गुर्जरेश्वर भीमदेव सोलंकी ने "गुर्जर मंडल" नामक एक संघ के तहत सभी "क्षत्रिय" शासकों को एकत्र किया ।  गोरी 1186 ईस्वी में पंजाब पर कब्जा कर लिया।  चौहान इस समय तक सुप्रीम लॉर्ड्स बन गया था । .. 1187-88 ईस्वी सन् में गुर्जरेश्वर भीमदेव और पृथ्वीराज भी रक्त के द्वारा एक दूसरे से संबंधित थे । तो भीमदेव ने इस समूह का नेतृत्व करने के लिए पृथ्वीराज से पूछा।पृथ्वीराज ने तारेन (1191 ईस्वी) में गोरी के खिलाफ लड़ाई लड़ी।  जिसमे गुर्जरों की अन्य शाखा खोखर, घामा, भडाना, सौलंकी, प्रतिहार और रावत ने भाग लिया।  खांडेराव धामा (पृथ्वीराज की पहली पत्नी का भाई) के आदेश के तहत गुर्जरो और खोखर के संयुक्त सैनिकों ने मुसलिमों को बुरी तरह हराया और सीमा तक उनका पीछा किया।  गौरी बुरी तरह घायल हो गया था और उसकी घुड़सवार द्वारा युद्ध के मैदान से दूर ले जाया गया था।    "पृथ्वीराज विजय" और "पृथ्वीराज रासो" में कहा कि उन्हें पृथ्वीराज द्वारा कब्जा कर लिया गया था बल्कि वह भाग खडा हुआ और एक साल (1192 ईस्वी) के बाद गौरी दोगुने सैनिकों के साथ लौट आया इस समय तक खोखार गुर्जर से चला गया , सोलंकी और चौहान के बीच एक अजीब प्रतिद्वंद्विता शुरू हो गई।  यह पृथ्वीराज की एकल सैनिकों की हार थी ।  और घामा को तार्रेन युद्ध के पहले दिन में मौत की सजा दे दी गई ।  पृथ्वीराज को भी गौरी के दास द्वारा हार का नेत्रृत्व करना पडा । जिसका  कुतुब-उद-दीन-ऐबक नाम दिया है।  जिसको बाद मे दिल्ली की गद्दी इनाम के रूप मे दी गई पृथ्वीराज अपनी मौत से मिलने के लिए स्पष्ट रूप से अपनी अदालत में गोरी को मारता है और कैसे यह है।  पृथ्वीराज चौहान की कब्र गोरी की कब्र के बगल में आज तक मौजूद है।  और 1200 के आसपास चौहान की हार के बाद राजस्थान का एक हिस्सा मुस्लिम मुगल शासकों के अधीन आ गया।  और इसी समय से भारत में राजपूती करण का नया तुर्क-मंगोली संस्करण उत्पन्न हुआ । अब ये गुजरों के वंशज राजपूत संघ में सम्मिलित होकर स्वयं को राजपूत कहने लगे । शक्तियों का प्रमुख केन्द्रों नागौर और अजमेर ही  थे।  पृथ्वीराज भी 1195 ईस्वी में हार के बाद गुर्जरेश्वर का ताज अजमेर के हमीर सिंह चौहान ( पृथ्वीराज का भाई) ने लिया इसके बाद कन्नौज (1193 ईस्वी), अजमेर (1195), अबध,  बिहार (1194), ग्वालियर (1196), अनहीलवाडा (1197), चंदेल (1201 ईस्वी) पर मुसलमानों द्वारा कब्जा कर लिया गया और "गुर्जर मंडल" उस के बाद ही  समाप्त हो गया राजपूत संघ का उदय 👇✍ __________________________________________ यह केवल 1400 ईस्वी के बाद एक नए नाम "राजपूत" के साथ इतिहास में दिखा ।  1398 ईस्वी में हिंदू योद्धाओं को लैंग की 'आमिर तैमूर' द्वारा 'राजपूत' के रूप में संबोधित कर रहे थे।  राजपूत, राजा का पुत्र या बेटे से मतलब नहीं है।  राजपूत"राज्य-पुत्र" जिसका मतलब "राज्य के बेटे" से है।  और आक्रमणकारियों से अपने राज्य वापस पाने के लिए आयोजित किया जाता था  ______________________________________________ विदित हो कि राजपूत संघ  तत्कालीन पुरोहितों के द्वारा राजस्थान(मारवाड़ क्षेत्र में) 13 वीं सदी के दौरान मुस्लिम और, बौद्ध  आक्रमणकारियों से लड़ने के लिए बनाई गई थी।  यह प्रसिद्ध गुर्जर कुलों यानी (प्रतिहार, पंवार, चालुक्य, चौहान, गुहीलोट, गेहडवाल, चंदेल, तोमर/तंवर, छावडा, घामा) आदि का समन्वय था । गुर्जर भी जातियों का संघ था । जाट,  गूजर और राजपूत तीनों में हैं । य अहीर एक ही जाति थी  राजपूत संघ के लिए इसी समय जैसलमेर और देवगिरि , करौली आदि रियासतों से  अहीर या पाल यादवों के संयोग से  दहिया और खोखरस तरह के कुछ चयनित  जाट यौद्धा जनजातियों  से राजपूत संघ का निर्माण हुआ । यद्यपि सत्रहवीं सदी के भरत पुर के राजा सूरज मल यदुवंशी जाट थे  'परन्तु उन्होंने राजपूत संघ को स्वीकार नहीं किया । गुर्जर जाति के चौहान पश्चिमी उत्तर प्रदेश (कलश्यान चौहान), मैनपुरी उत्तर प्रदेश में और राजस्थान के नीमराना अलवर जिले में हैं, जो अव स्वयं को राजपूत ही मानते हैं । गुर्जर शब्द को भूल गये । चौहान आज मुसलिमों सुखों और हिन्दुओं का जन समुदाय भी है । यहां के चौहान मुख्यतः हिंदू हैं । जो गुर्जर और राजपूत दो पुराने और नये संस्करण में विद्यमान हैं । और एक दूसरे के प्रतिद्वन्द्वीयों में सुमार हैं ।   चौहान पंजाब में वे सिख हैं।  पाकिस्तान में चौहानों मुख्य रूप से मुसलमान हैं।  अनंगपाल तंवर और पृथ्वीराज चौहान मूलत: गुर्जर ही  थे। गुर्जर शब्द गौश्चर मूलक विशेषण है । जो गोपालन वृत्ति वाले कई समुदाय थे। मध्य कालीन इतिहास कारों ने गुर्जरों कोअहीरों की उपजाति बताया है ।👇🌸 तीन गाँव गुर्जर तंवरों के आज भी दिल्ली के महरौली में स्थित हैं ,  दक्षिण दिल्ली में 40 से अधिक गांव गुर्जर तंवरों (मुस्लिम) के गुड़गांव में हैं।  और अभी भी तंवरो को दिल्ली का राजा कहा जाता है।  पाकिस्तान के एक प्रसिद्ध लेखक (राणा अली हसन चौहान) जिनका परिवार विभाजन के दौरान पाकिस्तान चला गया, वह पृथ्वीराज की 37 वीं पीढ़ी से हैं।  'परन्तु वे आज मुसलिमों में सुमार हैं । दिल्ली के समीप वर्ती  प्रवासन और गुर्जर चौहान के तुपराना, कैराना, नवराना और यमुना नदी के तट पर अन्य गुर्जर चौहानों के गांव अभी भी मौजूद हैं,  इसके अलावा दापे चौहान और देवड़ा चौहान के 84 गांव यूपी में हैं।  इस लिए प्रतिहार, सौलंकी और तंवर के साथ पृथ्वीराज के संबंध थे।  1178 ईस्वी में गुर्जर मंडल का उनका गठन और उनकी वर्तमान पीढी अजमेर के चौहान शासकों अजय पाल, पृथ्वीराज ,जगदेव, विग्रहराज पंचम ,अपरा गंगेया, पृथ्वीराज द्वितीय, और सोमेश्वर हैं।  मैनपुरी के चौहान शासकों में प्रताप रुद्र, वीर सिंह, घारक देव, पूरन चंद देव, करण देव और महाराजा तेज सिंह चौहान अब राजपूत संघ सम्बद्ध हैं। गुर्जर समाज में जन्मे  महापुरुषों में सुमार भगवान देवनारायण चौहान थे और 24 बगडावत राजा भी गुर्जर चौहान थे ,  इसी वंश से आगे चलकर पैदा हुए थे पृथ्वीराज चौहान  पृथ्वीराज रासो में जिन चौहानो की चौरासी गाँव का वर्णन है वो 84 गाँव आज भी गुर्जरो के है शामली कैराना में । दिल्ली के राजा रहे गुर्जर अनंगपाल तंवर जिन्होने अपनी बेटी का विवाह गुर्जर के चौहान गौत्र मे किया ।  उनकी बेटी के पुत्र का नाम था पृथ्वीराज चौहान ही कहलाया ।  राजा अनंपाल तंवर ने अपना राजपाठ अपनी बेटी के पुत्र पृथ्वीराज चौहान को दिया ।  अनंगपाल तंवर के राजपाठ मे बहुत ज्यादा संख्या मे तंवरो के गाव थे जहा अाज भी दिल्ली के तंवरो के गाव मे बहुत ज्यादा संखंया मे तंवर गुर्जर रहते है। उस वक्त राजपूत थे भी नही तो पृथ्वीराज का राजपूत होने का तो सवाल ही नही पैदा होता क्योकि राजपूत शब्द का पुराने ग्रथो में कही भी कोई उससे ख नही है , ये शब्द ग्याहरवीं शताब्दी के बाद दिखाइ देता है। _________________________________ जिसे पुराणों तथा स्मृति कारों''ने इस प्रकार से वर्ण संकर Hybrid रूप में वर्णित किया है ।👇 ब्रह्मवैवर्तपुराणम् में भी राजपूत की उत्पत्ति का वर्णन👇 इसी करण कन्या को चारणों ने करणी माता के रूप में अपनी कुल देवी स्वीकार कर लिया है । जिसका विवरण हम आगे देंगे - ज्वाला प्रसाद मिश्र ( मुरादावादी) 'ने अपने ग्रन्थ जातिभास्कर में पृष्ठ संख्या 197 पर राजपूतों की उत्पत्ति का हबाला देते हुए उद्धृत किया कि ब्रह्मवैवर्तपुराणम् ब्रह्मवैवर्तपुराणम्‎ (खण्डः १ -(ब्रह्मखण्डः) ← अध्यायः१० ब्रह्मवैवर्तपुराणम् श्लोक संख्या १११ _______ क्षत्रात्करणकन्यायां राजपुत्रो बभूव ह ।।  राजपुत्र्यां तु करणादागरीति प्रकीर्तितः।।  1/10।।111  ब्रह्मवैवर्तपुराणम् में भी राजपूत की उत्पत्ति  क्षत्रिय से करण (चारण) कन्या में राजपूत उत्पन्न हुआ और राजपुतानी में करण पुरुष से आगरी उत्पन्न हुआ । तथा स्कन्द पुराण सह्याद्रि खण्ड अध्याय 26 में राजपूत की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए कहा " कि क्षत्रिय से शूद्र जाति की स्त्री में राजपूत उत्पन्न होता है यह भयानक, निर्दय , शस्त्रविद्या और रण में चतुर तथा शूद्र धर्म वाला होता है ;और शस्त्र वृत्ति से ही अपनी जीविका चलाता है ।👇 ( स्कन्द पुराण सह्याद्रि खण्ड अध्याय 26) और ब्रह्मवैवर्तपुराणम् में भी राजपूत की उत्पत्ति  क्षत्रिय से करण (चारण) कन्या में राजपूत उत्पन्न हुआ और राजपुतानी में करण पुरुष से आगरी उत्पन्न हुआ । आगरी संज्ञा पुं० [हिं० आगा] नमक बनानेवाला पुरुष ।  लोनिया ये बंजारे हैं । प्राचीन क्षत्रिय पर्याय वाची शब्दों में राजपूत ( राजपुत्र) शब्द नहीं है । विशेष:- उपर्युक्त राजपूत की उत्पत्ति से सम्बन्धित पौराणिक उद्धरणों में करणी (चारण) और शूद्रा दो कन्याओं में क्षत्रिय के द्वारा राजपूत उत्पन्न होने में सत्यता नहीं क्योंकि दो स्त्रियों में एक पुरुष से सन्तान कब से उत्पन्न होने लगीं । और रही बात राजपूतों की तो राजपूत एक संघ है  जिसमें अनेक जन-जातियों का समायोजन है । चारण, भाट , लोधी( लोहितिन्) कुशवाह ( कृषिवाह) बघेले आदि और कुछ गुर्जर जाट और अहीरों से भी राजपूतों का उदय हुआ । "ब्रह्म वैवर्तपुराण में राजपूतों की उत्पत्ति क्षत्रिय के द्वारा करण कन्या से बताई "🐈 करणी मिश्रित या वर्ण- संकर जाति की स्त्री होती है  ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार करण जन-जाति वैश्य पुरुष और शूद्रा-कन्या से उत्पन्न है। और करण लिखने का काम करते थे । ये करण ही चारण के रूप में राजवंशावली लिखते थे । एेसा समाज-शास्त्रीयों ने वर्णन किया है । तिरहुत में अब भी करण पाए जाते हैं । लेखन कार्य के लिए कायस्थों का एक अवान्तर भेद भी करण कहलाता है  । करण नाम की एक आसाम, बरमा और स्याम की  जंगली जन-जाति है । क्षत्रिय पुरुष से करण कन्या में जो पुत्र पैदा होता उसे राजपूत कहते हैं। वैश्य पुरुष और शूद्रा कन्या से उत्पन्न हुए को करण कहते हैं । और ऐसी करण कन्या से क्षत्रिय के सम्बन्ध से राजपुत्र (राजपूत) पैदा हुआ। वैसे भी राजा का  वैध पुत्र राजकुमार कहलाता था राजपुत्र नहीं  । चारण जो कालान्तरण में राजपूतों के रूप में ख्याति-लब्ध हुए और अब इसी राजपूती परम्पराओं के उत्तराधिकारी हैं । _______ स्कन्द पुराण के सह्याद्रि खण्ड मे अध्याय २६ में  वर्णित है । शूद्रायां क्षत्रियादुग्र: क्रूरकर्मा: प्रजायते। शस्त्रविद्यासु कुशल: संग्राम कुशलो भवेत्।१  तया वृत्या: सजीवेद्य: शूद्र धर्मा प्रजायते । राजपूत इति ख्यातो युद्ध कर्म्म विशारद :।।२। कि राजपूत क्षत्रिय द्वारा शूद्र कन्याओं में उत्पन्न सन्तान है  जो क्रूरकर्मा शस्त्र वृत्ति से सम्बद्ध युद्ध में कुशल होते हैं । ये युद्ध कर्म के जानकार और शूद्र धर्म वाले होते हैं । ज्वाला प्रसाद मिश्र' मुरादावादी'ने जातिभास्कर ग्रन्थ में पृष्ठ संख्या १९७ पर राजपूतों की उत्पत्ति का एेसा वर्णन किया है । स्मृति ग्रन्थों में राजपूतों की उत्पत्ति का वर्णन है👇  राजपुत्र ( राजपूत)वर्णसङ्करभेदे (रजपुत) “वैश्यादम्बष्ठकन्यायां राजपुत्रस्य सम्भवः”  इति( पराशरःस्मृति ) वैश्य पुरुष के द्वारा अम्बष्ठ कन्या में राजपूत उत्पन्न होता है। इसी लिए राजपूत शब्द ब्राह्मणों की दृष्टि में क्षत्रिय शब्द की अपेक्षा हेय है । राजपूत बारहवीं सदी के पश्चात कृत्रिम रूप से निर्मित हुआ । पर चारणों का वृषलत्व कम है ।  इनका व्यवसाय राजाओं ओर ब्राह्मणों का गुण वर्णन करना तथा गाना बजाना है ।  चारण लोग अपनी उत्पत्ति के संबंध में अनेक अलौकिक कथाएँ कहते हैं;   कालान्तरण में एक कन्या को देवी रूप में स्वीकार कर उसे करणी माता नाम दे दिया  करण या चारण का अर्थ मूलत: भ्रमणकारी होता है । चारण जो कालान्तरण में राजपूतों के रूप में ख्याति-लब्ध हुए और अब इसी राजपूती परम्पराओं के उत्तराधिकारी हैं । करणी चारणों की कुल देवी है । ____________ सोलहवीं सदी के, फ़ारसी भाषा में "तारीख़-ए-फ़िरिश्ता  नाम से भारत का इतिहास लिखने वाले इतिहासकार, मोहम्मद क़ासिम फ़िरिश्ता ने राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में लिखा है कि जब राजा,  अपनी विवाहित पत्नियों से संतुष्ट नहीं होते थे, तो अक्सर वे अपनी महिला दासियो द्वारा बच्चे पैदा करते थे, जो सिंहासन के लिए वैध रूप से जायज़ उत्तराधिकारी तो नहीं होते थे, लेकिन राजपूत या राजाओं के पुत्र कहलाते थे।[7][8]👇 सन्दर्भ देखें:- मोहम्मद क़ासिम फ़िरिश्ता की इतिहास सूची का ... [7] "History of the rise of the Mahomedan power in India, till the year A.D. 1612: to which is added an account of the conquest, by the kings of Hydrabad, of those parts of the Madras provinces denominated the Ceded districts and northern Circars : with copious notes, Volume 1". Spottiswoode, 1829. पृ॰ xiv. अभिगमन तिथि 29 Sep 2009 [8] Mahomed Kasim Ferishta (2013). History of the Rise of the Mahomedan Power in India, Till the Year AD 1612. Briggs, John द्वारा अनूदित. Cambridge University Press. पपृ॰ 64–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-108-05554-3. ________ विशेष:- उपर्युक्त राजपूत की उत्पत्ति से सम्बन्धित पौराणिक उद्धरणों में करणी (चारण) और शूद्रा दो कन्याओं में क्षत्रिय के द्वारा राजपूत उत्पन्न होने में सत्यता नहीं क्योंकि दो स्त्रियों में एक पुरुष से सन्तान कब से उत्पन्न होने लगीं  'परन्तु कुछ सत्य अवश्य है । कालान्तरण में राजपूत एक संघ बन गयी  जिसमें कुछ चारण भाट तथा विदेशी जातियों का समावेश हो गया। और रही बात आधुनिक समय में राजपूतों की तो ; राजपूत एक संघ है । जिसमें अनेक जन-जातियों का समायोजन है । जैसे चारण, भाट , लोधी( लोहितिन्) कुशवाह ( कृषिवाह) बघेले आदि और कुछ गुर्जर जाट और अहीरों से भी राजपूतों का उदय हुआ । _____  'परन्तु बहुतायत से चारण और भाट या भाटी बंजारों का समूह ही राजपूतों में समायोजन हुआ है । मुगल काल से राजपूत शब्द प्रकाश में आया  कुछ प्रसिद्ध इतिहास भी कहते हैं । कि पृथ्वीराज चौहान गुर्जर चौहान गोत्र के थे ।  जबकि गुर्जरो के पूज्य भगवान देवनारायण भी स्वयं चौहान वंशीय थे सवाई भोज अजमेर के राजा बीसलदेव के भाई (चचेरे भाई) थे।  बीसलदेव के बाद अजमेर की गद्दी पर महेंद्र सिंह चौहान आसीन हुए जो की भगवान देवनारायण का भाई थे।  अब ऐसा कैसे हो सकता है की एक भाई गुर्जर एक भाई राजपूत हो  _______________________________________________ भारतीय पुराणों में मिथकीय रूप में गुर्जरों से उत्पन्न चौहान प्रतिहार सौलंकी परहार आदि का राजपूती करण इस प्रकार किया गया 👇 और एक काल्पनिक रूप से कथा या आख्यानक बनाया गया   चह्वान (चतुर्भुज) अग्निवंश के सम्मेलन कर्ता ऋषि १.वत्सन ऋषि,२.भार्गव ऋषि,३.अत्रि ऋषि,४.विश्वामित्र,५.च्यवन ऋषि । विभिन्न ऋषियों ने प्रकट होकर अग्नि में आहुति दी तो विभिन्न चार वंशों की उत्पत्ति हुयी जो इस इस प्रकार से है- १.पाराशर ऋषि ने प्रकट होकर आहुति दी तो परिहार की उत्पत्ति हुयी (पाराशर गोत्र) २.वशिष्ठ ऋषि की आहुति से परमार की उत्पत्ति हुयी (वशिष्ठ गोत्र) ३.भारद्वाज ऋषि ने आहुति दी तो चालुक्य (सोलंकी )की उत्पत्ति हुयी (भारद्वाज गोत्र) ४.वत्सन ऋषि ने आहुति दी तो चतुर्भुज चौहान की उत्पत्ति हुयी (वत्स गोत्र) चौहानों की उत्पत्ति आबू शिखर मे हुयी इस विषय में  ब्राह्मणों 'ने कालान्तरण में हिन्दी में एक दोहा भी रच दिया  जिसमें बताया की बौद्धों को परास्त करने के लिए यज्ञकुण्ड से चार क्षत्रिय ब्राह्मणों 'ने उत्पन्न किये ।👇 दोहा- चौहान को वंश उजागर है,जिन जन्म लियो धरि के भुज चारी, बौद्ध मतों को विनास कियो और विप्रन को दिये वेद सुचारी॥ चौहान की कई पीढियों के बाद अजय पाल  पैदा हुये जिन्होने आबू पर्वत छोड कर अजमेर शहर बसाया अजमेर मे पृथ्वी तल से १५ मील ऊंचा तारागढ किला बनाया जिसकी वर्तमान में १० मील ऊंचाई है,महाराज अजयपाल जी चक्रवर्ती सम्राट हुये.। इसी में कई वंश बाद माणिकदेवजू हुये,जिन्होने सांभर झील बनवाई थी। सांभर बिन अलोना खाय,माटी बिके यह भेद कहाय" इनकी बहुत पीढियों के बाद माणिकदेवजू उर्फ़ लाखनदेवजू हुये इनके चौबीस पुत्र हुये और इन्ही नामो से २४ शाखायें चलीं चौबीस शाखायें इस प्रकार से है- ______ यद्यपि भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व में अनुसार चौहान शब्द की काल्पनिक व्युत्पत्ति कर डाली है । चापिहान के रूप में 👇 ऐैतिहासिक घटनाओं का वर्णन प्रतिसर्ग पर्व में वर्णित है। ---जो बड़ी चालाकी से भविष्य की घटना निर्धारित कर दी  परन्तु इसे पुराण में अनेक शब्द व्युत्पत्ति मूलक रूप से प्रक्षिप्त हैं । जैसे पृथ्वीराज चौहान को चापिहान लिखना जैसे चौहान शब्द चापिहान का ही तद्भव रूप हो ! परन्तु मूर्ख लेखक को शब्द व्युत्पत्ति का कोई ऐैतिहासिक ज्ञान नहीं था । की चाउ-हून से चौहान शब्द बना है। _______________________________________________ १. मुहुकर्ण जी उजपारिया या उजपालिया चौहान पृथ्वीराज का वंश २.लालशाह उर्फ़ लालसिंह मदरेचा चौहान जो मद्रास में बसे हैं। ३. हरि सिंह जी धधेडा चौहान बुन्देलखंड और सिद्धगढ में बसे है। ४. सारदूलजी सोनगरा चौहान जालोर झन्डी ईसानगर मे बसे है। ५. भगतराजजी निर्वाण चौहान खंडेला से बिखराव । ६. अष्टपाल जी हाडा चौहान कोटा बूंदी गद्दी सरकार से सम्मानित किया २१ तोपों की सलामी से । ७.चन्द्रपाल भदौरिया चौहान चन्द्रवार भदौरा गांव नौगांव जिला आगरा से सम्बद्ध है । . शूरसेन जी देवडा चौहान सिरोही (सम्मानित) १०.सामन्त जी साचौरा चौहान सन्चौर का राज्य टूट गया ११.मौहिल जी मौहिल चौहान मोहिल गढ का राज्य टूट गया १२.खेवराज जी उर्फ़ अंड जी वालेगा चौहान पटल गढ का राज्य टूट गया बिखराव १३. पोहपसेन जी पवैया चौहान पवैया गढ गुजरात १४. मानपाल जी मोरी चौहान चान्दौर गढ की गद्दी १५. राजकुमारजी राजकुमार चौहान बालोरघाट जिला सुल्तानपुर में १६.जसराजजी जैनवार चौहान पटना बिहार गद्दी टूट गयी १७.सहसमल जी वालेसा चौहान मारवाड गद्दी १८.बच्छराजजी बच्छगोत्री चौहान अवध में गद्दी टूटगयी. १९.चन्द्रराजजी चन्द्राणा चौहान अब यह कुल खत्म हो गया है २०. खनगराजजी कायमखानी चौहान झुन्झुनू मे है लेकिन गद्दी टूट गयी है,मुसलमान बन गये है २१. हर्राजजी जावला चौहान जोहरगढ की गद्दी थे लेकिन टूट गयी. २२.धुजपाल जी गोखा चौहान गढददरेश मे जाकर रहे. २३.किल्लनजी किशाना चौहान किशाना गोत्र के गूजर हुये जो बांदनवाडा अजमेर मे है २४.कनकपाल जी कटैया चौहान सिद्धगढ मे गद्दी (पंजाब) उपरोक्त प्रशाखाओं में अब करीब १२५ हैं बाद में आनादेवजू पैदा हुये आनादेवजू के सूरसेन जी और दत्तकदेवजू पैदा हुये सूरसेन जी के ढोडेदेवजी हुये जो ढूढाड प्रान्त में था,यह नरमांस भक्षी भी थे. ढोडेदेवजी के चौरंगी-—सोमेश्वरजी--—कान्हदेव जी हुये सोम्श्वरजी को चन्द्रवंश में उत्पन्न अनंगपाल की पुत्री कमला ब्याही गयीं थीं सोमेश्वरजी के पृथ्वीराजजी हुये पृथ्वीराजजी के- रेनसी कुमार जो कन्नौज की लडाई मे मारे गये अक्षयकुमारजी जो महमूदगजनवी के साथ लडाई मे मारे गये बलभद्र जी गजनी की लडाई में मारे गये इन्द्रसी कुमार जो चन्गेज खां की लडाई में मारे गये पृथ्वीराज ने अपने चाचा कान्हादेवजी का लडका गोद लिया जिसका नाम राव हम्मीरदेवजू था हम्मीरदेवजू के-दो पुत्र हुये रावरतन जी और खानवालेसी जी रावरतन सिंह जी ने नौ विवाह किये थे और जिनके अठारह संताने थीं, सत्रह पुत्र मारे गये एक पुत्र चन्द्रसेनजी रहे चार पुत्र बांदियों के रहे खानवालेसी जी हुये जो नेपाल चले गये और सिसौदिया चौहान कहलाये. रावरतन देवजी के पुत्र संकट देवजी हुये संकटदेव जी के छ: पुत्र हुये १. धिराज जू जो रिजोर एटा में जाकर बसे इन्हे राजा रामपुर की लडकी ब्याही गयी थी २. रणसुम्मेरदेवजी जो इटावा खास में जाकर बसे और बाद में प्रतापनेर में बसे ३. प्रतापरुद्रजी जो मैनपुरी में बसे ४. चन्द्रसेन जी जो चकरनकर में जाकर बसे ५. चन्द्रशेव जी जो चन्द्रकोणा आसाम में जाकर बसे इनकी आगे की संतति में सबल सिंह चौहान हुये जिन्होने महाभारत पुराण की टीका लिखी. मैनपुरी में बसे राजा प्रतापरुद्रजी के दो पुत्र हुये १.राजा विरसिंह जू देव जो मैनपुरी में बसे २. धारक देवजू जो पतारा क्षेत्र मे जाकर बसे मैनपुरी के राजा विरसिंह जू देव के चार पुत्र हुये १. महाराजा धीरशाह जी इनसे मैनपुरी के आसपास के गांव बसे हूणों में कुछ बंजारे लोग थे जिनका मूल स्थान वोल्गा के पूर्व में था।  वे ३७० ई में यूरोप में पहुँचे और वहाँ विशाल हूण साम्राज्य खड़ा किया।  हूण वास्तव में चीन के पास रहने वाली एक जाति थी। इन्हें चीनी लोग "ह्यून यू" अथवा "हून यू" कहते थे।  कालान्तर में इसकी दो शाखाएँ बन गईँ जिसमें से एक वोल्गा नदी के पास बस गई तथा दूसरी शाखा ने ईरान पर आक्रमण किया और वहाँ के सासानी वंश के शासक फिरोज़ को मार कर राज्य स्थापित कर लिया।  बदलते समय के साथ-साथ कालान्तर में इसी शाखा ने भारत पर आक्रमण किया इसकी पश्चिमी शाखा ने यूरोप के महान रोमन साम्राज्य का पतन कर दिया। यूरोप पर आक्रमण करने वाले हूणों का नेता अट्टिला था। भारत पर आक्रमण करने वाले हूणों को श्वेत हूण तथा यूरोप पर आक्रमण करने वाले हूणों को अश्वेत हूण कहा गया भारत पर आक्रमण करने वाले हूणों के नेता क्रमशः तोरमाण व मिहिरकुल थे तोरमाण ने स्कन्दगुप्त को शासन काल में भारत पर आक्रमण किया था।  संज्ञा पुं० [देश० या सं०] एक प्राचीन मंगोल जाति जो पहले चीन की पूरबी सीमा पर लूट मार किया करती थी, पर पीछेअत्यंत प्रबल होकर अशिया और योरप के सभ्य देशों पर आक्रमण करती हुई फैली।  ______ विशेष—हूणों का इतना भारी दल चलता था कि उस समय के बड़े बड़े सभ्य साम्राज्य उनका उवरोध नहीं कर सकते थे।  चीन की ओर से हटाए गए हूण लोग तुर्किस्तान पर अधिकार करके सन् ४०० ई० से पहले वंक्षु नद (आक्सस नदी) के किनारे आ बसे।  यहाँ से उनकी एक शाखा ने तो योरप के रोम साम्राज्य की जड़ हिलाई और शेष पारस साम्राज्य में घुसकर लूटपाट करने लगे।  पारस वाले इन्हें 'हैताल' कहते थे।  कालिदास के समय में हूण वंक्षु के ही किनारे तक आए थे, भारतवर्ष के भीतर नहीं घुसे थे; क्योंकि रघु के दिग्विजय के वर्णन में कालिदास ने हूणों का उल्लेख वहीं पर किया है।  कुछ आधुनिक प्रतियों में 'वंक्षु' के स्थान पर 'सिंधु' पाठ कर दिया गया पर वह ठीक नहीं क्योंकि कि प्राचीन मिली हुई रघुवंश की प्रतियों में 'वंक्षु' ही पाठ पाया जाता है।  वंक्षु नदी के किनारे से जब हूण लोग फारस में बहुत अपद्रव करने लगे,  तब फारस के प्रसिद्ध बादशाह बहराम गौर ने सन् ४२५ ई० में उन्हें पूर्ण रूप से परास्त करके वंक्षु नद के उस पार भगा दिया।  पर बहराम गोर के पौत्र फीरोज के समय में हूणों का प्रभाव फारस में बढ़ा।  वे धीरे धीरे फारसी सभ्यता ग्रहण कर चुके थे और अपने नाम आदि फारसी ढंग के रखने लगे थे। फीरोज को हरानेवाले हूण बादशाह का नाम खुशनेवाज था।  जब फारस में हूण साम्राज्य स्थापित न हो सका, तब हूणों ने भारतवर्ष की ओर रुख किया।  पहले उन्होंने सीमांत प्रदेश कपिश और गांधार पर अधिकार किया, फिर मध्यदेश की ओर चढ़ाई पर चढ़ाई करने लगे।  गुप्त सम्राट् कुमारगुप्त इन्हीं चढ़ाइयों में मारा गया।  इन चढ़ाइयों से तत्कालीन गुप्त साम्राज्य निर्बल पड़ने लगा।  कुमारगुप्त के पुत्र महाराज स्कंदगुप्त बड़ी योग्यता और वीरता से जीवन भर हूणों से लड़ते रहे।  सन् ४५७ ई० तक अंतर्वेद, मगध आदि पर स्कंदगुप्त का अधिकार बराबर पाया जाता है।  सन् ४६५ के उपरांत हुण प्रबल पड़ने लगे और अंत में स्कंदगुप्त हूणों के साथ युद्ध करने में मारे गए।  सन् ४९९ ई० में हूणों के प्रतापी राजा तुरमान शाह (सं० तोरमाण) ने गुप्त साम्राज्य के पश्चिमी भाग पर पूर्ण अधिकार कर लिया।  इस प्रकार गांधार, काश्मीर, पंजाब, राजपूताना, मालवा और काठियावाड़ उसके शासन में आए।  तुरमान शाह या तोरमाण का पुत्र मिहिरगुल  (सं० मिहिरकुल) बड़ा ही अत्याचारी और निर्दय हुआ।  पहले वह बौद्ध था, पर पीछे कट्टर शैव हुआ।  गुप्तवंशीय नरसिंहगुप्त और मालव के राजा यशोधर्मन् से उसने सन् ५३२ ई० मे गहरी हार खाई और अपना इधर का सारा राज्य छोड़कर वह काश्मीर भाग गया। हूणों में ये ही दो सम्राट् उल्लेख योग्य हुए।  कहने की आवश्यकता नहीं कि हूण लोग कुछ और प्राचीन जातियों के समान धीरे धीरे भारतीय सभ्यता में मिल गए।  राजपूतों में एक शाखा हूण भी है।  कुछ लोग अनुमान करते हैं कि राजपूताने और गुजरात के कुनबी भी हूणों के वंशज हैं।  २. एक स्वर्णमुद्रा। दे० 'हुन' (को०)।  ३. बृहत्संहिता के अनुसार एक देश का नाम जहाँ हूण रहते थे। —बृहत्०, पृ० ८६। ________________________________________________ ✍ डाक्टर आर. के. सिन्हा और डाक्टर राम के द्वारा लिखित हिस्ट्री आफ इंडिया में स्पष्ट लिखा है कि मैत्रिक, प्रतिहार, परमार, चालुक्य और चौहान आदि वंश गुर्जर हैँ। ✍ ए. एम. टी. जैक्सन ने साफ साफ लिखा है कि प्रतिहार, चालुक्य और चौहान कहलाने वाले सभी गुर्जर हैं।  ✍इतिहासकार भगवान लाल इंद्र जी कहते हैं कि राजपूतों के श्रेष्ठ वंश गुर्जर संतान हैँ। ✍ ठाकुर यशपाल सिहं राजपुत, एम.ए पूर्व सांसद यतीन्द्र कुमार वर्मा के गुर्जर इतिहास कि महिमा लिखते हुए कहते है  गुर्जर दुनिया की महान जाति है । गुर्जर जब उपमहाद्विप मे शासन कर रहे थे , मध्यकाल मे उन्ही के कुछ परिवार राजपूत कहलाए इन सब के अतिरिक्त ये कोई क्षत्रिय जाति नही है । विदेशी वेवसाइट पर चौहानों का उल्लेख भी देखें 👇 ______________________________________________ चौहान उपनाम उपयोगकर्ता सबमिशन: चौथी शताब्दी ईस्वी में व्हाइट हंस, चहल्स (यूरोपीय इतिहास की चोल) के वंशज, कैस्पियन समुद्र के पूर्व में बस गए थे।  यही वह अवधि थी जब चहल गजनी क्षेत्र में ज़बुलिस्तान पर कब्जा कर रहे थे।  वंश मध्य एशियाई है और मूल निवासी के साथ अंतःक्रिया के कारण यह भारतीय, ईरानी और तुर्की है। इस उपनाम के बारे में और पढ़ें  ।  चौहान उपनाम वितरण - 25% पत्रक |  जनसंख्या डेटा © Forebears घटनाओं से पूर्ण स्क्रीन 2014 क्षेत्र में घटना आवृत्ति रैंक रखें भारत 1,592,334 1: 482 53 इंग्लैंड 9150 1: 6076 861 संयुक्त राज्य अमेरिका 3,730 1: 96,850 10,829 संयुक्त अरब अमीरात 2,679 1: 3,425 428 सऊदी अरब 2,0 9 2 1: 14,751 2,0 9 5 पाकिस्तान 1,719 1: 101,474 3310 कनाडा 1,677 1: 21,943 3006 ओमान 1,549 1: 2,547 505 केन्या 1,349 1: 34,128 4126 फिजी 943 1: 948 108 सभी राष्ट्र दिखाओ चौहान उपनाम अर्थ $ 100 वंशावली डीएनए परीक्षण जीतने की संभावना के लिए इस उपनाम पर जानकारी जमा करें  डीएनए परीक्षण जानकारी उपयोगकर्ता द्वारा प्रस्तुत संदर्भ चौथी शताब्दी ईस्वी में व्हाइट हंस, चहल्स (यूरोपीय इतिहास की चोल) के वंशज, कैस्पियन समुद्र के पूर्व में बस गए थे।  यही वह अवधि थी जब चहल गजनी क्षेत्र में ज़बुलिस्तान पर कब्जा कर रहे थे। वंश मध्य एशियाई है और मूल निवासी के साथ अंतःक्रिया के कारण यह भारतीय, ईरानी और तुर्की है।  हालांकि, नाम चहल को एक और कबीले द्वारा साझा किया जाता है और अंतर मिश्रण होता है; इसलिए वंश मिश्रित है।  चाहल नाम लेबनान, इज़राइल और मध्य एशियाई देशों के मूल निवासी पाया जा सकता है। -  hsingh1861 ध्वन्यात्मक रूप से समान नाम उपनाम समानता घटना Prevalency Chaouhan 93 307 / Chauahan 93 253 / Chauhaan 93 243 / Chauhana 93 94 / Chauhanu 93 60 / Chauehan 93 46 / Chauohan 93 35 / Chauhann 93 21 / Chaauhan 93 18 / Chauhani 93 15 / ________________________________________________  सभी समान सुरनाम देखो चौहान उपनाम लिप्यंतरण घटनाओं का लिप्यंतरण आईसीयू लैटिन प्रतिशत  बंगाली में चौहान চৌহান cauhana -  हिंदी में चौहान चौहान cauhana 98.92 सभी अनुवाद दिखाएं मराठी में चौहान चौहान cauhana 77.03 चौहाण cauhana 16.16 छगन chagana 1.99 चोहान cohana 1.23 सभी अनुवाद दिखाएं तिब्बती में चौहान ཅུ་ ཝཱན ་. chuwen 66.67 ཅུ་ ཧན ་. chuhen 33.33 उडिया में चौहान େଚୗହାନ ecahana 60.75 େଚୗହାନ୍ 14.52 ecahan ଚଉହାନ ca'uhana 6.99 େଚୖହାନ ecahana 4.84 େଚୖାହାନ ecaahana 3.23 େଚୗହାଣ ecahana 2.15 େଚୗହନ ecahana 2.15 େଚୗାନ ecaana 2.15  सभी अनुवाद दिखाएं अरबी में चौहान شوهان shwhan - उपनाम आंकड़े अभी भी विकास में हैं, अधिक मानचित्र और डेटा पर जानकारी के लिए साइन अप करें सदस्यता लें मेलिंग सूची में साइन अप करके आप केवल विशेष रूप से फोरबियर पर उपनाम संदर्भ के बारे में ईमेल प्राप्त करेंगे और आपकी जानकारी तीसरे पक्ष को वितरित नहीं की जाएगी।  फुटनोट उपनाम वितरण आंकड़े 4 बिलियन लोगों के वैश्विक नमूने से उत्पन्न होते हैं रैंक: उपनामों को क्रमिक रैंकिंग विधि का उपयोग करके घटनाओं द्वारा क्रमबद्ध किया जाता है; उपनाम जो सबसे अधिक होता है उसे 1 का रैंक सौंपा जाता है; उपनाम जो अक्सर कम होते हैं, एक वृद्धिशील रैंक प्राप्त करते हैं; यदि दो या दो से अधिक उपनाम समान संख्या में होते हैं तो उन्हें एक ही रैंक आवंटित किया जाता है और कुल रैंक को उपरोक्त उपनामों द्वारा क्रमशः बढ़ाया जाता है इसी तरह: "समान उपनाम" खंड में सूचीबद्ध उपनाम ध्वन्यात्मक रूप से समान हैं और शायद चौहान से कोई संबंध नहीं हो सकता है वेबसाइट जानकारी AboutContactCopyrightPrivacyCredits संसाधन forenames उपनाम वंशावली संसाधन इंग्लैंड और वेल्स गाइड © Forebears 2012-2018 Chauhan Surname User-submission: Descandants of White Huns, the Chahals (Chols of European history) in the fourth century AD, were settled on the east of Caspian sea. This was the period when Chahals were occupying Zabulistan in the Ghazni area. Ancestry is Central Asian and due to interbreeding with natives it is Indian, Iranian, and Turkish. Read More About This Surname Chauhan Surname Distribution − 25% Leaflet | Population data © Forebears By incidence Fullscreen 2014 PlaceIncidenceFrequencyRank in Area India1,592,3341:48253 England9,1501:6,076861 United States3,7301:96,85010,829 United Arab Emirates2,6791:3,425428 Saudi Arabia2,0921:14,7512,095 Pakistan1,7191:101,4743,310 Canada1,6771:21,9433,006 Oman1,5491:2,547505 Kenya1,3491:34,1284,126 Fiji9431:948108 SHOW ALL NATIONS Chauhan Surname Meaning Submit  Information on This Surname for a Chance to Win a $100 Genealogy DNA Test DNA test information User-submitted Reference Descandants of White Huns, the Chahals (Chols of European history) in the fourth century AD, were settled on the east of Caspian sea. This was the period when Chahals were occupying Zabulistan in the Ghazni area. Ancestry is Central Asian and due to interbreeding with natives it is Indian, Iranian, and Turkish. However, the name Chahal is shared by another clan and inter mixing has occurred; so ancestry is mixed. The name Chahal can be found native to Lebanon, Israel and Central Asian countries. - hsingh1861 Phonetically Similar Names SurnameSimilarityIncidencePrevalency Chaouhan93307/ Chauahan93253/ Chauhaan93243/ Chauhana9394/ Chauhanu9360/ Chauehan9346/ Chauohan9335/ Chauhann9321/ Chaauhan9318/ Chauhani9315/ SHOW ALL SIMILAR SURNAMES Chauhan Surname Transliterations TransliterationICU LatinPercentage of Incidence Chauhan in Bengali চৌহানcauhana- Chauhan in Hindi चौहानcauhana98.92 SHOW ALL TRANSLITERATIONS Chauhan in Marathi चौहानcauhana77.03 चौहाणcauhana16.16 छगनchagana1.99 चोहानcohana1.23 SHOW ALL TRANSLITERATIONS Chauhan in Tibetan ཅུ་ཝཱན།chuwen66.67 ཅུ་ཧན།chuhen33.33 Chauhan in Oriya େଚୗହାନecahana60.75 େଚୗହାନ୍ecahan14.52 ଚଉହାନca'uhana6.99 େଚୖହାନecahana4.84 େଚୖାହାନecaahana3.23 େଚୗହାଣecahana2.15 େଚୗହନecahana2.15 େଚୗାନecaana2.15 SHOW ALL TRANSLITERATIONS Chauhan in Arabic شوهانshwhan- The surname statistics are still in development, sign up for information on more maps and data SUBSCRIBE By signing up to the mailing list you will only receive emails specifically about surname reference on Forebears and your information will not be distributed to 3rd parties. Footnotes Surname distribution statistics are generated from a global sample of 4 billion people Rank: Surnames are ranked by incidence using the ordinal ranking method; the surname that occurs the most is assigned a rank of 1; surnames that occur less frequently receive an incremented rank; if two or more surnames occur the same number of times they are assigned the same rank and successive rank is incremented by the total preceeding surnames Similar: Surnames listed in the "Similar Surnames"  section are phonetically similar and may not have any relation to Chauhan WEBSITE INFORMATION AboutContactCopyrightPrivacyCredits RESOURCES Forenames Surnames Genealogical Resources England & Wales Guide © Forebears 2012-2018 गुर्जर और अहीरों का सम्बन्ध भी सदीयों  पुराना है।__________________________________________गुर्जर  शब्द की व्युत्पति  ____ गुर् शत्रुकृतताडनंबधोद्यमादिकंवा उज्जरयतियोदेशः। कलिङ्गाःसाहसिका इतिवद्देशस्थजनेलक्षणेतिज्ञेयम् गुज्जराटदेशः। इतिशब्दरत्नावलि॥ ____ शब्दरत्नी वली के रचयिता ने काल्पनिक रूप से गुर्जर शब्द की व्युत्पत्ति की है :--- 'शत्रु का वध करने वाला ' यद्यपि गुर्जर वीर और निर्भीक होते हीे हैं , इसमें कोई सन्देह नहीं ,परन्तु व्युत्पत्ति-आनुमानिक रूप से ही की गयी है । संस्कृत भाषा में और भी गुर्जर जन-जाति के उद्धरण --- प्राप्त हैं । परन्तु बहुत बाद के जो गुर्जर शब्द की व्युत्पत्ति पर स्पष्ट प्रकाश - प्रक्षेपण नहीं करते हैं । गुर्जर :--( गुर् जॄ णिच् अच्)। गुरितिशत्रुकृतताडनादिकंतज्जीर्य्यत्यत्रइतिअधिकरणे अप्।  गुर्ज्जरःदेशःतस्यप्रियेतिङीष्।यद्वागुर्ज्जरदेशःप्रियोऽस्याइतिअण्ङीप्च।गुर्ज्जरदेशवासिनीअतोगुर्ज्जरीतिकेचित्।)   रागिणीविशेषः। इतिहलायुधः॥ इयन्तुभैरवरागस्यरागिणीतिबोध्यम्। यथा  सङ्गीतदर्पणेरागविवेकाध्याये।१६।     “भैरवीगुर्ज्जरीरामकिरीगुणकिरीतथा।वाङ्गालीसैन्धवीचैवभैरवस्यवराङ्गनाः॥”     अस्यागानवेलानिर्णयोयथा  तत्रैव।२०।     “वेलावलीचमल्लारीवल्लारीसोमगुर्ज्जरी।”     इयंहिग्रीष्मऋतौस्वस्वामिनाभैरवरागेणसहगीयते।यथा  तत्रैव।२७। “भैरवःससहायस्तुऋतौग्रीष्मेप्रगीयते।”     इतिसोमेश्वरमतम्।हनूमन्मतेतु।इयमेवमेघरागस्यस्त्री।यथा  तत्रैव।३७।      “मल्लारीदेशकारीचभूपालीगुर्ज्जरीतथा।टङ्काचपञ्चमीभार्य्यामेघरागस्ययोषितः॥”     इयंपुनारागार्णवमतेपञ्चमरागाश्रयारागिणीत्यवधेयम्।यथा  तत्रैव।४०।      “ललितागुर्ज्जरीदेशीवराडीरामकृत्तथा।मतारागार्णवेरागाःपञ्चैतेपञ्चमाश्रयाः॥) __________________________________________ चौदहवीं सदी की रचना योग वाशिष्ठ महारामायण में वर्णित है 👇 वैराग्य- प्रकरण 37 वें सर्ग के श्लोक संख्या 19 में  गुर्जरानीकनाशेन गुर्जरीकेशलुञ्चनम् ।19। अर्थात् गुर्जर सेना के विनाश होने पर गुर्ज्जरः नारीयों ने अपने केश काट लिए - तथा इसी सर्ग में  21 वें श्लोक में  आभीरेष्वरय: पातेर्गोगणा हरितेषु इव ।।21। अहीरों के उस देश में 'वह शत्रु सेना उसी प्रकार टूट पड़ी जैसे हरी घास पर गायों का समूह वस्तुत यहाँं गौश्चर :(गुर्ज्जरः) विशेषण आभीर का प्रतिनिधित्व करते हुए समानार्थक रूप से प्रयुक्त है । वैसे भी संस्कृत कोश कारों ने गुर्ज्जरः अहीरों की एक शाखा के रूप में वर्णित है । आज गुर्जर एक संघ है  जिसमें अनेक जन-जातियों का समावेश है _________         ___________.     _________ गुर्जर शब्द का यह प्रयोग केवल काव्य-गत है । जो राज शेखर से सम्बद्ध है । राजशेखर का समय  (विक्रमाब्द 930- 977 तक) है  ये काव्यशास्त्र के पण्डित थे। वे कान्यकुब्ज के गुर्जरवंशीय नरेश महेंद्रपाल एवं उनके बेटे महिन्द्र पाल के गुरू एवं मंत्री थे। उनके पूर्वज भी प्रख्यात पण्डित एवं साहित्य मनीषी रहे थे।  काव्यमीमांसा उनकी प्रसिद्ध रचना है। समूचे संस्कृत साहित्य में कुन्तक और राजशेखर ये दो ऐसे आचार्य हैं जो परंपरागत संस्कृत पंडितों के मानस में उतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं जितने रसवादी या अलंकारवादी अथवा ध्वनिवादी हैं। राजशेखर लीक से हट कर अपनी बात कहते हैं, और कुन्तक विपरीत धारा में बहने का साहस रखने वाले आचार्य हैं। राजशेखर महाराष्ट्र देशवासी थे और यायावर वंश  में उत्पन्न हुए थे किन्तु उनका जीवन बंगाल में बीता। इनकी माता का नाम शिलावती तथा पिता का नाम दुहिक या दुर्दुक था , और वे महामंत्री थे। इनके प्रपितामह अकालजलद का विरद 'महाराष्ट्रचूड़ामणि' था। राजशेखर की पत्नी चौहान कुल की क्षत्राणी विदुषी महिला थी जिसका नाम अवन्तिसुन्दरी था।  महेंद्रपाल के उपाध्याय होने के साथ ये उसके पुत्र महीपाल के भी कृपापात्र बने रहे। इन दोनों नरेशों के शिलालेख दसवीं शताब्दी के प्रथम चरण (९०० ई. और ९१७ ई.) के प्राप्त होते हैं अत: राजशेखर का समय ८८०-९२० ई० के लगभग मान्य है। परन्तु इनके समय तक प्राकृत भाषाओं का बोल-बाला था ।  गुर्जर शब्द प्रारम्भिक चरण गौश्चर के रूप में रहा  जो कालान्तरण में गुर्जर रूप हो गया । गौश्चर शब्द गोपों का विशेषण था । परन्तु यह शब्द ऐैतिहासिक सन्दर्भों में ही रहा है, साहित्यिक सन्दर्भों में नहीं - ________________________________________ हिन्दी व्रज भाषाओं के कवियों ने गूजर शब्द अहीरों के लिए किया है । जैसे --- संज्ञा पुं० [सं० गुर्जर] [स्त्री० गूजरी, गुजरिया] १. अहीरों की एक जाति  ग्वाला । २. क्षत्रियों का एक भेद । संज्ञा स्त्री० [हिं० गूजरी] १. गूजर जाति की स्त्री । ग्वालिन । गोपी । २. धोबियों के नृत्य में स्त्री के रूप में नाचनेवाला । उ०—लो छनछन, छनछन, छनछन, छनछन, नाच गुजरिया हरती मन ।—ग्राम्या०, पृ० ३१  संस्कृत भाषा के विद्वान् मदन- मोहन झा  ने अपने हिन्दी कोश में ये उद्धृत किया है। ________________________________________ मीरा वाई ने गोपिकाओं के लिए अहीरिणी शब्द का प्रयोग अपने पदों में किया है --- जो ठेठ राजस्थानी रूप है । देखें--👇 _______________________________________  अच्छे मीठे चाख चाख, बेर लाई भीलणी।।  ऐसी कहा अचारवते, रूप नहीं एक रती; नीचे कुल ओछी जात, अति ही कुचीलणी।  जूठे फल लीन्हें राम, प्रेम की प्रतीत जाण; ऊच नीच जाने नहीं, रस की रसीलणी।  ऐसी कहा वेद पढ़ी, छिन में बिमाण चढ़ी; हरि जूँ सूँ बाँध्यो हेत बैकुण्ठ मैं झूलणी।  दासी मीराँ तरै सोइ ऐसी प्रीति करै जोई; पतित-पावन प्रभु गोकुल अहीरणी।।222।। ________________________________________ शब्दार्थ-अचारवती = अचार-विचार से रहने वाली। एक रती = रत्ती भर भी। कुचीलणी = मैंले-कुचैले वस्त्रों वाली। प्रतीति = प्रतीत, विश्वास। रस की रसीलणी = भक्ति का प्रेम-रस की रसिकता। छिन में विमाण चढ़ी = स्वर्ग चली गई। हेत = प्रेम। गोकुल = अहीरणी = गोकुल की ग्वालिन; पूर्व जन्म की गोपी। अब रीति कालीन व्रज के कवियों ने राधा आदि गोपिकाओं को गुजरिया शब्द से सम्बोधित करते हुए वर्णन किया है ।  इसे भी देखें--- ________________________________________ " खातिर करले नई गुजरिया  रसिया ठाडो तेरे द्वार ।।                   ये रसिया नित द्वार न आवे,                    प्रेम होय तो दरसन पावे। अधरामृतको भोग लगावे,  कर महेमानी अब मत चूक              समय न वारंवार ।।  _________________________________________ निश्चित रूप से ये पक्तियाँ श्रृंगारिकता की पराकाष्ठा का भी अतिक्रमण करते हुए, अश्लीलता की उद्भावक हो गयी हैं । जो रीति कालीन हैं । गुर्जर जन-जाति का ऐैतिहासिक सन्दर्भों में जो वर्णन है वह यथार्थ की सीमाओं से परे है । देखें---  गुर्जर मुख्यत: उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफ़्ग़ानिस्तान में बसे हैं। इस जाति का नाम अफ़्ग़ानिस्तान के राष्ट्रगान में भी आता है।  गुर्जरों के ऐतिहासिक प्रभाव के कारण उत्तर भारत और पाकिस्तान के बहुत से स्थान गुर्जर जाति के नाम पर रखे गए हैं,  जैसे कि भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरात ज़िला और गुजराँवाला ज़िला और रावलपिंडी ज़िले का गूजर ख़ान शहर।👇 इसको उदाहरण- है । आधुनिक स्थिति में गुर्जर जन-जाति - " प्राचीन काल में युद्ध कला में निपुण रहे गुर्जर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। निश्चित रूप से ये आभीर जन-जाति से सम्बद्ध हैं " गुर्जर अच्छे योद्धा माने जाते थे ,और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है।👇 अभीर शब्द भी अपने इसी निर्भीकता के अर्थ को ध्वनित करता है ।  अ नकारात्मक उपसर्ग (Prefix) भीर -- कायर /डरपोंक अर्थात् जो कायर (भीर) नहीं है । वह अभीर है । भारत मे गुर्जर की जनसंख्या लगभग 20 करोड की है। गुर्जर महाराष्ट्र (जलगाँव जिला), दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं। राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं। सामान्यत: गुर्जर हिन्दू, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो मे देखे जा सकते हैं। वर्ण-व्यवस्था के समर्थकों ने गुर्जर जन-जाति को शूद्र घोषित करने की चेष्टा की तो ये अपने स्वाभिमान की खातिर मुसलमान ,सिक्ख  और ईसाई हो गये ।  ईसाई मुस्लिम तथा सिख ,गुर्जर, हिन्दू गुर्जरो से ही परिवर्तित हुए थे। पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है। गुर्जर और अहीरों का सम्बन्ध - अहीरों को संस्कृत भाषा में अभीरः अथवा आभीरः संज्ञा से अभिहित किया गया । संस्कृत भाषा में इस शब्द की व्युपत्ति  " अभित: ईरयति इति अभीरः" अर्थात् चारो तरफ घूमने वाली निर्भीक जनजाति " अभि एक धातु ( क्रियामूल ) से पूर्व लगने वाला उपसर्ग (Prifix)..तथा ईर् एक धातु है । परन्तु कुछ संस्कृत कोश कारों ने 👇☘ (अभीरयति गा अभिमुखीकृत्य गोष्ठं नयति इति अभीर  अभि ईर णिच् अच् ।)  आभीरः ।  गोपः । इत्यमरटीकायां रमानाथः ॥ अमर कोश के अभीर शब्द की टीका ( व्याख्या-) परन्तु यह व्युत्पत्ति केवल आनुमानिक अवधारणाओं पर अवलम्बित है । अभि उपसर्ग ईर् धातु - जिसका अर्थ :-  चारो ओर गमन करना (जाना)है इसमें कर्तरिसंज्ञा भावे में अच् प्रत्यय के द्वारा निर्मित विशेषण -शब्द अभीरः विकसित होता है |  और इस अभीरः शब्द में श्लिष्ट अर्थ है... जो पूर्णतः भाव सम्पूर्क है  ..."अ" निषेधात्मक उपसर्ग तथा भीरः/ भीरु कृदन्त शब्द जिसका अर्थ है कायर ..अर्थात् जो भीरः अथवा कायर न हो वीर पुरुष । (अ)नञ्  भीरव: कायरा: असौ अभीर: तत्पश्चात् सन्तति अथवा समूह वाची रूप में तद्धित प्रत्यय अण् होने से आभीर: शब्द बनता है । ईज़राएल के यहूदीयो की भाषा हिब्रू में भी अबीर शब्द है  _______ महाभारत में मिलाबट कब कब हुई जिसमें ईसा पूूर्व की जन-जातियों का वर्णन है महाभारत के रचियता गणेशदेवता बना दिये गये देखें👇  महाभारत के रचियता गणेशदेवता "भाग तृत्तीय" "यादव योगेश कुमार "रोहि" महाभारत के कर्ण पर्व में कुछ प्राचीनत्तम जन-जातियों वर्णन है जो कि 👇गुर्जर और जाट संघ में समाहित है  और कुछ राजपूत संघ में 👇 मालाव ,मद्रक , द्राविड़ ,यौधेय ( जोझे) ललित्थ, शूद्रक , (क्षुद्रक),उशीनर ,माबेल्लक,तुण्डकेर, कम्बोज(कम्बोडिया निवासी) आवंतिका ,गांधार, मद्र, मत्स्य, त्रिगर्त ,तंगण,शक ,पाञ्चाल ,विदेह, कुलिन्द काशी ,कौशल, सुह्म, अंग,वंग, निषाद , पुण्ड्र,चीरक (चीनक) वत्स,कलिंग, तरल, अश्मक, तथा ऋषिक,(रूस) इन सभी देशों पर तथा शबर , परहूण, प्रहूण,कारस्कर (कक्कड़) , माहिषक, केरल ,कर्कोटक और वीरक।  महाभारत में कुछ काल्पनिक प्रकाशन भी है निम्नलिखित जनजातियों में बहुतों का समायोजन अब गुर्जर ,राजपूत और जाट संघ में भी है।👇____________________________________ "मालवा मद्रकाश्चैव द्राविडाश्चग्रकर्मिण: । यौधेयाश्च ललित्थाश्च क्षुद्रकाश्चप्युशीनरा: ।47। माबेल्लकास्तुण्डिकेरा: सावित्रीपुत्रकाश्च ये । प्राच्योदीच्या:प्रतीच्याश्च दाक्षिणात्याश्च मारिष।48। पत्तीनां निहता: संघा हयानां प्रयुतानि च। रथव्रजाश्च निहता हताश्च वरवारणा ।49। मालाव ,मद्रक ,भयंकर कर्म करने वाले द्राविड़ ,यौधेय  ( जोझे) ललित्थ, शूद्रक , (क्षुद्रक),उशीनर ,माबेल्लक,तुण्डकेर,(तेन्दुलकर) सावित्रीपुत्र, प्राच्य, प्रतीच्य, उदीच्य,दक्षिणात्य,पैदल समूह ,दसलाख घोड़े ,रथोके समूह और बड़े बड़े गजराज अर्जुुन के हाथ से मारे गये 47-49। यो८जयत् सर्वकाम्बोजानावन्त्यान् केकयै: सह । गान्धारान्मद्रकान्मत्स्यांस्त्रिगर्तोस्तंगणाञ्शकान्18 पाञ्चालांश्च विदेहांश्च कुलिन्दान् काशिकोसलान्। सुह्मानंगाश्च वंगांश्च निषादान् पुण्ड्रचीरकान् 19। वत्सान् कलिंगांस्तरलािनश्मकाननृषिकानपि। ( शबरान् परहूणांश्च प्रहूणान् सरलानपि। म्लेच्‍छराष्ट्राधिपांश्चैव दुर्गानाट विकांस्तथा । जित्वैतान् समरे वीरश्चक्रे बलिभृत: पुरा ।20। जिस वीर ने पहले समस्त कांबोज(कम्बोडिया निवासी) आवंतिका ,गांधार, मद्र, मत्स्य, त्रिगर्त ,तंगण,शक ,पाञ्चाल विदेह, कुलिन्द काशी ,कौशल, सुह्म, अंग,वंग, निषाद , पुण्ड्र,चीरक, वत्स,कलिंग, तरल अश्मक, तथा ऋषिक,(रूस) इन सभी देशों पर तथा शबर , परहूण, प्रहूण और सरल जाति के लोगों पर म्लेच्‍छ राज्यों के अधिपतियों और दुर्ग एवं वनों में रहने वाले योद्धाओं को समर-भूमि में जीतकर "कर" (टेक्स) देने वाला बना दिया था।18-20। __________________________________________ महाभारत में शब्द -व्युत्पत्ति के सिद्धान्तों की किस प्रकार धज्जियाँ उड़ाई गयीं हैं; इसका अन्दाजा तो महाभारत में वर्णित इन शब्दों की व्युत्पत्ति से लगाया जा सकता है ।👇 मित्रं मिन्देर्नन्दते: प्रीयतेर्वा । संत्रायतेर्मिनुतेर्मोदतेर्वा ।।31। ब्रवीमि ते सर्वंमिदं ममास्ति । तच्चापि सर्वे मम वेत्ति राजा । जबकि वाचस्पत्यम् कोश में मिद् धातु से ''मि(त्त्र)त्र' नपुंसकलिङ्ग मिद्यति स्निह्यति इति मित्र।  १- स्नेहान्विते सुहृदि,[पृष्ठ संख्या-4753-b 38] शब्दकल्पद्रुमके अनुसार-  २-माययति जानाति सर्व्वं मित्रं मी कि गत्यां नाम्नीति डित्रः मित्रमजहल्लिङ्गम् । निपातात्तस्य द्वित्वे द्वितकारञ्च । इति तट्टीकायां भरतः  शत्रु: शदे, शासतेर्वा श्यतेर्वा      श्रृणातेर्वा श्वसते: सीदतेर्वा 32। उपसर्गाद् बहुधा सूदतेश्च। प्रायेण सर्व त्वयि तच्च मह्यम्। मिद, नन्द,प्री, त्रा,मि,अथवा मुद् धातुओं से निपातन द्वारा मित्र शब्द की सिद्धि होती है। मैं तुमसे सच कहता हूं इन सभी धातुओं का पूरा पूरा अर्थ मुझ में मौजूद हैं राजा दुर्योधन इन सब बातों को अच्छी तरह जानते हैं ।31। शद्, शास् , शो, श्रृ ,श्वस् , अथवा षद् तथा नाना प्रकार की उपसर्गों से युक्त सूद धातु से भी शत्रु शब्द की सिद्धि होती है । मेरे प्रति इन सभी धातुओं का सारा तात्पर्य तुममें संघटित  होता है।32। विदित हो कि महर्षि पाणिनि ने भी योगज अथवा धातुज शब्दों के नियम में एक धातु का विधान किया है ; परन्तु महाभारत कार एक साथ कई धातुओं से एक शब्द की व्युत्पत्ति कर डाली है । यद्यपि महाभारत भी एक काव्यात्मक उपन्यास है  जिसमें कल्पना अतिरञ्जना और अलंकात्मक वर्णन है । एक प्रसंग में  ब्राह्मण लोगों ने बाह्लीक जन-जाति का वर्णन लूटेरों के रूप में किया देखें---महाभारत के कर्ण पर्व में जैसा कि ये गुर्ज्जरों और आभीरों का भी करते रहे । 👇 __________________________________________ अपूपान् सक्तुपिण्डांश्च प्राश्नन्तो मथितान्वितान् । पथि सुप्रबला भूत्वा कदा सम्पततो ८ध्वगान्।21। चेलापहारं कुर्वाणास्ताडयिष्याम भूयस:। अर्थात्‌ मार्ग में तक्र(मट्ठा) के साथ पुए और सत्तू के पिण्ड खाकर अत्यन्त प्रबल हो कब चलते हुए बहुत से राहगीरों को उनके कपड़े छीन कर हम अच्छी तरह पीटेंगे ।21। इस प्रकार कोई बाह्लीक अपने मन्तव्य को प्रकट करता हुआ मन ही मन कहता है । भारतीय पुरोहितों ने बाहीक लोगें के व्यवहार का वर्णन पूर्व-दुराग्रहों से प्रेरित होकर ही  किया है । और यह वर्णन मात्र ई०पू० द्वितीय सदी का है । इसे अधिक प्राचीनत्तम रूप देने का कोई औचित्य नहीं  ______________________________________ बाहीक देश के लोगों का वर्णन करते हुए ब्राह्मण कहते हैं। कि एवं शीलेषु व्रात्येषु वाहीकेषु दुरात्मसु।22। कशचेतयानो निवसेन्मनहूर्तमपि मानव:। संस्कार शून्य दुरात्मा बाहीक ऐसे ही स्वभाव के होते हैं उनके पास कौन सचेत मनुष्य दो घड़ी निवास करेगा ? ईदृशा ब्राह्मेणनोक्ता वाहीका मोघचारिण:।23 येषां षड्भागहर्ता त्वमुभयो : शुभपापयो: । ब्राह्मण ने निरर्थक आचार विचार वाले वाहीकों को ऐसा ही बताया जिनके पुण्य और पाप दोनों का छठा भाग हे शल्य तुम लिया करते हो।23। बुद्ध के परवर्ती काल खण्ड में महाभारत आदि ग्रन्थों का निर्माण हुआ। उस समय ईरानीयों के प्रति या अन्य जन-जातियों के प्रति ब्राह्मणों की धारणा हेय व संकुचित ही थी । जिसमें जाट संघ की उपजाति थीं जैसा कि उन्होंने शाकल नगर का वर्णन करते हुए लिखा– 👇 _____________________________________________ तत्र स्म राक्षसी गाति सदा कृष्णचतुर्दशीम् ।25। नगरे शाकले स्फीते आहत्य निशि दुन्दुभिम् । कदा वाहेयिका गाथा : पुनर्गास्यति शाकले ।26। गव्यस्य तृप्ता मांसस्य पीत्वा गौडं सुरासवम्। गौरीभि: सह नारीभिर्बृहतीभिर् स्वलंकृता :।27। पलाण्डु गंडूषयुतान् खादन्ती चैडकान् बहून्। उस देश में एक राक्षसी रहती है ; जो सदा कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को समृद्धशाली शाकल नगर में रात के समय दुन्दुभि बजा कर इस प्रकार गाती है ।25। "मैं वस्त्र आभूषण से विभूषित हो । गौ मांस खाकर और गुड़ की बनी हुई शराब पीकर तृप्त हो ; अञ्जलि भर प्याज के साथ बहुत सी भेड़ों को खाती हुई  "गोरे रंग की लम्बी युवती स्त्रियों के साथ मिलकर इस शाकल नगर में पुनः कब इस तरह की बाहीक संबंधी गाथा का गान करुँगी ।।25-26। अब जाट समाज को कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण जर्तिका जन-जाति से जोड़ते हैं। परन्तु ये वर्णन एकाकी है । परन्तु ये भी यदु कबीले के लोग थे। ♨♨♨ राजपूती काल में सूरजमल जाट के विषय में तो जानते हैं  जिन्हें शिलालेखों पर यादव वीर कहा गया है । जाट जन-जाति के लोग बहुतायत से पंजाब के पार्श्ववर्ती स्थलों में रहते थे-  कालान्तरण में जिनकी सीमाऐं पंजाब,हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश  में अधिक विस्तृत हुईं । महाभारत के कर्ण पर्व में वर्णित है कि _______________________________________ पञ्च नद्यो वहन्त्येता यत्र पीलुवानान्युत।31। शतद्रुश्च विपाशा च तृतीयैरावती तथा । चन्द्रभागा वितस्ता च सिन्धुषष्ठा बहिर्गिरे:।32। आरट्टा नाम ते देशा नष्टधर्मा न तान् व्रजेत्। पुत्रसंकरिणो जाल्मा: सर्वान्नक्षीरभोजना: ।37। आरट्टा नाम वाहीका वर्जनीया विपश्चिता। पञ्च नद्यो यत्र नि:सृत्य पर्वतात् ।40। आरट्टा नाम वाहीका न तेष्वार्योद्वि अहं वसेत्। जहां सतद्रु अर्थात्‌ सतलज बिपाशा अर्थात्‌ व्यास तीसरी इरावती (रावी) चन्द्रभागा (चिनाव) और वितस्ता अर्थात्‌ झेलम ये पांच नदी सिन्धु नदी के साथ वहती हैं जहां पीलू नामक वृक्षों के कई जंगल हैं ; वह हिमालय की सीमा से बाहर के प्रदेश "आरट्ट"  नाम से विख्यात हैं वहां का धर्म-कर्म नष्ट हो गया है । उन देशों में कभी न जाऐं ।31-32। वे जारज पुत्र उत्पन्न करने वाले "आरट्ट" नामक बाहीक सबका अन्न खाते और सभी पशुओं का दूध पीते हैं । अत: विद्वान् पुरुष को उन्हें दूर से ही त्याग देना चाहिए।।37। किसी विद्वान ने कहा कि वह जारज पुत्र उत्पन्न करने वाले नीचा "आरट्ट" नामक वाहिक सब का अन्न खाते और सभी पशुओं के दूध पीते हैं इसलिए विद्वान पुरुष को उन्हें दूर से ही त्याग देना चाहिए।38। अब -जब जाटों के विषय में इन रूढ़िवादीयों ने ही अपने ग्रन्थों में जाटों को चोर तथा निम्न घोषित किया हो तो आज इनकी जाटों के प्रति भावनाऐं पवित्र कैसे हो सकती हैं । जहाँ पर्वत से निकल कर ये पूर्वोक्त पाँचो नदियाँ वहती हैं  वे "आरट्ट "नाम से प्रसिद्ध बाहीक प्रदेश हैं।  उनमें श्रेष्ठ पुरुष दो दिन भी निवास न करे ।40। वास्तव में बाहीक शब्द बाह्लीक का तद्भव रूप है --जो कालान्तरण में ईरानी भाषा "बल्ख" बन गया । परन्तु रूढ़िवादी ब्राह्मणों ने बाहीक को बाह्लीक से अलग मानते हुए काल्पनिक व्युत्पत्ति कर डाली 👇 कि व्यास नदी में दो पिशाच रहते हैं एक का नाम "बहि" और दूसरे का नाम "हीक" है। इन्हीं दोनों की संताने वाहीक कहलाती हैं। __________________________ बहिश्च नाम हीकश्च विपाशायां पिशाचकौ ।41। तयोरपत्यं वाहीका नैषा सृष्टि: प्रजापते :। ते कथं विविधान् धर्मान् ज्ञास्यन्ते हीनयोनय:।। महाभारतेकर्णपर्वणि पञ्चचत्वारिंशो८ध्याय: पृष्ठ संख्यायाम् –3895 गीता प्रेस संस्करण। अर्थ– बिपाशा अर्थात व्यास नदी में दो पिशाच रहते हैं एक का नाम "वही" और दूसरे का नाम "हीक" है इन्हीं दोनों की संताने वाहीक कहलाती हैं। ब्रह्मा जी ने इनकी सृष्टि नहीं की है ; ये नीच योनि में उत्पन्न हुए मनुष्य नाना प्रकार के धर्मों को कैसे जानेंगे ? कारस्करान्माहिषिकान् कुरण्डान् केरलांस्तथा । कर्कोटकान् वीरकांश्च दुर्धर्माश्च विवर्जयेत् ।43। कारस्कर (कक्कड़) , माहिषक, केरल ,कर्कोटक और वीरक  रख इन देशों के धर्म ( आचार-विचार) दूषित हैं  अतः उनका त्याग कर देना चाहिए ।43। "आरट्टा" नाम ते देशा वाहीकं नाम तज्जलम् । ब्राह्मणापसदा यत्र  तुल्यकाला: प्रजापते :।45। जहाँ ब्रह्मा के समकालीन वेद विरुद्ध आचरण वाले नीच ब्राह्मण निवास करते हैं 'वह आरट्ट नामक देश है । वहाँ के जल का नाम वाहीक है ।45। (सम्भवत ये "आरट्ट" लोग ईरानीयों की असुर संस्कृतियों के अनुयायी थे ) वेदा न तेषां वेद्यश्च यज्ञा यजनमेव च। व्रात्यानां दासमीयानामन्नं देवा न भुञ्जते ।46। उन अधर्मी ब्राह्मणों को न तो वेदों का ज्ञान है ; ना वहां यज्ञ की विधियां है और ना उनके यहां यज्ञ - याग ही होते हैं वह संस्कार हीन एवं दासों से समागम करने वाली कुलटा स्त्रियों की संताने हैं । इसलिए देवता उनका अन्न ग्रहण नहीं करते हैं।46। प्रस्थला मद्रगान्धारा आरट्टा, नामत: खशा:। वसातिसिन्धुसौवीरा इति प्रायो८तिकुत्सिता: 47। प्रस्थल अर्थात "पश्तो"  मद्र अर्थात मीदिया गांधार(कान्धार) आरट्ट  (जाट ) खस , वसाति,सिंधु तथा सौवीर( हौविर) यह देश प्राय: अत्यंत निन्दित हैं।47। (कर्ण पर्व चालीसवाँ अध्याय ) ________________________________________ अधिक क्या कहें महाभारत बुद्ध के परवर्ती काल की संस्कृतियों और घटनाओं को अंकित करता है । क्यों  कि महाभारत के शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासनपर्व भीष्मस्तवराज विषयक सैंतालीसवें अध्याय में भीष्म द्वारा भगवान् कृष्ण की स्तुति के प्रसंग में बुद्ध का वर्णन है।👇 भीष्म कृष्ण के बाद बुद्ध और फिर कल्कि अवतार का स्तुति करते हैं । जैसा कि अन्य पुराणों में विष्णु के अवतारों का क्रम-वर्णन है । उसी प्रकार यहाँं भी - अब बुद्ध का समय ई०पू० 566 वर्ष है । फिर महाभारत को हम बुद्ध से भी पूर्व आज से साढ़े पाँच हजार वर्ष पूर्व क्यों घसीटते हैं? नि: सन्देह सत्य के दर्शन के लिए  हम्हें श्रृद्धा का 'वह चश्मा उतारना होगा; जिसमें अन्ध विश्वास के लेंस लगे हुए हैं। पुराणों में कुछ पुराण -जैसे भविष्य-पुराण में महात्मा बुद्ध को पिशाच या असुर कहकर उनके प्रति घृणा प्रकट की है । वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड में राम के द्वारा  बुद्ध को चोर कह कर घृणा प्रकट की गयी है । इस प्रकार कहीं पर बुद्ध को गालीयाँ दी जाती हैं तो कहीं चालाकी से विष्णु के अवतारों में शामिल कर लिया जाता है । नि:सन्देह ये बाते महात्मा बुद्ध के बाद की हैं । क्यों कि महाभारत में महात्मा बुद्ध का वर्णन  इस प्रकार है। देखें👇 ________________________________________ दानवांस्तु  वशेकृत्वा पुनर्बुद्धत्वमागत:। सर्गस्य  रक्षणार्थाय तस्मै बुद्धात्मने नम:।। अर्थ:– जो सृष्टि रक्षा के लिए दानवों को अपने अधीन करके पुन:  बुद्ध के रूप में अवतार लेते हैं उन बुद्ध स्वरुप श्रीहरि को नमस्कार है।। हनिष्यति कलौ प्राप्ते म्लेच्‍छांस्तुरगवाहन:। धर्मसंस्थापको यस्तु तस्मै कल्क्यात्मने नम:।। जो कलयुग आने पर घोड़े पर सवार हो धर्म की स्थापना के लिए म्लेच्‍छों का वध करेंगे उन कल्कि  रूप श्रीहरि को नमस्कार है।। ( उपर्युक्त दौनों श्लोक शान्तिपर्व राजधर्मानुशासनपर्व भीष्मस्तवराज विषयक सैंतालीसवाँ अध्याय पृष्ठ संख्या 4536) गीता प्रेस संस्करण में क्रमश: है । 🌸 महाभारत भीष्म पर्व में निम्नलिखित जनजातियों में बहुतों का समायोजन अब गुर्जर ,राजपूत और जाट संघ में भी है।👇तोमर,पुण्डीर,बरबारा,कुन्तल,कारस्कर,आभीर(यादव) आदि निम्न देखें 👇 कुमारीमृषिकुल्यां च मारिषां  च सरस्वतीम्।  मन्दाकिनीं सुपुण्यां च सर्वां गङ्गां च भारत ॥  6-9-36 (38969)   विश्वस्य मातरः सर्वाः सर्वाश्चैव महाफलाः।  तथा नद्यस्त्वप्रकाशाः शतशोऽथ सहस्रशः॥  6-9-37 (38970)   इत्येताः सरितो राजन्समाख्याता यथास्मृति।  अत ऊर्ध्वं जनपदान्निबोध गदतो मम ॥  6-9-38 (38971)   ______ तत्रेमे कुरुपाञ्चालाः शाल्वा माद्रेयजाङ्गलाः ।  शूरसेनाः पुलिन्दाश्च बोधा मालास्तथैव च ॥  6-9-39 (38972)   मत्स्याः कुशल्याः सौशल्याः कुंतयः कांतिकोसलाः । चेदिमत्स्यकरूशाश्च भोजाः सिन्धुपुलिन्दकाः ॥  6-9-40 (38973)   उत्तमाश्च दशार्णाश्च मेकलाश्चोत्कलैः सह ।  पञ्चालाः कोसलाश्चैव नैकपृष्ठा धुरन्धराः ॥  6-9-41 (38974)   गोधा मद्रकलिङ्गाश्छ काशयोऽपरकाशयः ।  जठराः कुकुराश्चैव सदशार्णाश्च भारत ॥  6-9-42 (38975)   कुन्तयोऽवन्तयश्चैव तथैवापरकुन्तयः ।  गोमन्ता मन्दकाः सण्डा विदर्भा रूपवाहिकाः ॥  6-9-43 (38976)   अश्मकाः पाण्डुराष्ट्राश्च गोपराष्ट्राः करीतयः।  अधिराज्यकुशाद्यश्च मल्लराष्ट्रं च केवलम् ॥  6-9-44 (38977)   वारवास्यायवाहाश्च चक्राश्चक्रातयः शकाः।  विदेहा मगधाः स्वक्षा मलजा विजयास्तथा ॥  6-9-45 (38978)   अङ्गा वङ्गाः कलिङ्गाश्च यकृल्लोमान एव च।  मल्लाः सुदेष्णाः प्रह्लादा माहिकाः शशिकास्तथा ॥  6-9-46 (38979)   ______ बाह्लीका वाटधानाश्च आभीराः कालतोयकाः।  अपरान्ताः परान्ताश्च पञ्चालाश्चर्ममण्डलाः ॥  6-9-47 (38980)   अटवीशिखराश्चैव मेरुभूताश्च मारिष ।  उपावृत्तानुपावृत्ताः स्वराष्ट्राः केकयास्तथा ॥  6-9-48 (38981)   कुन्दापरान्ता माहेयाः कक्षाः सामुद्रनिष्कुटाः ।  अन्ध्राश्च बहवो राजन्नन्तर्गिर्यास्तथैव च ॥  6-9-49 (38982)   बहिर्गिर्याङ्गमलजा मगधा मानवर्जकाः ।  समन्तराः प्रावृषेया भार्गवाश्च जनाधिप ॥  6-9-50 (38983)  _______  ✍पुण्ड्रा भर्गाः किराताश्च सुदृष्टा यामुनास्तथा।  शका निषादा निषधास्तथैवानर्तनैर्ऋताः ॥ 6-9-51 (38984)  ✍(पुण्डीर) ___ ✍दुर्गालाः प्रतिमत्स्याश्च कुन्तलाः कोसलास्तथा।  तीरग्रहाः शूरसेना ईजिकाः कन्यका गुणाः ॥  6-9-52 (38985) ✍दुग्गल_  तिलभारा मसीराश्च मधुमन्तः सकुन्दकाः।  काश्मीराः सिन्धुसौवीरा गान्धारा दर्शकास्तथा ॥  6-9-53 (38986)   अभीसारा उलूताश्च शैवला बाह्लिकास्तथा ।  दार्वी च वानवा दर्वा वातजामरथोरगाः ॥  6-9-54 (38987)   बहुवाद्याश्च कौरव्य सुदामानः सुमल्लिकाः।  वध्राः करीषकाश्चापि कुलिन्दोपत्यकास्तथा ॥  6-9-55 (38988)   वनायवो दशापार्श्वरोमाणः कुशबिन्दवः।  कच्छा गोपालकक्षाश्च जाङ्गलाः कुरुवर्णकाः ॥  6-9-56 (38989) जाँगडा __  किराता ✍बर्बराः सिद्धा वैदेहास्ताम्रलिप्तकाः।  ओण्ड्रा म्लेच्छाः सैसिरिध्राः पार्वतीयाश्च मारिष ॥ 6-9-57 (38990)  ✍( बरबारा) अथापरे जनपदा दक्षिणा भरतर्षभ ।  द्रविडाः केरलाः प्राच्या भूषिका वनवासिकाः ॥  6-9-58 (38991)   कर्णाटका महिषका विकल्पा मूषकास्तथा । ______ झिल्लिकाः ✍कुन्तलाश्चैव सौहृदानभकाननाः ॥  6-9-59 (38992) ✍(कुन्तलजाटगौत्र)__ कौकुट्टकास्तथा चोलाः कोङ्कणा मालवा नराः ।  समङ्गाः करकाश्चैव कुकुराङ्गारमारिषाः ॥  6-9-60 (38993)   ध्वजिन्युत्सवसंकेतास्त्रिगर्ताः साल्वसेनयः।  व्यूकाः कोकबकाः प्रोष्ठाः सर्मवेगवशास्तथा ॥  6-9-61 (38994)  ___  तथैव विन्ध्यचुलिकाः पुलिन्दा वल्कलैः सह।  मालवा बल्लवाश्चैव तथैवापरबल्लवाः ॥  6-9-62 (38995)   कुलिन्दाः कालदाश्चैव कुण्डलाः करटास्तथा । मूषकास्तनबालाश्च सनीपा घटसृञ्जयाः॥  6-9-63 (38996)   अठिदाः पाशिवाटाश्च तनयाः सुनयास्तथा ।  ऋषिका विदभाः काकास्तङ्गणाः परतङ्गणाः ॥  6-9-64 (38997)   _____ उत्तराश्चापरे म्लेच्छाः क्रूरा भरतसत्तम। यवनाश्चीनकाभ्योजा दारुणा म्लेच्छजातयः ॥  6-9-65 (38998)  _____  सकृद्ग्रहाः कुलत्थाश्च हूणाः पारसिकैः सह।  तथैव रमणाश्चीनास्तथैव दशमालिकाः ॥  6-9-66 (38999)  ___  क्षत्रिकयोपनिवेशाश्च वैश्यशूद्रकुलानि च।  शूद्राभीराश्च दरदाः काश्मीराः पशुभिः सह ॥  6-9-67 (39000)   खाशीराश्चान्तचाराश्च पह्लवा गिरिगह्वराः।  आत्रेयाः सभरद्वाजास्तथैव स्तनपोषिकाः ॥  6-9-68 (39001) ________   प्रोषकाश्च कलिङ्गाश्च किरातानां च जातयः।  ✍तोमरा हन्यमानाश्च तथैव करभञ्जकाः ॥  6-9-69 (390)0 ✍तोमर जाति  एते चान्ये जनपदाः प्राच्योदीच्यास्तथैव च।  उद्देशमात्रेण मया देशाः संकीर्तिता विभो ॥  6-9-70 (39003)   यथागुणबलं चापि त्रिवर्गस्य महाफलम् ।  दुह्याद्धेनुः कामधुक्क भूमिः सम्यगनुष्ठिता ॥  6-9-71 (39004)   तस्यां गृद्ध्यन्ति राजानः शूरा धर्मार्थक्रोविदाः ।  ते त्यजन्त्याहवे प्राणान्वसुगृद्धास्तरस्विनः ॥  6-9-72 (39005)   देवमानुषकायानां कामं भूमिः परायणम् ।  अन्योन्यस्यावलुम्पन्ति सारमेया यथाऽऽमिषम् ॥  6-9-73 (39006)   राजानो भरतश्रेष्ठ भोक्तुकामा वसुन्धराम्।  न चापि तृप्तिः कामानां विद्यतेऽद्यापि कस्यचित् ॥  6-9-74 (39007)   तस्मात्परिग्रहे भूमेर्यतन्ते कुरुपाण्डवाः ।  साम्ना भेदेन दानेन दण्डेनैव च भारत ॥  6-9-75 (39008)  _______  भाई यह महाभारत भी पुष्यमित्र सुंग ईसा० पूर्व द्वितीय सदी में  सम्पादित हुआ  जिसमें महात्मा बुद्ध की स्तुति भीष्म करते हैं   बुद्ध का समय ईसा० पूर्व 566 है । अब समझे कि भीष्म का समय कितना पुराना होगा ?👇 दानवांस्तु  वशेकृत्वा पुनर्बुद्धत्वमागत:। सर्गस्य  रक्षणार्थाय तस्मै बुद्धात्मने नम:।। अर्थ:– जो सृष्टि रक्षा के लिए दानवों को अपने अधीन करके पुन:  बुद्ध के रूप में अवतार लेते हैं उन बुद्ध स्वरुप श्रीहरि को नमस्कार है।। हनिष्यति कलौ प्राप्ते म्लेच्‍छांस्तुरगवाहन:। धर्मसंस्थापको यस्तु तस्मै कल्क्यात्मने नम:।। जो कलयुग आने पर घोड़े पर सवार हो धर्म की स्थापना के लिए म्लेच्‍छों का वध करेंगे उन कल्कि  रूप श्रीहरि को नमस्कार  जो विष्णु अभी तक क्षत्रिय के रूप में अवतार लेता वह अब ब्रह्माण के घर कैसे? उपर्युक्त दौनों श्लोक शान्तिपर्व राजधर्मानुशासनपर्व भीष्मस्तवराज विषयक सैंतालीसवाँ अध्याय पृष्ठ संख्या 4536) गीता प्रेस संस्करण में क्रमश: है ।  जनश्रुतियों को प्रचारित करने में चतुर  अति उत्सुक रहते हैं... प्रायः मिथ्या प्रचार प्रसार के समय उसके श्रोत का पता नहीं चलता अथवा भोले भाले लोग बिना पुष्टि किये मिथ्या प्रस्तुति पर नेत्र बंद करके विश्वास कर लेते हैं। और यदि प्रमाण मांगो तो कह देंगे की बाल्यकाल से सुनते आ रहे हैं तो सत्य ही होगा। ये बातें उस भीड़ के द्वारा कही गयी होती हैं जिसका मुख ना हो और बिना पुष्टि किये मिथ्या प्रचार पर विश्वास कर लेना बिल्कुल भी युक्ति संगत नही है निम्नलिखित तथ्य पढ़कर आप स्वयं जान जाएेंगे कि सत्य क्या है? और मिथ्या क्या यदि अभी भी आपको लगता है कि जो मिथ्या प्रचार करने वाले है वे ही उचित है तो उनसे भी इसी प्रकार के प्रमाण  माँगे ! हालांकि निम्न तथ्य देखने के उपरांत कुछ विद्वान् गुर्जर व गुज्जर शब्द को स्थानसूचक कहेंगे 'परन्तु यह व्यक्ति सूचक हैे ।  गुर्जर व गुज्जर जातिसूचक भी है क्योंकि "भोजकृत "सरस्वतीकण्ठाभरणम्" के द्वितीय परिच्छेद के श्लोक संख्या १३ में "स्वेन गुर्जरजातीयेन" वाक्याँश लिखा है अर्थात्  "अपनी गुर्जर जातीय लोगों के द्वारा " क्योंकि  यहाँ तृत्तीया विभक्ति करण-कारक का रूप है;  तो इससे सिद्ध होता है कि गुर्जर जातिसूचक शब्द भी है... दूसरा गुज्जर के लिए तो (Ādikālīna Hindī rāso kāvya paramparā evaṃ Bhāratīya saṃskr̥ti )नामक पुस्तक के पृष्ठ 88--  में उक्त पंक्ति देखने को मिलती है जिससे सिद्ध होता है कि गुज्जर जातिसूचक भी है... गुर्जर अहीर असि जाति दोई तिन लीह लोप सबकै न कोई। (अभिषेक चौहान ) प्रस्तुति-करण :-यादव योगेश कुमार'रोहि'  ________________________________________

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प्राय:  कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने वाले महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह प्रक्षिप्त (नकली) श्लोक उद्धृत करते हैं ।

13 फरवरी 2018
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प्राय:  कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने वाले महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह प्रक्षिप्त (नकली) श्लोक उद्धृत करते हैं ।____________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थ

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आत्मा के साथ कर्म और प्रारब्ध करते हैं जीवन की व्याख्या--__________________________________________

16 फरवरी 2018
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आत्मा के साथ कर्म और प्रारब्ध करते हैं जीवन की व्याख्या--__________________________________________सृष्टि -सञ्चालन का सिद्धान्त बडा़ अद्भुत है ।जिसे मानवीय बुद्धि अहंत्ता पूर्ण विधि से कदापि नहीं समझ सकती है ।विश्वात्मा ही सम्पूर्ण चराचर जगत् की प्रेरक सत्ता है । और आत्मा प्राणी जीवन की , इसी सन्दर्

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अफगानिस्तान में जादौन पठानों का खिताब तक्वुर (ठक्कुर) और भारत में जादौन ठाकुर ..

13 अप्रैल 2018
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---जो लोग ठाकुर अथवा क्षत्रिय उपाधि से विभूषित किये गये थे । जिसमे अधिकतर अफ़्ग़ानिस्तान के जादौन पठान भी थे, जो ईरानी मूल के यहूदीयों से सम्बद्ध थे। यद्यपि पाश्चात्य इतिहास विदों के अनुसार यहुदह् ही यदु:  शब्द का रूप है ।एेसा वर्णन ईरानी इतिहास में भी मिलता है । जादौन पठानों की भाषा प्राचीन अवेस्ता

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गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ?

3 मई 2018
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गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? सभी यादव बन्धु इस लेख को पूर्ण मनोयोग से पढ़कर कृपया प्रतिक्रिया दें आपका बन्धु यादव योगेश कुमार 'रोहि' ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय-पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---उ०प्र० ______________________________________________गोपों ने प्रभा

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गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? एक विचार विश्लेषण ---

6 मई 2018
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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है ।---मैं भी असली घोषी अहीर हूँ ।मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूतोंलोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ? वह मुझे सब याद है इन लोगों हम्हें समाज में कभी भी

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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य . ....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है।

8 मई 2018
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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य .....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है।भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी संस्कृत साहित्य में भरत का अर्थ जंगली या असभ्य किया है ।और भारत देश के नाम करण का कारण भी यही भरत जन जाति थी। भारतीय प्रमाणतः जर्मन आर्यों की ही शाखा थे ।जैसे यूरोप में पाँचवीं

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आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।

10 मई 2018
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आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।यादवों के इतिहास को बिगाड़ने के षड्यन्त्र तो खूब किया गया परन्तु  फिर भी सफल न हो पाए षड्यन्त्रकारी ! सत्य विकल्प रहित निर्भीक एक रूप होता है ।जबकि असत्य बहुरूप धारण करने वाला बहुरूपिया ।आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।जाट और

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सुरों का निवास स्थान स्वर्ग आज का स्वीडन ! एक शोध श्रृंखला अन्वेषक:-- यादव योगेश कुमार 'रोहि'

12 मई 2018
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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य ।. ....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है। भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी ; संस्कृत साहित्य में देव संस्कृति के अनुयायी ब्राह्मणों ने भरत शब्द  का अर्थ जंगली या असभ्य किया है । और भारत देश के नाम करण का कारण भी यही भरत जन जाति थी। भारत में आगत देव स

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भारतीय भाषाओं में प्रचलित शब्द टैंगॉर, ठाकरे तथा ठाकुर इसी तुर्की ईरानी मूल के टेक्फुर शब्द का रूपान्तरण हैं । जिसका प्रयोग तुर्की सल्तनत में" स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान्टिन गवर्नरों के सन्दर्भ में किया गया था ।

30 मई 2018
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टेकफुर शब्द का जन्म खिताबुक और प्रारम्भिक तुर्क काल में हुआ था ।भारतीय भाषाओं में प्रचलित शब्द टैंगॉर, ठाकरे तथा ठाकुर इसी तुर्की ईरानी मूल के टेक्फुर शब्द का रूपान्तरण हैं ।जिसका प्रयोग तुर्की सल्तनत में" स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान

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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग द्वित्तीय। असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग द्वित्तीय।

4 जुलाई 2018
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इतिहास के बिखरे हुए पन्ने " कुछ कथा- वाचक ---जो कृष्ण चरित्र के विवरण के लिए भागवतपुराण को आधार मानते हैं तो भागवतपुराण भी स्वयं ही परस्पर विरोधाभासी तथ्यों को समायोजित किए हुए है ।👇रोहिण्यास्तनय: प्रोक्तो राम: संकर्षस्त्वया ।देवक्या गर्भसम्बन्ध: कुतो देहान्त विना ।।८(भागवतपुराण दशम् स्कन्ध अध

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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण

12 जुलाई 2018
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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग प्रथम __________________________________________भारत में जादौन ठाकुर तो जादौन पठानों का छठी सदी में हुआ क्षत्रिय करण रूप है ।क्योंकि अफगानिस्तान अथवा सिन्धु नदी के मुअाने पर बसे हुए जादौन पठानों का सामन्तीय अथवा जमीदारीय खिताब था तक्वुर ! जो भार

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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -

24 अगस्त 2018
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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐैतिहासिक सन्दर्भ -यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषण एवं नवीन गवेषणाओं पर आधारित शोध है ।शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआइन्हीं तथ्यों की एक विस्तृत विवेचना :- -------------

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ऋग्वेद का पुरुष-सूक्त है ! पाणिनीय कालीन पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी पुरोहितों द्वारा रचित -- देखें प्रमाण- युक्त विश्लेषण " यादव योगेश कुमार "रोहि"

2 सितम्बर 2018
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वर्ण-व्यवस्था की प्रक्रिया का वर्णन करने वाले ऋग्वेद के पुरुष सूक्त की वास्तविकताओं पर कुछ प्रकाशन:--- वैदिक भाषा (छान्दस्) और लौकिक भाषा (संस्कृत) को तुलनानात्मक रूप में सन्दर्भित करते हुए --__________________________________________ऋग्वेद को आप्तग्रन्थ एवं अपौरुषेय भारतीय रूढि वादी ब्राह्मण समा

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गणेश , विष्णु और श्री इन पौराणिक पात्रों का तादात्म्य रोमनों के देवता जेनस सुमेरियन पिस्क-नु तथा रोमनों सुमेरियन देवी ईष्टर

2 अक्टूबर 2018
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यजुर्वेद में गणेश का वर्णन ऋग्वेद के सादृश्य परगणपति रूप में  प्राप्त होता है । देखें👇“ओ३म् गणानांत्वां गणपतिगूँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति गूँ हवामहे !निधीनां त्वा निधिपति गूँ हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्।।”उपर्युक्त ऋचा यजुर्वेद (23/19) में  है।यहाँ देव गणेश वर्णित हैं।यद्यप

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क्या कृष्ण अहीर थे ?

9 अक्टूबर 2018
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-क्या कृष्ण अहीर थे ?विचार-विश्लेषण---  यादव योगेश कुमार "रोहि" ग्राम- आजा़दपुर पत्रालय -पहाड़ीपुर जनपद- अलीगढ़---सम्पर्क सूत्र --8077160219...../_________________________________________संस्कृत भाषा में आभीरः, पुल्लिंग विशेषण शब्द है ---जैसे कि वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में उद्धृत किसानों है वाचस्पत्

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शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐतिहासिक सन्दर्भ।

18 अक्टूबर 2018
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शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐतिहासिक सन्दर्भ। यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषण नवीन गवेषणाओं पर आधारित है ।शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ ।आर्य विशेषण किस जन-जाति का प्रवृत्ति-मूलक विशेषण था ? -------------------------------------------------------------भारतीय इतिहास ही

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भारतीय पुराणों में महापुराणों मे परिगणित भविष्य पुराण आठारहवीं सदी की रचना है । जिसमे आदम और हव्वा का वर्णन है

13 नवम्बर 2018
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक  राजनेताओं के  साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।_______________________________________प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्

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इतिहास लेखक डॉ मोहन लाल गुप्ता के अनुसार करौली के यदुवंशी अपने नाम के बाद 'सिंह' विशेषण न लगाकर 'पाल' विशेषण लगाते थे ; क्यों कि ये स्वयं को गोपाल, गोप तथा आभीरया या गौश्चर मानते थे और बंगाल का पाल वंश भी इन्हीं से सम्बद्ध है ।करौली शब्द स्वयं कुकुरावलि का तद्भव है :- कुकुर अवलि =कुकुरावलि --कुरावली---करौली

25 नवम्बर 2018
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यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी ।ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं । दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश ज

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करौली का इतिहास और वहाँ के शासकों का वंश व व्यवसाय --- अद्यतन संस्करण--

25 नवम्बर 2018
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प्राचीन काल में यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते थे  । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में ।जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित

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भरतपुर के जाट जिन्हें अपना पूर्वज मानते हैं । धर्म्मपाल के बाद पैंतालीसवाँ पाल शासक अर्जुन पाल हुआ ।ये सभी पाल शासक पाल उपाधि का ही प्रयोग करते थे । क्यों कि इनका विश्वास था कि हमारे पूर्व पुरुष यदु ने गोपालन की वृत्ति को ही स्वीकार किया था । अतः पाल उपाधि गौश्चर गोप तथा अभीरों की आज तक है ।

26 नवम्बर 2018
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प्राचीन काल में यादवों की एकशाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशजमाने जाते थे । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में । जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित र

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यादवों का व्रज क्षेत्र की परिसीमा करौली का इतिहास--- धर्म्मपाल से लेकर अर्जुन पाल तक ---- प्रस्तुति-करण:- यादव योगेश कुमार "रोहि"

26 नवम्बर 2018
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________________________१-धर्म्मपाल२-सिंहपाल३-जगपाल ४- नरपाल५-संग्रामपाल६-कुन्तपाल७-भौमपाल८-सोचपाल९-पोचपाल१०-ब्रह्मपाल११-जैतपाल । करौली का इतिहास प्रारम्भ होता है विजयपाल से ---यह बारहवाँ पाल शासक था ---1030 ई०सन् विजयपाल १२- विजयपाल (1030)१३- त्रिभुवनपाल(1000)१४-धर्मपाल (1090)१५- कुँवरपाल (1120)१६-

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संस्कृत व हिन्दी वर्णमाला का ध्वनि वैज्ञानिक विवेचन नवीनत्तम गवेषणाओं पर आधारित ----- यादव योगेश कुमार "रोहि"

3 दिसम्बर 2018
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माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य

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हिन्दी वर्णमाला का वैज्ञानिक विवेचन (संशेधित संस्करण)

22 दिसम्बर 2018
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माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य

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कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर " _________________________________________

29 दिसम्बर 2018
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कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर "_________________________________________प्रस्तुति-करण :-  यादव योगेश कुमार 'रोहि' प्रेम सृष्टि का  एक वह अनुभव है ।--जो उसके निर्माण की आधार -शिला है ।प्रेम अनेक उन  भावनाओं का समुच्चय है । जो पारस्परिक स्नेह से प्रस्फुटित होकर लेकर भ

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यादव इतिहास

15 फरवरी 2019
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प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के अल्पज्ञानी लोग आभीर और यादवों को पृथक दिखाने के लिए महाभारत के मूसल पर्व के अष्टम् अध्याय से यह श्लोक उद्धृत करते हैं 👇________________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थात् वे

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अलंकार विवेचना - भाग प्रथम --

23 फरवरी 2019
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अलंकार (Figure of speech) का स्वरूप और भेद ---__________________________________________भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले कुशलतापूर्ण मनोरञ्जक ढंग को अलंकार कहते है।जैसे "कोई स्त्री आभूषण पहन कर सौभाग्यवती व समाज में शोभनीय प्रतीत होती है ।और यदि आभूषण न पहने हों तो विधवा के समान अश

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अलंकार विवेचना - भाग प्रथम --

23 फरवरी 2019
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अलंकार (Figure of speech) का स्वरूप और भेद ---__________________________________________भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले कुशलतापूर्ण मनोरञ्जक ढंग को अलंकार कहते है।जैसे "कोई स्त्री आभूषण पहन कर सौभाग्यवती व समाज में शोभनीय प्रतीत होती है ।और यदि आभूषण न पहने हों तो विधवा के समान अश

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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । यादव योगेश कुमार "रोहि"

27 फरवरी 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । 'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों। वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आर

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💥 भागवत धर्म के संस्थापक आभीर जन-जाति के लोग 💥

5 मार्च 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है ।'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों ; वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आरा

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मनुःस्मृति और श्रीमद्भगवत् गीता का पारम्परिक विरोध :-

7 मार्च 2019
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सामवेद की महत्ता को लेकर श्रीमद्भगवद् गीता और मनुःस्मृति का पारस्परिक विरोध सिद्ध करता है ;या तो तो मनुःस्मृति ही मनु की रचना नहीं है ।या फिर  श्रीमद्भगवद् गीता कृ़ष्ण का उपदेश नहीं ।परन्तु इसका बात के -परोक्ष संकेत प्राप्त होते हैं कि कृष्ण देव संस्कृति के विद्रोही पुरुष थे । जिन्हें ऋग्वेद के अष्ट

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की साधना है ! परन्तु स्वास्थ्य क्या है ? जाने !

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की साधना है ! परन्तु स्वास्थ्य क्या है ? जाने !

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है । अब योग क्या है ? और स्वास्थ्य क्या है ? इनकी व्याख्यापरक परिभाषा पर भी विचार आवश्यक है 👇

16 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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सत्य जो किया ने कहा नहीं !

22 मार्च 2019
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राक्षसों को महाभारत में धर्मज्ञ कहा है । ______________________________________राक्षस शब्द का अर्थ संस्कृत भाषा में होता है ।धर्म की रक्षा करने वाला " धर्मस्य रक्षयति इति "राक्षस रक्षस् एव स्वार्थे अण् । इति राक्षस “क्वचित् स्वार्थिका अपि प्रत्ययाः प्रकृतितो लिङ्गवचनान्यतिवर्त्तन्ते ।_______________

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धर्म पहले क्या था ? और अब क्या है ?

23 मार्च 2019
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आप जानते हो जब कोई वस्त्र नया होता है ।वह शरीर पर सुशोभित भी होता है ; और शरीर की सभी भौतिक आपदाओं से रक्षा भी करता है ।👇परन्तु कालान्तरण में वही वस्त्र जब पुराना होने पर जीर्ण-शीर्ण होकर चिथड़ा बन जाता है ।अर्थात्‌ उसमें अनेक विकार आ जाते हैं ।तब उसका शरीर से त्याग देना ही उचित है ।आधुनिक धर्म -पद

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पश्चिमी एशिया की संस्कृतियों में ईश्वर वाची शब्द–

26 मार्च 2019
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जहोवा ,गॉड , ख़ुदा और अल्लाह आदि ईश्वर वाची शब्दों की व्युत्पत्ति वैदिक देव संस्कृति के अनुयायीयों से भी  सम्बद्ध है। ________________________________________---- विचार विश्लेषण :--यादव योगेश कुमार 'रोहि' जैसे हिब्रू ईश्वर वाची शब्द  यहोवा ( ह्वयति ह्वयते जुहाव जुहुवतुः जुहुविथ जुहोथ ) आद संस्कृत क्

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"योग आत्म-साक्षात्कार की कुञ्जिका " यादव योगेश कुमार "रोहि"

31 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: कह कर वर्णित किया है ।परवर्ती तद्भव रूप में श्वस् धातु भी स्वर् का ही रूप है ।आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa( स्वेसा )तथाswījēn( स्वजेन) शब्द आत्म बोधक हैं । अर्थात् own, relation प्राचीनत्तम जर्मन- गोथिक में: 1-swēs (a) 2-`own'; swēs n. (b) `property' 2-

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"चौधरी, ठाकुर तथा चौहान जैसी उपाधियों के श्रोत " यादव योगेश कुमार "रोहि"

2 अप्रैल 2019
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चौधरी शब्द पुल्लिंग विशेषण-पद के रूप में हिन्दी में विद्यमान है यह शब्द जिसका सम्बन्ध संस्कृत भाषा के चक्रधारिन् ( चक्रधारी)  शब्द से तद्भूत है-👇जो मध्यकालीन कौरवी तथा बाँगड़ू बोलीयों में चौधरी शब्द के रूप में विकसित हुआ ।संस्कृत कोश -ग्रन्थों में चक्रधारि कृष्ण का विशेषण रहा है ।कालान्तरण में चक्र

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भविष्य पुराण अठारहवीं सदी की रचना है । परन्तु अन्ध भक्त रहते है यह महर्षि वेद - व्यास- की रचना है !

7 अप्रैल 2019
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।_______________________________________प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्

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ठाकुर उपाधि न तो वंश गत है । यह तुर्को और मुगलों की उतरन के रूप में एक । जमीदारीय खिताब था ।. प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

8 अप्रैल 2019
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_____________________________________टेकफुर शब्द का जन्म खिताबुक और प्रारम्भिक तुर्क काल में किया गया था ।जिसका प्रयोग " स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान्टिन गवर्नरों के सन्दर्भ में किया गया था ।उत्पत्ति और अर्थ की दृष्टि सेइस शीर्षक (उपा

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गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् प्रत्यय । अर्थात्‌ --जो गाय की सेवा करता है । गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” “ शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ । अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।

9 अप्रैल 2019
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गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् प्रत्यय । अर्थात्‌ --जो गाय की सेवा करता है ।गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” “ शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ । अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।गोषन् (गोष: )गां सनोति सन--विच् ।“सनोतेरनः” पा० नान्तस्य नित्यषत

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अहीरों का ऐैतिहासिक परिचय "पश्चिमीय एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के सूत्रधारकों के रूप में अहीरों का वर्णन अबीर रूप में है । विचार-विश्लषेण--- यादव योगेश कुमार "रोहि"

12 अप्रैल 2019
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अहीरों का ऐैतिहासिक परिचय "पश्चिमीय एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के सूत्रधारकों के रूप में अहीरों का वर्णन अबीर रूप में है ।और अहीर -रेजीमेण्ट इस मार्शल आर्ट प्रायोजकों के लिए एक प्रायौगिक संस्था बनकर देश की सुरक्षात्मक गतिविधियों को सुदृढ़ता प्रदान करेगी।एेसा मेरा विश्वास है ।इस लि

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घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण या पर्याय रहा है ।

12 अप्रैल 2019
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यद्यपि हम घोष हैं परन्तु घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण या पर्याय रहा है ।और यह किसी वंश का सूचक कभी नहीं था ।क्यों कि हैहय वंशी यादव राजा दमघोष से पहले भी घोष यादवों का गोपालन वृत्ति मूलक विशेषण रहा।इस विषय में वेद प्रमाण हैं; उसमे भी ऋग्वेद और उसमे भी इसके चतुर्थ और षष्ठम् मण्डल मध्यप्रदेश

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मध्यप्रदेश के घोष समाज को ठाकुर उपाधि की अपेक्षा यादव लिखना चाहिए ! क्यों कि ठाकुर उपाधि तुर्को और मुगलों की सामन्तीय उपाधि!

13 अप्रैल 2019
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''''''''''''""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""यद्यपि हम घोष हैं परन्तु लोग हम्हें अहीर अथवा गोप कहकर भी पुकारा जाता हैं । क्यों कि ये सभी विशेषण शब्द परस्पर पर्याय वाची हैं घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण व पर्याय वाची  है।परन्तु गोष: शब्द के रूप में -और यह किसी वंश की सूचक उपाधि

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वर्ण-व्यवस्था और मनु का ऐैतिहासिक विवेचन एस नवीनत्तम व्याख्या-

19 अप्रैल 2019
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वैदिक सन्दर्भों के अनुसार दास से ही कालान्तरण दस्यु शब्दः का विकास हुआ हैं।मनुस्मृति मे दास को शूद्र अथवा सेवक के रूप में उद्धृत करने के मूल में उनका वस्त्र उत्पादन अथवा सीवन करने की अभिक्रिया  कभी प्रचलन में थी।परन्तु कालान्तरण में लोग इस अर्थ को भूल गये।भ्रान्ति वश एक नये अर्थ का उदय हो गया।जिस पर

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व्यवस्थित मानव सभ्यता के प्रथम प्रकाशक के रूप में ऋग्वेद के कुछ सूक्त साक्ष्य के रूप में हैं ।

19 अप्रैल 2019
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भारतीयों में प्राचीनत्तम ऐैतिहासिक तथ्यों का एक मात्र श्रोत ऋग्वेद के 2,3,4,5,6,7, मण्डल है ।आर्य समाज के विद्वान् भले ही वेदों में इतिहास न मानते हों ।तो भीउनका यह मत पूर्व-दुराग्रहों से प्रेरित ही है। यह यथार्थ की असंगत रूप से व्याख्या करने की चेष्टा है परन्तु हमारी मान्यता इससे सर्वथा विपरीत ही ह

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चौहान ,परमार ,प्रतिहार,सोलंकी शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- प्रस्तुति-करण :–यादव योगेश कुमार "रोहि"

20 अप्रैल 2019
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है । भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18 वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है । _______________________________________ प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरु

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पाखण्ड शब्द का इतिहास .... ही निर्धारित करता है । पुराणों और महाभारत रामायण आदि के लेखन का काल निर्धारण ....👇

6 मई 2019
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पाखण्ड शब्द का इतिहास ....ही पोल खोलता है । ब्राह्मणों के पाखण्डी की..________________________________________जैन परम्पराओं में पाषण्ड शब्द को पासंडिय अथवा पासंडी रूप में उद्धृत किया गया है । जैसा कि निम्न प्राकृत भाषा की पक्तियाँ लिपिबद्ध हैं 👇क्रमांक ३ "समयसार" की गाथा क्रमांक ४०८, ४१० एवं ४१३ म

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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ? यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !

6 मई 2019
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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !---मैं भी असली घोषी अहीर जन समुदाय से तालुकात रखता  हूँ । मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूत समुदाय के लोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ? वह मुझे सब याद है

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समग्र महाभारत का एक समग्र विश्लेषण मूलक अध्ययन"

15 मई 2019
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"एक कथन शाश्वत सत्य है कि --जो  तथ्य या कथ्य अपने आप में पूर्ण होते हैं ; उन्हें क्रम-बद्ध करने की भी आवश्यकता नहीं होती है।परन्तु भारतीय संस्कृति के अभिभावक और आधार भूत वेदों और  उनके व्याख्या कर्ता या विवेचक ग्रन्थों पुराणों, रामायण तथा महाभारत आदि में परस्पर विरोधी व भिन्न-भिन्न कथाओं का वर्णन  त

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भारत में भागवत धर्म का उदय और विकास -

23 मई 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है ।यद्यपि प्रारम्भ में यह भागवत धर्म के रूप में ही गुप्त काल में  मान्य था कालान्तरण में ब्राह्मणों ने इसे वैष्णवधर्म बना कर हिन्दू धर्म में विलय कर लिया ।भागवत धर्म में वर्ण-व्यवस्था के लिए कोई स्थानान्तरण नहीं था।'भागवत धर्म' का तात्प

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जादौन चारण बंजारों का इतिहास-

27 मई 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं ।परन्तु उनका तो पौराणिक ग्रन्थों में किसी प्रकार का इतिहास नहीं क्यों कि इनका

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कर्म की उत्पत्ति और उसका स्वरूप-

2 जून 2019
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एक सतसंग में निरंकारी मिशन के महापुरुष-जब मंच पर खुल कर विचार करने की हम्हें अनुमति देते हैं ।और प्रश्न करते हैं कि कर्म-- क्या है ? और यह किस प्रकार उत्पन्न होता है ?कई विद्वानों से यह प्रश्न किया जाता है ।मुझे भी अनुमति मिलती है ।हमने किसी शास्त्र को पढ़ा नहीं परन्तु हमने विचार करना प्रारम्भ किया

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जादौन जन-जाति के आयाम -

9 जून 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं ।परन्तु उनका तो पौराणिक ग्रन्थों में किसी प्रकार का इतिहास नहीं क्यों कि इनका

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जादौन चारण बंजारों का ऐैतिहासिक विवरण -उद्धृत अंश भारत की बंजारा जाति और जनजाति -3" लेखक S.G.DeoGaonkar शैलजा एस. देवगांवकर पृष्ठ संख्या- (18)चैप्टर द्वितीय...

9 जून 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं क्यों कि पुराणों या स्मृतियों ने जिन वेदों को आप

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महाभारत के लेखक गणेश देवता "भाग चतुर्थ" एक समीक्षात्मक लेख .../

9 जून 2019
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महाभारत के लेखक गणेश देवता "भाग चतुर्थ"__________________________________________महाभारत बौद्ध कालीन संस्कृतियों का प्रकाशन करने वाला अधिक है ।-जैसे चाण्यक नीति से प्रभावित निम्न श्लोक देखे:-👇सतां साप्तपदं मैत्रं स सखा मे८सि पण्डित:।सांवास्यकं करिष्यामि नास्ति ते भयमद्य वै।56।( महाभारत शान्ति पर्व

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शब्दों की अर्थावनति - राँड़ और रड़ुआ --

9 जून 2019
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रडुओं का  क्या हाल होता है भक्तो                     सुनो- क्वार कनागत कुत्ता रोवे।तिरिया रोवे तीज त्यौहार ।                 आधी रात पै रडुआ रोवे सुनके पायल  की झंकार ।।_____________________________________________भावार्थ:- अश्वनी मास अर्थात क्वार के महीने में जब कनागत आते हैं यानी सूर्य कन्या राशि

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जन्म जन्मान्तरण के अहंकारों का सञ्चित रूप ही तो नास्तिकता है जो जीवन को निराशाओं के अन्धेरों से आच्छादित कर देती है।

9 जून 2019
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जन्म जन्मान्तरण के अहंकारों का सञ्चित रूप ही तो नास्तिकता है जो जीवन को निराशाओं के अन्धेरों से आच्छादित कर देती है।समझने की आवश्यकता है कि नास्तिकता क्या है ?अपने अस्तित्व को न मानना ही नास्तिकता है ।क्यों कि लोग अहं में जीते है ।परन्तु यदि वे स्वयं में जी कर देखें तो वे परम आस्तिक हैं ।बुद्ध ने भी

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मनस् सिन्धु की विचार लहरें ! जहाँ ज्ञान के बुद्बुद ठहरें !

9 जून 2019
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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार हो

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कर्म का जन्म और सृष्टि का विस्तार- एक आध्यात्मिक विवेचना

9 जून 2019
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एक सतसंग में निरंकारी मिशन के महापुरुष-जब मंच पर खुल कर विचार करने की हम्हें अनुमति देते हैं ।और प्रश्न करते हैं कि कर्म-- क्या है ? और यह किस प्रकार उत्पन्न होता है ?कई विद्वानों से यह प्रश्न किया जाता है ।मुझे भी अनुमति मिलती है ।मुझे भी आश्चर्य होता है !कि जिस प्रश्न को हम पर कोई उत्तर नहीं है ।फ

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भागवत धर्म के प्रणयिता -

9 जून 2019
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वर्तमान में हिन्दुत्व के नाम पर अनेक व्यभिचारपूर्ण और पाखण्ड पूर्ण क्रियाऐं धर्म के रूप में व्याप्त हैं ।केवल हरिवंशपुराण को छोड़ कर सभी पुराणों में कृष्ण को चारित्रिक रूप से पतित वर्णित किया है।नियोग गामी पाखण्डी ब्राह्मणों ने  कृष्ण को एक कामी ,व्यभिचारी ,और रासलीला का नायक बनाकरयादवों की गरिमा को

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।

14 जून 2019
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आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।____________________________________________वेद की अधिष्ठात्री देवी गायत्री अहीर की कन्या थीं और ज्ञान के अधिष्ठाता कृष्ण भी आभीर( गोप) वसुदेव के पुत्र थे ।ऐसा महाभारत के खिल-भाग हरिवंश प

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भागवत धर्म का स्वरूप-भाग प्रथम एवं द्वितीय -प्रस्तुति करण :- यादव योगेश कुमार "रोहि"

14 जून 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । 'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों ; वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आर

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कृष्ण के मौलिक आध्यात्मिक सिद्धान्त सदैव पुरोहित वाद और वैदिक यज्ञ मूलक कर्म--काण्डों ते विरुद्ध हैं ।

15 जून 2019
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भागवत धर्म एवं उसके सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाला एक मात्र ग्रन्थ श्रीमद्भगवद् गीता थी ।--जो उपनिषद् रूप है । परन्तु पाँचवी शताब्दी के बाद से अनेक ब्राह्मण वादी रूपों को समायोजित कर चुका है --जो वस्तुत भागवत धर्म के पूर्ण रूपेण विरुद्ध व असंगत हैं ।--जो अब अधिकांशत: प्रक्षिप्त रूप में महाभारत क

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कर्म और धर्म के सिद्धान्त - यादव योगेश कुमार" रोहि"

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कर्म का स्वरूप और जीवन का प्रारूप :- विचारक यादव योगेश कुमार 'रोहि' कर्म का अपरिहार्य सिद्धान्त - श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 3 का श्लोक 5 भागवत धर्म के सार- गर्भित सिद्धान्त--जैसे कर्म सृष्टि और जीवन का मूलाधार है निम्न श्लोक देखें-_________________________________________न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्

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कर्म धर्म और जाति की सुन्दर व्याख्या - यादव योगेश कुमार "रोहि"

15 जून 2019
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गुप्त काल में -जब ब्राह्मण वाद का विखण्डन होने लगा तो परास्त ब्राह्मण वाद ने अपने प्रतिद्वन्द्वी भागवत धर्म को स्वयं में समायोजित कर लिया ।यह भागवत धर्म अहीरों का भक्ति मूलक धर्म था ।और ब्राह्मणों का धर्म था - वर्ण व्यवस्था मूलक व स्वर्ग एवं भोग प्राप्ति हेतु पशु बलि व यज्ञ परक कर्म काण्डों पर आधार

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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर

19 जून 2019
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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'  की गहन मीमांसाओं पर आधारित-भागवत धर्म के जन्मदाता आभीर जन-जाति के लोग थे प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञ सर राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर-जैसे विद्वानों ने ईस्वी सन् 1877 क

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अहीर ही यादव होते हैं !

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यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं । दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश जहाँ

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साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।।

22 जून 2019
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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल ,गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार ह

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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिछाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

23 जून 2019
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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर कर सकता है ।यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं ।क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिछाया है ।वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु का साथ साथ

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वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है ।

25 जून 2019
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वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते | पिबा त्वस्य गिर्वण : ।। (ऋग्वेद ३/५ १/ १ ० ) अर्थात् :- हे ! राधापति श्रीकृष्ण ! यह सोम ओज के द्वारा निष्ठ्यूत किया ( निचोड़ा )गया है । वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं, उनके द्वारा सोमरस पान करो। यहाँ राधापति के र

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श्रीमद्भगवत् गीता का उचित स्थान महाभारत का भीष्म पर्व नहीं अपितु शान्ति पर्व होना चाहिए था ।

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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'  की गहन मीमांसाओं पर आधारित-भागवत धर्म के जन्मदाता आभीर जन-जाति के लोग थे प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञ सर राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर-जैसे विद्वानों ने ईस्वी सन् 1877 क

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"राम विश्व संस्कृतियों में " एस संक्षिप्त परिचय- " प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

30 जून 2019
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राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है ________________________________________________ प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है:

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आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक है ।

1 जुलाई 2019
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आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक है ।और पश्चिमीय एशिया तथा यूरोप की  समस्त भाषाओं में ये दौनों  शब्द प्राप्त हैं ।परन्तु  आर्य शब्द वीर  शब्द का ही सम्प्रसारित रूप है ।अत: वीर शब्द ही  प्रारम्भिक है ।दौनों शब्दों की व्युपत्ति पर एक सम्यक् विश्लेषण -प्रस्तुति-करण :-यादव योगेश कुमार  'रोहि'_

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हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत प्राच्य और पाश्चात्य इतिहासकारों के हवाले से...

4 जुलाई 2019
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हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत- शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- महाभारत ,वाल्मीकि रामायण तथा पुराणों के सन्दर्भों से उद्धृत करते हुए चीन के इतिहास से भी कुछ प्रकाशन किया है।यद्यपि ब्राह्मणों द्वारा

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इतिहास के कुछ बिखरे हुए पन्ने ...शायद आप नहीं जानते हो

6 जुलाई 2019
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यूनानीयों तथा ट्रॉय वासी -जब एगमेम्नन और प्रियम के नैतृत्व में यौद्धिक गतिविधियों में संलग्न थे ।तब उनकी संस्कृतियों में वैदिक परम्पराओं के सादृश्य कुछ संस्कार थे ।जैसे मृतक का दाह-संस्कार आँखों पर दो स्वर्ण-सिक्का रखकर किया जाने तथा बारह दिनों तक शोक होना....यह समय ई०पू० बारहवीं सदी है होमर ई०पू० अ

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शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित ।

18 जुलाई 2019
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शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित --------------------------------------------------------- भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत् शोध "यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित तथ्य विश्व सांस्कृतिक अन्वेषणों के पश्चात् एक तथ्य पूर्णतः

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हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप के अन्तर्गत वर्णमाला की व्युत्पत्ति मूलक विवेचना। रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग पञ्चम्)

4 अगस्त 2019
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हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप ।रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग पञ्चम्)__________________________________________________माहेश्वर सूत्र को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने वैदिक भाषा (छान्दस्) के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से माहेश्वर सूत्रों का न

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राम और सीता पश्चिमीय संस्कृतियों में....

15 अगस्त 2019
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राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है __________________________________________ प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है: ‘वैदे

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राम और सीता ऋग्वेद में तो हैं ही ; ये प्राचीनत्तम पात्र सुमेरियन तथा मिश्र की संस्कृतियों में भी

17 अगस्त 2019
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आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇देखें--

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राम सीता लक्ष्मण और भरत सुमेरियन और मिश्र की संस्कृतियों में...

18 अगस्त 2019
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आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇देखें--

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मित्रों ब्राह्मणों का कृषि और गौपालन से क्या वास्ता ? मन्दिर तक है इन पुरोहितों का रास्ता !

20 अगस्त 2019
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ब्राह्मण समाज केवल कर्म-काण्ड मूलक पृथाओं का सदीयों से संवाहक रहे है ।और धार्मिक क्रियाऐं करने वाला यौद्धिक गतिविधियों से परे ही कहता है ।वैसे ब्राह्मण शब्द सभी महान संस्कृतियों में विद्यमान है ।जिसका अर्थ होता है केवल और केवल " मन्त्र -पाठ करने वाला पुजारी "पण्डित , ब्राह्मण और पुरोहित यूरोपीय

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अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

25 अगस्त 2019
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अंग्रेजी व्याकरण में इट और देयर का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-Use of It and There and question Words___________________________________________Use of It and There When a sentence has no subject, then 'It and There' are used as an Introductory Word. e.g. (exempli gratia)( for exam

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अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

25 अगस्त 2019
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अंग्रेजी व्याकरण में इट और देयर का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-Use of It and There and question Words___________________________________________Use of It and There When a sentence has no subject, then 'It and There' are used as an Introductory Word. e.g. (exempli gratia)( for exam

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कृष्ण जीवन को कलंकित करने वाले षड्यन्त्र कारक पक्ष- जिनका सृजन कृष्ण को चरित्र हीन बनाकर देवसंस्कृति के अनुयायी पुरोहितों ने किया !

25 अगस्त 2019
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कृष्ण जीवन को कलंकित करने वाले षड्यन्त्र कारक पक्ष- जिनका सृजन कृष्ण को चरित्र हीन बनाकर देवसंस्कृति के अनुयायी पुरोहितों ने किया !परिचय :-- यादव योगेश कुमार'रोहि'_______________________________________________ कामी वासनामयी मलिन हृदय ब्राह्मणी संस्कृति ने हि

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ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में वासुदेव कृष्ण का वर्णन:-

1 सितम्बर 2019
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ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में वासुदेव कृष्ण का वर्णन:-_________________________________________ऋग्वेद के प्रथम मण्डल अध्याय दश सूक्त चौबन 1/54/ 6-7-8-9- वी ऋचाओं तक यदु और तुर्वशु का वर्णन है ।और इसी सूक्त में राधा तथा वासुदेव कृष्ण आदि का वर्णन है ।परन्तु यहाँ भी परम्परागत रूप से  देव संस्कृतियों के पु

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ऋग्वेद में कृष्ण का वर्णन है परन्तु आर्य्य समाजी मानसिकता के लोग वैदिक ऋचाओं की यौगिग शब्द मूलक अर्थ व्यञ्जन करते हैं और ये भी मानवीय वेद को अपौरुषेय बनाते हैं ।

5 सितम्बर 2019
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महानुभाव ! षड्यन्त्र प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक क्रिया है ।जिसे जन साधारण निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहता है । यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दिया गया ।श्रृँगार वैराग्य का सनातन प्रतिद्वन्द्वी भाव है. इसी

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अहीर विश्व संस्कृतियों में प्रतिभासित रूप --

9 सितम्बर 2019
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आज के समय से लगभग ई०पू० द्वित्तीय सदी में संस्कृत के विद्वानों ने चरावाहों के एक समुदाय की वीरता और भयंकरताप्रवृत्ति को दृष्टि गत करके उन्हें अभीरु अथवा अभीर कहा । क्योंकि यहाँं के पुरोहितों को इनके मूल नाम "एवीर" / अबीरमें अभीर की ध्वनि सुनायी दी ।अहीर हिब्रू-भाषाओं में बीर/ बर से विकसित है ।जो अबी

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कृष्ण के चरित्र को पतित करने का एक षड्यन्त्र ...

10 सितम्बर 2019
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महानुभाव ! षड्यन्त्र प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक क्रिया है ।जिसे जन साधारण  निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहता है ।यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दिया गया ।श्रृँगार  वैराग्य का सनातन प्रतिद्वन्द्वी भाव है. इसी

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तुमको हम इतना समझा दें कि धर्म वास्तव में क्या है ? धर्म साधना है मन की , इन्द्रिय-नियमन की क्रिया है|

15 सितम्बर 2019
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जिस घर में रोहि संस्कार नहीं, और शिक्षा का प्रसार नहीं ||*********************उन्मुक्त Sex का ताण्डव है , वहाँ चरित्र सलामत कब है||***********************इस काम की उच्छ्रंखलता से दुनियाँ में जो कुकर्म है ,पाप पतन कारी कितना .? आदमी अब बेशर्म है ||*********************इन सभी विकृतियों की

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कुछ प्रथाऐं जो अब समाज के लिए अनावश्यक और अर्थ हीन हैं !

16 सितम्बर 2019
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एक परम्परागत पण्डित जी कहते हैं ; कि ये त्रयोदशी- भोग राज परिवारों की प्रथा है।तो हमारा उनसे कहना कि फिर जनता इसका अनुकरण क्यों करती है ?क्या राजा के समान सुविधाऐं जनता के पास हैं ?नहीं !और आज राज तन्त्र है क्या ?नहीं !तो इस मूर्खता पूर्ण पृथा को राजपरिवारों के साथ समाप्त कर दो !गरीब जनता क्यों

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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।।

19 सितम्बर 2019
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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार हो

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आभीरों का भागवत धर्म ( आत्मा की खोज और जीवन का रहस्य )

27 सितम्बर 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: कह कर वर्णित किया है । परवर्ती तद्भव रूप में श्वस् धातु भी स्वर् धातु का ही रूप है । आद्य-जर्मनिक भाषाओं में यह रूप :- swḗsa( स्वेसा ) तथा swījēn( स्विजेन) शब्द के रूप में आत्मा का बोधक हैं । अर्थात् own, relation ।प्राचीनत्तम जर्मन- गोथिक भाषा में: 1-sw

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ; इसीलिए योग और स्वास्थ्य इन दौनों का पारस्परिक सातत्य समन्वय अथवा एकता अपेक्षित  है । तृतीय चरण की प्रस्तुति ... _______________________________________________

1 अक्टूबर 2019
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_______________________________________________योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ; इसीलिए योग और स्वास्थ्य इन दौनों का पारस्परिक सातत्य समन्वय अथवा एकता अपेक्षित  है ।तृतीय चरण की प्रस्तुति ..._______________________________________________योग’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा की  ‘युजँ समाधौ’ संयमने

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भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -

4 अक्टूबर 2019
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भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -__________________________________________संसार में ज्ञान और कर्म का सापेक्षिक अनुपात ही जीवन की सार्थकता का कारण है ।गुरू इसी सार्थकता का ही निमित्त कारण है ।अन्यथा व्यक्ति एक अभाव में या तो अन्धा है या तो लंगड़ा ।  गुरू ! की

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चारण और भाटों का साहित्यिक परिचय...

5 अक्टूबर 2019
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पिंगल और डिंगल -राजस्थान की पूर्वीय और पश्चिमीय बोलीयों का सीमांकन करती हैं ।'डिंगल' पश्चिमीय राजपूताने की वह राजस्थानी भाषा गत शैली है; जिसमें चारण लोग आज तक काव्य और वंशावली आदि लिखते चले आ रहे  हैं । विशेषत: चारण लोग डिंगल भाषा में काव्य रचनाऐं करते रहे हैं।'यह' भाषाशैली कृत्रिम होते हुए भी कलात

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यादवों का इतिहास "द्वितीय भाग" ( नवीन संस्करण)

2 नवम्बर 2019
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यादवों का इतिहास "द्वितीय भाग" ( नवीन संस्करण)____________________________________________वैदिक साहित्य में असुरों के विशाल तथा दृढ़ दुर्गों एव प्रासादों ( भवनों)के वर्णन मिलते हैं ।संभवतः लवण-पिता मधु या उनके किसी पूर्वज ने यमुना के तटवर्ती प्रदेश पर अधिकार कर लिया हो ; यह अधिकार लवण के समय से समाप

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"हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप " संशोधित संस्करण (भाग एक)

6 नवम्बर 2019
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।उसने  अपने विचार ,भावनाओं एवं अनुभुतियों को अभिव्यक्त करने के लिए जिन माध्यमों को चुना वही  भाषा है ।मनुष्य कभी शब्दों से तो कभी संकेतों द्वारा  संप्रेषणीयता (Communication) का कार्य सदीयों से करता रहा है।अर्थात् अपने मन्तव्य को दूसरों तक पहुँचाता रहा है ।किन्तु भाषा उसे

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ये हुश़्न भी "कोई " ख़ूबसूरत ब़ला है !

6 नवम्बर 2019
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ये हुश़्न भी "कोई " ख़ूबसूरत ब़ला है ! _______________________________ बड़े बड़े आलिमों को , इसने छला है !!इसके आगे ज़ोर किसी चलता नहीं भाई! ना इससे पहले किसी का चला है !!ये आँधी है , तूफान है ये हर ब़ला है!परछाँयियों का खेल ये सदीयों का सिलस़िला है !आश़िकों को जलाने के लिए इसकी

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मेरी अनुभूतियों के पल और बीते हुए कल...

31 दिसम्बर 2019
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हर कर्म की प्रेरक मेरी ये हालात है !सहायक प्रवृत्ति या परिवेश ये संस्कार दूसरी बात है ।मुझे हर तरफ मोड़ा उन हालातों ने मेरे रुहानी जज्बातों ने या विरोधीयों की बातों ने ।मेरा व्यक्तित्व बस परिस्थियों की सौगात है ।ये मेरा प्रारब्ध है किसी गैर की कहाँ औख़ात है ये परिस्थियाँ हैं मेरे ग़म से नातों क

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अनुभतियों के पल मेरे बीते हुए पल ...

2 जनवरी 2020
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गलतीयाँ सामाजिक विसंगतियाँ ।और भूल मनुष्यगत भौतिक विस्मृतियाँ ।दौनों की ही अलग-अलग हैं गतियाँ।।हमने बहुत समझा औरों को दिल में बहुत कुछ और था ।हमको अपना समझा गैरों ने जिन पर हमारा नहीं गौर था हर कर्म की प्रेरक मेरी ये हालात है ! सहायक प्रवृत्ति या परिवेश ये संस्कार दूसरी बात है । मुझे हर तरफ मोड़ा

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मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।

4 जनवरी 2020
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मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।फिर क्यों ये मेरा मन, उदास है ।मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।मेरे प्रभु तेरी खुशबू , बड़ी अद्भुत और ख़ास है- मैं एक पापी तू सर्वव्यापी मेरा विश्वास है- ।है तेरा शमा तू 'न जन्मा न तेरा नाश है ।मुझे एहसास है प्रभु मेरे पास है ।××××××××××××××××××××××××××××××सत्कर्

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मेरे कान्हा तेरी महिमा, अपरम्पार है। तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार है ।

6 जनवरी 2020
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मेरे कान्हा तेरी महिमा, अपरम्पार है।तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार है ।तू मेरा सरकार है ,तू मेरा सरकार... है ।___________________________तेरी बातें ये सौगातें ,जीवन का एक सार हैं ।तू मेरा सरकार है ,तू मेरा सरकार है ।तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार... है ।मेरे प्रभू तेरा बजूह , मन में जो भी संजोता ।

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उसूल सदियों सदियों पुराने हैं

6 फरवरी 2020
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धर्म की आड़ में उसूल कुछ सदियों सदियों पुराने हैं।प्रसाद वितरण करने वालों में भी अब ज़हर खुराने हैं ।।धर्म की चादर ओढ़कर मन्दिर में ,आसन लगाऐ बैठे व्यभिचारी ।अब मन्दिर ही मक्कारों के ठिकाने हैं ।शराफत को अब कमजोरी समझते हैं लोग "रोहि"निघोरेपन में अब कुछ और फरेबी पहचाने हैं।ईमानदारी जहालत के मायनेहा

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"सत्य विकल्प रहित और सर्वथा एक रूप होता है जबकि असत्य बहुरूपिया और बहुत से विकल्पों में उद्भासित होता है "

16 फरवरी 2020
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किसी की महानता और प्रसिद्धि कुछ अहंवादी व्यक्तियों को सहन नहीं हुई तो उन्होंने अपने अहं को तुष्ट करने के लिए उनके इतिहास और वंश-व्युत्पत्ति को इस प्रकार से सम्पादित किया कि उन्हें सर्वथा हीन और हेय रूप में समाज की दृष्टि में सिद्ध किया जा सके !ये महान और वीरतापूर्ण प्रवृत्तियों से सम्पन्न जनजातिय

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छलावा ...

18 फरवरी 2020
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धर्म बनाया ढ़कोसला ! तिलक ,छाप ठगने की कला ।इनका ईश्वर पैसे भी लेता ।आज हमको ये पता चला।।और देव दासीयाँ को 'रोहि' ।पुजारियों ने हरपल छला ।।सुन्दरता नाम नहीं 'रोहि' किसी के गोरे होने का ।और पवित्रता नाम नहीं ,केवल शरीर के धोने का ।।काला हो या हो श्यामल और लम्पट, चंचल ना हो कभी ।।गोरा भी कुरूप हो जात

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अर्जुन को नारायणी सेना के वीरों ने परास्त कर दिया ..

21 फरवरी 2020
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कारण एक सुभद्रा का हरण ।।वह भी चुपके से न किया रण।। नारायणी सेना के यौद्धा शान्त कारण था कृष्ण का संरक्षण ।जब कृष्ण भी अर्जुन के साथ नहीं।।तब अर्जुन की औकात नहीं ।।सब असहाय बाल और स्त्रियाँ हैंयादव स्त्रियों के नाथ नहीं ।ले जा रहा सैकड़ों अबला जन को ,ये निर्लज्ज बेहया दीठा है ।जो लोभी लालची और कामी

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अहीर जाट और गूजरों की समान खापें ...

21 फरवरी 2020
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।आज इसी तथ्य का विश्लेषण करते हैं ।अब कुछ जाट तो जो स्वयं को भरत पुर के राजा सूरजमल से जोड़ते हैं ।जिसका समय सत्रहवीं सदी है ।अपने को सिनसिनीवार जाट कहते हैं ।राजस्थानी क्षेत्र में भरत पुर में एक सूरजमल की प्रतिमा के

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"घर घर की घटना अजब अजब बनी हालात "

22 फरवरी 2020
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घर घर की घटना अजब ।अजब बनी हालात ।एक बार कोई महानुभाव ।कोलेब में रहते गात ।स्टार मेकर पर करते । महिलाओं संग मुलाकात ।सुना रहे थे पत्नी को अपने स्वरों की सौगात ।पत्नी जरि कौयला भई ,सुन पर तिरियन की बात ।कोलर पकड़ रगड़ पति को धरि दीनी दो लात ।और पूछती इतनी देर तककहाँ बिताते रात ।कई दिनों से दूर दूर तु

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गोप ,गोपाल, गौधुक ,आभीर यादव गुप्त गौश्चर पल्लव घोष आदि....

24 फरवरी 2020
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यादव शब्द एक वंशमूलक विशेषण है ।जब कि गोप गोपालन वृत्ति( व्यवसाय) मूलक विशेषण और आभीर( अभीर शब्द से अण् तद्धित प्रत्यय करने पर निर्मित हुआ आभीर एक प्रवृत्ति मूलक विशेषण है ) जिसका अर्थ है वीर अथवा निर्भीक यौद्धा परन्तु षड्यन्त्र पूर्वक पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मणों ने यादवों को वंश के आधा

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देश आज फिर घायल है । झूँठे अपवाह विवादों में ।।

29 फरवरी 2020
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देश आज फिर घायल है । झूँठे अपवाह विवादों में ।। ऊँच नीच और छुआछूत । है अहंकार संवादों में । हिन्दू हो या मुसलमान , अब नेकी नहीं इरादों में । सब एक वृक्ष के पौधे थे । था एक सूत्र परदादों में ।।विचार ,उम्र और , समान सम्पदा ।ये सम्बन्ध सफल है सर्वदा ।। समय ,परिस्थिति और देश में

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बोला शब्द की अवधारणा का श्रोत ...

3 मार्च 2020
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होलि शब्द की अवधारणा का श्रोत मूलत: संस्कृत भाषा के स्वृ= तापे उपतापे च धातु से निष्पन्न है । य: स्वरयति तापयति सर्वान् लोकान् इति सूर्य: कथ्यते "अर्थात् जो सम्पूर्ण लोगों को तपाता है वह सूर्य है " होली एक वसन्त सम्पातीय ऋतु-सम्बन्धी अग्नि का स्वागत उत्सव है ---जो ग्रीष्म ऋतु के आगमन रूप फाल्गुनी

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हरे कृष्णा हरे रामा रामा हरे हरे...गीत

5 मार्च 2020
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हरे कृष्णा हरे रामा ~~ रामा रामा हरे - हरे कृष्णा हरे !हरे रामा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे ..🎼🎼हरे रामाँ~~ हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे रामा हरे ।(दीर्घ )-हरे कृष्णाँ आँ हरे रामाँ आँआँ .... हरे कृष्णा हरे हरे हरे रामा हरे ---हरे रामाँ हरे कृष्णा कृष्णा- कृष्णा हरे हरे कृष्णा हरे ~~_______

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"कृष्ण का धर्म भागवत और उनका व्यक्तित्व " एक संक्षिप्त परिचय

6 मार्च 2020
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महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ही मुख्य भूमिका में हैं ।कृष्ण ने स्वयं तो पाण्डवों का साथ दिया ,जबकि अपनी अहीरों अथवा गोपों की नारायणी सेना को दुर्योधन का साथ देने का आदेश दिया। उनकी इस कूट राजनीति में एक श्रेष्ठ व्यक्तित्व का संयोजन है । कृष्ण ही एक एेसा महामानव इस भारतीय धरा पर उत्पन्न हुआ जिसन

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कृष्ण का व्यक्तित्व और उनका भागवत धर्म "एक प्रस्तावना " प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार 'रोहि'

8 मार्च 2020
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महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ही मुख्य भूमिका में हैं ।कृष्ण ने स्वयं तो पाण्डवों का साथ दिया  ,जबकि अपनी अहीरों अथवा गोपों की नारायणी सेना को दुर्योधन का साथ देने का आदेश किया। उनकी इस कूट राजनैतिक गतिविधि में  एक श्रेष्ठ सामाजिक व्यक्तित्व का संयोजन है । कृष्ण  ही एक एेसा महामानव इस भारतीय धरा प

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भागवत पुराण के प्रक्षेप ...(भाग प्रथम )

14 मार्च 2020
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सत्य और यथार्थ यद्यपि समानार्थक प्रतीत होने वाले नाम हैं ।'परन्तु सत्य हमारी कल्याण मूलक अवधारणाओं पर अवलम्बित है ।समय , परिस्थिति और देश के अनुकूलता पर जो उचित है- वही सत्य है ।सत्य मे यद्यपि कल्याण का भाव विद्यमान है।यथार्थ में नहीं...यथार्थ को पुराण कार व्यक्त न कर सके ।इसी लिए तत्कालीन पुरोहि

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भागवत पुराण और श्रीमद्भगवदगीता का काल निर्धारण ...

17 मार्च 2020
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श्रीमद्भगवदगीता में पञ्चम सदी में मिलाबट की गयी जिसमें वर्ण व्यवस्था और याज्ञिक 'कर्म' काण्डों को समायोजित कर दिया गया । वर्ण- व्यवस्था कृष्ण का प्रतिपाद्य विषय नहीं था ,अपितु इसके खण्डन करने के लिए ही उन्होंने नया मार्ग भागवत धर्म के नाम से प्रसारित किया ।जिसके उपदेश श्रीमद्भगवदगीता उपनिषत् को रूप

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लोक-तन्त्र हुआ डम्प ...

19 मार्च 2020
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अभिवञ्चन अधिकारों का हो ! क्या कर्तव्य भावना के मायने ?तस्वीर बदलती है रोहि ,अक्श नहीं बदलते आयने । लोकतंत्र नहीं षड्यंत्र है केवल शोषण का सब मंत्र है जूस डाला आम-जन को अवशेष केवल अन्त्र हैं !नेताओं की लूट भी संवैधानिक है यहांँ गरीबों का विद्रोह जुल्म के मानिक यहांँ परोक्ष राजतंत्र जहां सब परम्परा

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नन्द और वसुदेव दौनों सगे सजातीय गोप बन्धु थे ।

29 मार्च 2020
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यादवों का गुप्त तथा गोप अथवा गोपाल नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्ति के कारण हुए ...______________________________________________(हरिवंशपुराण एक समीक्षात्मक अवलोकन ...)हरिवंशपुराण के हरिवंश पर्व में दशम अध्याय का 36वाँ वह श्लोक देखें -रेवत के प्रसंंग में यह श्लोक विचारणीय है 👇__________

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इतिहास के कुछ बिखरे हुए पन्ने .... हैहयवंश और शक यवन हूण पारद किरात पह्लव आदि की विलय गाथा ... भाग प्रथम

31 मार्च 2020
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यादवों का गुप्त और गोप नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्तियों के कारण हुआशक यवन हूण पारद और पह्लवों से हैहयवंश के यादवों का सामंजस्य व विलय ... भाग प्रथम______________________________________________(हरिवंशपुराण के एक समीक्षात्मक अवलोकन सन्दर्भ में हमने पाया कि भारतीय पौराणिक कथाऐं पश्चिमीय

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अवर जन जाति का इतिहास ....

1 अप्रैल 2020
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the avars were a confederation ofheterogeneous (diverse or varied) people consisting of Rouran, Hephthalites, and Turkic-Oghuric races who migrated to the region of the Pontic Grass Steppe (an area corresponding to modern-day Ukraine, Russia, Kazakhstan) from Central Asia after the fall of the Asiat

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इतिहास लेखन के पूर्वाग्रह...

11 अप्रैल 2020
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प्रत्येक काल में इतिहास पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर लिखा जाता रहा है ; आधुनिक इतिहास हो या फिर प्राचीन इतिहास या पौराणिक आख्यानकों में वर्णित कल्पना रञ्जित कथाऐं !सभी में लेखकों के पूर्वाग्रह समाहित रहे हैं ।अहीरों की निर्भीकता और पक्षपात विरोधी प्रवृत्ति के कारण या 'कहें' उनका बागी प्रवृत्ति के का

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जीवन की अनन्त यात्रा ...

13 अप्रैल 2020
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जीवन की अनन्त यात्रा ...__________________________________अभिशाप है अकेलापन 'रोहि' इस जहान का !अनन्त के द्वार से लौट आया।- दीदार किया भगवान का ।।एकान्त जो शान्त है । इस संसार का वरदान है कोई ।नये जोश और जज्बात को । विश्राम लेता थका बटोही ।।ये एकान्त और अकेलापन दौनों एक स्थिति के ,प्रवाह है

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दास और दस्यु के सन्दर्भ ...

14 अप्रैल 2020
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दास और दस्यु यद्यपि अपने प्रारम्भिक रूप में समानार्थक है ।वैदिक कालीन सन्दर्भ सूची में दास का अर्थ देव संस्कृति के विरोधी असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है ।और जो दक्षता की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर अपने अधिकारों के लिए बागी या द्रोही हो गये वे दस्यु कहलाऐ और जिन्होंने उत्तर वैदिक काल में आते -आत

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दास और दस्यु के वैदिक कालीन सन्दर्भ ...

14 अप्रैल 2020
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दास और दस्यु यद्यपि अपने प्रारम्भिक रूप में समानार्थक शब्द रहे हैं । वैदिक कालीन सन्दर्भ सूची में दास का अर्थ देव संस्कृति के विरोधी असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है । और जो दक्षता की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर अपने अधिकारों के लिए बागी या द्रोही हो गये वे दस्यु कहलाऐ और जिन्होंने उत्तर वैदिक काल

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आज का ये हाल है ...

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अजब चाल है अजब हाल है । क्या बताऊँ सब बेमिसाल है ।विवाह से पूर्व सम्बन्ध बनाना ! लड़के लड़कियों की मजाल है ।ये गैंग-रेप किडनैप के तरीके । अन्धा हो जाना फिर दारू पीके ।आज वस्त्रों में अब सब तन दीखे। और क्रिया कलाप भी बे सलीके ।नैतिकता अब बि

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अहीर ,गूर्जर ,जाट और राजपूतों का इतिहास में विवरण विभिन्न सन्दर्भों में ...

18 अप्रैल 2020
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____________________________________ इतिहास अपने आप को पुनः दोहराता है।____________________________________ महान होने वाले ही सभी ख़य्याम नहीं होते ।उनकी महानता के 'रोहि' इनाम नहीं होते । फर्क नहीं पढ़ता उनकी शख्सियत में कुछ भी ,ग़मों में सम्हल जाते हैं जो कभी नाकाम नहीं होते।।बड़ी सिद्दत से संजोया

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मिथक और यथार्थ के समकक्ष ...

25 अप्रैल 2020
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प्रश्न (1)कुछ लोग जो आज भी पूर्व दुराग्रह से ग्रस्त रूढ़िवादी सड़ी-गली मानसिकता से समन्वित होकर जी रहे हैं ।ले सत्य के प्रकाश ले बचकर असत्य के अँधेरे में ही जी रहे हैं ।उन्हें प्रकाश से भय या चौंद भी लगती हैं ।उन्हें 'हम क्या 'कहें' उनका इस प्रवृत्ति के कारण उल्लू या चमकादर या एकाक्ष कौआ वे लोग अक्

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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

2 मई 2020
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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है । अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु क

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प्रभु की शरण में आके ,सिर चरणों में झुकाके ।

5 मई 2020
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प्रभु की शरण में आके ,सिर चरणों में झुकाके ।मन को तसल्ली मिलती है , प्रभु का भजन गाके ।समय के पथ पर जिन्दगी जा रही है यों ही ।फिर कुछ हासिल नहीं होगा रोहि पछिताके।________________________________________कौन है बनाने वाला इस संसार का -२कौन है खिवैया मेरी मझधार का -2धड़कनों की तालों में श्वाँसों की ल

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गुर्जर ,जाट और अहीरों का समन्वय...

10 मई 2020
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ब्राह्मणस्य द्विजस्य वा भार्या शूद्रा धर्म्मार्थे न भवेत् क्वचित्।रत्यर्थ नैव सा यस्य रागान्धस्य प्रकीर्तिता ।। (विष्णु- स्मृति)___________________________________________अर्थात्‌ ब्राह्मण के लिए शूद्रा स्त्री धर्म कार्य के लिए नही अपितु वासना तृप्ति के लिए होनी चाहिए अत:

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भागवत धर्म की प्रस्तावना...

14 मई 2020
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जब जैन-धर्म तथा बौद्ध-धर्म ह्रास के मार्ग पर बढ़ रहे थे तब दूसरी ओर इन्हीं के समानान्तरण भागवत धर्म भी वैदिक-धर्म की प्रतिक्रिया स्वरूप उदय हो रहा था ।वैदिक-धर्म भी अपने पुनरुत्थान में लगा था। उसने गुप्त काल के प्रारम्भ में भागवत धर्म को अपना में आत्मसात् करने का प्रयास किया।ब्राह्मण-चिंतकों ने खर्च

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गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....

19 मई 2020
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गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....________________________________________________यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है। चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं । अठारह वीं सदी तक सम्पादित भविष्य पुराण के प

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चौहानों का गूजरों और जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)

21 मई 2020
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चौहानों का गूजरों ,जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)________________________________________________यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है। चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं । अठारहवीं सदी तक स

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वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।( तेरी राहों खड़े हैं दिल थाम के )

4 जून 2020
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ओ३म्' ओ .....वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।तू ही मेरा हुजूर , मुझसे क्यों है दूर ।तेरा ही है ये नूर , फिर कैसी ये गुरूर ।।वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।आज देश

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हरि का भजन कर , मत चल तनकर । हरि का भजन कर , मत चल तनकर । जीवन का है लम्बा सफर ... ( दिल दे दिया है )

4 जून 2020
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हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ...हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ... 'हरि बोल 'हरि बोल .....ओ--- रे मुसाफिर तेरा बड़ी दूर घर ..हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ..._

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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने वाले....

4 जून 2020
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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे !देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले इसी प्रकार के दूषित प्रवृत्ति के लोग थे । श्रीमदभगवद् गीता पञ्चम सदी में महाभार

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यादव इतिहास के बिखरे हुए पन्ने....

5 जून 2020
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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र को रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे ! देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले कुछ इसी प्रकार की दूषित प्रवृत्ति के लोग थे ।यह घटना है पुष्यमित्र सुंग कालीन

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भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का प्रयोग तेरहवीं सदी से अब तक ...

8 जून 2020
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हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था । कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी क

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भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का प्रयोग तेरहवीं सदी से अब तक...

8 जून 2020
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हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था । कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी क

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यदु , जरासन्ध और दमघोष आभीर जन-जाति....

16 जून 2020
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यह सत्य है कि यादवों का इतिहास कि़स प्रकार विकृत हुआ यद्यपि जरासन्ध और दमघोष हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर कितनी बार सम्बोधित किया गया ?सायद नहीं के बरावर ...इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...और किस प्रकार परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही सूर्य वंश में घ

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यदु , जरासन्ध और दमघोष आभीर जन-जाति....

16 जून 2020
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यह सत्य है कि यादवों का इतिहास कि़स प्रकार विकृत हुआ यद्यपि जरासन्ध और दमघोष हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर कितनी बार सम्बोधित किया गया ?सायद नहीं के बरावर ...इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...और किस प्रकार परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही सूर्य वंश में घ

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भागवत धर्म की रूप रेखा ...

17 जून 2020
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भागवत धर्म और ब्राह्मण धर्म का पारस्परिक विरोध निरूपण-संशोधित संस्करण -___________________________________________भागवत धर्म के अधिष्ठात्री देवता के रूप में बलदाऊ का वर्णन हरिवंशपुराण में है ।एक प्रसंग के अनुसार जब एक यादव भक्त यमुना जी के इस कुण्ड के जल में प्रवेश करके दिव्य भागवत मन्त्रों द्वारा

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सोमवंशी ययाति पुत्र यदु बनाम सूर्य वंशी हर्यश्व पुत्र यदु ...

5 जुलाई 2020
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महाभारत का सम्पादन बृहद् रूप पुष्यमित्र सुंग के शासन काल में हुआ ।भारत की प्राचीनत्तम ऐैतिहासिक राजधानी मगध थी ।जो आधुनिक विहार है ।मगध से विहार बनने के सन्दर्भ में ये तथ्य विदित हैं कि महात्मा बुद्ध के नवीनत्तम सम्प्रदाय पाषण्ड में जो नव दीक्षित श्रमण थे उनके आश्रमों को विहार कहा गया था ।पाषण्ड श

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पुराणों में दो यदु हुए ययाति पुत्र और हर्यश्व पुत्र .. अहीर ययाति पुत्र यदु के वंशज हैं ।

6 जुलाई 2020
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महाभारत की कथाऐं जन- किंवदंतियों पर आधारित आख्यानकों का बृहद् संकलन हैं।जिसे महर्षि व्यास के नाम पर सम्पादित किया गया और इसे जय संहिता का नाम दिया गया ।कोई भा मानवीय ग्रन्थ पूर्व दुराग्रह से रहित नहीं होता है ।दुराग्रह कहीं न कहीं मोह और हठों से समन्वित रूप से प्रेरित होते हैं ।और हठों और मोह दौनों'

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दो यदु ,दो ययाति, दो नहुष जिसमें एक सूर्य के और एक सोम वंश के सूर्यवंश के अम्बरीष पुत्र नहुष , ययाति और हर्यश्व पुत्र यदु का अस्तित्व ही कल्पना प्रसूत है ।...

7 जुलाई 2020
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यदु जब दो हैं । तो फिर अहीर कौन से यदु के वंशज यादव हैं ?ययाति और देवयानि के पुत्र यदु जो तुर्वशु के भाई हैं ।या इक्ष्वाकु वंशी राजा हर्यश्व और उनका पत्नी मधुमती के गर्भ से उत्पन्न यदु के वंशज यादव हैं !हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 37 श्लोक 41-45 पर वर्णन है कि⬇पुत्र की इच्छा रखने वाले

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गोप कृष्ण की लीला .... हरिवशं पुराण

9 जुलाई 2020
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गोपों अथवा अहीरों के साथ भारतीय ग्रन्थों में दोगले विधान कहीं उन्हें क्षत्रिय तो कहीं वैश्य तो कहीं शूद्र कहा गया यह शसब क्रमोत्तर रूप से हुआ ....____________________________________________इसी सन्दर्भ में हरिवशं पुराण में एक आख्यानक है ⬇एक बार जब कृष्ण हिमालय पर्वत के कैलास शिखर पर तप करने तथा भूत

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यदु के लिए गोप और उनके वंशज गोप अहीर आदि नामों से जाने गये ...

10 जुलाई 2020
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यादवों ने कभी वर्ण -व्यवस्था को नहीं माना ।कारण वह राजतंत्र की व्यवस्था का अंग थी और ये किसी के द्वारा परास्त नहीं हुए ।क्योंकि इनकी गोपों'की नारायणी सेना अजेय थी ।इसी नवीन भागवत धर्म की अवधारणा का भी जन्म हुआ था ।इसलिए ब्राह्मणों ने द्वेष वश अहीरों या यादवों को शूद्र वर्ण में निर्धारित करने की असफल

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🌸– •यादव –यादव– यादव– यादव– यादव •–🌸

13 जुलाई 2020
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यादव" भारत में ही नहीं अपितु पश्चिमी एशिया, मध्य अफ्रीका , तथा यूरोप का प्रवेश द्वार समझे जाने वाले यूनान तक अपनी धाक दर्ज कराने वाली आभीर जन-जाति का प्रतिनिधि समुदाय है। पारम्परिक रूप से इन्हें इनके वृत्ति (व्यवसाय) मूलक विशेषण के तौर पर गोप , गोपाल कहा जाता है ।यद्यपि वंशमूलक रूप से भारतीय पुराणों

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कायस्थः कासाइट कार्थेज काशी और कशमीर तक ...

16 जुलाई 2020
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भारतीय समाज ही नहीं अपितु विश्व के सम्पूर्ण मानव समाजों में संस्कृतियों की भित्तियाँ ( दीवारें) धर्म की आधार-शिलाओं पर प्रतिष्ठित हुईं । भाषा जो परम्परागत रूप से अर्जित सम्पदा है वह भी मानव समाजों के सांस्कृतिक , धार्मिक और व्यावहारिक जीवन के संवादों की संवाहिका रही है । संस्कृतियों 'ने समय के अन्तर

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यादवों का इतिहास ...

22 जुलाई 2020
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प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा भ्रान्त -मति राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने के लिए महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह श्लोक उद्धृत करते हैं । ____________________________________ ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७। अर्था

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शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति पर  एक प्रासंगिक विश्लेषण-   --------------------------------------------------------------

23 जुलाई 2020
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  शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति पर  एक प्रासंगिक विश्लेषण-  --------------------------------------------------------------भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत शोध " यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित.भारत में वर्ण व्यवस्था के नियामक शूद्रजातीया शब्द और इस नाम से सूचित जनज

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ब्राह्मण बकरे के सजातीय वैश्य गाय के सजातीय क्षत्रिय भेड़े (मेढ़ा)के और शूद्र घोड़े के सजातीय है । अब बताओ सबसे श्रेष्ठ पशु कौन है ?

26 जुलाई 2020
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कृष्ण यजुर्वेद तैत्तिरीय संहिता ७/१/४/९ में सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन है कि ______________________________________________प्रश्न किया श्रोता ने " यत्पुरुषं व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन् ?मुखं किमस्य कौ बाहू कावूरू पादा उच्येते ? 10/90/11जिस पुरुष का विधान क्या गया ?उसका कितने प्रकार कल्पना की गयी अर्थात

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शूद्र ऐर आर्य शब्दों की अवधारणा इतिहास में ----

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  शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय--13 फरवरी 2018 | Yadav Yogesh kumar -Rohi- (324 बार पढ़ा जा चुका है) लेख शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय-- शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________🎠शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ --------------------------------

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भरद्वाज के पिता

30 जुलाई 2020
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भरत से पहले देशका नाम क्या हो सकता है?क्यों कि कुछ बातें तर्क की कषौटी पर खरी नहीं उतरती हैं ।भागवत पुराण और विष्णु पुराण में भरत ने ममता के पुत्र दीर्घतमा को अपना पुरोहित बनाकर अनेक अश्वमेध यज्ञ किये ।भागवत पुराण के नवे स्कन्ध के बीसवें अध्याय के श्लोकों तीस में में वर्णन है कि भरत ने दिग्विजय के

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कृष्ण असुर क्यों ? कृष्ण का समय

20 सितम्बर 2020
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पुरातत्तवेत्ता (अरनेष्ट मैके ) के प्रमाणों के अनुसार कृष्ण का समय ई०पू० 900 कुछ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है ।कृष्ण को क्यों साढ़े पाँच हजार वर्ष प्राचीन घसीटा जाता हैसिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन के सन्दर्भ कृष्ण की यमलार्जुन वृक्षों में समन्वित उलूखल दामोदर मूर्ति की प्राप्त हुयी है जिसकी कार्बन

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कृष्ण असुर क्यों ? कृष्ण का समय

20 सितम्बर 2020
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पुरातत्तवेत्ता (अरनेष्ट मैके ) के प्रमाणों के अनुसार कृष्ण का समय ई०पू० 900 कुछ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है ।कृष्ण को क्यों साढ़े पाँच हजार वर्ष प्राचीन घसीटा जाता हैसिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन के सन्दर्भ कृष्ण की यमलार्जुन वृक्षों में समन्वित उलूखल दामोदर मूर्ति की प्राप्त हुयी है जिसकी कार्बन

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नवी सदी में तुर्कों और पठानों का ख़िताब था ”ठाकुर” ‘ताक्वुर’ (Tekvur) और भारत में राजपूतो साथ ठाकुर शब्द का सम्बन्ध ...

8 अक्टूबर 2020
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नवी सदी में तुर्कों और पठानों का ख़िताब था ”ठाकुर” ‘ताक्वुर’ (Tekvur)_______________________________________तुर्कों और पठानों का खिताब था तक्वुर हिन्दुस्तानी भाषाओं मे विशेषत: व्रज भाषा में आने पर यह ठक्कुर हो गया यद्यपि संस्कृत पुट देने के लिए इसे ठक्कुर रूप में प्रतिष्ठित किया गया  ठाकुर  शब्द नवी

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सनातन धर्म और सम्प्रदायों की रूप रेखा ...

12 अक्टूबर 2020
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(प्रथम अध्याय)in 1550 Senturies, "goal, end, final point," from Latin terminus (plural termini) "an end, a limit, boundary line," from PIE *ter-men- "peg, post," from root *ter-, base of words meaning "peg, post; boundary, marker, goal" (source also of Sanskrit tarati "passes over, crosses over," ta

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सनातन धर्म और सम्प्रदायों की रूप रेखा ...

12 अक्टूबर 2020
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(प्रथम अध्याय)in 1550 Senturies, "goal, end, final point," from Latin terminus (plural termini) "an end, a limit, boundary line," from PIE *ter-men- "peg, post," from root *ter-, base of words meaning "peg, post; boundary, marker, goal" (source also of Sanskrit tarati "passes over, crosses over," ta

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दुर्गा भारतीय और अशीरियन मिथकों में ...

20 अक्टूबर 2020
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भारतीय पुराणों में दुर्गा को यदु वंश में उत्पन्न नन्द आभीर की पुत्री कहा गया है ये देवी यशोदा के उदर से जन्म धारण करती हैं हम आपको मार्कण्डेय पुराण से सन्दर्भ देते हैं देखें निम्न श्लोक ...वैवस्वते८न्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे शम्भो निशुम्भचैवान्युवत् स्येते महासुरौ |३७|______________________

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देव संस्कृति और कृष्ण ...

28 अक्टूबर 2020
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महानुभावों ! षड्यन्त्र सदीयों से प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक उपक्रियाओं के रूप में अपना विस्तार करते रहे हैं । जिसे जन साधारण भी सदा ही निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहा है ।यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दि

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ऋग्वेद में असुर का अर्थ प्रज्ञावान और बलवान भी है ऋग्वेद में ही वरुण को महद् असुर कहा इन्द्र को भी असुर कहा है इन्द्र सूर्य और अग्नि भी असुर है और कृष्ण ो भी असुर कहा गया है

5 नवम्बर 2020
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ऋग्वेद में असुर का अर्थ प्रज्ञावान और बलवान भी है ऋग्वेद में ही वरुण को महद् असुर कहा इन्द्र को भी असुर कहा है मह् पूजायाम् धातु से महत् शब्द विकसित हुआ वह जो पूजा के योग्य है फारसी जो वैदिक भाषा की सहोदरा है वहाँ महत् का रूप मज्दा हो गया है सूर्य को उसके प्रकाश और ऊर्जा के लिए वेदों में असुर कहा

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गोप यादव और आभीर सदैव से एक वंश के विशेषण थे ...

19 दिसम्बर 2020
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यादवों को गो पालक होनो से ही गोप कहा गया है |भागवत पुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय प्रथम के श्लोक संख्या बासठ ( 10/1/62) पर वर्णित है|______नन्दाद्या ये व्रजे गोपा याश्चामीषां च योषितः । वृष्णयो वसुदेवाद्या देवक्याद्या यदुस्त्रियः ॥ ६२ ॥●☆• नन्द आदि यदुवंशीयों की वृष्णि की शाखा के व्रज में रहने वाले ग

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यादवों के आदि पूर्वज...

22 दिसम्बर 2020
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यादवों के इतिहास के सबसे बड़े विश्लेषक और अध्येता परम श्रृद्धेय गुरुवर सुमन्त कुमार यादव के श्री चरणों मे श्रृद्धानवत होते हुए यह यादवों के पूर्वज व यादव संस्कृति के प्रवर्तक  यदु का पौराणिक विवरण जिज्ञासुओं में प्रेषित है प्रस्तुति करण :-यादव योगेश कुमार रोहिसम्पर्क सूत्र 8077160219..._____________

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पुङ्गव और उससे विकसित पौंगा शब्द का जीवन चरित-

27 अक्टूबर 2022
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पुङ्गव और उससे विकसित पौंगा शब्द का जीवन चरित-आज कल टीवी चैनल वाले चाहे जिस पौंगा पण्डित को पकड़ लाते हैं और उसका परिचय धर्मगुरू अथवा शंकराचार्य कहकर सारी दुनियाँ से कराते हैं। उनकी ब

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