*इस सम्पूर्ण संसार में जब कहीं किसी सभ्यता का अस्तित्व नहीं था तब भारतीय सनातन सभ्यता एवं दिव्य इतिहास ने सकल मानव समाज को एक नई दिशा प्रदान की हमारे धर्मग्रन्थों के प्रणेता भगवान वेदव्यास जी के द्वारा लिखित अनेक ग्रन्थों ने मानव को जीवन जीने की कला सिखाई | सनातन धर्म के चार वेद , अठारह पुराण , छ: शास्त्र अनेकों उपनिषदों के अतिरिक्त वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण एवं वेदव्यास जी द्वारा रचित महाभारत को इतिहास ग्रन्थ बनकर मनुष्यों को जीवन जीने की कला सिखाते हैं | महाभारत जैसा विशाल एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ शायद ही कोई दूसरा हो | महाभारत में कुरुवंश की गाथाओं के अतिरिक्त अनेक कथानक तो हैं ही साथ ही इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं | इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय , शिक्षा , चिकित्सा , ज्योतिष, युद्धनीति , योगशास्त्र , अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र , शिल्पशास्त्र , कामशास्त्र , खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं | महाभारत को समझ पाना अत्यन्त दुष्कर है | मनुष्यों को जन्म मृत्यु के बन्धन से छुटकारा दिलाते हुए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने का अनुपम गीता का उपदेश महाभारत का ही अंश है | गीता का पाठ करके एवं योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों को आत्मसात करके मनुष्य जीवन - मृत्यु के बन्धन अर्थात आवागमन से मुक्ति पा सकता है | जगत्प्रसिद्ध नल - दमयन्ती की अलौकिक प्रेमकथा भी महाभारत का ही अंश है | पितामह भीष्म द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति "विष्णुसहस्रनाम" के नाम से सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है | इसके अतिरिक्त अनेक गूढ़ सूत्रों का दर्शन महाभारत में होता है | जब मनुष्य पृथ्वी की संरचना की खोज कर रहा था तब उसे यह संरचना एवं इसका परिमाप (मानचित्र) महाभारत के भीष्मपर्व में देखने को मिला , जहाँ वेदव्यास जी ने लिखा है :-- "सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन ! परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः !! यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः ! एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले !! द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान् !! अर्थात: हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है | इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे महान शश (खरगोश) दिखायी देता है | अब यदि उपरोक्त संरचना को कागज पर बनाकर व्यवस्थित करे तो हमारी पृथ्वी का मानचित्र बन जाता है, जो हमारी पृथ्वी के वास्तविक मानचित्र से बहुत समानता दिखाता है | इस प्रकार महाभारत एक अद्भुत एवं रहस्यात्मक ग्रन्थ है जिसमें हमारे देश भारत का दिव्य इतिहास वर्णित है |*
*आज हमारे देश भारत से हमारे दिव्य इतिहास एवं कथानकों को हमसे दूर कर दिया गया है | जब विदेशी आक्रांताओं ने हमारे देश पर आक्रमण किया और यहां की संस्कृति को नष्ट करना प्रारंभ किया तब उनकी दृष्टि हमारे दिव्य ग्रंथों पर भी गई | वह यह जान गए थे कि भारतीय लोगों का आदर्श यही धर्म ग्रंथ हैं तो विदेशियों ने इन धर्म ग्रंथों में मिलावट करना प्रारंभ कर दिया और साथ ही भोले भाले भारतीयों के मन में एक भ्रांति बैठाना प्रारंभ किया कि इन ग्रंथों में सच्चाई नहीं है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज भी समाज में कहीं कहीं देखने या सुनने को पा जाता हूं कि महाभारत को घर में रखने से या इसका पाठ करने से परिवार में महाभारत मच जाती है या मनुष्य दरिद्र हो जाता है | यह भ्रांति अंग्रेजो के द्वारा फैलाई गई है जिससे कि हम अपने दिव्य इतिहास से वंचित रह जायं | मैं यह मानता हूं कि महाभारत कोई साधारण ग्रंथ नहीं है इसकी रचना शैली एवं कठिन सूत्र पाठक को उलझा कर रख देते हैं | इसको समझ पाना साधारण विद्वान के बस की बात नहीं है शायद इसलिए भी विद्वानों ने इसको घर पर रखकर अध्ययन करने से मना किया होगा | जिस प्रकार हम इतिहास का अध्ययन करते हैं उसी दृष्टिकोण से महाभारत का अध्ययन करके इसी ग्रंथ में जीवन की अनेक सूत्र प्राप्त कर सकते हैं | आज गीता घर-घर में पढ़ी जाती है , विष्णु सहस्रनाम का पाठ प्रत्येक के विद्वान करता है वह भी महाभारत का ही अंश है | मन की भ्रांतियों को निकालते हुए सकारात्मकता के साथ अपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए , इससे ना तो दरिद्रता आएगी और ना ही घर में महाभारत होगी | परंतु दुखद है कि हम आज भी अंग्रेजों या विदेशियों के द्वारा बनाए गए कुचक्र से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं | इससे बाहर निकल कर यदि इतिहास समझ कर के ही अपने अलौकिक धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया जाए तो जीवन की अनेक समस्याएं सुलझाने में यह ग्रंथ अवश्य सहायता करेंगे | महाभारत इतिहास ग्रंथ है इसे इतिहास समझकर पढ़ा जाय | अनेक लोग ऐसा भी कहते हैं कि महाभारत को पढ़ने से हमारी स्थिति बद से बदतर हो गयी इसलिए हमने महाभारत को घर से हटा दिया | तो इस विषय में इतना ही कहा जा सकता है कि मनुष्य के साथ कब क्या होगा इसका निर्णय परमात्मा पहले ही कर देता है यह एक महज संयोग हो सकता है कि आपने महाभारत का पाठ प्रारंभ किया और परमात्मा द्वारा निर्धारित वह समय भी उसी समय आ गया , तो आपके मस्तिष्क में यह विचार उत्पन्न हुआ कि महाभारत को पढ़ने से ऐसा हुआ | इसी प्रकार की भ्रांतियां समाज में फैली हुई है उनको दूर करने की आवश्यकता है |*
*मनुष्य के पूर्व जन्म एवं इस जन्म में किए हुए कर्म ही सुख - दुख , संपत्ति - विपत्ति बनकर मनुष्य के जीवन में उपस्थित होते रहते हैं | किसी ग्रंथ का अध्ययन करने से सुख एवं विपत्ति कभी नहीं आ सकती क्योंकि इनका निर्धारण परमात्मा द्वारा पहले ही किया जा चुका है |*