shabd-logo

महामारी के बाद के विश्व में भारतीय विदेश नीति

5 जून 2020

458 बार देखा गया 458

article-imagearticle-image

कोरोना वायरस के प्रकोप से विश्व व्यवस्था व्यापक परिवर्तन के दौर से गुज़र रही है। इन परिवर्तनों की व्यापकता सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों के साथ ही मानव के व्यवहार में भी देखने को मिल रही है।महामारी के बाद की दुनिया एक जिज्ञासु होगी। न केवल एक सूक्ष्म स्तर पर व्यवहारिक, सामाजिक और राजनीतिक संशोधनों में वायरस प्रवेश करेगा और अमिट घरेलू परिवर्तनों को ट्रिगर करेगा, बल्कि यह देश-राज्यों को व्यापक स्तर पर प्रभावित करेगा। ऐसे समय में भारत विदेश नीति के सामने उपस्थित चुनौतियाँ-इंडो-पैसिफिक ओसियन में चीन की बढ़ती शक्ति,भावी विश्व में अप्रवासी संकट, भारत की पड़ोसी देशों(विशेषकर पाकिस्तान और नेपाल) के साथ निपटने की क्षमता की निरंतर विफलता,घरेलू नीति और विदेश नीति में अंतर्विरोध,अमेरिका-चीन व्यवस्था भारत के लिए अवसर ओर चुनौती दोनों,बहुपक्षीयवाद की विफलता,विदेशी निवेश को आकर्षित करने में कठिनाई तथा अर्थव्यवस्था की खस्ता हालात।

महामारी के बाद के विश्व व्यवस्था में भारत की जो भूमिका है, वह इस बात से तय होगी कि हम अब संकट से कैसे निपटते हैं, और हम इससे कैसे निकलते हैं। यह, बदले में, कुछ बुनियादी कारकों पर निर्भर करता है - नेतृत्व की गुणवत्ता, सभी स्तरों पर प्रशासन की गुणवत्ता, (केंद्र, राज्य, जिला और गाँव), संस्थागत ढाँचों की मजबूती, स्ववस्थ्य और देेेखभाल की गुणवत्ता और हमारी सामाजिक सुसंगतता लोगों के रूप में।एक नेतृत्व की भूमिका में यह तथ्य कि सीओवीआईडी ​​-19 संकट का कोई अंत नहीं है, हमें इस बात का पूर्वाभास करने से नहीं रोकता है कि COVID-19 दुनिया कैसी दिख सकती है। महामारी ने राष्ट्रवादियों और विश्व-विरोधियों से लेकर रणनीतिक सहयोग के पूरे स्पेक्ट्रम में विदेशी नीति विश्लेषकों के तर्कों को जोड़ दिया है, ताकि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जुटाने में भारत के लिए अधिक मजबूत बहुपक्षवाद और नेतृत्वकारी भूमिका की वकालत की जा सके।

©अनुराग शुक्ल,राजनीतिविज्ञान विभाग,काशी हिंदू विश्वविद्यालय

अनुराग शुक्ल की अन्य किताबें

किताब पढ़िए