आत्महत्या ही क्यों, समाधान
क्यों नहीं
कल एक बहुत ही टैलेंटेड कलाकार सुशान्त सिंह राजपूत के असमय निधन के विषय
में ज्ञात हुआ | आज भी एक समाचार ऐसा ही कुछ मिला कि द्वारका में किन्हीं IRS Officer ने
अपनी कार में एसिड जैसा कुछ पीकर आत्महत्या कर ली इस भय से कि उनके कारण कहीं उनके
परिवार को कोरोना का इन्फेक्शन न हो जाए | इस तरह के समाचार सुनते हैं तो सोचने को
विवश हो जाते हैं कि लोग ऐसा क्यों करते हैं ? जहाँ तक डिप्रेशन का प्रश्न है तो
आजकल की परिस्थितियों में बहुत से लोगों के साथ समस्याएँ हैं | बहुत से लोग अपनी नौकरियों को लेकर चिन्तित हैं कि ऐसा न हो जाए कि उनकी
नौकरी चली जाए | जिन लोगों का अपना व्यवसाय है वे उसे लेकर
चिन्तित हैं | साथ में कोरोना के इंफेक्शन का भी डर बना हुआ
है | लेकिन क्या आत्महत्या ही इसका इलाज़ है ? इसका तो अर्थ ये हुआ कि आप बेहद स्वार्थी हैं क्योंकि आप केवल अपने विषय
में ही सोचते हैं | आपके पीछे छूटे आपके परिवार और मित्रों
का क्या हाल होगा इस विषय में सोचते हैं कभी ? यदि सोचते तो
आत्महत्या जैसा कायराना क़दम कभी नहीं उठाते | सम्भव है
आत्महत्या की वक़ालत करने वाले लोग सुशान्त सिंह राजपूत अथवा उब आई आर एस अधिकारी के
इस कृत्य को उचित ठहराएँ और इसे बहादुरी का कार्य कहें - क्योंकि ऐसा करने के लिए
वास्तव में बहुत साहस की आवश्यकता है | लेकिन क्या ही अच्छा
हो यदि इस साहस का उपयोग समस्याओं से मुक्ति के प्रयास में किया जाए | किसी को समस्याओं से मुक्ति सहज ही प्राप्त हो जाती है तो किसी को देर
में | लेकिन ईश्वर द्वारा हमारे माता पिता के माध्यम से
प्राप्त इस अनमोल मनुष्य जीवन का स्वयं ही इस प्रकार अन्त कर देना हमारी दृष्टि
में वास्तव में साहस का नही बल्कि कायरता और स्वार्थ की निशानी है | हम क्यों भावनात्मक रूप से इतने कमज़ोर हो चुके हैं कि समस्याओं की आँधी
का हल्का सा झोंका भी हमें ढहा देता है ?
हमें लगता है इसका सबसे बड़ा कारण अकेलापन है | आज अधिकाँश लोग बड़े शहरों
में काम के लिए आते हैं और उनमें से भी बहुत से लोग परिवार से दूर अकेले जीवन
व्यतीत करते हैं | या फिर पति पत्नी और उनके एक या दो बच्चे | पहले संयुक्त परिवार
होते थे तो जो भी समस्या होती थी सबके साथ शेयर की जाती थी और आपसी बातचीत से
समस्या का निदान खोज लिया जाता था | धीरे धीरे संयुक्त परिवार एकल परिवारों में
बदलते चले गए | उनमें भी आरम्भ में माता पिता उनकी सन्तान और उसके बच्चे एक साथ
रहते थे तो वहाँ भी कुछ सहारा मिल जाता था | बेटे के साथ कोई समस्या है किसी भी
प्रकार की तो पत्नी और बच्चों के साथ माता पिता से भी उस विषय में बात की जाती थी
और माता पिता के अनुभव तथा बेटे या बेटी के आधुनिक समाज और सोच के बीच से कोई
रास्ता निकल आता था और समस्या का समाधान बहुत सीमा तक हो जाया करता था | साथ ही
भावनात्मक सहारा तो होता ही था |
अभी कुछ लगभग दो दशकों से परिवार बहुत ही सिकुड़ गए हैं | पति पत्नी और उनके
एक या दो बच्चे – अधिकाँश में तो एक ही | कई बार तो नौकरी या व्यवसाय के सिलसिले
में अकेले ही रहना पड़ जाता है | ऐसे में यदि कार्य से सम्बन्धित अथवा किसी प्रकार
की आर्थिक समस्या हो तो उसका अकेले ही सामना करना पड़ता है | माता पिता, पति या
पत्नी या बच्चे कोई भी साथ नहीं होता | और इस कोरोना काल में तो ऐसा ही हो रहा है
| परिवार के बीच रहते हुए भी जो लोग आजकल “वर्क फ्रॉम होम” कर रहे हैं उन पर कार्य
का इतना अधिक बोझ आ गया है कि वे स्वयं अपने आप पर ही ध्यान नहीं दे पा रहे हैं |
इस कारण भी आज का युवा वर्ग डिप्रेशन का शिकार होता जा रहा है | इस कारण से
पारिवारिक तनावों में भी वृद्धि हुई है और उसके कारण भी लोग अवसाद के शिकार होते
जा रहे हैं | ऐसे में जब समस्याएँ उत्पन्न होती हैं तो व्यक्ति अपने आपको बहुत
अकेला अनुभव करता है और भावनात्मक रूप से दुर्बल होता चला जाता है |
किन्तु इस सबसे घबराने की आवश्यकता नहीं है | क्योंकि व्यक्ति का जीवन तो
उसी प्रकार से चलना है जिस प्रकार की रूपरेखा उस समाज की है जिस समाज के मध्य वो
रहता है | उस अकेलेपन की समस्या को तो दूर करना हो सकता है बहुतों के लिए सम्भव न
हो | किन्तु ऐसे में यदि कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो आत्महत्या जैसी भावना मन
में नहीं आने पाएगी |
जब कभी भी आप स्वयं को अकेला और Depressed अनुभव करें तब उस
पल में स्वयं को खो देने और विचारों के घोड़े दौड़ाते रहने अथवा “हमसे कहाँ चूक हो
गई जो हमारे साथ ऐसा हुआ” ऐसा सोचते रहने की अपेक्षा ऐसा कुछ करना आरम्भ कर दें जो
आपको बहुत अधिक पसन्द है और जिसे करने से आपको ख़ुशी प्राप्त होती है |
अकेलेपन और
डिप्रेशन की स्थिति में आप अपनी भावनाओं को सुलझाने के साथ साथ अपने घर को भी
करीने से सहेजने का कार्य आरम्भ कर सकते हैं | क्योंकि जब तक आप अपने अकेलेपन और
अपनी समस्याओं के कारणों पर विचार करते रहेंगे आप इतने अधिक डिप्रेशन के शिकार हो
जाएँगे कि आपको किसी मनोचिकित्सक की शरण में जाने की आवश्यकता पड़ जाएगी |
घर से बाहर
खुली हवा में कुछ देर के लिए घूमने निकल जाएँ और मार्ग में जो लोग भी मिलें उनसे
सम्पर्क साधकर उनके विषय में जानने का प्रयास करें |
जब भी कभी
डिप्रेशन का अनुभव हो तो अपने परिवारजनों और मित्रों से अथवा उन लोगों से सम्पर्क
करें जिन्हें आप अपने बहुत निकट समझते हैं और जिन पर आप विश्वास कर सकते हैं |
मिलने नहीं जा सकते तो फोन पर ही बात कर सकते हैं | अपनी समस्या से उन्हें अवगत
कराएँ – ऐसा करने में किसी प्रकार का संकोच अथवा किसी प्रकार की शर्म का अनुभव न
करें | बहुत सम्भव है उनसे किसी प्रकार की सहायता आपको प्राप्त हो जाए | यदि
सहायता नहीं भी मिली तो कम से कम वे लोग आपको समझा सकते हैं – आपके मन को शान्त कर
सकते है | एक बात और, ध्यान रहे जिस प्रकार ये संसार स्थाई नहीं है उसी प्रकार कोई समस्या भी
स्थाई नहीं है |
और सबसे
महत्त्वपूर्ण बात, अध्यात्म के मार्ग का अनुसरण आरम्भ कर दें | मन में किसी प्रकार के
नकारात्मक विचार न आ सकें इसके लिए कुछ योग, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास आरम्भ
कर दें | धीरे धीरे आपका मन स्वतः ही शान्त होना आरम्भ हो जाएगा और आप समस्या के
निदान का कोई कारगर उपाय खोजने में समर्थ हो सकेंगे |
तो, कोरोना संकट के इस समय में
सकारात्मक सोच अपनाइए, स्वयं को किसी क्रियात्मक कार्य में
व्यस्त रखने तथा प्रसन्नचित्त रहने का प्रयास कीजिये ताकि अपने अनमोल जीवन की आप
स्वयं रक्षा कर सकें... मानव जीवन बार बार नहीं प्राप्त होता है, उसे यों ही समाप्त कर देना अच्छी बात नहीं है...