shabd-logo

सोचना - समय की मांग

22 जून 2020

384 बार देखा गया 384

आज माननीय प्रधानमंत्री जी ने अमुक घोषणा की है , आज हमें निम्न चीजो की खरीद करनी है , अगली छुटियो में हमें हमास द्वीप पर जाना है , आज पड़ोसी राम सिंह और कृष्ण सिंह लड़ गए आदि के बारे में ही बाते करते हुए हमारी ज़िंदगी गुजर रही है। आज की इस भाग दौड़ की दुनिया में किसी को ठहरने और सोचने का वक्त ही नही है। लॉकडाउन के वक्त "सोचने" को लेकर इतना शोर मचाया गया कि जैसे इस प्रक्रिया के बारे में लोगो ने पहली बार सुना हो। भिन्न भिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध लोग इस तरह से सोचने को लेकर सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर रहे थे जैसे कि यह कोई नई तकनीक आयी हो दुनिया में।

ये साफ जाहिर करता है कि इस भागदौड़ की दुनिया में इंसान सोचने पर सबसे कम समय खर्च कर रहा है। यह सोचने की ही अलग शक्ति है जो हमें अन्य प्राणियों से अलग बनाती है। लेकिन आज इसका ही प्रयोग न्यूनतम हो रहा है जिसके कारण आज "कॉमन सेंस इस नॉट सो कॉमन" जैसी पंक्तिया ज्यादा सुनने को मिलती है।

सोचना ही मनुष्य को अपनी पहचान एवम वास्तविकता से परिचित करवाता है। यही समय पर इंसान को उसके कार्य की गति , परिणाम एवम सही या गलत होने का बोध करवाता है। सोचने और अनुभव से ही इंसान आज इतनी प्रगति कर पाया है लेकिन आज का इंसान सोचने की बजाय एक भागदौड़ में लगा है। उसे कोई मतलब नही है कि क्या सही है क्या गलत या फिर हमें किस वस्तु की कब , कंहा और क्यू जरूरत है ये सब सोचने की प्रक्रिया समाप्त होती जा रही है। इसके चलते आज मनुष्य अपनी पहचान ही नही कर पा रहा है। वह भलेहिं तकनीकी , सामाजिक या आर्थिक क्षेत्र में बहुत पैसा कमा रहा है लेकिन उसका सही इस्तेमाल नही कर पा रहा है जो आगे चल कर अनेक नई समस्याओं का कारण बनता है। इन सबका कारण एक ही है और वो है मनुष्य के सोचने की क्रिया का न करना।


आज जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, गरीबी, भुखमरी, संरक्षणवाद , बढ़ती साम्प्रदयिक घृणा के दौर में यह समय की मांग है कि इंसान थोड़ा ठहरे और सोचे कि वह क्या कर रहा है , क्यों कर रहा है एवं इसका सम्पूर्ण मानव जाति पर क्या असर पड़ेगा। अगर आज हम लोग यह नही करते है तो फिर हमें कठोर भविष्य के लिये खुद को तैयार कर लेना चाहिए।

राजेन्द्र की अन्य किताबें

किताब पढ़िए