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‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼
🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹
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*आदिकाल से ही मनुष्य सतत् विकासशील रहा है नित्य नये आविष्कार करके समस्त मानव जाति को उसका लाभ आविष्कारकों ने दिया | इसी क्रम में दर्पण (शीशा) का आविष्कार हुआ जिसमें मनुष्य स्वयं को देख सकता है | परंतु यदि अंधेरे में दर्पण देखना है तो प्रकाश अपने ऊपर करना होगा न कि दर्पण पर | उसी प्रकार अज्ञानता के अन्धकार में मनुष्य को पहले स्वयं को आत्मज्ञान से प्रकाशित करना चाहिए | जिस दिन स्वयं की आत्मा प्रकाशित हो गयी उस दिन सबकुछ दिखने लगेगा | नहीं तो दर्पण पर कितना भी प्रकाश करों अपना मुखड़ा नहीं दिख सकता | प्रकाश अपने ऊपर करना पड़ता है |*
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*शुभम् करोति कल्याणम्*
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