फेस बुक की मेहरबानी से दो रोज़ पहले मेरा बर्थ डे न चाहते हुए भी जैसे तैसे मन ही गया । न चाहते हुए इसलिए क्योंकि बचपन में ही मेरे दिंवगत दादा जी ने 'जन्मदिन मसले' पर ऐसा फ़लसफ़े से लबरेज़ भाषण दिया कि ताउम्र के लिए मुझे जन्मदिन मनाने से गुरेज हो गया ।
हुआ यूँ गाँव में एक पंजाबी शरणार्थी परिवार आकर बसा और मेरे सहपाठी की माँ ने उसके जन्मदिन पर कुछ बच्चों के साथ मुझे भी बुलाया । घर में बना केक जैसा कुछ कटा । शर्बत जैसा कुछ पिया और कुछ टॉफियां और बिस्किट भी खाये । घर पहुँचा तो इससे पहले कि माँ या दादी से पूछता - सामने ठोस आर्यसमाज संस्कारों में दीक्षित छह फुटे दादा जी के रौबीले व्यक्तित्व से सामना हो गया ।
'मेरा जन्मदिन कब है' मैंने लगभग शिकायती लहजे में सवाल किया क्योंकि मुझे लगा कि ये तो मेरे साथ बाद धोखा हो रहा है । पंजाबियों के लौंडो के जन्मदिन मन रहे है, टॉफियां केक और बिस्किट खाये जा रहे है और एक मैं हूँ कि बेवकूफ बना बार बार बाजार से दूध सब्ज़ी और राशन ढो रहा हूँ ।
'क्यों ? क्यों जानना है कि जन्म कब हुआ ? ' दादा जी ने शायद पूरी बात को समझने की कोशिश में सवाल किया ।
'मुझे भी जन्मदिन मनाना है केक काटना है जैसे सुरेन्द्र टक्कर ने मनाया' मैंने जिद्दी लहजे में बचपने का फ़रमान जैसा सुना दिया । दादा जी समझदार तो थे ही साथ ही फालतू पैसे खरचने में बिल्कुल यकीन नही रखते थे । 'ज़रूर मनाएंगे बेटे अभी तो बहुत दिन है पर सबसे ज़रूरी बात यह जानना नही कि जन्म कब हुआ बल्कि यह जानना है कि जन्म क्यों हुआ । आओ बैठों '। और जनाब उसके बाद दादा जी ने दिमाग की ऐसी कंडीशनिंग की मुझे सारे जन्मदिन मनाने वाले परले दर्जे के अहमक नज़र आने लगे ।
वक़्त बदला , मै बड़ा हुआ पर लोगों के और खुद के जन्मदिन के झमेलों से कौसों दूर रहा । फिर शादी हो गयी । पत्नी जन्मदिन के मुद्दे पर मेरी आस्था से छत्तीस का आंकड़ा रखती थी । जब छोटी बच्ची थी तो क्योंकि पूर्णिमा के दिन पैदा हुई थी तो महीने की हर पूर्णिमा को पडौस के बच्चों को इकट्टा करके जन्मदिन मनाती थी और उनकी माँ भी इस इकलौती संतान का दिल नही तोड़ती थी । मेरा जन्मदिन क्योंकि उनके जन्मदिन से आठ दिन पहले पड़ता था तो उन्होंने सोची समझी नीति के तहत मेरी अनिच्छा के बावजूद मेरे जन्मदिन पर ढेर सारे तरह तरह के पकवान और मिठाइयां बनाई । फिर आठ दिन बाद मुझे भी उनके जन्मदिन पर जबरन उत्साहित होना ही पड़ा । बिटिया पैदा हुई तो जून जुलाई अगस्त हम तीनों के बर्थ डे महीने हो गए ।
अब ये फेसबुक नाम का दुनिया भर में फैला मकड़जाल आप सब के सामने है जिसे वेब दुनिया कहते है और बच्चों से लेकर बूढ़े अपनी अपनी खुदरा अक्ल लिए जिसमें दिन रात उलझे हैं । इसी में फेसबुक का सर्वज्ञ भगवान हर सुबह कुछ हुक्म सा देता है 'आज फलाँ फलाँ का बर्थ डे है उठो चलो उसे विश करो' । ये आदेश क्योंकि टिंग टांग के साथ मोहक अंग्रेजी में होता है तो हुक्म कम और फ़र्ज़ ज्यादा लगता है । तो बन्दा गूगल पर ढूंढ ढांढ कर केक मोमबत्तियां फूलों के गुच्छे, फूले गुब्बारे, रंगबिरंगी फुलझड़ियाँ, शैम्पेन की बोतल वगैरा वगैरा इधर उधर से GIF के साथ चिपका कर 'हैप्पी बर्थडे मेसेज के साथ भेज देता है । फिर इंतेज़ार होता है कि कितनी लाइक्स मिली, कितनो नें थंबस अप किये और कितनो ने ठंडा इग्नोर मार दिया ।
फेस बुक पर क्योंकि मेरा पासपोर्ट वाला जन्मदिन दर्ज है तो असली जन्मदिन से अढाई महीने पहले ही फोन की स्क्रीन पर मोमबत्तियां केक वगैरा का पूरा पैकेज डिलीवर हो जाता है ।
वैसे दुनिया को ये सारी जन्मदिन की बीमारी लगाई है फिल्मों ने । प्रोड्यूसर डायरेक्टर फिल्मो को हिट करने के लिए ढिशुम ढिशुम, कैबरे, कव्वाली, विलेन, वैम्प के साथ साथ छोटे छोटे बच्चों को रंगीन फ्राक में सजा कर हर दूसरी फ़िल्म में 'हैप्पी बर्थ डे' का पांच सात मिनट का सीन भी डॉल देते थे गाने के साथ । हम हिंदुस्तानी ठहरे लकीर के पक्के फ़क़ीर तो साधना कट बालों, देव आनंद और शम्मी कपूर की जुल्फों के छल्लों और दिलीप कुमार की रोमांटिक आवाज़ के साथ साथ 'हैप्पी बर्थ डे' कल्चर को भी मय केक, मोमबत्तियों, छोटी छोटी तिकोनी कार्टूनी टोपियों के साथ अपना लिया ।
इसका गहरा प्रभाव लोगों पर इतना पड़ा कि मशहूर फ़िल्म डायरेक्टर रामगोपाल वर्मा को उसकी एक मशहूर हीरोइन कम गर्लफ्रेंड ने सुबह सुबह झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया और रिश्ता तोड़ दिया जब उसने सिर्फ इतना ही कहा कि तुम्हारे पैदा होने में ऐसा क्या खास हुआ है कि मैं आज बैंगलोर मीटिंग करने न जाऊं । जब मैंने ये किस्सा रामगोपाल वर्मा के ब्लॉग पर पढ़ा तो उस दिन पूरे दिन मरहूम दादा जी की याद आती रही ।