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नंदा मैं आ रही हूं.......!

7 जुलाई 2020

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कहानी

नंदा मैं रही हूं.......!

रामकिशोर पंवार रोंढवाला

उस रात अचानक नींद से जाग कर वह बिस्तर पर बैठ गया। उसने लगता है कि कोई बुरा सपना देख लिया हो, उसका पूरा बदन पसीने से लथपथ और मँुह से आवाज तक नहीं निकल रही थी। कुछ देर बाद पत्नि ने जैसे ही कमरे में झांका तो वह दंग रह गई! उसे लगा आज फिर इनको नींद में झटके आ गए होगें। कई बार कह चुकी हूं कि सोते समय ख्याल से गोलिया खा लिया करो लेकिन मेरी सुनेगा कौन! रात भर कम्प्यूटर्स पर पता नहीं क्या करते - रहते है ! आखिर कर ली न तबियत खराब ! जब काफी देर तक बड़बड़ाने के बाद पति के मँुह से आवाज नहीं निकली तो वह सर पर हाथ धर का रोने लगी और बड़बड़ाने लगी , आज भी लगता है इनकी जीब कट गई है ! उसने बच्चो को आवाज दी तो दोनो ही दौड़ते हुए कमरे की ओर चले आए। इस बीच कमरे से बड़ी बहू भी आ गई। उसने पहली बार ऐसा देखा था इसलिए वह थर - थर कांप रही थ्री। धीरे से वह बोला मुझे कुछ नहीं हुआ है तुम सब लोग अपने - अपने कमरे में चले जाओ। जब सब जाने लगे तो उसने अपनी पत्नि का हाथ पकड़ा और उसे बैठने का इशारा करके वह धीरे से उसके कान में कहने लगा कि

कांता 18 फरवरी की रात 12 अपनी सहेली नंदा की शादी से बाहर की ओर निकली। उसकी बाहर को जाती तस्वीर क्रेन कैमरे में कैद हुई उसके बाद वह आज तक नहीं मिली। कांता की गुमशुदायगी को पूरे 8 महीने से अधिक समय बीत चुका था। इस बीच कांता की माँ और उसके परिजन अपनी गुमशुदा बेटी को खोजने की फरियाद को लेकर पुलिस थानो तक दर्जनो चक्कर काट चुके थे। कांता के परिजन सिर्फ यह जानना चाह रहे थे कि उनकी लाड़ली बेटी आखिर बिन बताए कहां चली गई! नंदा अपनी सहेली के यूं गुम हो जाने से चिंता में पड़ी कई बार स्वंय को कोमा में पहुंचा चुकी थी। नंदा जब भी कांता को याद करती उसकी तबियत अचानक बिगड़ जाती है। नंदा के डाक्टर उसे सलाह दे चुके थे कि उसे लो ब्लड प्रेशर है इसलिए वह जानबुझ कर बीती बातो को भूला कर अपनी बसी बसाई गृहस्थी की ओर ध्यान दे। नंदा जब - जब अपनी शादी के एलबम में अपनी सहेली की उस तस्वीर को देखती वह बेहोश होकर कोमा में पड़ कर ठंडी पड़ जाती थी। उसे कई बार कहा जा चुका था कि वह कांता को लेकर यूं हैरान - परेशान न हो , लेकिन अपनी सहेली की गुमशुदायगी के लिए वह स्वंय को जिम्मेदार मानने लगी थी। वह जानती थी कि कांता उसकी शादी में नहीं आना चाहती थी लेकिन उसकी कसम के आगे वह स्वंय को रोक नहीं पाई। पूरे दो दिन से वह अपनी सखी- सहेलियों के संग नंदा की शादी के हर कार्यक्रम में शामिल रही लेकिन उस रात वह अचानक कहां चली गई किसी को पता नहीं था। कांता और नंदा दोनो बैच मेट थी, पिछले तीन सालो से इन्दौर में वे कोचिंग कर रही थी। कांता पीएससी करके डीएसपी बनना चाहती थी लेकिन नंदा ने बैंक की कोचिंग लगा कर बैंकिग सेक्टर को चुना। दोनो एक ही शहर से आती थी और स्वजाति होने के कारण दोनो की काफी अच्छी पटती थी। दो बहनो में कांता सबसे छोटी थी, उसके जीजा जी रेल्वे में थे और बहन सरकारी स्कूल में शिक्षिका थी। तामिया के पास कही कोयला खदान में उसकी बुढ़ी माँ को पिता की जगह कोयला खदान में चपरासी की नौकरी मिली चुकी थी। कांता की माँ चिडिय़ो की चहक से उठ कर देर शाम को बिस्तर पर लेट जाती थी लेकिन उसे भी कांता का यूं गुम हो जाना किसी जानलेवा बीमारी की आगोश में ले चुका था। दो बार दिल का दौरा पड़ जाने के बाद बेटी दामाद ने कई बार कहा कि नौकरी छोड़ कर हमारे पास रह ले। आखिर बाबू जी की पेंशन से उसका खर्च चल सकता है। लेकिन नंदा की मां को ऐसा आज भी लगता है कि किसी न किसी दिन उसकी बेटी घर लौटी तो घर में पड़ा ताला देख कर फिर कभी वापस न लौटे। नंदा की माँ इसलिए सुबह से लेकर शाम तक अपनी नौकरी करके जल्दी शाम को घर लौट जाती थी क्योकि अकसर नंदा शाम की ही गाड़ी से लौटती थी। इन्दौर से अकसर आते समय उसे रात हो जाती थी। माँ को पता था कि रात और नंदा साथ - साथ आ धमकती थी। नंदा की माँ ने अपनी दोनो बेटियों के लिए घर संसार बसाने के लिए स्वंय अपने बारे में कभी नहीं सोचा। कांता के जब पापा कोयला खदान दुर्घटना में इस दुनिया से बिदा हुए तब कांता मात्र 9 दिन की थी। उसकी बड़ी बहन शांता ढ़ाई साल की थी। दो बेटियों के बाद उसके पापा ने नसबंदी करवा ली थी ताकि दोनो बेटियो की ढंग से परवरीश हो सके लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था। कांता की माँ को समाज और नाते - रिश्तेदारो ने कहा भी कि वह नौकरी का मोह छोड़ कर दुसरी शादी कर ले लेकिन अपनी बेटियों को सौतेले पिता या भाई - बहनो के दंश से वह बचाने के लिए अपनी पूरी अभिलाषाओं का त्याग कर उसने उसके पिता की जगह पर मिली नियुक्ति में चपरासी का पद स्वीकार करके स्वंय को उस काम में ढाल रखा था। वह चाहती तो उस जमाने की दसवी पास होने के चलते आफिस में लिखा - पढ़ी के काम कर सकती थी लेकिन अक्षरो को काला करने से बेहतर अच्छा उसने बेटियों के भविष्य को संवारने के लिए अपनी जवानी की आहूति दे डाली। जब भी कांता की माँ सामने आती है तो बरबस याद आज जाती है उस पल और घड़ी की जब नंदा उसे अपनी शादी का कार्ड देने गई थी। उसने नंदा को बार - बार समझाया था कि कहीं अपने पिछले राज पर से पर्दा हटाने के बाद ही अपने होने वाले पति के गृहस्थ जीवन में प्रवेश पाना लेकिन नंदा ने अपने पूर्व प्रेमी से अपने सारे रिश्ते नाते तोड़ कर अपनी सहेली को तोहफा दिया था लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि उसकी सहेली जिसे चाहती है वह उसे चाहता भी या नहीं ! दोनो नांवो पर सवार उस पथिक को बैलेंस बनाने के चक्कर में नांव के संग भंवर में फंसना तो था, लेकिन नंदा रूपेश से अपने सारे रिश्तो को तोड़ चुकी थी। कैसी विडम्बना है कि रूपेश नंदा को चाहता था और कांता रूपेश को , ऐसे में एक नांव पर दोनो सहेलियों के संवार होने की बात जब सामने आई तो नंदा ने कंाता के लिए अपने पांव पीछे खींच लिए। रूपेश एक तीर से दो शिकार करने के लिए अपने यार दोस्तो में बदनाम था लेकिन बड़े बाप की बिगड़ैल औलाद का भलां कौन क्या बिगाड़ सकता था। त्रिकोणे प्रेम प्रसंग में एक बात कामन थी कि तीनो एक ही समाज और शहर से आते थे। रूपेश ने नंदा को एक नहीं कई बार धमकाया था कि वह उसकी शादी किसी और से होने नहीं देगा, एक बार तो उसने धोखे से कांता का उपयोग करके नंदा को मंदिर बुलवा कर वहां पर मौजूद अपने दोस्तो की मदद से नंदा के संग सात फेरे भी ले लिए। कांता को उसकी माँ का फोन आया कह कर रूपेश ने अपने मित्र के संग पास के काल सेंटर तक पहुंचा कर चुपके से वह सब कर डाला जिसको लेकर नंदा काफी भड़क चुकी थी। उसे लगने लगा था कि रूपेश उसकी रांह में कांटे बिछाने लगा है तो उसने चुपके से अपना बोरिया बिस्तर बांधा और वह भोपाल आ गई। उसके संग - संग नंदा भी आ गई और पीछे - पीछे रूपेश भी आ गया। कांता को इन सब बातो का पता भी नहीं था कि कहां पर कौन सी खिचड़ी पक रही है। इस बीच कांता को रूपेश ने अपने रूपजाल में फंसा कर उसके माध्यम से नंदा के दिल दिमाग में जलन पैदा करने की कोशिस की जिसे कांता रूपेश का प्यार समझ रही थी दर असल में वह धोखा था। नंदा ने सोचा चलो उसके त्याग से कांता का कुछ तो भलां हुआ लेकिन जब कांता ने अपनी आप बीती उस मेहंदी वाली रात को नंदा को बताई तो उसके पांव की जमीन खसक गई। कांता की गुमशुदायगी के राज को नंदा अच्छी तरह से जानती थी लेकिन वह कांता के लिए स्वंय अपने बसे बसाये संसार में आग नहीं लगाना चाहती थी। कांता की लव स्टोरी और रूपेश के क्लायमेंक्स को कुछ हद तक तो उमेश भी जान चुका था। उमेश को ही रूपेश का फोन आया था कि वह नंदा से शादी न करके क्योकि नंदा से उसकी शादी हो चुकी हे और उसने कुछ फोटो ग्राफर्स भी उमेश के व्हाट्स एप पर भेजे थे लेकिन नंदा और उसके परिजनो के शब्द जाल में फंसा उमेश नंदा का सच जानने के बाद भी उसके संग अपनी दुनियां बसाने को तैयार था। उमेश के परिजनो तक पहुंची उड़ती - उड़ती $खबर के बाद जब उसके परिजनो ने नंदा के संग उमेश के रिश्ते में रूपेश की मौजूदगी को लेकर रिश्ता तोडऩे की धमकी दी तो उमेश नंदा के लिए अपनी जान देने की धमकी देकर परिवार को अपनी जिद् के आगे झुका लिया। उमेश के परिवार वालो ने बेटा न खो दे इसलिए छाती पर पत्थर रख कर 18 फरवरी को नंदा के संग उमेश की शादी धुमधाम से करवा दी। शादी तो नंदा के संग उमेश की हो गई लेकिन कांता की गुमशुदायगी एक पहेली बन कर रह गई। उस रात कांता के संग क्या हुआ यह कोई नहीं जानता था लेकिन उमेश के पापा को आज सुबह चार बजे आए एक सपने ने ऐसा झकझोर किया कि वह वह अभी तक पसीने से लथपथ है। उमेश के पापा ने जैसे ही अपनी पत्नि को सपने वाली बात बताई तो वह हक्की - बक्की रह गई! उसे पता था कि नंदा की सहेली उस शादी की रात से गायब थी। उसके साथ इतनी कू्रर घटना घट जाएगी इस बात को उमेश के मम्मी पापा को यकीन नहीं था लेकिन जब स्वंय मृतका की आत्मा आकर अपनी आपबीती बता रही हो तब विश्वास कैसे नहीं किया जा सकता।

उमेश के पापा ने यूं ही अपनी पत्नि से कहा कि वह जरा पता तो लगाए कि सही में नंदा के पांव भारी है! अगर ऐसा है तो फिर तय है कि कांता पुर्नजन्म लेकर आ रही है अपने साथ हुए अन्याय के लिए इंसाफ मांगने के लिए! अपनी सामुहिक दुराचार के बाद की गई जघन्य हत्या और लाश को जला कर उसे बहती नदी में बहा देने की घटना के बाद साक्ष्य को एक एक करके सामने लाने की चुनौती के साथ कांता का यूं नंदा के गर्भ में आना किसी फिल्मी की रहस्य एवं रोमांच से भरी कहानी से कम नहीं थी।

इति,

९ दिसम्बर २०१९

बैतूल मध्यप्रदेश


रामकिशोर दयाराम पंवार

235 तृप्ति निवास ताप्ती आशिष

नागदेव मंदिर के पास

मालवीय वार्ड खंजनपुर बैतूल

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