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एक था बचपन भाग 1(संस्मरण)

9 जुलाई 2020

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मेरी कार भुसावल शहर से सुनसगांव के रास्ते पे तेजी से दौड़ रही थी,और मेरे दृष्टिपटल पर अतीत के सारे दृश्य एक एक कर फिल्म की भांति लगातार अंकित होते जा रहे थे।आसपास के चलते मकानों और पेड़ों को देख पुरानी यादें सामने खड़ी हो गई।आज 25 साल बाद मैं अपने ननिहाल जा रहा था ,क्योंकि नानी जी के स्वर्गवास के बाद वहां कोई नहीं था ।तीनों मामा नाशिक शहर में आ कर बस गए थे।हम तीनों भाई मम्मी के साथ बस से इसी रास्ते से जाते थे।खिड़की वाली सीट सम्हालने का मजा ही कुछ और था।बाहर झांकते हुए चलते हुए मकानों,पेड़ पौधों,जानवरों ,इंसानों को देख बड़ा ही आनंद आता था।आज कल के बच्चे तो कार में बैठ कर मोबाइल हाथ में ले रास्ता काट लेते हैं।प्रकृति के वास्तविक सौंदर्य का आनंद लेने का उन्हें समय कंहा।अचानक मेरे पैर ब्रेक पर जा टिके,और कार तुरंत एक खेत के पास पहुंच कर रुक गई।मै नीचे उतर कर पास ही कुंए की मुंडेर पर जा बैठा । घिर्री ,बाल्टी रस्सी सब गायब था।अब इन सबकी जरूरत क्यों,बस बटन दबाओ पानी बाहर।भरी दुपहरी में गर्मी के दिनों में आम के झाड़ के नीचे मटके में रखे ठंडे पानी को पीकर गला इतना तर हो गया जितना कोल्ड्रिंक्स से कभी ना होता।कब एक गहरी झपकी आ गई पता ही ना चला।क्या बात है भाऊ, खाना खाओगे क्या?

इतना सुनते ही मेरी तंद्रा भंग हुई।मैंने अपना परिचय दिया,तो उसने बताया कि वो मधुकर मामा की खेती सम्हालता है।तुरंत उसने एक बड़ा सा पपीता और कुछ कच्चे आम कार में रखवा दिए। मेरी कार एक बार फिर सड़क पर दौड़ रही थी ।तभी ऊंचाई पर अरविंद मामा का खेत दिखाई दिया ,और आगे मोड़ पे प्रकाश हाइस्कूल दिखाई दिया ।बस कुछ ही दूरी के फासले पे सुनस गांव

है। गांव में जैसे ही प्रवेश किया ,बहुत कुछ बदला सा पाया।जगह जगह टपरियों (गुमटियों) की जगह कुछ पक्की दुकानें सज गई थी।फिर भी कुछ सुना सा लग रहा था ।नयी पीढ़ी मुझे ना पहचान पाने को विवश थी,और मुझे पहचानने वाले गांव रिश्ते के मामा मामी अंदर घरों में कूलर की हवा का आनंद ले रहे थे।पहले कंहा कूलर होते थे।पेड़ के नीचे चारपाई (खाट) बिछा आराम हो जाता था।आई , मैं और दोनों भाई बस से उतरते,वैसे ही मैं तुरंत नानी (आजी) की हवेली की ओर दौड़ लगा देता।बीच में नशिराबादकर की दुकान के पास की संकरी गली से रिश्ते के मामा मामी, मासी,नाना नानी से बतियाते हुए सीधे नानी के डेहलक पे जा के कदम रुकते थे।(डेहलक ,एक बड़ा दरवाजा जो हवेली के सामने बड़े बरामदे में खुलता है।) वहां पंहुचते ही सबसे पहले पेमा मामा के दर्शन होते और रसोई में से चंद्रा मामी की मामा को कुछ हिदायत देती आवाजें आती।एक सांस में चार सीढ़ी चढ़ कर सीधे अंदर पहुंच आवाज लगा देता "आजी अम्हि आलो।"

हमारे बड़े मामा के बेटे बेटी, विजू दादा और अक्का ताई

हमारा इंतजार ही कर रहे होते।

आगे जारी है। भाग 2 में ।

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मेरी पीड़ा

8 जून 2020
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हां मैं एक बेजुबान हूं, हां मैं एक बेजुबान हूं। लेकिन सोच तो सकती हूं मैं ,आखिर क्या गुनाह था मेरा,जो मार डाला उसने मुझे।मेरे गर्भ में पल रहे शिशु ने,आखिर क्या बिगाड़ा तेरा,इतनी

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मध्यम वर्ग,एक निरीह प्राणी

8 जून 2020
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मै मध्यम वर्ग,एक निरीह प्राणी हूं, लॉकडॉउन की घोषणा हुई ,छुट्टियों का सोच मुझे बड़ी खुशी हुई,कुछ दिन घर में बीते हंसी खुशी,धीरे धीरे काफुर हुई सारी खुशी।सब्जी खत्म, आटा खत्म,दूध की किल्लत,दाल चांवल के डिब्बे बोलने लगे ,बीबी की आवाज़ सुन,माथे पर आईं सलवट।अंदर सुनो ना ,तो बा

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लेखनी जिंदगी की

16 जून 2020
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लिखने को है बहुत कुछ,लेकिन चल ना पाती ये लेखनी। कहने को है बहुत कुछ,लेकिन कह ना पाती कोई कहानी।हवा तो बहती है बहुत गर्मी में,लेकिन होती नहीं इतनी सुहानी।चाहने वाले तो बहुत है,ले

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पापा ऐसे थे

21 जून 2020
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पापा, जो सायकिल के डंडे पर आगे बैठा कर चढ़ाई पर जोर लगाते थे,बाद में फिर पढ़ाई में आगेबढ़ाने में जोर लगाते थे।मौका आने पर जॉब या बिजनेस के लिए, एक बारऔर जोर लगाते थे।अच्छी सी जीवन संगिनी,तुम्हारे लिए ,समाज केफिर कई फेरे लगाते थे।नए शहर में नया घरबार ,तुम्हे बसाने के ल

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हिन्दुस्तानी सैनिक

22 जून 2020
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पंद्रह जून की वह अंधेरी रात, सुकून से सो रहा था हर हिन्दुस्तानी।क्योंकि सीमा पे चीनियों को, सबक सिखा रहे थेजांबाज़ हिन्दुस्तानी।वो थे चीनी हजारों में,केवल पैंतीस सैनिकों के साथ थासंतोष हिन्दुस्तानी ।संयम और धैर्य के साथ, गया समझाने चीनियों को थावह वीर हिन्दुस्तानी।धोख

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एक था बचपन (संस्मरण)भाग 2

9 जुलाई 2020
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तीन मंजिला हवेली को मैं आते ही चंद मिनटों में नाप देता था।पीछे गली में झांक कर उधर रहने वालों को भी बता देता कि हम आ गए है। नाना जी काफी पहले ही

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एक था बचपन भाग 3 (संस्मरण)

10 जुलाई 2020
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मजा तब शुरू होता जब सबसे छोटे बापू मामा गर्मी की छुट्टियों में गांव आते साथ में देवगांव के प्रसिद्ध पेडे जरूर लाते ।उनके आते ही हवेली कि रौनक बढ़ जाती ,क्योंकि मामा भले ही

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पंचमढ़ी चले भाग 1(यात्रा संस्मरण)

16 जुलाई 2020
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इंदौर के पास एक कस्बा राऊ नगर, रंगवासा रोड पे स्थित उमिया पैलेस बिल्डिंग के फर्स्ट फ्लोर पर रोजाना की तरह महिलाओं,बच्चों और पुरुषों की हलचल।अचानक से राऊ नगर के जननायक भाई राजेश मंडले का आगमन।दोपहर के करीब साढ़े बारह बजे थे।संजय सर,अरुण

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पहली बारिश

17 जुलाई 2020
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पहली पहली बारिश , करती है आप से गुजारिश,जरा भीग के तो देख,पूरी हो जाएगी सारी ख्वाहिश।मै तो तुझे कर दूंगी सरोबार,गर सर्दी खांसी हो गई तो हो जाएगा क्वारेंटाइन,दूर हो जाएगा घर बार।

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शादी के बाद

17 जुलाई 2020
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ना दिल को सुकून,ना मन को चैन,ना बाहर मिले आराम,ना घर में रहे बिना काम,दोस्तों ये ना तो है प्यार,और ना जॉब या कारोबार,ये तो बस है ,शादी के बाद का हाल ।

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