23 साल की शालिनी अपनी नई जॉब को पाकर बेहद ख़ुश थी चलो कि अब उसे अपनी पॉकेट मनी के लिए अपने घरवालों के सामने हाथ तो नहीं फैलाना पड़ेगा। साथ ही वो अपने पैशन को भी फॉलो कर सकेगी।
3 महीने की इंटर्नशिप के बाद उसकी छोटे से युट्यूब चैनल में जॉब पक्की हो गई । शुरु- शुरु में सब ठीक चला लेकिन जैसे ही दिन गुज़रते गए उसके उस चैनल के संपादक से बनना कम हो गया।
वजह था उसका नारीवादी लेखन जो पितृसत्तामक सोच रखने वाले संपादक को पसंद नहीं आ रहा था।
एक दिन उसने एक वीडियो में बताया कि कैसे हमारा समाज एक पुरुष की बेवफ़ाई को उसका अधिकार समझता आया है और यही काम यदि एक महिला करे तो किस तरह से लोग उसके चरित्र पर लांछन लगाने लगते है।
तभी संपादक ने बड़े ही मिठास भरे स्वर में कहा
“इसमें नया क्या है पहले भी बहु विवाह होता था वो तो कानून बनने के बाद सब एक पत्नी रखने लगे।
लेकिन कुछ भी नहीं बदला है आज भी लोग अपनी पत्नी के अलावा पराई औरत से रिश्ता रखते है। ये एक पुरुष का अधिकार है इसका मतलब ये नहीं कि उसका अपनी पत्नी के लिए प्यार कम हो गया है.”
“जो सदियों पहले होता आया है क्या हर उस बात को आप सही मानते है चाहे वो बाल विवाह हो या सति प्रथा हो जवाब दीजिए ?”
“तुम बात का बतंगड़ मत बनाओ अगर एक आदमी अपनी पत्नी अंधेरे में रखते हुए धोखा दे भी दे तो उसका क्या बिगड़ेगा ?”
शालिनी ने सोचा शायद ये महोदय आधुनिक विचारों वाले होगे शायद इसलिए ऐसे विचार होंगे।
तभी शालिनी तपाक से बोली “अगर यही काम एक औरत करे तो भी शायद कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा ?”
संपादक ने कहा “निश्चित ही उस महिला का चाल चलन खराब होगा.”
शालिनी संपादक महोदय का दोहरा मानदंड देखकर काफी हैरान हुई।
वो मन ही मन सोचने लगी कि एक तरफ लोग पुरुषों के लिए अति उदार दृष्टिकोण रखते है तो वही महिलाओं के लिए अति संकीर्ण।
वहां कुछ दिन काम करने के बाद शालिनी ने दूसरी कंपनी ज्वाइन कर लगी।
जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ती गई उसे समझ में आने लगा कि यह एक इंसान की सोच नहीं समाज में स्त्री और पुरुष के चरित्र को लेकर दोहरा रवैया रखना आम बात है। क्या जिस तरह एक स्त्री अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रख सकती है क्या पुरुष नहीं सकता है ?शायद ही वजह है कि हमारे समाज में महिलाओं के शोषण के मामले दिन ब दिन बढ़ रहे है। अश्लील साहित्य और सिनेमा पुरुष मानसिकता को कलुषित कर रहा है जिन्हें हर महिला आयटम नज़र आती है।
फिर भी अपने आस- पास उसने कई ऐसे पुरुषों को देखा कि जो अपने साथी के लिए वफ़ादार थे। जो बेवफ़ा थे उसके पीछे भी शायद कोई वजह रही हो लेकिन केवल स्त्री को ही चरित्र के पैमाने पर नापना कहीं ना कहीं समाज की सदियों पुरानी मानसिकता का परिचय देता है जो दीमक की तरह नारी समानता की किताब को खोखला कर रही है।
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शिल्पा रोंघे
https://koshishmerikalamki.blogspot.com/2020/07/blog-post_27.html
आलोक दीक्षित
24 अगस्त 2020अपका लेख मेरी नज़र से एकदम फुस है क्युकि आज समाज मे लडकिय लड़को को फसा कर काम निकल वा लेती है ओर फिर रफू चाकर हो जाती है।
शिल्पा रोंघे
02 सितम्बर 2020जिस तरह हर आदमी बुरा नहीं होता उसी तरह हर लड़की मतलबी हो ये ज़रुरी तो नहीं। हर इंसान सावधान रहकर ही खुद को बचा सकता है बाकी दुनिया में अच्छे और बुरे हर तरह के लोग है।