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अस्थायी आशियाना

1 अगस्त 2020

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सजन रे झूठ मत बोलो-खुदा के पास जाना है। हाथी है न घोड़ा है वहां पैदल ही जाना है। तुम्हारे महल चौबारे-यहीं रह जाएंगे सारे - अकड़ किस बात की प्यारे - अकड़ किस बात की प्यारे।

एक समय की बात है कि एक सन्यासी राजा के महल के सामने आए और आते ही राजा के महल में घुसने का प्रयास करने लगे। राजा के सैनिकों ने उन्हें अंदर जाने से रोका। मगर वो दरवाजे पर धरना देकर बैठ गए और जिद पकड़ ली कि मैं भीतर जाए बिना नहीं मानूंगा। समय बीतने के साथ साथ तकरार बढ़ने लगी जिसके बारे में जानकर राजा भी वहां पहुंच गए। राजा ने आते ही पहले सन्यासी महाराज को प्रणाम किया और भीतर जाने की जिद का कारण पूछा। इस पर सन्यासी महाराज बोले कि यह एक सराय है और मैं इसमें रात गुजारना चाहता हूँ। राजा ने पूरी विनम्रता से जवाब दिया - नहीं महाराज आप को गलतफहमी हो गई है, यह कोई सराय नहीं है यह मेरा महल है। आपको अगर रुकना है तो मैं आपके ठहरने की व्यवस्था सराय में करा देता हूँ। मगर सन्यासी महाराज मानने को तैयार नहीं थे। बोले नहीं मैंने तो इसी सराय में ही ठहरना है । अब राजा का माथा ठनका और उसके दिमाग में आया कि यह सन्यासी कोई सामान्य सन्यासी नहीं हो सकते। राजा ने और अधिक विनम्र होते हुए उनसे प्रश्न किया कि आप मेरे अच्छे भले महल को सराय क्यों बता रहे हैं। इस पर सन्यासी महाराज ने राजा से पूछा ? तो बताओ - यह महल बनवाया किसने था। राजा बोले मेरे पड़दादा ने । फिर इसमें कौन रहा, राजा बोले मेरे दादा का परिवार। उनके बाद मेरे पिता और अब मैं और मेरा परिवार रह रहा है। इस पर महात्मा जी बोले अगर इसे बनवाने वाले इसमें पक्के तौर पर नहीं रह सके तो यह महल आपके लिए भी सराय ही है और जीवन का सफर पूरा करने के बाद आपको भी इसे छोड़ना पड़ेगा। अब राजा के पास कोई उत्तर नहीं था और सन्यासी महाराज को महल में आश्रय मिल गया।

एक कहानी है ज्ञान चंद की । जिसका जन्म होता है अब के पाकिस्तान के जिला लायलपुर (फैसलाबाद) के एक गाँव के उच्च ब्राह्मण किसान परिवार में जो पाकिस्तान के करतारपुर, श्री गुरु नानक देव जी की यादों से भी जुड़ा है और भारत के डेरा बाबा नानक स्टेशन से चंद कोस की दूरी पर है। जमीन जायदाद इतनी कि जागीरदारी से कम नहीं। माता-पिता, बहन-भाई, चाचा-चाची, ताया-तायी ज्यों कहें कि भरा पूरा ग्रामीण संयुक्त परिवार। वर्ष 1936 आते आते आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूर्ण करके खुशी खुशी नौवीं क्लास की पढ़ाई आरंभ हो गई। मगर जीवन यात्रा में तो कुछ और ही लिखा था । माता-पिता का देहांत हो गया। पढ़ाई बीच में ही छोड़ कामकाजी बनना पड़ा। एक छोटे भाई और दो बहनो की जिम्मेदारी सर पर आन पड़ी। नाते रिश्तेदारों ने अपना रंग दिखाना आरंभ कर दिया। यह जरुरी नहीं है कि सभी रिश्तेदार आपके काम आएंगे। लोगों ने गाय भैंसें ले जाना आरंभ कर दिया। पूछने पर उसे बताया जाता कि तुम्हारे पिता ने उनके पैसे देने थे इसलिए उन्हें जो मिलता है ले जा रहे हैं। जमीन जायदाद के बारे में क्योंकि उन दिनो लोग अधिक जानकारी नहीं रखते थे इसलिए न तो उसके स्वयं के दिमाग में आया कि जमीन किसके नाम है और न उसे कुछ बताना रिश्तेदारों ने मुनासिब समझा। अधिकतर अपने नशे की आदत की वजह से अपना उल्लू सीझा करने में लगे थे तथा जो कुछ साधन संपन्न थे वो यही चाहते थे कि ज्यादा से ज्यादा जायदाद उनके हाथ लग जाए। सीधा साधा ज्ञानचंद अपने बचे खुचे परिवार के भरण-पोषण में लग गया। कभी फलों की दुकान लगाता तो कभी दूसरे छोटे मोटे काम करता। फिर उसे पेट्रोलपंप पर नौकरी मिल गई और जीवन कुछ ढंग से चलने लगा। काम में ईमानदार था तथा जल्द ही मालिक तथा ग्राहकों का विश्वासपात्र बन गया और पेट्रोल पंप अकेले ही संभाल लेता था किंतु भीड़ के दिन होते तो मालिक स्वयं भी काम संभालता था। उन दिनों आज के पाकिस्तान के पाकपट्टण में मेला लगता था तो मालिक पेट्रोल भरने को होता तो गाड़ी ड्राईवर कहता आप नहीं हम तो ज्ञानचंद से ही पेट्रोल भरवाएंगे। बिक्री कम हो जाने के डर से मालिक को गाड़ी वालों की बात माननी पड़ती थी। समय बीतता गया । घर परिवार अच्छे से चलने लगा। छोटे भाई को पुलिस में नौकरी मिल गई। मगर कौन जानता है कि मानव की सांसारिक यात्रा के दौरान कौन सी दुर्घटना घटने वाली है। देश की स्वतंत्रता लहर अपने चर्म पर पहुंच चुकी थी। चारों ओर असंमजस्य की स्थिति थी। कोई नहीं जान पा रहा था कि अंग्रेजों की अगली चाल कौन सी होगी। देश में दंगों का शोर था। इसलिए सुरक्षा समितियां बन गईं। क्योंकि ज्ञानचंद युवा था इसलिए उसे भी दायित्व सौंपा गया कि गाँव पर हमला होने की स्थिति में उपलब्ध अस्त्र-शस्त्र की मदद से गाँव की यथा संभव सुरक्षा की जाए । मगर कौन जाने होनी को क्या मंजूर है। सावन भादों के दिन थे । उसकी छोटी बहन सहित सभी महिलाएं तंदूरी रोटियां पकाने में व्यस्त थीं तभी खबर आई कि दंगाईयों ने गाँव पर हमला कर दिया है। सभी सक्षम पुरुष अपने अपने सुरक्षा संद लेकर मुकाबला करने को निकले मगर दंगाईयों की संख्या बहुत अधिक थी और अधिकतर पुरुष या तो दंगे की चपेट में आकर अपनी जान गंवा बैठे और कुछ खुशकिस्मत छुपकर बचने में सफल रहे। ज्ञान चंद बच गया क्योंकि वो एक दुकान के फट्टे के नीचे छुप गय़ा था। अधिकतर दंगाईयों ने आगे बढ़कर गाँव में लूटपाट आरंभ कर दी और गाँव की महिलाओं को एक घर में कैद करके रख लिया। उसे दुकान के फट्टे के नीचे छुपा देख हथियारों से लैस दंगाईयों ने उस पर हमला कर दिया। उसने भी पंजाबी घी खा रखा था तथा अन्य पंजाबिओं की तरह रेसलिंग का भी शौकीन था । अकेला होते हुए भी दंगाईयों का मुकाबला करता रहा, तभी खबर उड़ी कि सेना की एक टुकड़ी हिंदुओं की सुरक्षा के लिए गाँव की ओर बढ़ रही है। दंगाई तितर-बितर होकर भूमिगत हो गए और ज्ञान चंद ने अपने बचे खुचे रिश्तेदारों के साथ भारतभूमि की ओर यात्रा आरंभ कर दी। उसकी छोटी बहन को गाँव की अन्य हिंदु-सिख महिलाओं के साथ भारत के अस्थायी कैंप भेज दिया गया। देश और दिलों का बंटवारा हो चुका था। प्रत्येक प्रभावित रोजी रोटी और छत को मोहताज था। सरकारी सहायता का क्या- मिली तो मिली -नहीं तो नहीं। हाथ भी आएगी तो ऊंट के मूँह में जीरा। बाकी अभागे और बंटवारे के शिकार भारतीयों की ही भांति उसकी भी खोज आरंभ हो गई अपने चहेते भाई बहनो व सगे संबंधियों को ढूँढने की। छोटा भाई तो पुलिस में था इसलिए ढूँढने में कठिनाई नहीं हुई। मगर बहनों को ढूँढने के लिए उसे एक कैंप से दूसरे कैंप धक्के खाने पड़े। उसके शरीर पर वही कपड़े थे जो उसने अपने पाकिस्तान से भागने के वक्त पहन रखे थे और वे भी फटकर चीथड़े-चीथड़े हो चुके थे। भगवान के शुक्र से सेना की सुरक्षा में भारत पहुँची उसकी बहन भी उसे मिल गई। कुछ नजदीकी तथा मौका परस्त रिश्तेदार भी उसके साथ आ मिले । मुसीबत का वक्त था इसलिए किसी को इंकार नहीं किया जा सका । सभी मिलजुल कर समय बिताने लगे और वक्त बीतने के साथ साथ बुरी यादें आंखों से ओझल होती चली गईं । एक तो दुकानदारी चल निकली ऊपर से जाति से ब्राह्मण । इसलिए कम से कम रोटी कपड़ा और मकान की कठिनाई कुछ कम हुई। बंटवारे के समय अधिकतर लोगों ने यह समझकर घर छोड़ा था कि कुछ समय बाद हालात सुधर जाएंगे और वे फिर से अपने-अपने घरों को वापस लौट जाएंगे। मगर ऐसा हो नहीं सका। धीरे धीरे प्रभावितों को मालूम होने लगा कि जो देशवासी अपनी जमीन जायदाद पीछे छोड़ आए हैं उन्हें जमीन के बदले जमीन मिलेगी। ज्ञानचंद बेचारा फिर सीधा का सीधा। उसका रिश्ते में बड़ा भाई था लेखराज। वह पुलिस में हवलदार था। उसने झांसा दिया कि जमीन मेरे नाम है और मैं स्वयं पुलिस में भी हूँ इसलिए मेरे प्रभाव से जमीन का मामला जल्द हल भी हो जाएगा बड़े भाई स्वरुप सम्मान देते हुए ज्ञानचंद ने हामी भर दी। मगर हुआ इसका उल्टा। क्योंकि जमीन उसके नाम थी नहीं इसलिए420 का मामला मानकर दावा खारिज कर दिया गया। क्योंकि वास्तव में जमीन थी इसलिए हार न मानते हुए ज्ञानचंद तथा उसके छोटे भाई ने फिर से दावा किया। 22 किल्ले जमीन जो उन दो भाईयों के नाम थी वो तो उन्हें गुरदासपुर जिले के हीरीं गाँव में आबंटित हो गई मगर 80 किल्ले जमीन का दावा खारिज कर दिया गया क्योंकि वह जमीन पूरी तरह उनके नाम चढ़ने से पूर्व ही देश का विभाजन हो गया था। डूबते को तिनके का सहारा 22 किल्ले जमीन भी गुजर बसर के लिए काफी थी। गुजारा चलने लगा। इस बीच ज्ञानचंद ने अपनी छोटी बहन की शादी कर दी जिसका पति रेलवे में था। अपनी शादी की और अपने छोटे भाई का घर भी बसा दिया। दोनो भाई मेहनती थे इसलिए उन्हें कोई कठिनाई नहीं होती थी मगर रिश्तेदारों ने अपनी अफीम की लत पूरी करने के लिए साहूकारों तथा संपन्न लोगों से कर्ज लेने आरंभ कर दिए। कर्ज लेते हुए वे तर्क देते थे कि वे जमीन जायदाद में भागीदार हैं तथा उनके लिए कर्ज उतारना कठिन नहीं। धीरे-धीरे कर्ज बढ़ता ही चला गया जिसका नासूर बनना लाजमी था। इसी बीच ज्ञानचंद के मामा ने उसे केंद्र सरकार की नौकरी में लगवा दिया और गाँव छोड़कर उसे दूसरे शहर जाकर बसना पड़ा। पहले से नकारा चल रहे रिश्तेदारों को खुली छूट मिल गई तथा संपन्न रिश्तेदारों तथा साहूकारों के सहयोग से कौड़ियों के भाव जमीन बिकवा दी गई। किसी के हाथ कुछ नहीं लगा। सभी पैसा कर्ज चुकाने में चला गया। जमीन जायदाद के जाते ही मतलबी रिश्तेदार बसेरे की तलाश में दिल्ली तथा नजदीकी शहरों की ओर निकल पड़े। ज्ञानचंद तथा उसका छोटा भाई क्योंकि दोनो ही सरकारी सेवा में थे इसलिए उनके दोनो परिवार एक ही शहर में इकट्ठा रहने लगे। शुरु शुरु में तो वे अनेक जगह किराए पर भटकते रहे मगर बाद में उन्हें एक ऐसा मकान मिल गया जो विभाजन से पूर्व मुस्लिम परिवार की संपत्ति था। उसमें दोनो भाईयों के परिवार रहने लगे। ज्ञानचंद का परिवार तो बढ़ने लगा मगर उसके छोटे भाई के, जिसकी शादी में ज्ञान चंद ने साहूकार से कर्ज लेकर खर्च किया था कोई औलाद पैदा नहीं हुई। उसकी पत्नी भी दिमागी तौर पर कमजोर थी तथा बाँजपन की वजह से और भी झगड़ालू हो गई। दोनो भाईयों की मौजूदगी तथा गैरमौजूदगी में झगड़ा होने तथा बढ़ने लगा। कहते हैं यहां झगड़े का वास हो वहां बरकत हो नहीं सकती। इसी बीच जिस मकान में वे रह रहे थे, की बोली आ गई। ठीक बोली से पूर्व ज्ञानचंद बीमार हो गया और उसे हस्पताल में दाखिल होना पड़ा। छोटा भाई तो पहले ही पुलिस की नौकरी की वजह से बाहर रहता था। महिलाएं घर में अकेली थीं, किसी दूर के रिश्तेदार को, जो एक आरएमपी डॉकटर था, यह जिम्मेदारी सौंपी गई मगर उसने ही चाल चल दी और बोली देकर मकान अपने नाम से खरीद लिया। छोटे भाई के पास पैसा तो था ही, ऊपर से पुलिस की अकड़, आव देखा न ताव कुल्हाड़ी लेकर डॉकटर, जिसने अपने आप को घर में बंद कर लिया था, का दरवाजा काटने लगा। मामला न्यायालय पहुँचा वह मकान ज्ञान चंद के पूरा जोर लगाने के बावजूद हाथ से निकल गया और ज्ञानचंद चौथी बार अपने लिए आशियाना ढूंढने में जुट गया। कुछ देर दोनो भाई इकट्ठे रहे मगर महिलाओं की कलह की वजह से दोनो अलग-अलग रहने लगे। हालत यहां तक पहुँच गई कि दो तीन अवसरों को छोड़कर जीवनभर के लिए रिश्ता टूट गया। इसी झगड़े ने ज्ञान चंद का अपने नौकरी दिलाने वाले मामा से भी रिश्ता खत्म करा दिया। जगह जगह जाकर किराए पर रहना और नए नए रिश्ते बनना आरंभ हो गया। नित नए आशियाने बदलते बदलते उसको एक ऐसी जगह मकान किराए पर मिल गया जिसके नजदीक विभाजन पूर्व की एक ईगदाह थी, जिसमें कुछ हिस्से पर तो सरकारी स्कूल था मगर अधिकतर जगह खाली थी। क्योंकि वह किसान परिवार से था इसलिए उसका गाय भैंस पालने का शौक बरकरार था। उसने भी अपनी गाय भैंसों के लिए एक कच्चा बाड़ा निर्मित कर लिया। जब उसे पता चला कि अन्य गरीब लोगों ने उस जमीन पर कच्चे घर बनाने आरंभ कर दिए हैं तो वह भी किराए का मकान छोड़ मिट्टी का कच्चा घर बनाकर रहने लगा। इसी बीच पंजाब में बाढ़ आ गई और पूरा शहर दाने दाने को मोहताब हो गया। उसने अपने परिवार की व्यवस्था तो करली मगर पशुओं का पेट कैसे भरे उसकी चिंता उसे सताने लगी। खतरा मोल लेते हुए खेतों की ओर निकल पड़ा। साँप, चूहे पानी के ऊपर ही तैर रहे थे। हिम्मत करके खेत तक पहुंचा और मक्के के खेत से मक्की के पौधों को जड़ से ही उखाड़ ले आया और अपने जानवरो का पेट भरा। जीवन की गाड़ी धीरे-धीरे सरकती रही। परिवार बढ़ता गया और पति-पत्नी सहित वे आठ सदस्य हो गए। परिवार के बढ़ने से कब्जे वाली जगह भी बढ़ती गई। क्योंकि उस जमीन पर वक्फ बोर्ड का अधिकार था इसलिए शिकायत पर नगर समिति के कर्मचारी कच्चे मकान गिरा जाते थे। परिवार छत विहीन हो जाता तथा फिर से आशियाना निर्मित होता । उजड़े हुए परिवार पक्का बसेरा ढूँढते उससे पूर्व ही 196 5 का भारत-पाक युद्ध आरंभ हो गया। डरे सहमे लोगों को नहीं मालूम था कि वे वहां रह पाएंगे कि नहीं। क्योंकि उनका नगर भारत पाक सीमा पर था, इसलिए वहां खतरा बहुत अधिक था। सुरक्षा के लिए मोर्चा खोद लिया गया जिससे बमबारी से बचना कुछ आसान हो गया। बाकी देश की ही भांति नगर के लोग सेना की मदद को उमड़ पड़े। वे खाद्य पदार्थ लेकर सड़कों पर खड़े हो गए और सेना की कानवाई गुजरने पर यह सामान सेना की गाड़ियों पर चढ़ा दिया जाता। ज्ञानचंद दिल से गरीब नहीं था। उसने सेना के सहयोग के अतिरिक्त अपनी गाय भैंसों का दूध जरुरतमंदों को देना आरंभ कर दिया। हालात सामान्य होने तक यह सिलसिला अनेक दिनों तक जारी रहा। युद्ध के दौरान अमेरीका की ओर से दिए गए और पाकिस्तान द्वारा भारतीय इलाके में गिराए गए पुराने अनफटे बम खेतों में ऐसे पड़े मिलते थे जैसे कोई सुअर पड़ा हो। युद्ध समाप्त होने पर युद्ध का संकट तो टल गया मगर जिंदगी का संग्राम जारी रहा। इसी दौरान असली नकली रिश्तेदार साथ जुड़ते रहे मगर सहायता लेने के लिए - देने को नहीं। सहायता ऐसी कि ज्ञानचंद का घर तो अभी कच्चा था मगर उनके घर पक्के बन गए। बच्चे बड़े हो रहे थे। पढ़ाई तथा रोटी, कपड़ा और मकान का खर्च भी बढ़ता जा रहा था। फिर समय आया 1971 भारत-पाक युद्ध का। सबसे बढ़ा खतरा, ऊपर से नगर सीमा के निकट। घर के निकट सेना की तैनाती और दुश्मन के हवाई हमलो का डर भी सबसे अधिक। पाकिस्तानी सेना के जंगी जहाज भारतीय सेना की गोलाबरी से बचने के लिए लगभग बिजली की तारों और खंबों को छूते हुए निकलते । बच्चे बाहर खेलते होते और ऊपर से दुश्मन सेना के जंगी जहाज हमला कर देते। जब भी डर का माहोल होता उसकी आँखों में यही डर रहता कहीं यहां से भागना तो नहीं पड़ेगा। जंग जारी थी, पाकिस्तानी रेडियो अफवाहे फैला रहा था कि पाकिस्तानी फौज नगर में प्रवेश कर चुकी है और उसने घंटाघर की घड़ी उतार ली है। एक दिन खबर आई कि उसके घर से कुछ मिनटो की दूरी पर दुश्मन जहाजों ने बम गिरा दिए है। फिर भारतीय जवानो की बहादुरी के किस्से सामने आने आरंभ हो गए। भारतीय फौज की निशानेबाजी के नमूने के तौर पर पाकिस्तानी वायूसेना का जलता हुआ जंगी जहाज उसके घर से कुछ ही फुट की दूरी पर आन गिरा। पूरी की पूरी जनता जहाज की ओर टूट पड़ी। जहाज क्रैश हो चुका था और पायलट की लाश चीथड़े चीथड़े हो चुकी थी। पुलिस पहुंची नहीं थी इसलिए जनता के हाथ में जो भी कीमती वस्तु लगी, लूट कर भागने लगी। उसका बड़ा लड़का तो जहाज के पंख का एक टूटा हुआ धातू का टुकड़ा ही घर उठा लाया जो सालो तक उसके घर में इधर उधर घूंमता रहा। एक दिन उसी टुकड़े से एलूमीनियम उतारने के चक्कर में उसका छोटा लड़का बुरी तरह से अपना हाथ लहुलुहान करा बैठा। अंत में खबर आई कि भारतीय सेना ने युद्ध में पाकिस्तानी सेना को परास्त कर दिया है तो उसकी भी जान में जान आई। समय बीतने, परिवार की माली हालत स्थिर होने और समाज में उसकी इज्जत बढ़ते रहने पर उसे लगने लगा कि उसकी जिंदगी में स्थायित्व आना आरंभ हो गया है।80 का दशक आरंभ होते ही पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद ने सर उठा लिया। पंजाबी हिंदुओं को चुन चुनकर निशाना बनाना आरंभ कर दिया गया। उसके अनेक रिश्तेदार आतंकवादी घटनाओं की भेंट चढ़ने लगे। इस तरह की अफवाहें फैलने लगीं कि पंजाबी हिंदुओं को पंजाब छोड़कर भागना पड़ेगा। घर का कोई सदस्य अगर घर से बाहर गया है तो सुरक्षित वापसी की उम्मीद में टकटकी लगाकर रखनी पड़ती थी। अलगाववादिओं का नारा रहता था- धोती टोपी यमुना पार। स्वर्ण मंदिर में एकत्र आतंकवादिओं को बाहर निकालने के लिए सेना ने ऑपरेशन नीलातारा चलाया। तीन साल बाद ब्लैक थंडर ऑपरेशन भी हुआ किंतु हालात सामान्य होने का नाम नहीं ले रहे थे। जिस तरह से कश्मीर से कश्मीरी हिंदुओं को खदेड़ा गया था उसी तर्ज पर पंजाब के अनेक ईलाकों में यह पोस्टर चिपका दिए गए कि जो भी पंजाबी हिंदु बचकर निकलना चाहता है चला जाए वर्ना बाद में पछताना पड़ेगा। आतंकवादिओं के डर से अनेक पंजाबी हिंदु शर्णारथी कैंपों में रहने लगे। भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है उसे तो क्या सिवाए भगवान के किसी और को नहीं पता था। मगर भगवान की कृपा हुई 1995 आते आते हालात सुधर गए और उसे 1999 तक उस सांसारिक अस्थायी आशियाने में अपनी अंतिम साँस तक रहने का अवसर प्राप्त हुआ।

अब बारी आती है मेरी । मैने मजदूरों के बीच आजीविका आरंभ की थी । जीवनकाल की सभी खट्टी-मीठी यादें जहन में मौजूद हैं, मगर पाँव में पदम चक्र ऐसा कि सांसारिक स्थायी आवास की तलाश जारी है । प्रत्येक मानव के जीवन में सपनों की महत्ता होती है । युवा अवस्था में मुझे भी अनेक सपने आते थे और आज तक आ रहे हैं । उन में से गुजरात राज्य के सूरत शहर में घूमते हुए मुझे अकसर एक सपना आता था कि कहीं से 20 करोड़ रुपए मिल जाएं और मैं मजदूरों के लिए कारखाने खोलकर उन्हें बढ़िया रोजगार दूँ । उन दिनों मैं कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में सेवारत नहीं था । मगर भगवान ने मुझे 20 करोड़ देने की बजाए मजदूरों के ही एक विभाग कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में नौकरी दिला दी जहां किसी समय मैं अधिकारी के उस पद तक पहुँच गया जब मजदूरों के लिए मेरे हस्ताक्षरों से लगभग 20 करोड़ रुपए का भुगतान होता था। मेरे पास जन संपर्क अधिकारी का भी दायित्व होता था । एक दिन मेरे कक्ष में एक ऐसे अंशदाता ने प्रवेश किया जो अपने जानकार सहायक लेखाधिकारी से मिलकर अपनी बेटी की शादी के लिए अग्रिम दावा पास कराना चाहते थे । वह सहायक लेखाधिकारी छुट्टी पर थीं, मेरे तो चैक पर हस्ताक्षर होते थे, इसलिए मैने दूसरे सहायक लेखाधिकारी से उसका दावा पास करा दिया । मैने उससे अगले दिन आने का अनुरोध करते हुए कहा कि कल आप की जानकार अधिकारी भी आ जाएंगी । तुरंत स्करोल तैयार करा लेना, मैं आपके सामने ही चैक डिस्पैच करा दूँगा । उसने ऐसा ही किया मगर उस अधिकारी महोदया ने तुरंत स्करोल भेजने से इंकार कर दिया और मजबूरीवश उक्त अंशदाता को अगले दिन आना पड़ा । स्करोल आते ही मैने चैक कटवाकर डिस्पैच करा दिया । उस अंशदाता की आँखों के भाव मुझे आज भी गदगद कर देते हैं । एक राज्य में कार्यदायित्वों का निर्वाह करते हुए मेरे पास एक ऐसे पेंशनर आए जिनकी पेंशन रुकी हुई थी । उन्होंने मुझे अपनी दुविधा सुनाते हुए बताया कि मेरा पोता मुझसे केले माँगता है मगर मेरे पास उसे केले लेकर देने के लिए पैसे नहीं हैं। क्योंकि पेंशन संवितरण मेरे क्षेत्राधिकार में था तो मुझे उसका काम निपटाने में कोई दुविधा नहीं हुई । आयकर विभाग में काम करते हुए एक आयकर अधिकारी मेरे पड़ोसी बने जिनके दो-दो बेटे थे मगर उन में से एक विदेश तथा दूसरा किसी अन्य राज्य में नौकरी करता था । उसने दोनों की शादी रचाई जिसमें मैं भी शरीक हुआ था । शादी के एक सप्ताह उपरांत दोनो अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर चले गए और उसकी सेवानिवृत्ति तथा क्वार्टर रिटेन करने की तिथि तक उनमें से किसी को मैने आते नहीं देखा । उन्होंने अपना कोई स्थायी आवास नहीं बनाया हुआ था, इसलिए वे सेवानिवृत्ति के पश्चात किराए के घर में रहने चले गए ।

यह संसार एक माया जाल है। इंसान हों, पशू-पक्षी हों या जीव-जंतू उनके लिए अपने जीवनकाल में इस माया जाल को तोड़ पाना बहुत ही कठिन प्रक्रिया है। अस्थायी बसेरे और भोजन की व्यवस्था के लिए सैंकड़ों, हजारों, लाखों, करोड़ों मीलों का सफर तय होता है। सुविधाओं हेतु अनेक खोजें की जाती हैं, यातायात के साधन उपलब्ध कराए जाते हैं, वायूयान और उपग्रहों का निर्माण होता है, स्वादिष्ट पकवानों की विधियां तैयार होती हैं, आवासीय व गैरआवासीय विधिओं की लाभहानियां गिनाई जाती हैं, मानव और जीव-जंतुओं को मारने के लिए मानव हथियार और गोला बारुद का निर्माण करता है, वहीं कुछ सच्चे और कुछ झूठे आडंभरकारी धर्मगुरू मानव को अहिंसक और शांतिपूर्ण जीवन निर्वाह की प्रेरणा देते रहते हैं किंतु जीव-जंतुओं और पशू-पक्षिओं को अंतिम रुप से शांति तभी मिलती है जब वे अपनी अपनी जीवन यात्रा पूर्ण करके ज्योति ज्योत समा जाते हैं । चाहे जीवन-मृत्यु के चक्र में अनेक किस्से कहानियां विद्यमान हों किंतु वास्तव में किसी को नहीं मालूम कि मृत्यु के उपरांत आत्मा का वास कहां होगा। सत्य केवल यही है कि सभी को संसार में अस्थायी यात्रा पर आना है और सांसारिक यात्रा पूर्ण करके वापस अपने स्थायी ठिकाने की ओर प्रस्थान करना है । फिर भी घर परिवार, समाज, संपत्ति, इज्जत की खातिर मारा मारी और गला काट प्रतियोगिता में उलझते उलझते पता ही नहीं चलता की जीवन यात्रा का अंत कब हुआ।

अब बारी आती है उस भाव की जिसने मुझे इसके लिए प्रेरित किया कि मैं इस विषय पर लेख लिखूं। यह युग सोशल मीडिया का है । मूल मीडिया या तो लालच का शिकार है या बिकाऊ मीडिया के सामने बेहाल है । समस्या कोई भी हो राजनीतिक दलों के आईटी प्रकोष्ठों के पास प्रत्येक का समाधान है। चाहे कोरोना कोविड 19 त्रास्दी हो, मजदूरों का पलायन हो या पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें और महंगाई - आईटी सैल धडल्ले से अपनी मन माफिक सामग्री जनता तक पहुंचा रहे हैं । रोचक बात यह है कि मजदूर विभागों के कार्यरत और सेवानिवृत्त पदधारी भी जमकर राजनीतिक दलों के समर्थन में काम कर रहे हैं । उन में से कुछ ऐसे समाचार भी प्रचारित कर देते हैं जिनका उन्हें भी भारी नुकसान हो रहा होता है । एक ऐसा भी पोस्ट है – पेट्रोल 80 तो क्या चाहे 150 रुपए प्रति लीटर भी हो जाए मगर वोट सत्ताधारी पार्टी को ही दूँगा और वो भी बैटरी रिक्शा पर जाकर । जब सरकार ने 18 माह का डीए/डीआर फ्रीज किया तो सोशल मीडिया पर ही पूछ रहे थे कि डीए/डीआर का क्या हुआ ?

आज न तो पर्दे पर उक्त गाना गाने वाले अभिनेता राज कपूर इस दुनिया में हैं तथा न ही इस गीत के गायक श्री मुकेश और न ही ज्ञान चंद तथा उसके जैसे लाखों करोड़ों दुख भोगने वाले। सिकंदर कफन से खाली हाथ बाहर निकालकर गया । विश्व के सभी दानी हों या आक्रांता वे भी गए खाली हाथ गए । मानव अपने जीवनकाल में अपने कारण कम, अपने सगे संबंधियों के कारण अधिक दुख झेलता है । इतिहास गवाह है कि कुछ गुनाहगार, जो अपने परिवार का पेट पालने के लिए गलत काम करते थे, महांपुरुषों के समझाने पर महाज्ञानी बन गए ।

इसलिए समाज से अनुरोध है कि जियो और जीने दो के सिद्धांत पर चलते हुए समाज सुधार के कार्य किए जाएं और सांसारिक अस्थायी आशियाने से प्रस्थान से पूर्व खुशनुमा समाज सुधारक यादों का पिटारा तैयार कर लिया जाएं ।

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भारत 1947 मेंअंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्र हुआ था। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत लंबे समयतक भारतीयों ने विभाजन का दर्द झेला। कुछ संभले तो 1962 का भारत-चीन युद्ध, 1965में भारत-पाक युद्ध और दक्षिण भारतीयों का हिंदी विरोधी आंदोलन। प्रधा

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गरीब कल्याण स्टंट

4 दिसम्बर 2016
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जब से सृष्टी सृजित हुई है तबसे ही ताकतवरऔर कमजोर के बीच में अंतर रहा है। भारतीय समाज में भी यह अंतर होना स्वाभाविक है।राजा महाराजाओं के दौर से ही भारतीय समाज बंटने लगा था तथा विदेशिओं ने भारतीयगरीबों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत

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शैतान विद्वान

5 दिसम्बर 2016
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एक समय की बात है कि एक राज्य को भयंकर मूसीबतों ने घेर लिया। पुरानेजमाने के राजाओं के लिए अपनी प्रजा का दुख देखा नहीं जाता था। इसलिए वह राजा जी जानसे अपने राज्य की समस्याओं हो हल करने में जुट गया। राजा भेस बदलकर रात को निकलताऔर दिन में अपने दरबारियों के साथ विचार विमर्श में व्यस्त रहता। साथ ही साथ वह

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एटीएम

20 दिसम्बर 2016
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एटीएम मेरा नाम एटीएम मेरा नामहिंदु-मुस्लिम-सिख-ईसाई की बदहाली से परेशानएटीएम मेरा नाम एटीएम मेरा नामहिंदु-मुस्लिम-सिख-ईसाई की बदहाली से परेशानसोचो लोगो जरा तो सोचो बनी कहानी यह कैसेमेरी नींद और चैन छीना गए कहां आपके पैसे ?नोटबंदी सरकार का

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मत पूछो हालत फकीर की

24 दिसम्बर 2016
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माँ नहीं बन पाने वाली जंग नहीं लड़ पाने वाली चाय नहीं बेच पाने वाली हीरों का झुंड लगाने वाली सैनिक नहीं बन पाने वाली पीर पैगंबर बन बैठने वाली स्वयं पर अश्क करने वाली बीवी पर पहरा बिठाने वाली किसान नहीं बन पाने वाली व्यापार ी नहीं बन पाने

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जागो प्रजा जागो

30 दिसम्बर 2016
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महान चिंतक अरस्तू ने एक समय 6 प्रकार के राज्यों का वर्गीकरण किया था। उनका विश्वास था कि यह साइकिल;चक्करद्ध क्रम में परिक्रमी रहता है। यह साइकिल राजतंत्र से आरंभ होता है और जल्द ही पथभ्रष्ट होकर नादिरशाही में परिवर्तित हो जाता हैए चंद बुद्धि

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इसे कहते हैं रामराज जी

8 जनवरी 2017
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नोटबंदी गई है छा जी करंसी की लगी बाट जी 8 नवंबर गई है आ जी अफवाहों का गर्म बाजार जी टोलनाके बने गले की फांस जी बैंक एटीएम की बढ़ी कतार जी प्रजा को मिला नया रोजगार जी चाय पराठों में मिलती पगार जी रोटी.दाल.चावल.साँबर की जगह टमाटर.रोटी बनी सर्वोत्तम खुराक जी इसे कहते हैं राम

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ब्रह्मा बेदर्दे

18 जनवरी 2017
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ब्रह्मा बेदर्दे

18 जनवरी 2017
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मंथरा-कैकेयी की जुगलबंदी ने रामायण दी रचवा ब्रह्मा बेदर्दे ब्रह्मास्त्र दिए चलवा ब्रह्मा बेदर्दे शकुणी-दुर्योध्न के षड़यंत्रों ने महाभारत दी लिखवा ब्रह्मा बेदर्दे कर्ण-भीष्म का प्रताप दिया घटवा ब्रह्मा बेदर्दे ईसा-हजरत का बलिदान भाईचारा न सका ला ब्रह्मा बेदर्दे दुनिया को

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मेक अमेरीका ग्रेट अगेन योजना का भारत पर प्रभाव

22 जनवरी 2017
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आखिरकार 20 जनवरी, 2017 को डोनॉल्ड ट्रंप ने अमेरीका के 45वें राष्ट्रपति के रुप में पदभार संभाल लिया। ट्रंप अमेरीका के एक बिलियनर एवं विवादस्पद व्यापार ी हैं तथा अपने बेबाक व्यवहार के कारण अनेक विवादों से जुड़ चुके हैं। राट्रपति चुनाव में कू

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अंग्रेजी की हिंदी को सीख

30 जनवरी 2017
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मैं विदेशी तू नाज-ए-हिंद है भूल मत तू हिंदमाता की बिंदी हैपुष्पक पहला तेरे वतन में ही आया थाआँखों देखा हाल देववाणी ने बयाँ कराया थाधरती पुत्रों तेरों ने ही भूखों का हलनिकाला था पूर्वज मेरों ने पूर्वज तेरों से बहुत कुछचुराया थाअस्त्र-शस्त्र-ब्रह्मास्त्र का डंका तोतेरे

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कोष मूलो दंड

31 जनवरी 2017
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जब से समाज में व्यवस्था स्थापित है तभीसे ही शासकों की ओर से शासन चलाने के लिए प्रजा से कर वसूला जाता रहा है। भारत में भीकर वसूलने का इतिहास बहुत पुराना है। मनु काल हो या महाभारत काल या कालिदास या कोटिल्य के अर्थशास्त्र का प्रसंग लें करव्यवस्था का संदर्भ आता ही है। कालिदास राजा दिलीप का संदर्भ देते ह

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बसंत पंचमी का त्यौहार

31 जनवरी 2017
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भारत ऋतुओं का देश है।यहां अपनी-अपनी बारी से 6 ऋतुएं आती हैं । इन सभी में से बसंत ऋतु सबसे हरमनप्यारी है । बसंत पंचमी मूल रुप से प्रकृति का उत्सव है । इस दिन से धार्मिक,प्राकृतिक और सामाजिक जीवन के कार्यों में बदलाव आना आरंभ हो जाता है । बसंत पंचमीप्रकृति के साथ आध्यात

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जैसी चाह वैसी राह

5 फरवरी 2017
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बढ़ते हैं कर बढ़ाने वाला चाहिएबनते हैं मित्र बनाने वाले चाहिएहोती है खोज करने वाला चाहिएबिकती है दारू पीने वाला चाहिएढहती हैं दीवारें ढहाने वाला चाहिएहोती है दुश्मनी करने वाला चाहिएहोती है नोटबंदी करने वाला चाहिएरोती है दुनिया रुलाने वाला चाहिएमिलते हैं गुलामबनाने वाल

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वर्तमान स्वरोजगार योजना एक व्यंग्य

22 अप्रैल 2017
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एक व्यक्ति ने मुर्गे पाल रखे थे जो बहुत हट्टे कट्टे थे । उन्हें एक सज्जन मिलने आए और पूछा कि तुम्हारे मुर्गे बहुत तंदरुस्त हैं इन्हें क्या खिलाते हो । वह बोला मैं इन्हें काजू बादाम और महंगे ड्राई फ्रूट खिलाता हूँ । अच्छा ! लोगों को खाने को नहीं मिल रहा और तू अपने मुर्गों को ड्राई फ्रूट खिला रहा है

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आप विधायक सौरभ भारद्वाज का ईवीएम पर खुलासा महज एक बकवास

10 मई 2017
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दिनांक 9.5.2017 को आम आदमी पार्टी ने ईवीएस कीहैकिंग प्रक्रिया दिखाने के लिए दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था। जबहैकिंग प्रक्रिया टीवी पर लाइव आरंभ हो गई तो मुझे भी उत्सुकता हुई और मैने यहपूरी प्रक्रिया एक टीवी चैनल पर देखी। इस सत्र में विपक्ष के नेता को मार्शल कीसहायता से सदन से बाहर निकलवाकर

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भारतीय प्रजातांत्रिक केंद्रवाद बनाम राष्ट्रपति पद्धति सरकार

13 मई 2017
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1917 की रुसी बोलशैविक क्रांति की सफलता केउपरांत प्रजातांत्रिक केंद्रवाद की कम्युनिस्ट विचारधारा समाज के सामने आई। रशियन सोशल-डेमोक्रेटिक लेबर पार्टीकी दिनाँक 26 जुलाई से 03 अगस्त 2017 तक आयोजित छठी कांग्रेस में प्रजातांत्रिककेंद्रवाद की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि पार्टी की नीचे से ऊपर तक निर्दे

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जूते की आत्मकथा

20 मई 2017
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एक आम कहावत है कि उसने उसको जूते-चप्पलों सेपीटा। मगर एक समय ऐसा भी था जब आठवीं कक्षा के मेरे अध्यापक ने चाय पीते-पीते ही पूरीकक्षा को जूते की आत्मकथा लिखनी सिखाई। अध्यापक महोदय ने आरंभ करते हुए कक्षा कोबताया कि जूते की आत्म लिखना बहुत आसान है। लिखो गाँव में राम लाल की भैंस मर गई।उस मरी हुई भैंस को च

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भगवान जगन्नाथ रथयात्रा पुरी पर विशेष

25 जून 2017
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ओड़िशा के पुरी में समुद्रतट पर स्थित जगन्नाथ मंदिर एक हिंदु मंदिर है जो श्रीकृष्ण(जगन्नाथ)कोसमर्पित है । जगन्नाथ का अर्थजगत के स्वामी से होता है । इस मंदिर को हिंदुओंके चार धामों में से एक माना जाता है । यह मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा हुआ है । भगवान जगन्नाथ पुरी में 56प्रकार के अन्

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चायवाद

9 जुलाई 2017
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नरसंहार को नाजीवाद कहते हैंराष्ट्रभक्ति को राष्ट्रवाद कहते हैंकट्टरवाद को फासीवाद कहते हैंमाओ समर्थन को माओवाद कहते हैंसमाज सुधार को समाजवाद कहते हैंमार्क्स समर्थन को साम्यवाद कहते हैंसर्ववाद विरोध को आतंकवाद कहते हैंक्षेत्र विस्तार को साम्राज्यवाद कहते हैंऔर जनता की गाढ़ी कमाई विदेशों में लुटाने को

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सत्ता संघर्ष और अनुवादकों की भूमिका

5 अगस्त 2017
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अंग्रेजी की एक टर्म लिटल नॉलेजइज डेंजरस का हिंदी पर्याय बना है नीम हकीम खतराए जान जिसका अर्थ है कम ज्ञानस्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। एक सामान्य जन से जब नीम हकीम खतराएजान का अर्थपूछा गया तो उसका उत्तर था- ऐ हकीम तू नीम के पेड़ के नीचे मत जा वहां तेरी जान का खतरा है। शोले फिल्म काएक मशहूर डॉयलाग है

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सत्ता संघर्ष और अनुवादको का दायित्व

12 अगस्त 2017
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जब भारत सरकार अधिनियम, 1935 अस्तित्व में आया थातो लगने लगा था कि भारत स्वतंत्र होने वाला है और भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी होनेवाली है। क्योंकि विदेशिओं को यह भलिभांति मालूम था कि भारत में बहुसंख्य हिंदीभाषिओं की है। स्वतंत्रता सेनानियों का भी आपस में संवाद हिंदी में ही होता था औरहिंदी ने स्वतंत्रता स

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आस्था खुद के अस्तित्व तक

6 सितम्बर 2017
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आस्था से तात्पर्य है कि समग्र रुप से स्थिर या स्थित होना। यह आस्था किसी व्यक्ति विशेष या स्थान विशेष से संबंधित हो सकती है। जैसे कोई देव या देवालय। आ का मतलब समग्र रुप से व स्था का मतलब स्थिर रहने की अवस्था । विदेशों में भी पूर्व में आस्था व अंधविश्वास था। जर्मनी व फ्रांस

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भारत का भाषा विवाद (14 सितंबर हिंदी दिवस पर विशेष)

14 सितम्बर 2017
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किसी भी राष्ट्र की एकता के लिए किसी एक सर्वमान्य भाषा का होना जरुरी है और भारत में यह भाषा हिंदी ही हो सकती है। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति रह चुके सुकर्णो ने अपनी आत्मकथा में भारत को हिंदी को अपनी राजभाषा अपनाने में आनाकानी पर व्यंग कसा था।

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जनता मांगे भ्रष्टाचारी डॉ मनमोहन सरकार ?

26 अक्टूबर 2017
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नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही वर्तमान सरकार का अस्तित्व में आने का एक ही कारण था कि देश में ईमानदार प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक गठबंधन सरकार चल रही थी। मेरे जीवन का एक अनुभव है कि ईमानदार शख्सियत या तो अपना स्वयं का नुकसान कर सकती है या अपने जैसे ही किसी ईमानदार क

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झगड़ें नहीं राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत याद करें

5 नवम्बर 2017
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जन गणमन अधिनायक जय हे वंदे मातरम्भारतभाग्यविधाता सुजलांसुफलां मलयजशीतलाम्पंजाबसिन्धु गुजरात मराठा सस्यश्मामलां मातरम्द्राविड़उत्कल बंगा शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकित यामिनम् विन्ध्यहिमाचल

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सरकारी झटकों से बीमार भारतीयों के लिए आ रहा राष्ट्रीय व्यंजन खिचड़ी

5 नवम्बर 2017
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सरकारी झटकों से बीमार भारतीयों के लिए आ रहाराष्ट्रीय व्यंजन खिचड़ीWorried because of Government shakesNational food Khichri is coming For Ill Indians

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साम्यवादी मार्क्स बनाम दक्षिणपंथी मोदी का ७ नवंबर

15 नवम्बर 2017
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कार्ल मार्क्स ने 1848 के अपने कम्युनिस्ट घोषणापत्र में कहा था कि साम्यवादी क्रांति का लक्ष्य उत्पादन के साधनों पर विश्व के मजदूरों का आधिपत्य स्थापित करके पूंजीवाद की कब्र खोदना है। एक नई समतामूलक संस्कृति को जन्म देना, समाज को वर्गविहीन बन

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विश्वास बनाम अफवाह

18 नवम्बर 2017
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महानायक अमिताभ बच्चन की एक पिक्चर आई थी देश प्रेमी। अमिताभ जी को एक ऐसी कॉलोनी में रहना पड़ता है जिसमें अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं तथा छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बनाकर आपस में लड़ते रहते हैं। मगर यह उस देश प्रेमी का ही विश्वास होता है कि

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पूर्वज वही जो लाभ दिलाए

23 नवम्बर 2017
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अगर कहीं रेलगाड़ी से दिल्ली स्टेशन को लिंक करते नगरों की यात्रा पर निकलें तो मैरिज ब्यूरो का एक विज्ञापन दिवारों पर लिखा मिलेगा – दुल्हन वही जो दादा जी दिलाएं । दशकों पूर्व सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की अर्दांगनी जया भादुड़ी स्टारर एक फिल्म आई थी जिसका शीर्षक था द

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क्यों है लॉकडाउन की मजबूरी

31 मार्च 2020
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समाज की उत्पति से लेकर आजतक विश्व एक हीथ्यूरी पर चल रहा है कि समाज में वर्चस्व किस का होगा। जंगलराज को नकेल डालकर कुछव्यवस्थाएं स्थापित हो गईं लेकिन जिनके साथ अन्याय होता था उन्होंने प्रतिरोध जारीरखा। वर्तमान युग में विश्व की ओर से फेस की जा रही समस्याओं का मुख्य कारण पश्चिमजगत और उनका अंधानुकर

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ब्रह्म ज्ञान

2 अप्रैल 2020
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लिखा ओंकार ने कभीबैठकर इक दिन सच में मानव तूँ इक दिन हैरान होगारुकेंगी बसें विमान ट्राम और रेलें बंद पलों मेंसारा सामान होगालिखा ओंकार ने कभी बैठकर इक दिन सच में मानव तूँइक दिन हैरान होगापक्षी चहकेंगे सुखी साँस होगा प्रदूषण रहित तबसारा संसार होगापाताल धरती पानी आकाश पर काबज कैद घर में इक दिनइंसान हो

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पानी की आत्मा

30 जुलाई 2020
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कोई कहे हिंदु पानीकोई कहे मुस्लिम पानी समझाने को आत्मा पानी की अनेकों ने दी कुर्बानी फिर भी न माने क्योंकि कमान ईसाईयत को थीजो थमानी ईसाईयत ने करोड़ों लीले आत्मा की हुई बदनामी स्वतंत्र है देश फिर भी कोई कहे हिंदु पानी ‘कोई’ मुस्लिम पानी क्योंकि

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अस्थायी आशियाना

1 अगस्त 2020
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सजनरे झूठ मत बोलो-खुदा के पास जाना है। हाथी है न घोड़ा है वहां पैदल ही जाना है।तुम्हारे महल चौबारे-यहीं रह जाएंगे सारे - अकड़ किस बात की प्यारे - अकड़ किस बातकी प्यारे। एकसमय की बात है कि एक सन्यासी राजा के महल के सामने आए और आते ही राजा के महल मेंघुसने का प्रयास करने लगे। राजा के सैनिकों ने उन्हें

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जन्मदिवस पर पत्नी को शुभकामनाएं

20 जून 2023
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 किसी खूबसूरत एहसास की भांति  तुम परिवार और मेरे जीवन के लिए हो बहुत जरुरी,  जैसे जिस्म के लिए सांसों की डोरी,  हम जीवन के प्रत्येक रंग को जी लेंगे,  तेरा साथ रहेगा तो समाज की प्रत्येक तपन सह

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