छूट गयी है जिंदगी की धूरी लड़ रहे हैं नेता कुर्सी के लिए लड़ रहे हैं लोग धर्म को श्रेष्ठ बनाने के लिए लड़ रहे हैं बच्चे जीत के लिए लड़ रहा है युवा बेरोजगारी के लिए लड़ रहा है सैनिक सरहद बचाने के लिए लड़ रहा है वकील सच झूठ का जामा पहनाने के लिए लड़ रहा है मरीज जिंदगी पाने के लिए लड़ रही है औरत सम्मान पाने के लिए लड़ रही है जनता हक वादों की पूर्ति के लिए लेकिन सब धोखे से लपेटे जा रहें हैं। कागज और करनी के झूठे खोल बुने जा रहें हैं। सोशल मीडिया पर बहसबाजी में जुमले सुनाए चले जा रहे हैं। बेगार, बेकार बैठी भारत की जनता उतरन कुतरन को बुने सुने सुनाए जा रही है।
प्रफुल्ल के.नागडा (जैन)
28 अगस्त 2020एकदम सही