मौत
में
अपना
अस्तित्व
तलाशता
मीडिया
आजकल
जब
टी
वी
ऑन
करते
ही
देश
का
लगभग
हर
चैनल "सुशांत केस में नया खुलासा" या फिर "सबसे बडी कवरेज" नाम के कार्यक्रम दिन भर चलाता है तो किसी शायर के ये शब्द याद आ जाते हैं, "लहू
को
ही
खाकर
जिए
जा
रहे
हैं,
है
खून
या
कि
पानी,पिए
जा
रहे
हैं।"
ऐसा लगता है कि एक फिल्मी कलाकार मरते मरते इन चैनलों को जैसे जीवन दान दे गया। क्योंकि कोई इस कवरेज से देश का नंबर एक चैनल बन जाता है तो कोई नम्बर एक बनने की दौड़ में थोड़ा और आगे बढ़ जाता है। लेकिन क्या खुद को चौथा स्तंभ कहने वाले मीडिया की जिम्मेदारी टी आर पी पर आकर खत्म हो जाती है? देश दुनिया में और भी बहुत कुछ हो रहा है क्या उसे देश के सामने लाना उनकी जिम्मेदारी नहीं है? खास तौर पर तब जब वर्तमान समय पूरी दुनिया के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है। एक ओर लगभग आठ महीनों से कोरोना नामक महामारी ने सम्पूर्ण विश्व में अपने पैर पसार रखे हैं तो दूसरी ओर वैज्ञानिकों के तमाम प्रयासों के बावजूद अभी तक इसके इलाज की खोज अभी जारी है। परिणामस्वरूप इसका प्रभाव मानव जीवन के विभिन्न आयामों से लेकर तथाकथित विकसित कहे जाने वाले देशों पर भी पढ़ा है। देशों की अर्थव्यवस्था के साथ साथ परिवारों की अर्थव्यवस्था भी चरमरा रही है। कितने ही लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है तो कितने ही व्यापारियों के काम धंधे चौपट हैं। ऐसे हालातों में कितने लोग अवसाद का शिकार हुए और कितनों ने परिस्थितियों के आगे घुटने टेक कर अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर ली। इन कठिन परिस्थितियों में भारत केवल कोरोना से ही नहीं लड़ रहा बल्कि एक सुनियोजित षड़यंत्र के तहत उसके कुछ पड़ोसी देश उसे सीमा विवाद में उलझा रहे हैं। एलओसी पर पाकिस्तान की ओर से गोली बारी और उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवादी घुसपैठ के अलावा अब एल ए सी पर चीन से भारतीय सेना का टकराव होने से चीन के साथ भी तनाव की स्थिति निर्मित हो गई है। इतना ही नहीं चीन की शह पर नेपाल भी भारत के साथ सीमा विवाद में उलझ रहा है।
इस बीच यह खबर भी आई कि चालू वित्त वर्ष की अप्रैल जून तिमाही में भारत की जी डी पी ग्रोथ रेट -23.9% दर्ज की गई है।
लेकिन
इन
विषमताओं
के
बावजूद
देश
में
इस
आपदा
को
अवसर
में
बदलने
की
बहुत
से
कदम
भी
उठाए
गए
जैसे
आत्मनिर्भर भारत की नींव और वोकल फ़ॉर लोकल का संकल्प। इतना ही नहीं संकल्पों से आगे बढ़कर देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने वाले कुछ महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पूर्ण हुए और देश को समर्पित भी किए गए। जैसे,
भारत
व
बांग्लादेश
के
बीच
व्यापारिक
संबंधों
को
मजबूत
करने
के
लिए
कोलकाता
से
बांग्लादेश
के
लिए
जलमार्ग
शुरू
किया
गया।
10171 फ़ीट
की
ऊंचाई
पर
दुनिया
की
सबसे
लंबी
रोड
टनल
" अटल
रोहतांग
टनल"
बनकर
तैयार
हो
गई।
इससे
ना
सिर्फ
अब
लद्दाख
सालभर
देश
से
जुड़ा
रहेगा
बल्कि
मनाली
से
लेह
की
दूरी
करीब
46 किलोमीटर
कम
हो
गई
है।
चेन्नई
और
पोर्ट
ब्लेयर
को
जोड़ने
वाली
सबमरीन
ऑप्टिकल
फाइबर
केबल
की
सुविधा
शुरू
हो
गई
है
जिससे
अंडमान
निकोबार
द्वीपसमूह
में
मोबाइल
और
इंटरनेट
कनेक्टिविटी
की
दिक्कत
समाप्त
हो
जाएगी
और
यहाँ
से
बाहरी
दुनिया
से
डिजिटल
सम्पर्क
करने
में
आसानी
होगी।
इसी
प्रकार
एशिया
के
सबसे
बड़े
सोलर
पॉवर
प्रोजेक्ट
जो
कि
मध्यप्रदेश
के
रीवा
में
स्थित
है
उसका
उद्घाटन
भी
हाल
ही
में
किया
गया।
निसंदेह
ये
ना
सिर्फ
गर्व
करने
योग्य
देश
की
उपलब्धियां
हैं
बल्कि
जनमानस
में
सकारात्मकता
फैलाने
वाली
खबरें
हैं।
लेकिन
शायद
ही
खुद
को
चौथा
स्तंभ
मानने
वाली
देश
की
मीडिया
ने
इन
खबरों
का
प्रसारण
किया
हो
अथवा
किसी
भी
प्रकार
से
देश
की
इन
उपलब्धियों
से
देश
की
जनता
को
रूबरू
कराने
का
प्रयत्न
किया
हो। दस हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी टनल जो कि सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, वो इन चैनलों के लिए चर्चा का विषय नहीं है। एशिया का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा का सयंत्र इनके आकर्षक का केंद्र नहीं है। आज़ादी के 74 सालों बाद तक डिजिटल रूप से अबतक कटा हुआ हमारे देश का एक अंग अंडमान निकोबार अब देश ही नहीं बल्कि दुनिया के भी संपर्क में है,इनके लिए यह कोई विशेष बात नहीं है। क्योंकि इन खबरों से इनकी टी आर पी नहीं बढ़ती। लेकिन एक फिल्मी कलाकार की मृत्यु इनके लिए बहुत बड़ा मुद्दा बन जाता है। इतना बड़ा कि "सुबह की खबरों" से लेकर रात की "प्राइम टाइम" तक इसी मुद्दे को लगभाग हर चैनल पर जगह मिलती है। वो
अब
चल
दिए
हैं
वो
अब
आ
रहे
हैं,
यही
दिखा
कर
सब
पैसा
कमा
रहे
हैं।
यह
टी
आर
पी
का
खेल
भी
अजब
है
कि
रिया
अब
घर
से
निकल
रही
हैं
से
लेकर
रिया
अब
घर
वापस
जा
रही
हैं
की
रिपोर्टिंग
बकायदा
"हम
रिया
की
कार
के
पीछे
हैं
और
आपको
पल
पल
की
खबर
दे
रहे
हैं"
तक
चलती
है।
व्यावसायिकता
की
इस
दौड़
में
आज
किसी
की
मौत
को
ही
पैसा
कमाने
का
जरिया
बनाने
से
भी
गुरेज
नहीं
किया
जाता।
और
तो
और
इनकी
"खोजी
पत्रकारिता"
जिस
प्रकार
से
रोज
"नए
खुलासे"
करती
है
उसके
आगे
सभी
जांच
एजेंसियां
भी
फेल
हैं।
शायद
इसलिए
प्रेस
काउंसिल
ऑफ
इंडिया
ने
इस
मामले
में
विभिन्न
मीडिया
संस्थानों
द्वारा
की
गई
कवरेज
को
देखते
हुए
मीडिया
को
जांच
के
दायरे
में
चल
रहे
मामले
को
कवर
करते
समय
पत्रकारीय
आचरण
के
मानकों
का
ध्यान
रखने
की
हिदायत
दी
है।
अब
यह
तो
मीडिया
के समझने का विषय है कि वो मात्र एक मनोरंजन करने वाले साधन के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहता है या फिर एक ज्ञानवर्धक शिक्षाप्रद एवं प्रमाणिक स्रोत के रूप में।
डॉ नीलम महेंद्र
लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं।