*इस सृष्टि में ईश्वर ने अन्य जीवों की अपेक्षा मनुष्य को विवेकवान बनाकर भेजा है ! मनुष्य अपने बुद्धि विवेक से इस संसार में कुछ भी कर सकता है ! यह भी सत्य है कि मनुष्य के विचार ही उसके जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं | मनुष्य के हृदय में सुविचार प्रकट होगा या दुर्विचार यह उसके परिवेश एवं संस्कारों पर निर्भर करता है | जिसके परिवार व समाज का जैसा संस्कार होता है मनुष्य के हृदय में उसी प्रकार के विचार उत्पन्न होते रहते हैं क्योंकि मनुष्य उस परिवेश में फैले संस्कारों को ही मस्तिष्क में स्थान देता है | यह सत्य है कि मनुष्य जैसा सोंचता है वैसा ही बनता चला जाता है परंतु कई बार ऐसा होता है कि मनुष्य जो सोंचता है परिणाम बिल्कुल उसके विपरीत ही मिलता है ! ऐसी स्थिति में मनुष्य भ्रमित हो जाता है कि ऐसा तो हमने कभी सोंचा ही नहीं था ! यहाँ पर कुछ लोग इस तर्क का खण्डन भी करने लगते हैं कि सोंच के अनुसार ही मनुष्य के जीवन की दिशा निर्धारित होती है | यह अकाट्य है कि मनुष्य सोंच के अनुसार ही बनता चला जाता है परंतु इसके साथ ही हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मनुष्य सभी प्रकार से स्वतन्त्र होने के बाद भी अपने कर्मफल के अधीन है | कर्मफल के सिद्धान्त को काटा नहीं जा सकता | पूर्व के किये हुए कर्म जो प्रारब्ध , संचित एवं क्रियमाण के रूप में मनुष्य के द्वारा किया गया है उसका फल तो मनुष़्य को ही भोगना पड़ता है | अपनी सोंच के विपरीत फल प्राप्त होने पर निराश न होकर यह विचार करना चाहिए कि यह हमारे किसी पूर्व कर्म का फल है | प्राय: मनुष्य समाज के विपरीत जाकर रावण , कंस , हिरणाक्ष्य आदि की भाँति एकक्षत्र राज्य करने का विचार करने लगता है परंतु उसकी यह सोंच पूर्ण नहीं हो पाती क्योंकि सबसे बड़ा न्यायधीश (परमात्मा) उसके प्रत्येक कर्मों का हिसाब किया करता है औरउसको परिणाम कर्मों के अनुसार प्रदान करता रहता है | मनुष्य की सोंच सदैव विस्तृत एवं सकारात्मक होनी चाहिए | सकारात्मक एवं विस्तृत सोंच का परिणाम है कि अनेकों जन्म तक तपस्या करके भी जिस दुर्लभ हरिदर्शन को सिद्ध - योगी नहीं प्राप्त कर पाते उसे बाल्यकाल में ही बालक ध्रुव एवं प्रहलाद ने प्राप्त कर लिया था | सोंच एवं विचार हृदय में उत्पन्न तो सबके होते हैं परन्तु उन विचारों पर दृढ़ सभी नहीं रह पाते हैं यही कारण है कि मनुष्य को अपनी सोंच के अनुसार परिणाम नहीं प्राप्त हो पाता |*
*आज मनुष्य अति महत्वाकांक्षी हो गया है , वह जो भी सोचता है तुरंत उसका परिणाम चाहता है परंतु किसी भी सोच विचार पर वह दृढ़ नहीं रह पाता है | पल-पल हृदय के विचार बदलते रहते हैं | कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि मनुष्य जैसा सोचता है वैसा क्यों नहीं बन पाता ? वैसा कार्य क्यों नहीं कर पाता ? कुछ लोग तो राजा बलि का उदाहरण भी देते हैं कि राजा बलि ने स्वर्ग पर राज्य करने की इच्छा पाली की परंतु उसे पाताल का राज्य मिला | तो यहां पर मनुष्य की सोच का परिणाम कहां मिला ? ऐसे सभी लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि जहां तक राजा बलि का प्रश्न है तो राजा बलि ने सिर्फ प्रभु चरणों में अनुराग प्राप्त करने की कामना से यज्ञ प्रारंभ किया था | परंतु पद की लालसा किसे नहीं होती | राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य की इच्छा थी कि राजा बलि स्वर्ग के अधिकारी बनकर के देवताओं को कष्ट दे परंतु कर्म विधान के आगे ना तो शुक्राचार्य की चली ना राजा बलि की | ईश्वर ने राजा बलि को उससे आगे बढ़कर फल प्रदान किया और उन्हें चिरंजीवी कर दिया | आज समाज में संस्कारों का लोप हो रहा है , विकृत संस्कार ही विकृत मानसिकता को जन्म दे रहे हैं | इसके साथ ही आज का मनुष्य स्थिर हृदय का नहीं रह गया है | किसी भी विचार पर वह स्थायित्व नहीं प्राप्त कर पा रहा है | कोई विचार हृदय में प्रकट हुआ उस पर विचार कर ही रहा था कि तुरंत दूसरा विचार उत्पन्न हो जाता है और मनुष्य पिछले विचार को छोड़कर नए विचार पर ध्यानाकर्षित होने लगता है | यही कारण है कि मनुष्य अपनी सोच के अनुसार नहीं बन पाता क्योंकि उसकी कोई सोच स्थिर नहीं रह पाती | जो भी मनुष्य अपने विचार पर दृढ़ होकर के , संकल्पित होकर के उस दिशा में कदम बढ़ाता है वह एक दिन सफलता की सीढ़ियों को चढ़ता हुआ सफलता के उच्च शिखर को प्राप्त अवश्य करता है | इतिहास में अनेकों उदाहरण भरे पड़े जहां संसाधन विहीन होकर भी मनुष्य अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर सफलताएं अर्जित करता रहा है | कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य की जैसी सोच होती है वह वैसा ही बन जाता है यद्यपि यह अकाट्य है परंतु इसके साथ ही यह भी सत्य है कि मनुष्य का कर्म फल वितरित होता रहता है | इसलिए मनुष्य को किसी भी सोच या विचार पर दृढ़ संकल्पित होकर आगे बढ़ते रहना चाहिए सफलता उसको अवश्य प्राप्त होगी |*
*विस्तृत एवं सकारात्मक सोच मनुष्य को सदैव सकारात्मक परिणाम ही देती है परंतु इसके लिए आवश्यक है कि मनुष्य अपनी सोच पर दृढ़ रहे |*