जाटव सभा में तय किया गया कि दलित जब भी आपस में परस्पर मिले तो एक दूसरे को ‘जय भीम’ कहे। कुछ लोगों का मत था कि ‘जय भीम’ नारे पर गीत एवं लेख लिखे जाएं, जिससे यह नारा शीघ्रता से प्रचलित औऱ प्रसारित हो सके। अन्य साथियों ने ‘जयभीम’ नारे पर कविता लिखने की जिम्मेदारी जनकवि बिहारीलाल हरित जी पर डाली और उनसे आग्रह किया कि ‘कविता’ आज रात ही लिखी जानी चाहिए। जनकवि की लगन और कर्मठता देखिए कि जनकवि ने पूरी रात बैठकर ‘जयभीम’ कविता लिखी बाद में इस कविता तथा अन्य कविताओं को 1946 में लघु-पुस्तक ‘अछूतों का बेताज बादशाह’ के रूप में छापा गया।
1946 में पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने कम्पनी बाग (गांधी ग्राउंड, फब्बारा) की सभा जिसमें बाबा साहब मुख्य वक्ता थे, इस सभा में इस लघु-पुस्तक की एक हजार प्रति एक-एक आने में हाथों-हाथ बिक गई। जनकवि बिहारी लाल हरित जी के एक मित्र शंकरानन्द शास्त्री ने इनकी एक प्रति बाबा साहब को भी मंच पर भेंट की। बाबा साहब ने इसकी एक कविता-
नवयुवक कौम के जुट जावें, सब मिलकर कौम परस्ती में ।
जय भीम का नारा लगा करे, भारत की बस्ती-बस्ती में॥
ग्यारह तारों में इकला हल, झण्डे का चिन्ह हमारा हो ।
झण्डे का डन्डा ऊंचा हो, पब्लिक का काफी लारा हो ॥
हर मनुज कौम का बढ़कर के, इस तरियों से ललकारा हो ।
हम आदि निवासी भारत के, बस यही हमारा नारा हो ॥
कमजोरी दिल से दूर करो, आ जाओ असली हस्ती में।
जय भीम का नारा लगा करे, भारत की बस्ती-बस्ती में ॥
अपने ही बाग बगीचे हों, अपनी ही खेती क्यारी हो ।
अपने ही चौधरी मुखिया हों, अपनी ही नम्बरदारी हो ॥
अपने ही कानूनगो बनें, और अपने ही पटवारी हों ।
तीनो बल जब अपने हों, फिर क्यों न विजय हमारी हो ॥
सब भूमि पर अधिकार रहे, क्या महंगी और क्या सस्ती में ।
जय भीम का नारा लगा करे, भारत की बस्ती-बस्ती में ॥
नव युवक उठो और कमर कसो, कुछ कर लो काम जवानी में ।
करने से सब कुछ हो सकता, अच्छा अन्जाम जवानी में ॥
कुछ करके ही हासिल होगा, मर्दों का नाम जवानी में ।
खुदगर्जों को मिलकर दे दो, ऐसा पैगाम जवानी में ॥
सब जोर लगाओ एक साथ, अपनी इस कौमी कश्ती में ।
जय भीम का नारा लगा करे, भारत की बस्ती-बस्ती में ॥
स्कूल और कालेज अपने हों, गर अपना जमा खजाना हो ।
अपने ही प्रिंसिपल-टीचर हों, क्यों न अज्ञान रवाना हो ॥
उन्नति चरण चूमें उनके, जहां पढ़ना और पढ़ाना हो ।
अपने ही पंडित उपदेशक, जाति माता का गाना हो ॥
जज्बात कौम के उठते हों, सन्यासी और गृहस्थी में ।
जय भीम का नारा लगा करे, भारत की बस्ती-बस्ती में ॥
अपने पैरों पर उठो अगर, तुमको इन्सान कहाना हो ।
जो जवां मर्द बनकर चलता, उसके ही साथ जमाना हो ॥
एक-एक रुपया जमा करें, दस करोड़ से अधिक खजाना हो ।
दो चार साल में बन सकता, गर तुमको किला बनाना हो ॥
सब दुनिया वाले अड़े हुए हैं, देखो कौम परस्ती में
जय भीम का नारा लगा करे, भारत की बस्ती-बस्ती में ॥
जय सदा बदलती आती है, जय होती चलती वालों की ।
देखो इतिहास उठाकर के, नाना प्रकार मिसालों की ॥
बलिदान क़ौम पर जो होते, लेते बौछार जवालों की ।
जय क्यों ना हो उनकी जग में, निज जाति के मतवालों की ॥
बहुतों ने बुलवाई लोगों, अपनी जय जोरा जस्ती में ।
जय भीम का नारा लगा करे, भारत की बस्ती-बस्ती में ॥
बल वालों की दुनिया लोगों, यह दुनिया न कमजोरों की ।
तन-बल, धन-बल,विद्या-बल की है, नहीं ये काले गोरों की ॥
तीनो बल हासिल कर लोगे, गर सोहबत तजो छछोरों की ।
उठना है तो उठकर आओ, आस करो क्यों औरों की ॥
अब सोने का समय नहीं, ना काम चलेगा सुस्ती में ।
जय भीम का नारा लगा करे, भारत की बस्ती-बस्ती में ॥
जय हिंद पे दुनिया लड़ती है, यह हिंद हमारे बाबा का ।
हकदार वही हो सकता है, जो बिंद हमारे बाबा का ॥
उसको मिलकर चैलेंज दे दो, जो जिंद हमारे बाबा का ।
पायेगा वही इसमें बशर, फरजन्द हमारे बाबा का ॥
कब तक फितनागर काम करेगा, इस चालाकी सुस्ती में ।
जय भीम का नारा लगा करे, भारत की बस्ती-बस्ती में ॥
खुदगर्ज़ लुटेरों ने लूटा, उनको चैलेंज हमारा हो ।
अब मिले मशक्कत से रोटी, इस तरियों नहीं गुजारा हो ॥
सबसे पहले हम बाशिंदे, यूं भारत देश हमारा हो ।
गए बीत हजारों वर्ष हमें, अब तो हमको छुटकारा हो ॥
कमजोर बना डाला हमको, अब मींग रही ना अस्थि में ।
जय भीम का नारा लगा करे, भारत की बस्ती-बस्ती में ॥
बातों से काम चलेगा नहीं, बातों पर मिटने वाले हों ।
एक बात-बात की बातों में, बातों में जुटने वाले हों ॥
हर काम काज के लिए बात, बातों पर उठने वाले हों ।
गुरू बंशीराम मुशाफिर कहें, बातों पर डटने वाले हों ॥
गोरधन-बिहारी लिखें करारी, आकर कौमी मस्ती में ।
जय भीम का नारा लगा करे, भारत की बस्ती-बस्ती में ॥
को बिहारी लाल हरित जी की गायक मंडली के साथ स्वयं गाया तथा सभा में उपस्थित लोगों से गवाया। तब ‘जय भीम’ शब्द एक केवल नारा मात्र ही नहीं था बल्कि एक आन्दोलन का आगाज था। एक चुनौती थी, उस सवर्ण समाज को जो दलितों को पशुओं से भी हेय समझता थै। ‘जय भीम’ के नारे से दलित समाज के नर-नारी अपनी खोई अस्मिता को पहचान रहे थे तथा अपने स्वाभिमान को पा रहे थे। आपस में संगठित हो अन्याय अत्याचार के खिलाफ मोर्चेबन्दी कर रहे थे। शिक्षा की ताकत पा संगठित हो रहे थे। ‘जय भीम’ दलित समाज का अमर नारा है और हमेशा रहेगा। और इसको रचने वाले, जन-जन तक नारे को पहुंचाने वाले लोग भी अमर रहेंगे।