भारत में उन पेंशनर की संख्या कितनी है जो अपने पूर्व एम्प्लायर से पेंशन लेते हैं? कुल मिला के कितने लोग नौकरी के बाद पेंशन ले रहे हैं? ये आंकड़े इन्टरनेट में खोजने की कोशिश की पर पता नहीं लग पाया. यूरोपियन यूनियन की एक साईट में 2005 से 2050 तक के आंकड़े और भविष्य के ग्राफ वगैरह थे. ऐसा लगता है की यूरोप में जनता और ख़ास कर वरिष्ठ नागरिकों की सेहत पर ज्यादा ध्यान रखा जाता है. भारत में केन्द्रीय, प्रादेशिक और सार्वजानिक प्रतिष्ठानों में अंदाज़न ढाई तीन करोड़ से ज्यादा नहीं होंगे? पता नहीं. आपको पता लगे तो कृपया बताएं.
इन पेंशनर का स्वास्थ्य सम्बन्धी क्या इंतज़ाम है? फौजी भाइयों के तो अपने अस्पताल हैं, केन्द्रीय सरकार से रिटायर्ड लोगों का अपना इंतज़ाम है. जहां तक रिटायर्ड बैंकर का सवाल है वो अस्पताल की सेवाओं के लिए मेडिक्लैम बीमा पर निर्भर हैं. ओ पी डी सेवा ज्यादातर अपने खर्चे पर ही है. बैंक मेडिकल कॉलेज या अस्पताल या क्लिनिक बनाने के लिए लोन तो दे सकते हैं पर अपने पेंशनर के लिए इनमें कोई व्यवस्था नहीं करते या कर पाते?
रिटायर होने के बाद क्या सेहत खराब हो जाती है या फिर बेहतर हो जाती है? इस विषय पर इन्टरनेट पर खोज बीन की पर कुछ पक्का नियम या सिद्धांत हाथ नहीं लगा. फिर ख़याल आया कि विश्व स्वस्थ संगठन की वेबसाइट देखी जाए. यहाँ भी कुछ ख़ास नहीं मिला. पता ये लगा की ये एक जटिल सवाल है की सेहत बनी रहेगी या बिगड़ेगी और इसके लिए बहुत बड़ा और बहुत देर तक चलने वाला सर्वे कराना पड़ेगा. मतलब इस काम पर डॉलर लगेंगे और वो उनके पास हैं नहीं फिलहाल. पेंशनर की जेब की तरह इनका खज़ाना भी खाली है.
फिर भी कुछ मोटी मोटी बातें दी हुई थी. अगर रिटायर होने से पहले सेहत अच्छी थी तो वो ज्यादातर अच्छी ही बनी रहती है. हाँ उम्र का प्रभाव तो नकारा नहीं जा सकता. नौकरी में रोजाना की मेहनत, उतार-चढ़ाव और मानसिक तनाव झेलते रहे थे पर स्वस्थ रहे थे तो फिर रिटायर होने के बाद भी स्वास्थ्य ठीक ही रहता है. ऐसे में तो रिटायर होना एक घटना मात्र है. बल्कि ये बदलाव काफी हद तक सुकून भी देता है कि चलो रोजमर्रा की किचकिच और खडूस बॉस से छुट्टी मिली. इसलिए लोग स्वस्थ बने रहते हैं. मतलब की आप दो पेग लगाते थे तो लगाते रहें फिकरनॉट!
सर्वे में कुछ उदाहरण इसके उलट भी मिले हैं. याने रिटायर होते ही बिस्तर पकड़ लिया. ऐसा ज्यादातर रिटायर होने के तुरंत बाद ही हो सकता है. पर फिर जैसे जैसे समय निकलता है तो इस तरह की घटनाएं नहीं देखी गईं. इसका मुख्य कारण खुद पर से विश्वास घट जाना बताया गया है.
रिटायर हो चुके बन्दे के लिए मानसिक दबाव मसलन पैसा या निजी मकान ना होना या विषम घरेलु स्थिति भी स्वस्थ रहने में बाधक हैं. विकसित देशों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, ओल्ड ऐज होम जैसी सुविधाएँ हैं जो रिटायर होने वाले को आश्वस्त रखती है. हमारे यहाँ वृद्धाश्रम जैसा इंतज़ाम बहुत ही कम है और दूसरी ओर संयुक्त परिवार भी तेजी से घटते जा रहे हैं. वैसे संयुक्त परिवार में बुज़ुर्ग की पूरी देखभाल होती है या नहीं ये एक अलग सवाल है. इसके साथ ही अब औसत उम्र भी बढ़ती जा रही है. मतलब बुढ़ापा लम्बा चल सकता है तैय्यारी रखें.
तैय्यारी में एक तरफ तो सुबह शाम की सैर, दौड़, खेलकूद, योगाभ्यास, साइकिलिंग वगैरह है और दूसरी तरफ डाइट का भी ध्यान रखना है. साथ ही खाते में पैसे भी रखने हैं कम से कम बीमा तो चालू रहे.
अक्टूबर का महीना आने वाला है और बैंक के पेंशनर को मेसेज आएँगे की मेडिक्लैम के प्रीमियम के लिए खाते में बैलेंस बनाए रखें वर्ना...! बैंक वाली स्कीम में पिछले सालों से प्रीमियम शैतान की आंत की तरह बढ़ता जा रहा है. लगता है एक महीने की पेंशन प्रीमियम की भेंट चढ़ जाएगी. इसी तरह प्रीमियम बढ़ता रहा तो कुछ बरसों बाद दो महीने, फिर तीन महीने की पेंशन ....!
मेडिक्लैमके इस प्रीमियम पर कुनैन जैसा कड़वा जी एस टी का लेप भी है. पता नहीं सरकार ने क्या सोच कर लगाया है?
इस मेडीक्लैम बीमे में एक और लोचा है. मान लीजिये आप ने पिछले साल कोई क्लेम नहीं किया तो आपको कोई छूट मिल जाए ऐसा नहीं है. बेजान कार के बीमे में इस तरह की छूट मिल जाती है पर जिन्दा पेंशनर को नहीं! पर चलिए ये बात सोच के संतोष हो जाता है की हमें ना सही किसी को तो इस बीमे का फायदा मिला होगा. इस जमाने का यही दान पुन्य है.
बीमा कम्पनी के अधिकारी जो प्रीमियम की कोटेशन देते हैं, बैंक के अधिकारी जो कोटेशन मान लेते हैं और हमारे यूनियन / एसोसिएशन के पदाधिकारी( मुझे इनके रोल की जानकारी नहीं है और ये भी नहीं मालूम कि ये कहाँ तक दबाव डाल सकते हैं ) भी जानते ही होंगे की उन्हें भी रिटायर होना है? प्रीमियम घटाने पर किसी का ध्यान नहीं जाता. या सब लाल फीता शाही से बंधे हैं जैसा की निचले चित्र में है.
कुछ ऐसे भी 'नौजवान' पेंशनर हैं जो ये बीमा पालिसी लेते ही नहीं. इनकी बात सुन कर लगता है कि -
कहते हैं उम्र-ए-रफ़्ता कभी लौटती नहीं,
जा मय-कदे से मेरी जवानी उठा के ला!
- अब्दुल हमीद अदम