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मां को आमंत्रण

3 अक्टूबर 2020

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एक सहमी हुई, सिमटी हुई कालों में
धूल धूसरित लालों में
खुद कंटकों पर चलती थी।
एक ऐसी देवी
जो कठिनाइयों का सामना करते हुए
उसे गले लगाती रही।
घर वाले कुछ भी कहते थे
बिना क्रोध किए सुन लेती थी।
सत्य की पराकाष्ठा पर सदा अडिग रही,
वह मां
जो मुझे थपकी देती थी
वह मां
जो मुझे मार जता कर सुपथ पर लाती रही,
वह मां
जिसके जाने से मेरे चौखट के उजाले बुझ गये हैं,
उसी मां के चेहरों की दमक तक नही आती।
मुझमें कभी कभी आहटें उठती हैं
जिसमें वो मेरे
रथ रूपी विचारों पर सवार रहती है
वह जो
मेरे दुःख दर्द को देखकर सह नही सकती थी,
अपने निवालों में मेरा हक सदा रखती थी।
उनकी स्मृतियां दिल के भूखण्ड पर
कण कण में समाहित हो उठी हैं,
जिसका प्रादुर्भाव इस हिय क्षितिज पर
सदा मौजूद है।
मेरी हर नादानी को क्षमा करो मां
मैं अभागा हूं, अपराधी हूं
और तुम मुझे बाल्यावस्था में अकेला छोड़ चली गई
ममता के बंधन को बिखेर।
मेरी शादी भी नही हो पाई थी तेरे रहते,
अब यूं ही शादी होगी
तब मुझे स्तनपान कौन करायेगा
सारे रिवाजों में
अग्रणी कौन बनेगा
विवाह के गीत कौन गायेगा
अपने शावक के विवाह पर खुशियां कौन लुटायेगा।
आने वाली नव प्रिया को साथ कौन लगाएगा
अच्छे गुण कौन देगा
भले राहों पर कौन लायेगा
वर कन्या को आशीर्वाद कौन देगा,
आप देवी स्वरुप हो मां
आप मेरे पलकों तले दृश्यमान होती हैं।
मेरी आपसे यही प्रार्थना है
मेरे हर खुश पलों में अपने अन्य देवियों के साथ
मेरे दरवाजे पर जरूर आना और आशीर्वाद जरूर देना,
तेरे पदरज से मेरे द्वार की भूमि
धन्य हो जाएगी।।

___शिव दयाल

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