आज मैं पहली बार एक ऐसी पोस्ट कर रहा हूं जिससे हो सकता है कि कुछ भ्रमित लोग मुझे जातिवादी समझें, लेकिन जो तर्कशील व्यक्ति होगा वह मेरी बात को समझेगा और मेरी इस पोस्ट का मर्म दूसरों तक पहुंचाने का प्रयास करेगा...
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भाइयों एवं बहनों, हमारे समाज के दो महत्वपूर्ण घटक, ब्राह्मण और क्षत्रिय एक दूसरे के कभी विरोधी नहीं हो सकते, यह असंभव है, क्योंकि यह दोनों एक दूसरे के पूरक है। वैसे हमारे समाज के चारों वर्ण एक दूसरे के पूरक हैं, और जो अन्य दोनों वर्ण है वो हमारे समाज के सबसे महत्वपूर्ण घटक हैं। लेकिन विभिन्न सामाजिक भ्रांतियों के चलते सोशल मीडिया पर उसे समझाया नहीं जा सकता। क्योंकि जो समझना चाहते हैं, उन्हीं को समझाया जा सकता है। और जो समझना चाहते ही ना हो, उन्हें कैसे समझाया जा सकता है?
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बस यहां पर इतना समझ लो, कि हमारे समाज के जो पंडे, ठकुट्टे और भीमटे आदि हैं वही एक दूसरे के खिलाफ है। इन्हें ब्राह्मण-क्षत्रिय आदि समझने की भूल बिल्कुल ना करें। ये वो लोग हैं, जो सिर्फ और सिर्फ अपने निजी स्वार्थों को ही देखते हैं, इन्हें समाज की ना तो कभी कोई चिंता थी और ना आगे कभी होगी।
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ऐसे ही लोगों से भगवान परशुराम भी लड़े थे और ऐसों से ही भगवान राम को भी लड़ना पड़ा था। लेकिन उस समय हमारा समाज आज की तरह कुछ शातिर समाज तोड़क तथाकथित बुद्धिजीवियों के द्वारा संचालित बुद्धिहीन समाज नहीं था, उस समय हर व्यक्ति हर घटना को अपनी तर्क की कसौटी पर कसने के बाद ही निर्णय करता था।
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तभी यह संभव हो पाया था कि भगवान परशुराम द्वारा अनेकों बार क्षत्रियों में प्रभुत्व जमा चुके कुछ दुराचारियों का नाश करने के बावजूद क्षत्रिय समाज उन्हें हमेशा अपने सर माथे पर बिठाता रहा। तो वहीं हमारी हिंदू संस्कृति को विश्व का सिरमौर बनाने वाले ब्राह्मण समाज ने भगवान राम के द्वारा मारे गए उस महाज्ञानी, महापंडित, ब्राह्मण रावण को अत्याचार और बर्बरता का प्रतीक बना हर वर्ष एक उत्सव के रूप में उसका दहन करना शुरू करवाया।
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यह तभी संभव हो पाया क्योंकि हमारा उस समय का समाज तर्कशील था, और उसे अच्छे तथा बुरे का ज्ञान था। आज का समय होता तो ठकुट्टे(क्षत्रिय नहीं) भगवान परशुराम का विरोध कर रहे होते और बहुत से पंडे(ब्राह्मण नहीं) भगवान राम को ब्राह्मण विरोधी घोषित कर उनके खिलाफ अभियान चला रहे होते।
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वैसे इतना सब होने के बावजूद मैं इन ठकुत्तों और पंडों का दोष नहीं मानता। क्योंकि सैकड़ों सालों के बर्बर आक्रमणों के बावजूद हमने जो अपनी संस्कृति और परंपराओं का क्षय नहीं होने दिया था। उसी के हताशा के बाद इन आक्रमणकारियों ने हमारे समाज के खिलाफ लार्ड मैकाले को प्रमुख बनाकर जो साजिश रची, वो आज वैश्विक हो चुकी है, उसी का परिणाम आज हमें भुगतना पड़ रहा है।
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हमारे समाज का सर्वाधिक प्रबुद्ध वर्ग जो कि वास्तव में ब्राह्मण ही है, उसको ऐसी परिस्थितियों में पुनः आगे आना होगा। और इन साजिशों का पर्दाफाश कर हम सब को पुनः एकजुट करके देश को फिर से विश्व गुरु बनाने की ओर अग्रसर करना होगा।
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लेकिन इसमें जो सबसे कठिन बात है कि आज के समय में हमारे समाज के भ्रमित हो चुके सारे वर्णों के भाइयों को साथ कैसे लाया जाए, जो वास्तविक दुश्मन को छोड़कर एक दूसरे के ऊपर ही आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेल रहे हैं। जब तक हम अपने सभी भाइयों को एक साथ नहीं ला पाएंगे तब तक हम अपने समाज को पुनः वैभवशाली बनाने का सिर्फ सपना ही देख सकते हैं।
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विशेष सूचना - मेरी इस पोस्ट में ब्राह्मण का मतलब वही है, जो हमारे धर्म ग्रंथों में बताया गया है, जिसके अनुसार ऐतरेय ऋषि, ऐलूष ऋषि, जावाल ऋषि, मातंग ऋषि, वाल्मीकि ऋषि, रोमहर्षण पुत्र उग्रश्रवा ऋषि जैसे जन्मना शूद्र महानुभावों ने ब्राम्हणत्व के उच्च शिखर पर पहुंच देवत्व को भी अपने सामने झुकाया, तो वही विश्वामित्र जैसे क्षत्रियों ने भी ब्राम्हणत्व को प्राप्त किया।
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यह सूची बहुत लंबी है कौन-कौन ब्राह्मण बना और कौन-कौन ब्राम्हणत्व का त्याग कर क्षत्रिय वैश्य और शुद्र बने। लेकिन जिन्हें हिंदू संस्कृति के धर्मग्रंथों से घृणा करना सिखा दिया गया हो, वह इसे न कभी जान सकते हैं ना कभी समझ सकते हैं। इसलिए तात्कालिक परिस्थितियों में कृपया जातिवादी मानसिकता से ग्रसित लोग मेरी इस पोस्ट से दूर रहें। उनको समझाना मेरी जैसी अल्पबुद्धि वालों का काम नहीं है, बल्कि उनको तो समझाने के लिए हमारे ब्राह्मण समाज को ही आगे आना पड़ेगा।
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हम सब ये जानते ही नहीं, कि हम सब एक दूसरे के पूरक हैं। और जब हम अपने पूरक को ही नष्ट करने पर तुल जाएंगे, तो स्वयं कितने दिन तक जीवित रह पाएंगे???
।। Sanjeev somvanshi ।।