*ईश्वर द्वारा बनाई गई है सृष्टि बहुत ही रहस्य पूर्ण है | यहां पग पग पर रहस्य भरे पड़े हैं जिनको सुलझाने में मानव जीवन भी कम पड़ जाता है | जीवन एवं मरण का रहस्य अपने आप में अद्भुत रहस्य है | बड़े बड़े ज्ञानी विद्वान इस रहस्य को नहीं समझ पाते हैं और जो इस रहस्य को समझ गया वही परम ज्ञानी कहा जाता है | कौन कहां से आया है ? कहां जाएगा यह कहा नहीं जा सकता लेकिन जो आया है उसे जाना ही होगा यह निश्चित है इसे कोई काट नहीं सकता | प्राय: मनुष्य किसी के आने की बात से हर्षित हो जाता है और उसे महोत्सव के रूप में मनाता है परंतु जब किसी के जाने की बात तो होती है तो लोग उदास हो जाते हैं यही अज्ञानता है क्योंकि यह सभी लोग जानते हैं कि जो आया है उसे एक दिन जाना ही पड़ेगा | परंतु यह जानते हुए भी वह हर्ष विषाद मनाता है | मनुष्य को प्रतिपल जीवन के हर पहलू के प्रति सजग रहना | चाहिए सच्चा ज्ञानी वही है जो सभी के प्रति सहज भाव रख सके जो किसी के स्वागत के साथ विदाई की बात जानता है वह ना तो स्वागत गान से प्रसन्न होता है और ना ही मृत्यु गीत से उदास एवं परेशान होता है | प्रत्येक मनुष्य को यह समझना चाहिए कि यह जीवन एक कांच के सामान की भांति है जो कुछ देर तो हाथ में चमकता रहता है परंतु दूसरे ही क्षण गिरकर टूट जाता है उसी प्रकार यह मानव जीवन भी है ! जन्म लेने के बाद कब मरण का समय आ जाएगा यह कोई नहीं जान सकता इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को मिले हुए इस अनमोल जीवन में मिले हुए एक-एक क्षण का सदुपयोग करना चाहिए क्योंकि इस क्षणभंगुर जीवन का कोई भरोसा नहीं | जो जीवन मरण की इस रहस्य को जान जाता है वही परम विद्वान एवं परम ज्ञानी कहे जाने योग्य है |*
*आज मनुष्य आधुनिकता की चकाचौंध में जाने की बात जैसे भूल गया है | प्रतिपल भविष्य की योजनाएं बनाने में लगा हुआ मनुष्य वर्तमान को गंवा रहा है | व्यर्थ में इधर-उधर समय व्यतीत कर के प्रत्येक कार्य को कल के लिए टालने की प्रवृत्ति के चलते मनुष्य कुछ भी नहीं कर पाता जबकि मनुष्य जानता है कि इस जीवन का कोई भरोसा नहीं है परंतु माया के वशीभूत होकर के वह कभी भी स्वयं के मरण की बात सोचता ही नहीं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि परिवर्तन सृष्टि का नियम है कोई भी वस्तु यदि रुक जाए परिवर्तित ना हो तो वस्तु नहीं मानी जाएगी वस्तु तो वही है जो प्रतिक्षण उत्पन्न और नष्ट होते हुए भी अपने स्वरूप में स्थित है | जन्म मरण के बीच जो समय मिला हुआ है वही शाश्वत आत्मतत्व है , कर्मयोगी वही होता है जो जन्म मरण के रहस्य को जानते हुए बीच के मिले हुए समय का सदुपयोग करके अपने धर्म का एवं कर्तव्य का पालन करता रहे | जैसा कि गीता में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं :- "जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च ! तस्मादपरिहार्येर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि !!" अर्थात :- जिसका जन्म है उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है और जिसकी मृत्यु है उसका जन्म भी अवश्य होगा यह अपरिहार्य चक्कर है इसलिए हे अर्जुन सोच में मत पड़ो अपने धर्म का , कर्तव्य का पालन करना ही श्रेयस्कर है | जन्म मरण तो होता ही रहता है परंतु जन्म मरण के रहस्य को जानते हुए इसके बीच का जो समय हमको मिला है इसका सदुपयोग करके ही इस मानव जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है | अन्यथा पल पल यह जीवन निरर्थक व्यतीत होता चला जा रहा है और अंत में पश्चाताप करने के अतिरिक्त और कुछ भी हाथ नहीं आता |*
*जो इस जन्म मरण की रहस्य को जान लेता है वह आत्मस्थ होकर अर्थात अंतर नैनो से स्वयं को देखकर सारे कर्म करता है तथा ईश्वर धारा प्रदत समय का सदुपयोग कर पाता है |*