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*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*
🚩 *एकादशी व्रत निर्णय* 🚩
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*दशम्येकादशी यत्र तत्र नोपवसद्बुध: !*
*अपत्यानि विनश्यन्ति विष्णुलोकं न गच्छति !!*
यह परमावश्यक है कि एकादशी दशमीविद्धा (पूर्वविद्धा) न हो ! हाँ द्वादशीविद्धा (परविद्धा) तो हो ही सकती है क्योंकि नारदपाञ्चरात्र में कहा गया है :- *‘पूर्वविद्धातिथिस्त्यागो वैष्णवस्य हि लक्षणम्’* लेकिन वेध-निर्णय का सिद्धान्त भी सर्वसम्मत नहीं है |
निम्बार्क सम्प्रदाय में स्पर्शवेध प्रमुख है | उनके अनुसार यदि सूर्योदय में एकादशी हो परन्तु पूर्वरात्रि में दशमी यदि आधी रात को अतिक्रमण करे अर्थात् दशमी यदि सूर्योदयोपरान्त ४५ घटी से १ पल भी अधिक हो तो एकादशी त्याग कर महाद्वादशी का व्रत अवश्य करे |
यथा—
*अर्धरात्रमतिक्रम्य दशमी दृश्यते यदि !*
*तदा ह्येकादशीं त्यक्त्वा द्वादशीं समुपोषयेत् !!*
(कूर्मपुराण)
परन्तु *कण्व स्मृति* के अनुसार अरुणोदय के समय दशमी तथा एकादशी का योग हो तो द्वादशी को व्रत कर त्रयोदशी को पारण करना चाहिये |
यथा—
*अरुणोदयवेलायां दशमीसंयुता यदि !*
*तत्रोपोष्या द्वादशी स्यात्त्रयोदश्यां तु पारणम् !!*
यहाँ पुराण और स्मृति के निर्देश में भिन्नता पायी जा रही है अतः शास्त्र-सिद्धान्त से स्मृति-वचन ही बलिष्ठ होता है अतः यही सिद्धान्त बहुमान्य है |
अपने *रामानन्द-सम्प्रदाय* का मत है कि वैष्णवों को वेध रहित एकादशी का व्रत रखना चाहिये | यदि अरुणोदय-काल में एकादशी दशमी से विद्धा हो तो उसे छोड़कर द्वादशी का व्रत करना चाहिये—
*एकादशीत्यादिमहाव्रतानि*
*कुर्याद्विवेधानि हरिप्रियाणि !*
*विद्धा दशम्या यदि साऽरुणोदये*
*स द्वादशीन्तूपवसेद्विहाय ताम् !!*
(श्रीवैष्णवमताब्जभास्कर, ६७)।
*उदाहरणार्थ :- भाद्रपद शु. ११ रविवार २०७० को उदया तिथि में एकादशी तो है पर पूर्ववर्ती दिन (शनिवार) दशमी की समाप्ति २८:४६ बजे हो रही है जो सूर्योदय (५:५२ बजे) से मात्र १घंटा ६ मि. अर्थात् पौने तीन घटी पहले है अतः अरुणोदय काल (२८:१६ बजे) में यह एकादशी दशमी-विद्धा है | फलतः इसे त्यागकर भाद्रपद शु. १२ सोमवार को पद्मा एकादशी का व्रत विहित है |
*यह वेध भी चार प्रकार का होता है-*
(१) सूर्योदय से पूर्व साढ़े तीन घटी का काल अरुणोदय वेध है
(२) सूर्योदय से पूर्व २ घटी का काल अति-वेध है
(३) सूर्य के आधे उदित हो जाने पर महावेध काल है तथा
(४) सूर्योदय में तुरीय योग होता है।
यथा—
*घटीत्रयंसार्द्धमथारुणोदये*
*वेधोऽतिवेधो द्विघटिस्तुदर्शनात् !* *रविप्रभासस्य तथोदितेऽर्द्धे*
*सूर्येमहावेध इतीर्यते बुधैः !!* *योगस्तुरीयस्तु दिवाकरोदये*
*तेऽर्वाक् सुदोषातिशयार्थबोधकाः !*
(श्रीवैष्णवमताब्जभास्कर, ७१-७२)
सूर्योदयकाल से पूर्व दो मुहुर्त संयुक्त एकादशी शुद्ध है और शेष सभी विद्धा हैं—
*पूर्णेति सूर्योदयकालतः या*
*प्राङ्मुहूर्तद्वयसंयुता च!*
*अन्या च विद्धा परिकीर्तिता बुधै:*
*एकादशी सा त्रिविधाऽपि शुद्धा !!*
(श्रीवैष्णवमताब्जभास्कर, ७३)।
*शुद्धा एकादशी के भी तीन भेद हैं। यथा—*
*एका तु द्वादशी मात्राधिका ज्ञेयोभयाधिक !*
*द्वितीया च तृतीया तु तथैवानुभयाधिका !!*
*तत्राद्या तु परैवास्ति ग्राह्या विष्णुपरायणैः !*
*शुद्धाप्येकादशी हेया परतो द्वादशी यदि !!*
*उपोष्य द्वादशीं शुद्धान्तस्यामेव च पारणम् !*
*उभयोरधिकत्वे तु परोपोष्या विचक्षणैः !!*
(श्रीवैष्णवमताब्जभास्कर, ७४-७६)
अर्थात्, एक वह जिसमें केवल द्वादशी अधिक हो, दूसरी जिसमें दोनों अधिक हों तथा तीसरी जिसमें दोनों में कोई भी अधिक न हो। (अब इनमें से किसे ग्रहण किया जाय ?
*जगद्गुरु आद्य रामानन्दाचार्य-चरण का आदेश है –)*
*इनमें से वैष्णवों को प्रथम एकादशी अर्थात् द्वादशी मात्र का ग्रहण करना चाहिये, यदि परे द्वादशी की वृद्धि हो तो शुद्ध एकादशी भी छोड़ देनी चाहिये ! विज्ञ-जनों को एकादशीरहित शुद्ध षष्ठीदण्डात्मक द्वादशी में उपवास कर अगले दिन अवशिष्ट द्वादशी में ही पारण भी कर लेना चाहिये | दोनों की अधिकता में पर का उपवास करना चाहिये |*
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*यथा सम्भव प्रयास*
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