*ईश्वर द्वारा बनाई हुई यह सृष्टि बहुत ही रहस्यमय है | इस रहस्यमय सृष्टि में अनेकों अनसुलझे प्रश्न मनुष्य को परेशान करते रहते हैं , इन सभी प्रश्नों का उत्तर तो वह किसी न किसी ढंग से ढूंढ लेता है परंतु सबसे जटिल प्रश्न यह है कि "मैं कौन हूँ ?" मनुष्य आज तक यह स्वयं नहीं जान पाया कि "मैं कौन हूँ ?" किसी से भी पूछ लो कि आप कौन हैं ? तो वह झटपट अपना नाम बता देता है , यदि उसका पता पूछा जाए तो वह अपने गांव का एक शहर का नाम बता देता है , परंतु क्या उसके शरीर को या उसके नाम को यह माना जा सकता है यह वही है | यदि नाम से मनुष्य यह कहे कि मैं यही हूं तो नाम तो संसार में आने के बाद मिलता है , शरीर भी मां के गर्भ में प्राप्त होता है तो आखिर मनुष्य क्या है ? सांसारिक पहचान से मनुष्य अपना जीवन यापन तो करता रहता है परंतु वह यह नहीं जान पाता कि वास्तव में वह क्या है और सच्चाई तो यह है कि वह जानना भी नहीं चाहता कि आखिर वह है क्या ? हमारे महापुरुषों ने इस विषय में स्पष्ट संकेत दिया है कि जीव के भीतर निवास करने वाली आत्मा ही उसका सच्चा स्वरूप होती है | शरीर , नाम , पद एवं अनेकों उपाधियां तो उसे उसके कार्य के अनुसार प्राप्त होती रहती हैं परंतु आत्मा का कोई स्वरूप नहीं होता है | "गोस्वामी तुलसीदास जी" ने अपनी "मानस" में लिखा है :- "ईश्वर अंश जीव अविनाशी" बाबा जी की चौपाई नित्य पढ़ने के बाद भी मनुष्य अपनी सांसारिक पहचान में तथा उसके अहंकार में भ्रमित होकर भ्रमण करता रहता है और अंततोगत्वा वह स्वयं को नहीं जान पाता | कितनी आश्चर्यजनक बात है कि संसार के विषय में जानने वाला मनुष्य स्वयं के विषय में नहीं जान पाता कि मैं कौन हूं ? जिसने इस रहस्य को जान लिया उसे संसार का कोई भी बंधन नहीं बाँध सकता | इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को यह जानने का प्रयास अवश्य करना चाहिए कि वास्तव में "मैं कौन हूं " ???*
*आज मनुष्य ने बहुत विकास कर लिया है अंतरिक्ष के अनेकों अनसुलझे प्रश्न का उत्तर मनुष्य नित्य खोज रहा है | समुद्र की गहराइयों में पहुंचकर वह अनेकों अनसुलझे रहस्यों का उत्तर भी प्राप्त कर रहा है परंतु स्वयं के विषय में वह जानने के लिए लालायित कि नहीं दिखता है कि मैं कौन हूं | अपने नाम एवं पद के अहंकार में मनुष्य फूला फिरता है | अंततोगत्वा यह शरीर जिसे वह अपना मानता है एक दिन मिट्टी में मिल जाता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इस विषय पर यही कहना चाहता हूं कि इस विषय पर प्रत्येक मनुष्य को विचार करना चाहिए कि क्या मै नाम , रूप , देह , मन , इन्द्रिय या बुद्धि हूँ या और कोइ वस्तु हूँ ? मै नाम नहीं हूँ क्योंकि यह इस संसार मे आने के बाद मिला है | रूप देह भी नहीं हूँ क्योंकि देह जड है और मै चेतन | देह नाशवान है इसकी उत्पत्ति और विनाश निश्चित है परंतु मै इनसे रहित हूँ | मनुष्य भ्रम से शरीर मे आत्माभिमान करके मान अपमान सुख दुःख से सुखी दुखी होता है | इसी तरह मैं इंद्रियाँ भी नहीं हूँ | शरीर का कोइ भी अंग कट जाय , नष्ट हो जाय , जल जाय लेकिन मै ज्यो का त्यो रहता हूँ | मरता नहीं | यदि इनमे से भी कोइ होता तो मेरा विनाश निश्चित है जबकि मै था , हूँ और जब तक मूल स्वरूप न मिले तब तक रहूँगा | इस प्रकार यह निश्चित हो जाता है कि मै नाम , रूप , देह , मन , इन्द्रिय , बुद्धि नहीं हूँ बल्कि मै इन सबसे सर्वथा अतीत , अनादि , चेतन साक्षी , सब का ज्ञाता , सत नित्य अविनाशी , सनातन , अचल और समस्त दुखो से रहित शुद्ध आनंदमय आत्मा हूँ | यही मेरी पहचान है | इस रहस्य को सभी को जानने की आवश्यकता है |*
*मैं कौन हूँ ? के उत्तर में यही कहना चाहिए कि मैं एक निर्मल आत्मा हूँ अर्थात इसमे काम , क्रोध , मोह , मद , अहंकार , दम्भ , ईर्ष्या , द्वेष , मत्सर , राग आदि विकार नहीं है इसलिए निर्मल है क्योंकि यह परमपिता परमेश्वर का स्वरूप है | यही मै हूँ | यही मेरा सत्य सनातन दिव्य चेतन स्वरूप है |*