क्या कृषि सुधार जमाखोरी को बढ़ावा देंगे?
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कृषि सुधारो के तहत कृषि-खाद्य वस्तुओं के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन किया गया है।
लेकिन संशोधित कानून को डिसकस करने के पहले यह जानना आवश्यक है कि पहले के कानून के तहत व्यवस्था कैसे चलती थी?
पुराना कानून (Essential Commodities Act, 1955) 65 वर्ष पूर्व लाया गया था जब राष्ट्र में हर खाद्य वस्तु की कमी थी और व्यापारी जमाखोरी करके खाद्य उत्पाद की कीमत एकाएक बढ़ा देते थे । अतः पुराना कानून जमाखोरी रोकने का प्रयास था।
लेकिन पुराने कानून में कोई क्राइटेरिया नहीं था कि जमाखोरी किसे कहेंगे? अगर प्याज के दाम दस प्रतिशत बढ़ जाए, और सरकार को लगा कि यह बढ़ोत्तरी जमाखोरी के कारण हो रही है, तो वह छापा मारकर आपकी दुकान, गोदाम, घर, गाड़ी इत्यादि में रखी प्याज जब्त कर सकती थी। भले ही उस प्याज का वजन सौ किलो हो।
दूसरे शब्दों मे, पुराना कानून पूरी तरह से सरकारी कर्मियों की मनमानी (जिसे विवेक या डिस्क्रेशन कहा जाता है) पर चलता था। जब चाहा, किल्लत के नाम पर छापा मार दिया और साम्रगी जब्त कर ली; फिर आप काटते रहिये सरकारी कार्यालय एवं कोर्ट के चक्कर; या फिर घूस देकर छूट जाइए।
इसके दो दुष्परिणाम हुए। प्रथम, लगभग एक-तिहाई खाद्यान्न आधुनिक भंडारण व्यवस्था की कमी के कारण सड़ जाता है। द्वितीय, खाद्य उत्पादों के भंडारण, ट्रांसपोर्टेशन एवं लॉजिस्टिक्स के लिए जो व्यवस्था बनाई जानी चाहिए थी वह बन नहीं पायी। कारण यह था कि किसी शीतग्रह या भंडार ग्रह में कब पुराने कानून के नाम पर छापा मारकर सामग्री जब्त कर ली जाए, किसी को पता नहीं था। आप अपना भंडार ग्रह केवल सरकारी कर्मियों को घूस देकर ही चला सकते थे जिसके कारण किसान के खेत से लेकर उपभोक्ता तक पहुंचने को की प्रक्रिया में किसी उत्पाद के दाम में घूस का दाम भी जुड़ जाता था।
अतः, इस शताब्दी में प्रचुर मात्रा में कृषि उत्पाद होने के बावजूद भारत में आधुनिक शीतग्रह, भंडार ग्रह, फ़ूड ट्रांसपोर्टेशन (वातानुकूलित ट्रक) तथा लॉजिस्टिक्स की व्यवस्था नहीं हो पाई। निवेशक अपना पैसा इन सुविधाओं में लगाने में डरते थे क्योंकि इस व्यवस्था को बनाने के खर्चे में घूस का पैसा भी जोड़ना पड़ता था जिसके लिए बैंक लोन नहीं देगा।
दूसरी तरफ, इतने कड़े कानून के बावजूद जमाखोरी होती थी; एकाएक खाद्य वस्तुओं के दामों में वृद्धि हो जाती थी; एक तरह से भ्रष्ट बिचौलिए, राजनीतिज्ञ, व्यापारी एवं सरकारी कर्मी इस राक्षसी कानून का लाभ उठा रहे थे, जबकि उपभोक्ता (कृत्रिम रूप से बढ़े दामों से) एवं किसानो (उन बढ़े दामों के ना मिलने से) को घाटा हो रहा था।
सुधारों के तहत सरकार ने जमाखोरी वाले कानून में संशोधन करके यह इस अनिश्चितता या "सरकारी विवेक" को समाप्त कर दिया है। नए कानून में लिखा है कि पिछले 12 माह की तुलना में फल और तरकारी जैसे शीघ्र नष्ट होने वाले खाद्य उत्पाद के दामों में 100% वृद्धि होने पर या जो कृषि उत्पाद शीघ्र नष्ट नहीं होते (जैसे कि गेंहू-चावल), उनके दामों में 50% की वृद्धि होने पर सरकार भंडारण की सीमा को निर्धारित कर सकती है और छापा मारा जा सकता है।
नए कानून में यह भी लिखा है कि केंद्र सरकार केवल असाधारण परिस्थितियों में उपरोक्त वस्तुओं की आपूर्ति को कण्ट्रोल कर सकती है, जिसमें युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि और प्राकृतिक आपदाएं शामिल हैं।
दूसरे शब्दों में, कृषि-खाद्य वस्तुओं के लिए और जमाखोरी रोकने के लिए एक पारदर्शी मानदंड दिया गया है। अब कोई भी बाबू कही भी जाकर अपने "विवेक" से छापा नहीं मार सकती।
नया कानून किसी भी तरह से मूल्य नियंत्रण के लिए बाजार में हस्तक्षेप करने की सरकार की शक्ति को कम नहीं करता है; केवल डिस्क्रेशनरी पावर को कण्ट्रोल किया गया है जिससे भ्रष्टाचार बढ़ता था। नए कानून के आने के बाद सरकार ने 23 अक्टूबर 2020 को प्याज के स्टॉक पर सीमा लगा दी थी जो स्पष्ट करता है कि जमाखोरी को बढ़ावा नहीं मिलेगा। किसानों के हितों की वस्तुओं, जैसे उर्वरकों और बीजों को नए कानूनों द्वारा नहीं छुआ गया है।
यह कानून तभी फ़ोर्स में आएगा (यानी कि लागू होगा), जब कृषि उत्पाद खेत या कृषि मंडी के बाहर आ जाएगा। दूसरे शब्दों में, इस कानून का लाभ सस्ते उत्पाद के रूप में उपभोक्ताओं को मिलेगा क्योकि भंडारगृह की कमी से होने वाली खाद्यान्न की बर्बादी एवं वेस्टेज पे रोक लगेगी। किसानो को आधुनिक भंडारण एवं लोजिस्टिक्स के रूप में उचित दाम मिलेगा क्योकि वे स्वयं शीतगृह में अपना उत्पाद बिना डर के रख सकेंगे। उदाहरण के लिए, जब प्याज सस्ती है तो किसान स्वयं उसे शीतगृह में बिना डर के रख सकेगा।
लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से, कुछ धनाढ्य किसान एवं बिचौलिए इस संशोधन का विरोध कर रहे हैं, भले ही यह स्पष्ट रूप से उनके हित में है।
अंत में एक बात समझ लीजिए। आज भारत में प्रचुर मात्रा में खाद्यान्न का उत्पादन हो रहा है। इतना अधिक उत्पादन कि हम लगभग 40 बिलियन डॉलर (लगभग तीन लाख करोड़ रुपये) का खाद्यान्न एक्सपोर्ट कर रहे हैं। इतनी प्रचुर मात्रा में कि सरकारी गोदामों में गेहूं और चावल स्टोर करने की जगह नहीं है जिसके कारण वे सड़ रहे है। विश्व की सप्लाई चेन इतनी सशक्त है कि किसी भी खाद्यान्न की कमी होने पर कुछ सप्ताह के अंदर वह खाद्यान्न भारत के बंदरगाहों पर आ जाएगा। वह दिन लद गए जब हम गेहूं की कमी होने के कारण अमेरिका की तरफ कटोरा लेकर देखा करते थे।
अमित सिंघल