कुभ एवं अर्द्ध कुम्भ
आज 11 मार्च महा शिवरात्रि
, हरिद्वार में कुंभ के अवसर पर शाही स्नान हुआ|
डॉ शोभा भारद्वाज
पुराणों
में वर्णित पोराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं एवं दानवों ने मिल के समुद्र मंथन
किया था तय था समुद्र मंथन से जो रत्न निकलेंगे दोनों पक्ष मिल कर बाँट लेंगे
मन्दराचल पर्वत को मथनी बनाया भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार धारण कर समुद्र के तल
पर विशाल आकार धारण किया नाग वासुकी से मथनी चलाने के लिए रस्सी का काम लिया गया| नाग वासुकी के मुख की तरफ दानव थे पूँछ की तरफ देवता सभी मिल कर जोर लगाने
लगे मन्दराचल पर्वत कच्छप रूपी नारायण की पीठ पर घूमने लगा |मंथन के परिणाम स्वरूप सबसे पहले हलाहल विष निकला विष के प्रभाव से सभी
जलने लगे विष को देवाधिदेव शिव जी ने ग्रहण किया लेकिन कंठ से नीचे उतरने नहीं
दिया उनका कंठ नीला पड़ गया वह नीलकंठ कहलाये |
मंथन
द्वारा सबसे मूल्यवान रत्न अमृत कलश निकला ‘अमरत्व का वरदान’, देव दानवों में अमृत पाने की होड़ लग गयी आपसे में युद्ध करने लगे यदि अमृत
पात्र पर दानवों जिन्हें बुराई का प्रतीक माना जाता रहा है का अधिकार हो जाता वह
भी अमर हो जाते एवं उनकी टक्कर में देवताओं की शक्ति कम हो जाती | भगवान विष्णू ने मोहनी रूप धारण कर अमृत घट को अपने अधिकार में ले लिया
मोहनी के रूप सौन्दर्य से दानव मोहित हो गये| अब अमृत
घट स्वयं भगवान विष्णू के पास था उन्होंने इसे अपनी सवारी गरुड़ को दिया लेकिन असुर
अमृत पाने के लिए छीना झपटी करने लगे इससे अमृत कलश से कुछ बूंदे छलक कर प्रयागराज
, उज्जैन , नासिक एवं हरिद्वार में गिर गई | इन सभी पवित्र स्थानों पर 12 वर्ष
में कुम्भ हर छह वर्ष बाद अर्द्ध कुम्भ का मेला लगता है इन नगरो में पावन नदियों ,प्रयागराज में गंगा यमुना एवं सरस्वती का संगम है हरिद्वार में गंगा उज्जैन
में क्षिप्रा एवं नासिक में गोदावरी के तट पर कुम्भ स्नान की परम्परा है|
आज भी
समुद्र में अकूत भंडार छिपे हुए है समुद्र के तटों पर कब्जा करने की होड़ लगी रहती
हैं|
दूर दूर
से साधू संत एवं करोड़ों की संख्या में जन समूह एकत्रित हो कर स्नान के साथ पुण्य
लाभ प्राप्त करते हैं |कुम्भ ऐसा आयोजन है जिसमें देश से ही
नहीं विदेशों से भी लोग आकर विशाल जन समूह , विभिन्न
संस्कृतियों भाषा, साधू संतो को देख कर हैरान रह जाते हैं
|कुम्भ एवं अर्द्ध कुम्भ के अवसर पर अखाड़ों के साघू संतो के स्नान का अपना
महत्व है लोग इन संतों को देख कर इनके चरण छू कर आशीर्वाद लेना शुभ मानते हैं | भारत में मान्यता प्राप्त 13 अखाड़े
हैं हर अखाड़े का अपना इतिहास है पहले इन्हें साधू सन्यासियों का जत्था कहा जाता था
मुगल काल में इन्हें अखाड़ा नाम दिया गया | यह शैव , वैष्णव एवं उदासीन पन्थ के सन्यासियों के अखाड़े हैं जो शस्त्र विद्या में
भी महारथ रखते हैं |प्राचीन काल से ही इन अखाड़ों द्वारा
कुम्भ स्नान का विधान रहा है पहले कौन सा अखाड़ा स्नान करेगा इसका नियम है|
शाही स्नान की परम्परा 14 वीं से 15 वीं
शताब्दी के बीच शुरू हुई थी देश में मुगलों के आक्रमणों की शुरुआत थी धर्म एवं
संस्कृति की रक्षा के लिए हिन्दू शासकों ने साधुओं विशेषकर नागाओं से मदद मांगी थी
| सन्यासियों के लिए वैभव का कोई अर्थ नहीं था फिर भी उनके दिए गये उपहारों
का साधू सन्यासी ख़ास अवसरों पर उपयोग करते हैं बड़ी सज्जा के साथ उनकी सवारियां
निकलती हैं सोने चांदी की पालकी रथों हाथी घोड़े पर चढ़ कर नगाड़े ,बड़े –बड़े डमरुओं को बजाते साधू सन्यासियों
की शाही सवारी निकलती है|
पहला
शाही स्नान नागा साधुओं द्वारा किया जाता है उनके बाद अन्य अखाड़ों का स्नान होता ,उनके
स्नान का अपूर्व दृश्य दर्शनीय होता है साधू स्नान के लिए उत्साहित दोनों बाजू
फैला कर भागते पवित्र नदियों में प्रवेश करते जल में बच्चों के समान कल्लोल करते
हुए खेलते हैं ऐसा लगता है जैसे आत्मा परमात्मा में विलीन हो रही है | नदियों का जल ठहर जाता है सूर्य नारायण का रथ भी थमा सा प्रतीत होता है |अद्भुत दृश्य लोग उस दृश्य को आँखों में भर कर जीवन को धन्य मानते हैं उनके
चरणों की धूल लेने के लिए भीड़ आतुर रहती हैं |बड़ी
संख्या में लोग संगम तट पर कल्पवास करते हैं अपना समय स्नान, पूजा ,साधुओं के दर्शन उनके प्रवचन सुनने
सांयकाल आरती दीपदान कर बिताते हैं |
2019 में प्रयागराज
में अर्द्धकुंभ स्नान हुआ था, प्रयागराज में पूर्ण कुंभ 2025 में होगा। प्रयागराज में ज्योतिषियों के अनुसार प्रयागराज में
दूसरे शाही स्नान में 71 वर्ष बाद महोदय योग जैसा अनुपम संयोग बना
था |मोनी अमावस में विशेष योग भी 50 वर्ष बाद बना अनुमान था तीन लाख लोग स्नान करने आयेंगें लेकिन संख्या 5 लाख तक पहुंच गयी, पिछले कुम्भ स्नानों के रिकार्ड टूट गये | कुछ विचारक इसे हिंदुत्व से जोड़ते हैं हिदू विचारधारा सदैव से बिश्व
कुटुम्बकम एवं सर्वे भवन्तु सुखिना एवं विश्वशांति में विश्वास रखती है |
प्रयाग
राज में कुम्भ के अवसर पर साधू सन्यासी ने घोषणा की वह देहदान की नई परम्परा की
शुरुआत करेंगे उनकी देह मेडिकल स्टूडेंट की पढ़ाई में सहायक होगी | वह तो सन्यास लेने से पहले ही अपना पिंडदान कर चुके हैं |प्रयागराज में आयोजित कुम्भ को यूनेस्को ने विश्व की सांस्कृतिक धरोहर में
स्थान दिया
कुम्भ एवं या अर्द्ध कुम्भपर्व
मेरे बचपन से जुड़ा है| प्रयागराज में मेरा बचपन बीता अर्द्ध कुम्भ का अवसर
याद है हमारा घर जी टी रोड पर था | जनवरी महीने की शुरुआत से
हीं साघू संत संगम के लिए गुजरते थे कुछ पैदल कुछ सवारियों पर अद्भुत नजारा देखने
को मिलता उनके पीछे उनके चरण छूने की होड़ में लोग मेरी दादी जी पानी का घड़ा एवं
गुड़ के साथ उनका स्वागत करने के लिए आतुर रहती है उन्होंने बताया एक बार एक सन्यासी
पैदल जा रहे थे उनके पीछे उनकी सेवा के लिए आतुर भीड़ वह मेरी दादी जी के पास ठहरे
उन्होंने अंजुली मेरी दादी जी की तरफ पसार दी जल पिया और चले गये मेरी दादी जी
गदगद होकर किस्सा सुनाती थीं परन्तु उन्हें अफ़सोस था केवल पानी के बदले वह उनसे क्या
– क्या मांग सकती थीं परन्तु नंगे पाँव सन्यासी की भव्यता के सामने उनकी जुबान बंद
हो गयी |