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हिंदी: सिर्फ मेरी नहीं

10 अगस्त 2015

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featured imageमेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहता खुद में ही सीमित रहता सबसे मैं न कहता सबसे पहले जान लो मैंने खुद से ही कहा है तौल लूँ क्या हिंदी का ह्रदय में प्रतिमान रहा है पाया है स्वर अपना मैंने इसी वेग में बहता मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहता तुम भी जानो जब अंतर के भाव उमड़ हैं आते नैनों का ये नीर भी तुम इस भाषा में ही बहाते दूर देश में रहकर भी भाषा का भाष है रहता मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहता अंग्रेजी अनिवार्य हुई है समझो इसे तपस्या पर सोचो कब आई तुमको हिंदी में समस्या है कंचन निज भाष मन विकट तपन को सहता मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहता विश्व तुम्हारा हितग्राही है चलो क़दम मिलाकर किन्तु भाष मिल जाएँ तो रख दो विश्व हिलाकर पहल मेरी पहचान हमारी खुद से फिर हूँ कहता मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहता (मेरी इस कविता का यह १० वां हिंदी दिवस है, संलग्न जेपेग में कैलीग्राफी भी देखें )

रीतेश खरे की अन्य किताबें

कृष्ण कुमार राय

कृष्ण कुमार राय

बहुत सही महोदय.

26 जनवरी 2016

हरेन्द्र

हरेन्द्र

वाह!क्या खूब है।हिंदी के लिए लिखते रहिए।

13 जनवरी 2016

12 जनवरी 2016

jay

jay

बहुत अच्छा

11 जनवरी 2016

ken

ken

Very good poem! I prefer nuktaa ,shirorekha ,anusvar ,chandrabindu, long U,short i and dandaa/full stop free translatable and transliteratable global Hindi. This type of Hindi is spell checker free , easy to teach ,learn read ,understand and transliterate. Don't this type of Global Hindi maintain all needed sounds in speech? Here is your poem in Global Hindi. मेरी होती सीर्फ ये भाषा तो मै चुप ही रहता खुद मॅ ही सीमीत रहता सबसे मै न कहता सबसे पहले जान लो मैने खुद से ही कहा है तौल लुन् क्या हीन्दी का ह्रदय मॅ प्रतीमान रहा है पाया है स्वर अपना मैने इसी वेग मॅ बहता मेरी होती सीर्फ ये भाषा तो मै चुप ही रहता तुम भी जानो जब अन्तर के भाव उमड है आते नैनॉ का ये नीर भी तुम इस भाषा मॅ ही बहाते दुर देश मॅ रहकर भी भाषा का भाष है रहता मेरी होती सीर्फ ये भाषा तो मै चुप ही रहता अन्ग्रेजी अनीवार्य हुई है समझो इसे तपस्या पर सोचो कब आई तुमको हीन्दी मॅ समस्या है कन्चन नीज भाष मन वीकट तपन को सहता मेरी होती सीर्फ ये भाषा तो मै चुप ही रहता वीश्व तुम्हारा हीतग्राही है चलो क दम मीलाकर कीन्तु भाष मील जाएॅतो रख दो वीश्व हीलाकर पहल मेरी पहचान हमारी खुद से फीर हुन् कहता मेरी होती सीर्फ ये भाषा तो मै चुप ही रहता (मेरी इस कवीता का यह १०वॉ हीन्दी दीवस है, सन्लग्न जेपेग मॅ कैलीग्राफी भी देखॅ Vowels: अ आ इ ई उ ऊ ऍ ए ऐ ऑ ओ औ अं अः અ આ ઇ ઈ ઉ ઊ ઍ એ ઐ ઑ ઓ ઔ અં અઃ a aa/a: i ii/ee u uu/oo ae e ai aw/o: au an/am ah क ख ग घ च छ ज झ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श स ष ह ळ क्ष ज्ञ ક ખ ગ ઘ ચ છ જ ઝ ટ ઠ ડ ઢ ણ ત થ દ ધ ન પ ફ બ ભ મ ય ર લ વ શ સ ષ હ ળ ક્ષ જ્ઞ

4 दिसम्बर 2015

23 सितम्बर 2015

विक्की सिंह

विक्की सिंह

Dil ko chu gyi. Hindi.parchyie ko chum li जिंदिगी

13 सितम्बर 2015

रीतेश खरे

रीतेश खरे

टेस्टिंग जी, सुरेश जी, भानु प्रताप जी व विनीत जी...आप सभी को सराहना हेतु शत् शत् आभार। हिन्दी पर यह अति लघु प्रयास मित्रों को भा रहा है, मुझे संतोष हुआ।

12 सितम्बर 2015

विनीत गुप्ता

विनीत गुप्ता

बहुत सुंदर

11 सितम्बर 2015

भानु प्रताप बर्णवाल

भानु प्रताप बर्णवाल

अतिसुन्दर महाशय

28 अगस्त 2015

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हिंदी: सिर्फ मेरी नहीं

10 अगस्त 2015
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एक मुक्तक, मुक्तता के पर्व के नाम...

15 अगस्त 2015
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कौन कहता हैआज का दिन ड्रायभीगा है तिरंगालहू शहीद है बहायमेरी रूहमेरी जिंदजय हिंद!!! जय ६९वाँ स्वतंत्रता पर्व, ६८ की हुई आज़ादी

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हिंदी: सिर्फ मेरी नहीं

10 अगस्त 2015
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मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहताखुद में ही सीमित रहता सबसे मैं न कहतासबसे पहले जान लो मैंने खुद से ही कहा हैतौल लूँ क्या हिंदी का ह्रदय में प्रतिमान रहा हैपाया है स्वर अपना मैंने इसी वेग में बहतामेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहतातुम भी जानो जब अंतर के भाव उमड़ हैं आतेनैनों का ये नीर

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हिंदी: सिर्फ मेरी नहीं

10 अगस्त 2015
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मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहताखुद में ही सीमित रहता सबसे मैं न कहतासबसे पहले जान लो मैंने खुद से ही कहा हैतौल लूँ क्या हिंदी का ह्रदय में प्रतिमान रहा हैपाया है स्वर अपना मैंने इसी वेग में बहतामेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहतातुम भी जानो जब अंतर के भाव उमड़ हैं आतेनैनों का ये नीर

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20 अक्टूबर 2015
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मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहताखुद में ही सीमित रहता सबसे मैं न कहतासबसे पहले जान लो मैंने खुद से ही कहा हैतौल लूँ क्या हिंदी का ह्रदय में प्रतिमान रहा हैपाया है स्वर अपना मैंने इसी वेग में बहतामेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहतातुम भी जानो जब अंतर के भाव उमड़ हैं आतेनैनों का ये नीर

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मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहताखुद में ही सीमित रहता सबसे मैं न कहतासबसे पहले जान लो मैंने खुद से ही कहा हैतौल लूँ क्या हिंदी का ह्रदय में प्रतिमान रहा हैपाया है स्वर अपना मैंने इसी वेग में बहतामेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहतातुम भी जानो जब अंतर के भाव उमड़ हैं आतेनैनों का ये नीर

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10 अगस्त 2015
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3 नवम्बर 2015
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माँ का यक़ीन

24 मई 2016
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ख़ुश हो जाती है मेरी माँजब उसको wish करता हूँ happy mother's dayक्योंकि भागती हुई ज़िंदगी की दौड़ मेंबेमंज़िल सी किसी रेस की होड़ मेंउसके बच्चे को फ़ुर्सत कहाँ के पूछ ले कैसी हो माँकमाल की बात है कि वो बखूब समझती है येउसे शिकवा भी नहीं बिछे हुए फासलों सेभले ही उड़ गया वो दूर अपने घोंसले सेभूला तो न होगा वो

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