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कामचोर

26 अगस्त 2015

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कामचोर बिना कपड़े उतारे, बिना साँस फूले-हाँफे, बिना पसीना बहाए, बिना रात-दिन मेहनत किए दूसरों की गाढ़ी मेहनत के फल को 'येन केन प्रकारेण' आत्मसात् करके तथा अपना बताकर एक दिन में चमत्कार करके दिखाते हैं, मगर कामवीर कपड़े उतारकर फूली हुई साँस के साथ हाँफते हुए पसीना बहाकर रात-दिन अनवरत मेहनत करते हैं और तब जाकर कई महीनों या सालों में वही चमत्कार करके दिखाते हैं। यह दुनिया बड़ी विचित्र है जो चमत्कार को नमस्कार करने में विश्वास रखती है। इसीलिए कामचोर की सर्वत्र पूजा होती है और कामवीर को हेय दृष्टि से देखा जाता है। यह कहाँ का इन्साफ़ है? कपड़े उतारकर मेहनत करने से शर्माने वाले कामचोर की सर्वत्र जय-जयकार हो और बेशर्मी के साथ कपड़े उतारकर मेहनत करने से बिल्कुल न घबड़ाने वाले कामवीर का सर्वत्र अपमान हो! कामचोर की पहचान ही यही है। कामचोर काम करने से बहुत घबड़ाता है और काम करने से बचने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाता है। कामचोर के पास काम करने का कोई अनुभव या काम करने में कोई विशेष दक्षता नहीं होती, जबकि कामवीर के पास काम करने का एक लम्बा-चौड़ा इतिहास होने के साथ-साथ काम करने में विशेष अनुभव और दक्षता होती है।# कामवीर के पास काम करने का विशेष अनुभव और दक्षता होने के कारण कामवीर के साथ काम करने वाले सहकर्मियों को विशेष आनन्द की अनुभूति होती है, क्योंकि अपनी विशेष योग्यता और काम-कौशल के कारण कामवीर अपने सहकर्मियों का पथ-प्रदर्शन करते रहते हैं। कामचोर के साथ काम करने वाले सहकर्मी घबड़ाकर जैसे-तैसे शीघ्रतापूर्वक काम तमाम करना ही श्रेयस्कर समझते हैं। कामचोर हमेशा से कामवीरों से जलते आए हैं, क्योंकि वे इस सत्य के तथ्य से भली-भाँति अवगत होते हैं कि कामवीर अपनी कामवीरता के कारण नित्य काम करने का आनन्द लूट रहे हैं। फिर भी कपड़ा उतारकर पसीना बहाकर मेहनत करने के डर से कामचोर काम करने से मुँह फेरते रहते हैं। इसीलिए कामचोर कामवीरों को हतोत्साहित करने के लिए कामवीरों को गाली देने के लिए दूसरों को परामर्श देते रहते हैं। यह निन्दनीय है। कामचोरों को यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि हर व्यक्ति काम करना छोड़कर कामचोर बन जाए तो वे कामवीरों के काम को अपना बताकर समाज और संसार में वाहवाही कैसे लूटेंगे? अतः कामचोरों को चाहिए कि वे कामवीरों को हतोत्साहित न करें और उन्हें कामवीर ही रहने दें तथा कामवीरों को भी चाहिए कि वे कामचोरों की बातों में न आकर निरन्तर कर्म-मार्ग पर लगे रहें। काम करने से घबराना कैसा? गीता में स्वयं श्रीकृष्ण ने कर्म-मार्ग पर चलने का उपदेश देते हुए कहा है- 'योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः। सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते।।' अतः काम करने से बिल्कुल नहीं घबड़ाना चाहिए। काम करने में जो परम आनन्द है वह बिना काम किए निठल्ले बैठने में नहीं! कुछ लोग तो काम करने के इतने शौक़ीन होते हैं कि बिना समझे-बूझे हर काम में हाथ डाल देते हैं। यह अनुचित है। बिना समझे-बूझे हर काम में कूदने पर बहुत खतरा होता है। कभी-कभी तो जेल जाने तक की नौबत आ सकती है। इसलिए अच्छी तरह से समझ-बूझकर ही काम करने के लिए मैदान में कूदें। सबसे मज़ेदार बात तो यह है कि इस लेख के रचनाकार को ठेके का काम, अस्थाई काम, अनुबन्ध पर काम, पार्ट टाइम काम इत्यादि बिल्कुल पसन्द न होने के कारण कुछ लोग कामचोर समझते हैं और यह बात निःसंदेह हास्यास्पद है!
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चाणक्यगीरी

10 अगस्त 2015
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कालिदास और विद्योत्तमा के विवाह की कहानी से कौन परिचित नहीं है? विद्योत्तमा द्वारा राजमहल से निकाले जाने के बाद की कहानी सिर्फ़ कालिदास के इर्द-गिर्द ही घूमती है, कहीं पर भी साहित्य की प्रकाण्ड विद्वान विद्योत्तमा का ज़िक्र नहीं है। इस प्रकार इतिहासकारों ने विद्योत्तमा के साथ बहुत अन्याय किया। यह कमी

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विमुखता का विकल्प

16 अगस्त 2015
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हमने अपने विशिष्ट शोध में यह पाया है कि आजकल की युवा पीढ़ी भक्ति-मार्ग से निरन्तर विमुख होती जा रही है और इसका कारण है उनका अँग्रेज़ी माध्यम से पढ़ा-लिखा होना। अँग्रेज़ी माध्यम से पढ़ाई करने के कारण वे हिन्दी के भक्ति गीत गाने में अपने आपको असहज महसूस करते हैं। अतः आज की युवा पीढ़ी को भक्ति मार्ग पर चलने

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फटकार

17 अगस्त 2015
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अन्तर्जाल में भ्रमण करते वक्त 'और वह रोती रही...' नामक एक लघुकथा टकरा गई तो हमें विवश होकर उस पर अपनी प्रतिकूल टिप्पणी लगानी पड़ी। हमारी प्रतिकूल टिप्पणी देखकर लेखक महोदय भड़ककर हमसे उलझ गए और उल्टा-सीधा बकने हुए कहने लगे कि हमारे पास भेजा नहीं है। वैसे उन्हें इतना क्रोधित होने की कोई ज़रूरत नहीं थी, क

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चाणक्यगीरी

18 अगस्त 2015
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एक दिन मधुबाला के भेष में मौर्य देश में रह रही अजूबी ने चाणक्य से पूछा- 'मौर्य देश में संदेश भेजने के लिए कबूतरों की कोई कमी नहीं। मगर इन कबूतरों का दबड़ा है कहाँ? मुझे तो आज तक कहीं दिखा नहीं। मौर्य देश के कबूतर एलियन की तरह संदेश लेकर आते हैं और एलियन की तरह गायब हो जाते हैं!'चाणक्य ने मुस्कुराते ह

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कामचोर

26 अगस्त 2015
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विचार-टिप्पण

27 अगस्त 2015
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'फ़िल्मी ज्ञान' श्रंखला में लिखा गया यह लेख पूर्णतः 'देववाणी मुक्त' नहीं है, क्योंकि इसमें हमने संस्कृत के शब्दों का प्रयोग जमकर किया है। कहानी-कविता-लेख और हास्य-व्यंग्य इत्यादि कौन नहीं लिखना चाहता? किसी रचना को पढ़ने के बाद प्रत्येक आम व्यक्ति यही सीना ठोंककर यही कहता है कि 'बस, इतनी सी साधारण रचन

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रक्षाबन्धन पर दो उपयोगी टिप्स

29 अगस्त 2015
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'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' लिखे गए इस ज्ञानवर्धक महालेख 'रक्षाबन्धन पर दो उपयोगी टिप्स' को पढ़ने के बाद आपके मुँह से बरबस ही निकल जाएगा- 'वाह! रक्षाबन्धन पर झ्तना उपयोगी और ज्ञानवर्धक लेख आज तक न प्रकाशित हुआ है, न प्रकाशित होगा!!'उपयोगी टिप्स 1. यदि आप प्रेम के मैदान में कूदकर अपनी प्रेमिका को रोज़

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जन्मदिन

4 सितम्बर 2015
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प्रायः लेखकों और कवियों के मित्रों की बड़ी चाँदी रहती है। अपनी गर्लफ्रेण्ड को प्रभावित करने के लिए उसके जन्मदिन से पहले अपने कवि मित्रों का दामन थामकर हाथ-पैर जोड़ने लगते हैं- 'गर्लफ्रेण्ड का जन्मदिन आ रहा है। जन्मदिन पर एक अच्छा सा गीत लिखकर दो, यार। नहीं तो मेरी नाक कट जाएगी। मेरी नाक कटने से अब तुम

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