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समय के साथ

26 अगस्त 2015

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समय के साथ चलते – चलते अब थकने लगा हूँ अथक प्रयासों के बावजूद अक्सर कहीं खो जाता हूँ इस भ्रम में कि जाग रहा हूँ न जाने कब सो जाता हूँ संबंधों की आंच में अब पकने लगा हूँ समय के साथ चलते – चलते अब थकने लगा हूँ ऐसा नहीं है कि निराश हो गया हूँ भविष्य को ले कर उदास हो गया हूँ तपती दुपहरी में भी खूब चला हूँ पूस की रातों में ठिठुरा हूँ, गला हूँ चेहरों को पढ़ते – पढ़ते अब अटकने लगा हूँ समय के साथ चलते – चलते अब थकने लगा हूँ स्पर्धा की तपन महसूस करता हूँ चलन से विचलन महसूस करता हूँ एक समय था जब जुड़ाव था, विस्तार था रिश्ते सारे नगद थे, ना कोई उधार था अपने आप में अब सिमटने लगा हूँ समय के साथ चलते – चलते अब थकने लगा हूँ ओस में भीगने का मन करता है रेत पर चलने का मन करता है दौड़ना चाहता हूँ खेत की मेड़ों पर चढ़ना चाहता हूँ आम के पेड़ों पर शहर में अपने आप से अब कटने लगा हूँ समय के साथ चलते – चलते अब थकने लगा हूँ….

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