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शिक्षा के लिए मेरा संघर्ष

28 अगस्त 2015

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featured image(संस्मरण) मूल अंग्रेज़ी लेखक ब्रूकर टी. वाशिंगटन एक दिन जब मैं कोयले की खान में काम कर रहा था, मुझे खान में ही काम करने वाले दो कर्मी हब्शियों के लिए वर्जीनिया स्थित किसी बढ़िया स्कूल के बारे में बात करते सुनाई दिए I ये पहला मौक़ा था जब मैंने हब्शियों के लिए अपने क़स्बे में स्थित छोटे से स्कूल से काफ़ी बढ़िया स्कूल के बारे में सुना था I वे जिस तरह स्कूल का गुणगान कर रहे थे, मुझे लग रहा था कि वो धरती पर कोई महानतम जगह होगी I वो लोग वर्जीनिया स्थित हैम्टन नार्मल एंड एग्रीकल्चरल इंस्टिट्यूट की बात कर रहे थे जो उस वक़्त मुझे स्वर्ग से भी ज़्यादा आकर्षक लगा I मैंने तुरन्त उस स्कूल में दाखिला लेने का निश्चय कर लिया, हालाँकि मुझे कुछ भी नहीं मालूम था कि वो है कहाँ, कितनी दूर है या मैं वहाँ कैसे पहुँचूंगा I मेरे भीतर लगातार बस एक ही लौ लगी थी कि मैं किसी तरह हैम्टन पहुंचूँ I मुझे रात-ओ-दिन यही लगन लगी थी I 1872 के पतझड़ में, मैंने वहां जाने की एक कोशिश करने का इरादा पक्का कर लिया I मेरी माँ के मन में डर बैठ गया कि मैं कोई बेनतीजा काम करने जा रहा था I किसी तरह माँ ने अधूरे मन से रवाना होने की इजाज़त दे दी I कपड़े-लत्ते और यात्रा भाड़े के लिए मेरे पास बहुत कम पैसे थे I जितना बन पड़ा, मेरे भाई जॉन ने मेरी मदद की लेकिन वो पर्याप्त नहीं था I अंततः वो महान दिन आ ही गया और मैं हैम्पटन के लिए रवाना हुआ I मेरे पास एक छोटा सा साधारण थैला था जिसमे मेरे कुछ कपड़े-लत्ते थे I मेरी माँ की तबीयत ज्यादा अच्छी नहीं थी, और उन दिनों वो काफ़ी कमज़ोर थीं I कम ही उम्मीद थी कि लौट कर फिर उनसे दोबारा मिल पाउँगा, इस तरह मेरी विदाई काफ़ी ग़मगीन थी I हालाँकि, चलते वक़्त माँ ने बड़ी बहादुरी से काम लिया I मालडेन से हैम्टन की दूरी क़रीब 500 मील है I कभी पैदल चलकर, कभी माल-वाहनों और मोटरों में लिफ्ट मांगकर, किसी तरह कई दिनों के बाद मैं वर्जीनिया के रिचमंड शहर पहुँच गया जहाँ से हैम्टन 82 मील दूर था I देर रात जब वहां पहुँचा, मैं बहुत थका था, मुझे भूख लगी थी और मेरे कपड़े वगैरह बहुत गंदे थे I मेरी सबसे बड़ी मुश्किल ये थी कि मैं कभी किसी बड़े शहर नहीं गया था I जब मैं रिचमंड पहुँचा, मेरा सारा पैसा ख़त्म हो चुका था I मेरी पहचान का वहां एक भी व्यक्ति नहीं था, इस वजह से शहर के रास्तों से अनजान मुझे ये समझ नहीं आ रहा था कि मैं जाऊं कहाँ I मैंने कई जगह ठहरने के लिए बात की लेकिन उन सबको पैसा चाहिए था, और पैसा ही मेरे पास था नहीं I कुछ और बेहतर नहीं सूझा तो मैं गलियों में घूमता रहा I मैं गलियों में आधी रात के बाद तक घूमता रहा होऊंगा I अंततः मैं इतनी बुरी तरह थक गया कि मुझसे ज़रा सा भी चला नहीं जा रहा था I मैं थका था, भूखा था, मेरे सब हाल हो गए थे...बस हौसला नहीं टूटा था I थक कर बुरी तरह चूर होने तक, मैंने देखा कि सड़क के किनारे फूटपाथ और उससे लगी काफ़ी ऊंची चहारदीवारी है I कुछ देर में जब मुझे ये यकीन हो गया कि अब कोई राहगीर मुझे नहीं देख पाएगा, मैं चहारदीवारी से सटकर रात भर के लिए अपने थैले की तकिया बनाकर ज़मीन पर लेट गया I तक़रीबन सारी रात मैं अपने सिरहाने लोगों के पैरों की आहट सुनता रहा I दूसरे दिन सुबह मुझे थोड़ी ताज़गी महसूस हुई लेकिन मुझे ज़ोर की भूख लगी थी I जब थोड़ा-थोड़ा उजाला हुआ, मैंने देखा कि नज़दीक ही एक बड़े से पानी के जहाज़ से कच्चा लोहा उतारा जा रहा था I मैं झट से उस जहाज़ के पास गया और कप्तान से माल उतारने का काम माँगा ताकि खाने-पीने के लिए कुछ पैसा मिल जाए I गोरा कप्तान थोड़ा भला आदमी था, सो मान गया I नाश्ते-पानी के लिए पैसा कमाने की ख़ातिर मैं काफ़ी समय तक उस जहाज़ पर काम करता रहा I जहाँ तक मुझे याद है मैंने ज़िन्दगी में उससे बढ़िया नाश्ता-पानी फिर कभी नहीं किया I मेरे काम से कप्तान इतना खुश था कि प्रतिदिन थोड़े पैसे पर उसने मुझसे काम जारी रखने के लिए कह दिया I मैं खुश हो गया I मैं कई दिनों तक उस जहाज़ पर काम करता रहा I मज़दूरी करके मिले थोड़े से पैसों से खाने-पीने के बाद हैम्टन जाने के लिए मेरे पास ज़्यादा कुछ बचता नहीं था I हर जुगत लगाकर पैसा बचाने की ख़ातिर, मैं फूटपाथ पर ही सोता रहा I जब मैंने हैम्टन जाने के लिए पर्याप्त पैसा बचा लिया, मैंने कप्तान को उसकी कृपा के लिए धन्यवाद दिया और वहां से फिर रवाना हुआ I मैं आराम से हैम्टन पहुँच गया और मेरे पास पढ़ाई शुरू करने के लिए पचास सेंट्स बच भी गए I स्कूल की तिमंज़िली पक्की इमारत को देख कर लगा मानो रास्ते की सारी मुश्किलों के लिए मुझे ईनाम मिल गया हो ! स्कूल की एक झलक ने मुझे मानो एक नई ज़िन्दगी दे दी थी I हैम्टन स्कूल में क़दम रखते ही, दाख़िले की ख़ातिर मैं सीधे प्रधानाध्यापिका के पास पहुँच गया I कई दिनों से मुफ़ीद नहाना-खाना, कपड़े वगैरह न मिल पाने के कारण, मैं वास्तव में उन पर कोई असर नहीं जमा सका I मुझे लग रहा था कि एक विद्यार्थी के रूप में मेरा दाख़िला लेने के लिहाज़ से उनके मन में कुछ शक़-शुबहा थे I कुछ देर तक उन्होंने मुझे दाखिले के लिए इन्कार नहीं किया और ना तो ‘हाँ’ ही की I मैं अपनी क़ाबिलियत दिखाने और उन्हें प्रभावित करने के लिए उन्हीं के साथ-साथ लगा रहा I इसी बीच उन्हें अन्य विद्यार्थियों का दाखिला लेते देख मेरी बेचैनी और बढ़ गई I मैं तहेदिल तक ये सोच रहा था कि काबिलियत दिखाने का बस एक मौका मिल भर जाए, मैं उन विद्यार्थियों से किसी मायने में कम नहीं था I जब कुछ घंटे बीत गए, प्रधानाध्यापिका ने मुझसे कहा, “बगल वाला संगीत-कक्ष गन्दा पड़ा है, झाड़ू लेकर साफ़ कर दो I” मुझे लगा कि मौक़ा मिल गया I इससे पहले मैंने किसी फ़रमान की तामील इतने मन से नहीं की थी I मैंने संगीत-कक्ष तीन बार साफ़ किया, फिर झाड़न लेकर सब खिड़की-दरवाज़े, कुर्सी, मेजें, डेस्क वगैरह चार-चार बार साफ़ कीं I इसके अलावा हर फर्नीचर, अलमारी और हर कोना ढंग से साफ़ किया I मैं समझता था कि मेरा दाखिला होना न होना इसी बात पर टिका था कि मैं कमरे की बढ़िया से बढ़िया सफ़ाई करके प्रधानाध्यापिका को कितना प्रभावित करता हूँ I जब सफ़ाई का काम पूरा हो गया, मैंने जाकर उन्हें बताया I वह उत्तरी राज्य अमेरिका की रहने वाली महिला थी जिसे ये बखूबी पता था कि धूल कहाँ-कहाँ हो सकती है I वह कक्ष में गई, फ़र्श और अलमारियों का निरीक्षण किया; फिर खिड़की-दरवाज़े, कुर्सी-मेजों पर अपने रूमाल से घिस कर देखा I जब उन्हें खिड़की-दरवाजों और लकड़ी के फर्नीचर पर कहीं कोई रत्ती-भर भी धूल नहीं मिली, तो उन्होंने धीमे से टिप्पड़ी की, “मेरा ख्याल है इस इंस्टिट्यूट में तुम्हारा दाखिला हो जाएगा I” मैं दुनिया का सबसे खुशनसीब इन्सानों में से एक था I उस कक्ष में झाड़ू लगाना ही मेरी प्रवेश-परीक्षा थी I तब से लेकर आज तक मैंने तमाम इम्तहान पास किये, लेकिन ये हमेशा महसूस किया कि वो ज़िन्दगी के तमाम इम्तहानों में से एक था जिसे मैंने कभी पास किया था... मूल लेखक: ब्रूकर टी. वाशिंगटन
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पुष्प की अभिलाषा

7 अगस्त 2015
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साहित्यकार माखनलाल चतुर्वेदी, हिंदी साहित्य के श्रेष्ठतम रचनाकारों में से एक हैं. आपका जन्म ४ अप्रैल १८८९ को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले में बाबई नामक स्थान पर हुआ था. आप भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी

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भाषा एवं साहित्य (०१)

7 अगस्त 2015
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भारतीय संविधान में २४ भाषाओँ को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है. इनमें कुछ प्रमुख भाषाएँ हैं-संस्कृत, हिन्दी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, बांग्ला, मराठी, पंजाबी, गुजराती और असमिया.आइये जानते हैं संस्कृत भाषा के बारे में कुछ प्रमुख तथ्य.►'संस्कृत' विश्व की प्रथम भाषा मानी जाती है I►'संस्कृत' भारत की एक

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राष्ट्रध्वजा

12 अगस्त 2015
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नगाधिराज श्रृंग पर खड़ी हुई,समुद्र की तरंग पर अड़ी हुई ,स्वदेश में जगह-जगह गड़ी हुई, अटल ध्वजा हरी, सफ़ेद केशरी !न साम, दाम, के समक्ष यह रुकी,न दंड-भेद के समक्ष यह झुकी,सगर्व आज शत्रु-शीश पर ठुकी ,निडर ध्वजाहरी, सफ़ेद केशरी !चलो उसे सलाम आज सब करें,चलो उसे प्रणाम आज सब करें,अजर सदा इसे लिये हुए जियें,अमर

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भारत की सोंधी-मिट्टी

14 अगस्त 2015
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भारत की सोंधी-मिट्टी, हम सब का श्रृंगार है,हम सब देशवासियों का यह सुन्दर संसार है I नहीं चाहिए हीरे-मोती, और ना ही चांदी-सोना,नहीं विदेशी शैया पर हमें अपनी नींदें खोना,देश हमारा सिंधु स्वर्ण का, यही सम्पदा अपार है I देश की खातिर जीना हैदेश की खातिर मरना है क्या खोया क्या पाया छोडो,हमें वतन से प्यार

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मुक्तक

19 अगस्त 2015
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जन्मा जिसने वह कोख धन्य ,पाला जिसने वह माँ अनन्य,जो मातृभूमि के लिए जिया- उसकी पावन पद-रज प्रणम्य Iदेश की माटी से जी भर प्यार हो,कर सके हम गर्व वह किरदार हो,चाहती है वीर भोग्या मात्र-भू-देश का पुरुषार्थ पानीदार हो Iअपने हित जीना मात्र कर्म, औरो हित जीना है सुकर्म, होता है सब धर्मो से ऊपर, धरती पर अप

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क्या है पांडुलिपि ?

27 अगस्त 2015
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क्या है पांडुलिपि ?पांडुलिपि से तात्पर्य उस प्राचीन दस्तावेज़ से है, जो हस्तलिखित हो तथा जीवन से विशिष्ट रूप से सम्बंधित हो I पांडुलिपि एक ऐसा हस्तलिखित दस्तावेज़ है, जिसका वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व हो अथवा जो कम से कम 75 वर्ष प्राचीन हो I पांडुलिपियाँ मात्र ऐतिहासिक दस्ताव

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शिक्षा के लिए मेरा संघर्ष

28 अगस्त 2015
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(संस्मरण)मूल अंग्रेज़ी लेखक ब्रूकर टी. वाशिंगटनएक दिन जब मैं कोयले की खान में काम कर रहा था, मुझे खान में ही काम करने वाले दो कर्मी हब्शियों के लिए वर्जीनिया स्थित किसी बढ़िया स्कूल के बारे में बात करते सुनाई दिए I ये पहला मौक़ा था जब मैंने हब्शियों के लिए अपने क़स्बे में स्थित छोटे से स्कूल से काफ़ी बढ़

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'हिन्दी' हिन्द की संवादमानस है

15 सितम्बर 2015
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मैं हिन्दी में ख़ुदा से दुआ करता हूँ दुनिया को हिन्दी से मोहब्बत हो जाए हिंदी में प्यार दें, हिंदी से प्यार लें,जहाँ' के लोगों को इस तरह हिन्दी से प्यार हो जाए,कि जो प्यार हिन्दी, हिन्दुस्तानियों, हिंदी साहित्य के ह्रदय में है गहरा भरा वह विश्व-मानवता की जुबां' का राग, दिलों का तरन्नुम बन जाए ।एक महा

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सुबह की धूप

15 सितम्बर 2015
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प्रेम करने के लिए गढ़ने को अपने ही वायदे और पैमाने ताकि बिना किसी के सपनों को लांघे अपने सपनों को सजाने की जगह मिल जाए । -डॉ. वीणा सिन्हा (एम्.डी.)ई-१०४/५, शिवाजी नगर, भोपाल ।

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फिर भी जीना लड़की

15 सितम्बर 2015
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बच भी जाओगी केरोसिन में छुआई जातीतीली की बदबूदार लपट से पर कैसे बच पाओगी ।पिता के माथे पर गहरा आई लकीरों के फंदे से या तुम्हें पैदा करने के अपराधबोध से ग्रस्त माँ की आँखों के अंधे कुएं से बिटिया,अब तो माँ की कोख भी महफूज़ नहीं रही तुम्हारे लिए जहाँ तैर लेती थी तुम नौ माह निर्द्वंद्व तुम्हें तलाशते गं

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कोई बेचैन है

15 सितम्बर 2015
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हम कोई बना सकते नहीं ज़मीन का टुकड़ा चमका कभी सकते नहीं मुकद्दर किसी का । सुन्दर फूलों और कलियों को जिसने है बनाया कहीं ओझल रहता है वह दुनिया बनाने वाला ।कोई बेचैन है समंदर सा ज़िन्दगी की दौड़ में दे रहे हैं इम्तिहान सरासर अंधेरों के मोड़ में ।बने हैं मिट्टी के घरोंदे बारिशों के शहर में पलट रहे हैं पन्ने

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साग़र

15 सितम्बर 2015
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दिन भर की थकन मिटाने के लिए साग़र जब लेता है अंगड़ाई शब् के अँधेरे में तारों की छाँव में लहरें फैलाती किनारों तक अपना दामन किसी को मिलता है उल्फ़त का खज़ाना,किसी के हिस्से में आती है ग़म-ए-तन्हाई ।"लोग पारस तलाश करते फिरते हैं,भूल जाते हैं कि पारस तो वे खुद ही होते हैं ।"-जय वर्मा jaiverma777@yahoo.co.uk

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तितलियाँ

10 नवम्बर 2015
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कारवाँ गुज़र गया... पद्म विभूषित हिंदी साहित्यकार, कवि, लेखक और गीतकार गोपालदास सक्सेना 'नीरज' का निधन ।

19 जुलाई 2018
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इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में तुमको लग जाएंगी सदियां इसे भुलाने मेंन पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में अपनी अंतिम सांस तक अपनी कविताओं से हम सब को आत्मविभोर करने वाले कवि गोपालदास नीरज का दिल्ली के एम्स में हुआ निधन । समाचार एजेंसी प

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