तीन बच्चे
नवगांव की सीमा पर एक तालाब है और उसके पास धोबियों की बस्ती। कपडे धोने के काम में तालाब का प्रयोग होता है। तालाब के पास रेल की पटरी है। रेल गाड़ियों की आवाजावी रात दिन होती है। सवारी गाड़ियां दिन में चार और रात को दो आती हैं, बाकी कुछ मालगाड़ियां आती जाती हैं।
गर्मियों के दिन थे। सुबह कुछ धोबी बात कर रहे थे कि नवगांव से पचास किलोमीटर पहले एक रेलगाड़ी पटरी से उतर गई है। बहुत नुकसान हुआ है। जैसे ही यह खबर फैली, लोगों का एक समूह दुर्घटना स्थल पर पहुंच गया। बड़े बूढ़ों के साथ कुछ बच्चे भी साथ हो लिए। बच्चों में आठ वर्ष का चिंटू भी था। बचाव के लिए प्रशासन और पुलिस भी पहुंच गई थी। चिंटू सब देख सुन रहा था कि कैसे रेलगाड़ी पटरी से उतरी और बहुत लोंगों को चोटे लगी। अम्बुलेंस में जख्मियों को अस्पताल ले जाया जा रहा था। दोपहर बाद सब नवगांव वापिस आ गए। चर्चा का विषय रेल दुर्घटना था। चिंटू बड़े ध्यान से सब की बातें सुन रहा था। उसके कान में यह बाद पड़ गई कि रेल पटरी पर बड़े बड़े पत्थर पड़े हुए थे, जिस कारण तेजी से आती रेलगाड़ी पटरी से उतर गई।
अगले दिन तालाब में धोबी कपडे धो रहे थे। कुछ बच्चे तालाब में नहा रहे थे। छोटे बच्चों के पास कुछ काम नहीं था। नहाने के बाद वे अपने मां बाप का हाथ बटाने लगे। कपडे धोने के बाद सूखने के लिए फैला कर रख दिए। कपडे सूखने की इंतज़ार में धोबी पेड़ों के नीचे आराम करने लगे। चिंटू के पास दो बच्चे जो लगभग पांच साल की उम्र के थे, आकर बैठ गए। एक बच्चे का नाम बबलू और दूसरे का नाम बिल्लू था। दोनों ने चिंटू से रेलगाड़ी दुर्घटना के बारे में पूछा। अपने से छोटे बच्चों के लिए वही स्याना था। उसे गर्व हुआ कि आखिर किसी ने तो उससे पूछा तो सही। बड़ों के आगे तो छोटा बच्चा था। वह खड़ा हो कर रेल दुर्घटना के विषय में बताने लगा।
"देखो जब हम लोग वहां पहुंचे तो क्या देखा कि रेलगाड़ी के तीन डिब्बे पटरी से उतर कर नीचे खेतों में गिरे पड़े थे। हमने डिब्बों में से लोगों को निकाला। उनको चोटें लगी हुई थी। सबको अस्पताल लेकर जा रहे थे। लोग रौ रहे थे। कुछ लोग तो लोगों का सामान उठा कर भाग गए।"
बबलू और बिल्लू ने दांतों तले उंगली दबा कर पूछा "पुलिस ने चोरों को पकड़ा नहीं?"
"ये पुलिस वाले बड़े चालू होते है। खुद सामान उठवाया, फिर उनसे ले लेगें। पुलिस के हाथ बड़े लंबे होते हैं।"
छोटे बच्चों बबलू और बिल्लू को कुछ समझ नहीं आ रहा था, वे तो चिंटू की बातें सुनते रहे। उनको यह सुनना था कि गाड़ी कैसे पलटी।
"बेटों, पटरी पर बड़े बड़े पत्थर पड़े थे, रेलगाड़ी तेजी से आई और पत्थर से टकरा कर गिर गई।"
बबलू और बिल्लू ने कहा कि अगर वे भी पटरी पर पत्थर रख दे तो गाड़ी पलट जायेगी। इतना सुनते ही चिंटू ने कहा "शाबाश तुम हो तो पिद्दी, पर दिमाग बड़ों का रखते हो। चलो हम भी पटरी पर पत्थर रखते हैं। बड़ा मज़ा आएगा।"
तीनो बच्चे चिंटू, बबलू और बिल्लू तालाब के दूसरी ओर रेल पटरी पर पहुंचे। वहां पहुंच कर सोचने लगे कि रेल पटरी पर क्या रखा जाये। छोटे छोटे पत्थर कंकर के सिया वहां और कुछ नहीं मिला। तीनो सोचने लगे फिर चिंटू ने कहा, हम रेल की पटरी पर ये पत्थर रख देते हैं। तीनो बच्चों ने छोटे छोटे पत्थर और कंकर रेल की पटरी पर रखने शुरू किये और दस मिनट में बहुत सारे पत्थर और कंकर रख दिए और निकट बैठ कर रेल आगमन का इंतज़ार करने लगे। कुछ कबूतर एक वृक्ष पर बैठे थे, कुछ वृक्ष के चबूतरे पर रखा दाना चुग रहे थे। चिंटू ने एक कबूतर पकड़ लिया, उसके पैर सुतली से बांध कर रेल की पटरी से बांध दिया।
"देख बबलू और बिल्लू रेल आएगी तो यह कबूतर भी मर जायेगा। इसके ऊपर से पहिया निकलेगा और फट से कबूतर का चूरमा बन जायेगा।"
चिंटू की बात सुन कर दोनों बबलू और बिल्लू खिलखिला कर हंसने लगे। तभी रेल पटरी से बंधे कबूतर को देख एक बिल्ली उसका शिकार करने आ गयी। इससे पहले बिल्ली कबूतर को दबोचती, चिंटू ने बिल्ली को पकड़ लिया और उसे भी रेल पटरी के साथ बांध दिया। दोनों आमने सामने बंधे हुए थे। एक और कबूतर और ठीक सामने बिल्ली। बिल्ली की ललचाई नज़र कबूतर पर थी। बेबस कबूतर पंजे पर सुतली को ढीली करने के लिए फड़फड़ा रहा था तो दूसरी और बिल्ली भी बंधे पैरों को छुड़ाने के लिए हिलडुल रही थी।
थोड़ी देर बाद दूर से रेलगाड़ी की सीटी की आवाज़ सुनाई दी। चिंटू बोला "बबलू, बिल्लू खड़े हो जाओ। रेलगाड़ी आने वाली है। हम पीछे हट कर तमाशा देखते हैं।"
तीनो बच्चे पीछे हो गए। रेलगाड़ी नज़दीक आ रही थी। तभी कबूतर बंधे पैर छुड़ाने में सफल हो गया और उड़ गया। बिल्ली भी पैरों के बंधन ढीले कर चुकी थी। फुर्ती से वह भी निकल भागी। रेलगाड़ी आई और पटरी पर रखे छोटे छोटे पत्थरों और कंकरों को तितर बितर करते हुए तेज गति से आगे निकल गयी। तीनों बच्चे उधास हो गए कि कबूतर उड़ गया, बिल्ली भी भाग गयी और रेलगाड़ी भी नहीं पलटी।
तीनों अपने घर जाने के लिए चल पड़े। रास्ते में चिंटू ने बबलू और बिल्लू से कहा कि मुझे ऐसा लग रहा है कि लोग झूठ बोल रहे थे कि पत्थर से रेल पलटी। यहां तो कुछ नहीं हुआ। बच्चों को रेल के न पलटने का अफ़सोस उतना नहीं था, जितना कबूतर के उड़ जाने और बिल्ली के भाग जाने पर था।
मनमोहन भाटिया की अन्य किताबें
नाम: मनमोहन भाटिया
जन्म तिथि: 29 मार्च 1958
जन्म स्थान: दिल्ली
शिक्षा: बी. कॉम., ऑनर्स, हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय; एल. एल. बी., कैम्पस लॉ सेन्टर, दिल्ली विश्वविद्यालय
संप्रति: सृष्टी उदयपुर होटल एंड रिजार्टस प्राईवेट लिमिटेड में सीनियर मैनेजर-फाईनेंस एंड अकाउंटस
प्रकाशित रचनायें: हिन्दुस्तान टाईम्स, नवभारत टाईम्स, मेल टुडे और इकॉनमिक्स टाईम्स में सामयिक विषयों पर पत्र
कहानियाँ:
1. सरिता, गृहशोभा, अभिव्यक्ति, स्वर्ग विभा, प्रतिलिपी, जय विजय, अनहद कृति, अरगला, हिन्दी नेस्ट और नवभारत टाईम्स में प्रकाशित
2. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की वेबसाईट hindisamay.com में कहानी संकलन। लिंक: http://www.hindisamay.com/writer/writer_details.aspx?id=1316
3. राजकमल प्रकाशन की डॉ. राजकुमार सम्पादिक पुस्तक "कहानियां रिश्तों की - दादा-दादी नाना-नानी" में कहानी "बडी दादी" प्रकाशित। ISBN: 978-81-267-2541-0
4. बोलती कहानी “बडी दादी” स्वर “अर्चना चावजी” रेडियो प्लेबैक इंडिया पर उपलब्ध। लिंक:
http://radioplaybackindia.blogspot.in/2014/01/badi-dadi-by-manmohan-bhatia.html
5. कहानी “ब्लू टरबन” का तेलुगु अनुवाद। अनुवादक: सोम शंकर कोल्लूरि। लिंक: http://eemaata.com/em/issues/201403/3356.html?allinonepage=1
6. प्रतिलिपी वेबसाईट pratilipi.com में कहानी संकलन। लिंक:
http://www.pratilipi.com/author/4899148398592000
7. गूगल प्ले स्टोर पर कहानियों का संग्रह कथासागर। लिंक: https://play.google.com/store/apps/details?id=com.abhivyaktyapps.hindi.stories
8. प्रतिलिपी वेबसाईट pratilipi.com में इंटरव्यू। लिंक:
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सम्मान एवं पुरस्कार:
1. दिल्ली प्रेस की कहानी 2006 प्रतियोगिता में 'लाईसेंस' कहानी को द्वितीय पुरस्कार
2. अभिव्यक्ति कथा महोत्सव - 2008 में 'शिक्षा' कहानी पुरस्कृत
अभिरूचियाँ: कहानियाँ लिखना शौक है
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