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नन्ही सी अभिलाषा

6 सितम्बर 2015

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नन्ही सी अभिलाषा देखकर मुझे क्यों मुँह मोड़ लेते हो, हाथ तेरा थामती हूँ तो क्यों छोड़ देते हो। मेरी कुंठित व्यथा को सुनो, मैं भी एक इंसान हुँ, पापा जी , मैं भी तो आप ही की संतान हुँ।। मैं तो कभी भी नई खिलौने नहीं माँगती, मेला में जाने की जिद भी नहीं बांधती। घर की जुठा खा कर भी झाडू-पोछा कर लेती हूँ, आत्मचित्कार,माँ की दुत्कार खामोशी से सह लेती हूँ।। इस नादान से विह्वल मन की बस इतनी ही अभिलाषा है। ह्रदय से भर के गले लगा लो छोटी सी दिल की आशा है।। बेटा जो भी कर सकता है, मैं भी वैसा काम करूंगी। कसम खुदा की, जग में एक दिन रौशन आप का नाम करूँगी।। इस समाज की घृणित प्रथा को देखकर मैं हैरान हूँ पापा जी, मैं भी तो आप ही की संतान हुँ।। गोपाल मिश्रा
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रचनाएँ
aacharyagopalmishra
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अपने दिल के भावनाओं को शब्द के रूप में उतारने का छोटा सा प्रयत्न किया हूँ शायद आप लोग के दिल को छू सकूँ ।
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हुस्न का गुमान

11 मई 2015
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मेरी दूसरी कविता

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हुस्न का गुमान

12 मई 2015
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इस कविता के माध्यम से कवि अपने प्रेमिका के दोहरे स्वरूप का वर्णन किया है

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नन्ही सी अभिलाषा

6 सितम्बर 2015
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नन्ही सी अभिलाषादेखकर मुझे क्यों मुँह मोड़ लेते हो,हाथ तेरा थामती हूँ तो क्यों छोड़ देते हो। मेरी कुंठित व्यथा को सुनो, मैं भी एक इंसान हुँ, पापा जी , मैं भी तो आप ही की संतान हुँ।।मैं तो कभी भी नई खिलौने नहीं माँगती, मेला में जाने की जिद भी नहीं बांधती। घर की जुठा खा कर भी झाडू-पोछा कर लेती हूँ, आ

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हुस्न का गुमान

6 सितम्बर 2015
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हुस्न का गुमानघमण्ड है अमीरी का या हुस्न का गुमान है, शायद मेरी दिल्लगी तुम पर मेरा एहसान है। झूमता हूँ मैं नहीं मयखाने की तासीर से, अब तो मेरी आँखों में बस इश्क का परवान है।।इक तरफ से चमचमाती है तु हीरे नूर की, इक तरफ से गर्त सी है आयनाए हुर की। है मेरा उम्मीद छोटा, पर बृहद अरमान है घमण्ड है अमीरी

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मूक की पुकार

6 सितम्बर 2015
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मूक की पुकारइसमें मेरी क्या गलती थी, जो तेरे कोख में आई थी। क्यंु मार दिया मुझको निर्मम अभी दूनिया देख ना पाई थी।।मेरे अपने ऐसे होंगे, सपनों में भी नहीं सोची थी। बेटी नहीं बनना है मुझको, भगवान को भी मैं रोकी थी।। पापा भी तो बैठे थे वहां, वहीं बैठी बुढी ताई थी। क्यंु मार दिया मुझको निर्मम,अभ

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