shabd-logo

राजपूतों की वंशावली व इतिहास

17 सितम्बर 2015

20063 बार देखा गया 20063
"दस रवि से दस चन्द्र से, बारह ऋषिज प्रमाण, चार हुतासन सों भये , कुल छत्तिस वंश प्रमाण भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण." अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय, दस चन्द्र वंशीय, बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है, बाद में भौमवंश. , नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग- अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है। सूर्य वंश की दस शाखायें:- १. कछवाह २. राठौड ३. बडगूजर ४. सिकरवार ५. सिसोदिया ६.गहलोत ७.गौर ८.गहलबार ९.रेकबार १०.जुनने चन्द्र वंश की दस शाखायें:- १.जादौन २.भाटी ३.तोमर ४.चन्देल ५.छोंकर ६.होंड ७.पुण्डीर ८.कटैरिया ९.स्वांगवंश १०.वैस अग्निवंश की चार शाखायें:- १.चौहान २.सोलंकी ३.परिहार ४.पमार. ऋषिवंश की बारह शाखायें:- १.सेंगर २.दीक्षित ३.दायमा ४.गौतम ५.अनवार (राजा जनक के वंशज) ६.विसेन ७.करछुल ८.हय ९.अबकू तबकू १०.कठोक्स ११.द्लेला १२.बुन्देला चौहान वंश की चौबीस शाखायें:- १.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल ८.भदौरिया ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा १७.रूसिया १८.चांदा १९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर. क्षत्रिय जातियो की सूची (क्रमांक / नाम / गोत्र /वंश / स्थान और जिला) १. सूर्यवंशी / भारद्वाज /सूर्य / बुलन्दशहर / आगरा , मेरठ, अलीगढ २. गहलोत / बैजवापेण/ सूर्य / मथुरा, कानपुर, और पूर्वी जिले ३. सिसोदिया / बैजवापेड / सूर्य / महाराणा उदयपुर स्टेट ४. कछवाहा / मानव /सूर्य / महाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य ५. राठोड / कश्यप / सूर्य / जोधपुर, बीकानेर और पूर्व और मालवा ६. सोमवंशी /अत्रय / चन्द /प्रतापगढ और जिला हरदोई ७. यदुवंशी / अत्रय / चन्द राजकरौली, राजपूताने में ८. भाटी / अत्रय / जादौन महारlजा जैसलमेर. , राजपूताना ९. जाडेचा / अत्रय / यदुवंशी महाराजा कच्छ, भुज १०. जादवा /अत्रय / जादौन शाखा अवा. कोटला , ऊमरगढ, आगरा ११. तोमर / व्याघ्र /चन्द पाटन के राव, तंवरघार, जिला ग्वालियर १२. कटियार / व्याघ्र / तोंवर धरमपुर का राज और हरदोई १३. पालीवार /व्याघ्र / तोंवर गोरखपुर/ १४. परिहार / कौशल्य /अग्नि / इतिहास में जानना चाहिये १५. तखी / कौशल्य / परिहार पंजाब, कांगडा , जालंधर, जम्मू में १६. पंवार / वशिष्ठ / अग्नि / मालवा, मेवाड, धौलपुर, पूर्व मे बलिया १७. सोलंकी / भारद्वाज / अग्नि / राजपूताना , मालवा सोरों, जिला एटा १८. चौहान / वत्स / अग्नि / राजपूताना पूर्व और सर्वत्र १९. हाडा / वत्स / चौहान / कोटा , बूंदी और हाडौती देश २०. खींची / वत्स / चौहान खींचीवाडा , मालवा , ग्वालियर २१. भदौरिया / वत्स / चौहान/ नौगंवां , पारना, आगरा, इटावा ,गालियर २२. देवडा /वत्स /चौहान / राजपूताना, सिरोही राज २३. शम्भरी /वत्स / चौहान नीमराणा , रानी का रायपुर, पंजाब २४. बच्छगोत्री / वत्स / चौहान प्रतापगढ, सुल्तानपुर २५. राजकुमार /वत्स / चौहान/ दियरा , कुडवार, फ़तेहपुर जिला २६. पवैया / वत्स / चौहान / ग्वालियर २७. गौर, गौड/ भारद्वाज / सूर्य/ शिवगढ, रायबरेली, कानपुर, लखनऊ २८. वैस / भारद्वाज /चन्द्र /उन्नाव, रायबरेली , मैनपुरी पूर्व में २९. गेहरवार / कश्यप / सूर्य / माडा , हरदोई, उन्नाव, बांदा पूर्व ३०. सेंगर / गौतम/ ब्रह्मक्षत्रिय/ जगम्बनपुर, भरेह, इटावा , जालौन, ३१. कनपुरिया /भारद्वाज / ब्रह्मक्षत्रिय /पूर्व में राजा अवध के जिलों में हैं ३२. बिसैन / वत्स / ब्रह्मक्षत्रिय / गोरखपुर ,गोंडा , प्रतापगढ में हैं ३३. निकुम्भ / वशिष्ठ /सूर्य/ गोरखपुर, आजमगढ, हरदोई, जौनपुर ३४. सिरसेत /भारद्वाज / सूर्य/ गाजीपुर, बस्ती, गोरखपुर ३५. कटहरिया/ वशिष्ठ्या भारद्वाज / सूर्य / बरेली, बंदायूं, मुरादाबाद, शहाजहांपुर ३६. वाच्छिल/ अत्रय/ वच्छिल चन्द्र / मथुरा, बुलन्दशहर, शाहजहांपुर ३७. बढगूजर /वशिष्ठ /सूर्य/ अनूपशहर, एटा , अलीगढ, मैनपुरी , मुरादाबाद , हिसार, गुडगांव, जयपुर ३८. झाला /मरीच /कश्यप /चन्द्र /धागधरा , मेवाड, झालावाड, कोटा ३९. गौतम /गौतम / ब्रह्मक्षत्रिय/ राजा अर्गल , फ़तेहपुर ४०. रैकवार / भारद्वाज / सूर्य/ बहरायच, सीतापुर, बाराबंकी ४१. करचुल /हैहय /कृष्णात्रेय/ चन्द्र /बलिया ,फ़ैजाबाद, अवध ४२. चन्देल /चान्द्रायन/ चन्द्रवंशी/ गिद्धौर, कानपुर, फ़र्रुखाबाद, बुन्देलखंड, पंजाब, गुजरात ४३. जनवार/ कौशल्य/ सोलंकी शाखा /बलरामपुर, अवध के जिलों में ४४. बहरेलिया / भारद्वाज / वैस की गोद/ सिसोदिया /रायबरेली, बाराबंकी ४५. दीत्तत /कश्यप /सूर्यवंश की शाखा/ उन्नाव, बस्ती, प्रतापगढ ,जौनपुर , रायबरेली, बांदा ४६. सिलार / शौनिक /चन्द्र/ सूरत , राजपूतानी ४७. सिकरवार / भारद्वाज/ बढगूजर / ग्वालियर, आगरा और उत्तरप्रदेश में ४८. सुरवार / गर्ग / सूर्य / कठियावाड में ४९. सुर्वैया /वशिष्ठ /यदुवंश/ काठियावाड ५०. मोरी / ब्रह्मगौतम /सूर्य/ मथुरा, आगरा, धौलपुर ५१. टांक (तत्तक) /शौनिक / नागवंश, मैनपुरी और पंजाब ५२. गुप्त/ गार्ग्य /चन्द्र/ अब इस वंश का पता नही है ५३. कौशिक/ कौशिक/ चन्द्र/ बलिया, आजमगढ, गोरखपुर ५४. भृगुवंशी/ भार्गव/ चन्द्र /वनारस, बलिया , आजमगढ, गोरखपुर ५५. गर्गवंशी /गर्ग ब्रह् राजपूत का मतलब - क्षत्रिय राजपूत इतिहास - राजपूत का मतलब राजपूतों के लिये यह कहा जाता है कि वह केवल राजकुल में ही पैदा हुआ होगा, इसलिये ही राजपूत नाम चलाl लेकिन राजा के कुल मे तो कितने ही लोग और जातियां पैदा हुई है सभी को राजपूत कहा जाता! यह राजपूत शब्द राजकुल मे पैदा होने से नही बल्कि राजा जैसा बाना रखने और राजा जैसा धर्म "सर्व जन हिताय,सर्व जन सुखाय" का रखने से राजपूत शब्द की उत्पत्ति हुयी। राजपूत को तीन शब्दों में प्रयोग किया जाता है,... पहला "राजपूत", दूसरा "क्षत्रिय" और तीसरा "ठाकुर" आज इन शब्दों की भ्रान्तियों के कारण यह राजपूत समाज कभी कभी बहुत ही संकट में पड जाता है। राजपूत कहलाने से आज की सरकार और देश के लोग यह समझ बैठते है कि यह जाति बहुत ऊंची है और इसे जितना हो सके नीचा दिखाया जाना चाहियेl नीचा दिखाने के लिये लोग संविधान का सहारा ले बैठे हैl संविधान भी उन लोगों के द्वारा लिखा गया है जिन्हे राजपूत जाति से कभी पाला नही पडाl राजपूताने के किसी आदमी से अगर संविधान बनवाया जाता तो शायद यह छीछालेदर नही होती। खूंख्वार बनाने के लिये राजनीति और समाज जिम्मेदार हैl राजपूत कभी खूंख्वार नही थाl उसे केवल रक्षा करनी आती थीl लेकिन समाज के तानो से और समाज की गिरती व्यवस्था को देखने के बाद राजपूत खूंख्वार होना शुरु हुआ है l राजपूत को अपशब्द पसंद नही है। v कभी किसी भी प्रकार की दुर्वव्यवस्था को पसंद नही करता है।

विवेक सिंह चंदेल की अन्य किताबें

गंगासिंह

गंगासिंह

कौशिक वंश के बारेमें और वो शाखा की उत्पति के बारेमे विस्तारसे बताए गंगासिंह कुंदनसिंह कौशिक नांदेड़ महाराष्ट्र मो. ०९८२३०२०९११

8 सितम्बर 2017

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

नववर्ष की हार्दिक शुभकमनाएँ एवं बधाइयाँ, आपका और हमारा साथ सदा यूं ही बना रहे ! शब्दनगरी पर आपके लेखों का सदा स्वागत है

2 जनवरी 2017

1

भारत की छद्म स्वतन्त्रता

17 सितम्बर 2015
1
1
0

स्वतन्त्रता दिवस या दासों की नई कहानी।15 अगस्त को प्रत्येक वर्ष मूर्ख हिंदू और मुसलमान उसी मानवता के संहार का जश्न मनाते हैं, दोनों को लज्जा भी नहीं आती ।युद्ध भूमि में भारत कभी नहीं हारा, लेकिन अपने ही जयचंदों से हारा है, समझौतों से हारा है । अपनी मूर्खता से हारा है, उन्हीं समझौतों में सत्ता के हस्

2

खेचरी मुद्रा द्वारा अमृत पान

17 सितम्बर 2015
1
1
0

खेचरी मुद्रा एक सरल किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण विधि है ।जब बच्चा माँ के गर्भ में रहता है तो इसी अवस्था में रहता है। इसमें जिह्वा को मोडकर तालू के ऊपरी हिस्से से सटाना होता है । निरंतर अभ्यास करते रहने से जिह्वा जब लम्बी हो जाती है । तब उसे नासिका रंध्रों में प्रवेश कराया जा सकता है । तब कपाल मार्ग एवं

3

मानव शरीर के पांच तत्त्व

17 सितम्बर 2015
1
3
1

नाड़ी शास्त्र के अनुसार, मानव शरीर में स्थित चक्र, जिनमें मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपूरक चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र एवं सहस्त्रार चक्र विद्यमान है। इन चक्रों का संबंध वास्तु विषय के जल-तत्व, अग्नि-तत्व, वायु-तत्व, पृथ्वी-तत्व एवं आकाश-तत्व से संबंधित है। वास्तु में पृथक दिशा

4

मंत्र शक्ति

17 सितम्बर 2015
1
2
0

जिसके मनन करने से रक्षा होती है वह मंत्र है. मंत्र शब्दात्मक होते हैं. मंत्र सात्त्विक, शुद्ध और आलोकिक होते हैं. यह अन्तःआवरण हटाकर बुद्धि और मन को निर्मल करतें हैं.मन्त्रों द्वारा शक्ति का संचार होता है और उर्जा उत्पन्न होती है. आधुनिक विज्ञान भी मंत्रों की शक्ति को अनेक प्रयोगों से सिद्ध कर चुके

5

योग की सिद्धियां

17 सितम्बर 2015
1
1
0

योग के सिद्धियों को फलित करके सर्ष्टि संचालन के सिधान्तों को जाना व प्रयोग किया जा सकता है किन्तु बहुत कम लोग जानते हैं कि किस योग से क्या घटित होता है इसी विषय पर संक्षिप्त लेख प्रस्तुत किया जा रहा है सभी योग के सिद्धि को प्राप्त करने की प्रक्रिया अलग-अलग है अतः प्रक्रिया पर पुनः विचार किया जायेगा

6

शिवलिंग का रहस्य व वास्तविक अर्थ

17 सितम्बर 2015
1
3
0

शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है।शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात ज

7

श्री कृष्ण का जन्म तथा वंश

17 सितम्बर 2015
1
7
6

श्री कृष्ण जी का जन्म चन्द्रवंश मे हुआ जिसमे ७ वी पीढी मे राजा यदु हुए और राजा यदु की ४९ वी पीढी मे शिरोमणी श्री कृष्ण जी हुए राजा यदु की पीढी मे होने के कारण इनको यदुवंशी बोला गया , श्री कृष्ण जी के वंशज आज भाटी, चुडसमा, जाडेजा , जादौन, जादव और तवणी है जो मुख्यत: गुजरात, राजस्थान , महाराष्ट्र, और ह

8

श्री कृष्ण की सोलह कलाओ का रहस्य

17 सितम्बर 2015
1
2
0

अवतारी शक्तियों की सामर्थ्य को समझने के लिए कलाओं को आधार मानते हैं। कला को अवतारी शक्ति की एक इकाई मानें तो श्रीकृष्ण सोलह कला के अवतार माने गए हैं। भागवत पुराण के अनुसार सोलह कलाओं में अवतार की पूरी सामर्थ्य खिल उठती है।1.श्री-धन संपदाप्रथम कला के रूप में धन संपदा को स्थान दिया गया है। जिस व्यक्ति

9

रक्षाबन्धन का कारण तथा विधि

17 सितम्बर 2015
1
1
0

जब भगवान् वामन अवतार धारण करके महाराज बलि से तीन पग भूमि की याचना करके उनका सर्वस्व हर लिए और महाराज बलि को सुतल लोक भेज दिया |और कहा कि यह लोक सुख सम्पदा से भरपूर होने के कारण स्वर्ग वासियों से भी अभिलषित है-सुतलं स्वर्गिभिः प्रार्थ्यं-भा.पु.-८/२२/३३,मैं बंधू बांधवों के सहित तुम्हारी रक्षा करूँगा

10

नागमण‌ि तथा अन्य मणियों का रहस्य

17 सितम्बर 2015
1
4
0

नागमणि को भगवान शेषनाग धारण करते हैं। भारतीय पौराणिक और लोक कथाओं में नागमणि के किस्से आम लोगों के बीच प्रचलित हैं। नागमणि सिर्फ नागों के पास ही होती है। नाग इसे अपने पास इसलिए रखते हैं ताकि उसकी रोशनी के आसपास इकट्ठे हो गए कीड़े-मकोड़ों को वह खाता रहे। हालांकि इसके अलावा भी नागों द्वारा मणि को रखने

11

भारतीय पञ्चाङ्ग

17 सितम्बर 2015
1
1
1

भरतीय इतिहास तथा सहित्य के ज्ञान के लिये पञ्चाङ्ग की परम्परा जानना आवश्यक है। अतः गत ३२ हजार वर्षों की पञ्चाङ्ग परम्परा दी जाती है। काल के ४ प्रकार, सृष्टि के ९ सर्गों के अनुसर ९ काल-मान, ७ युग तथा उसके अनुसार गत ६२ हजार वर्षों का युग-चक्र है(१) स्वायम्भुव मनु काल-स्वायम्भुव मनु काल में सम्भवतः आज क

12

राजपूतों की वंशावली व इतिहास

17 सितम्बर 2015
1
6
2

"दस रवि से दस चन्द्र से, बारह ऋषिज प्रमाण,चार हुतासन सों भये , कुल छत्तिस वंश प्रमाणभौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमानचौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण."अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय, दस चन्द्र वंशीय, बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है, बाद में भौमवंश. , नाग

13

आचार्य चाणक्य के अनमोल विचार

17 सितम्बर 2015
1
1
0

आचार्य चाणक्य का जन्म आज से लगभग 2400 साल पूर्व हुआ था। वह नालंदा विशवविधालय के महान आचार्य थे। उन्होंने हमें 'चाणक्य नीति' जैसा ग्रन्थ दिया जो आज भी उतना ही प्रामाणिक है जितना उस काल में था। चाणक्य नीति एक 17 अध्यायों का ग्रन्थ है। आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति के अलावा सैकड़ों ऐसे कथन और कह थे जिन

14

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के सिद्धान्त एवं विचार

17 सितम्बर 2015
1
1
0

मिसाइल मैन' के नाम से मशहूर भारत के 11वें राष्ट्रपति भारत रत्न डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम का सोमवार 27/07/2015 को निधन हो गया। तमिलनाडु के रामेश्वरम् में 15 अक्टूबर 1931 को जन्में डॉ. कलाम अपनी सफलता का श्रेय अपनी मां को दिया करते थे।उन्होंने कहा था कि “मैं अपने बचपन के दिन नहीं भूल सकता, मेरे बचपन को

15

शिव तांडव स्त्रोतम

17 सितम्बर 2015
0
2
0

||सार्थशिवताण्डवस्तोत्रम् ||||श्रीगणेशाय नमः ||जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् |डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |धगद् धगद् धगज्ज्वलल् लल

16

महाभारत के वीर

17 सितम्बर 2015
0
1
0

महाभारत की कथा जितनी बड़ी है, उतनी ही रोचक भी है। शास्त्रों में महाभारत को पांचवां वेद भी कहा गया है। इसके रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास हैं। महर्षि वेदव्यास ने इस ग्रंथ के बारे में स्वयं कहा है- यन्नेहास्ति न कुत्रचित्। अर्थात जिस विषय की चर्चा इस ग्रंथ में नहीं है, उसकी चर्चा कहीं भी उपलब्ध

17

नागाओ का रहस्य

17 सितम्बर 2015
0
1
0

कुंभ मेले के कवरेज में आपने कई बार देखा होगा कि नागा बाबा कपड़े नहीं पहनते हैं और पूरे शरीर पर राख लपेटकर घूमते हैं। उन्‍हे किसी की कोई शर्म या हया नहीं होती है वो उसी रूप में मस्‍त रहते हैं।नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं जो कि नग्न रहने तथा युद्ध कला में माहिर होने के लिये प्रसिद्ध हैं। ये व

18

"गायत्री मंत्र" का रहस्य

17 सितम्बर 2015
0
4
3

गायत्री मंत्र को हिन्दू धर्म में सबसे उत्तम मंत्र माना जाता है. यह मंत्र हमें ज्ञान प्रदान करता है. इस मंत्र का मतलब है - हे प्रभु, क्रिपा करके हमारी बुद्धि को उजाला प्रदान कीजिये और हमें धर्म का सही रास्ता दिखाईये. यह मंत्र सूर्य देवता (सवितुर) के लिये प्रार्थना रूप से भी माना जाता है।गायत्री मन्त्

19

हिंदू धर्म की वैज्ञानिकता

17 सितम्बर 2015
0
2
1

हिंदू परम्पराओं से जुड़े ये वैज्ञानिक तर्क1- कान छिदवाने की परम्परा-भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।वैज्ञानिक तर्क-दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचा

---

किताब पढ़िए