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"घुल जाऊँगा हवाओं में"

20 सितम्बर 2015

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featured imageमुझको महफूज़ रख, निगाहों में , वरना घुल जाऊँगा, हवाओं में । गर मेरा हाथ ,तुमने छोड़ दिया, ढूंढ ना पाओगे , दिशाओं में| प्रेम-धागों को, यूँ ना तोड़ो यारो, जोड़ दें वो दम नहीं,दवाओं में | तुम जो छू लो ,तो सकूँ आये, याद रख्खुँगा मैं, दुआओं में| दिल में जज्वात ,कुछ संजो लेना , सिर्फ लुटना नहीं,अदाओं में । "हो गए बागी सवाल" वो लोग वतन बेच के,खुशहाल हो गए, वाशिंदा मेरे मुल्क के,कंगाल हो गए । रखना पडा है गिरवी ,आबरू-ईमान को, बच्चे हमारे भूख से ,बेहाल हो गए । रोटी की भूख कम थी ,चारा भी खा गए, सत्ता में सियासत के,जो दलाल हो गए । है मुल्क तरक्की के, दौर-ए-सफ़र में यारो, कई राम-औ -रहीम के,बिकवाल हो गए । लौ कंपकपा रही है,अरमान चिरागों के , बड़े शख्त आंधियों के,इकवाल हो गए । इक उम्र खर्च की है,इस घर को बनाने में , टुकड़ों में बंट गया है, क्या हाल हो गए । 'अनुराग'चाहिए अब,वाजिव जवाब हमको, चुप रहते-रहते देखो ,बागी सबाल हो गए ।
समीर कुमार शुक्ल

समीर कुमार शुक्ल

धन्यवाद अनुराग जी

17 दिसम्बर 2015

प्रोसुमन लता भदौरिया

प्रोसुमन लता भदौरिया

तुम जो छू लो ,तो सकूँ आये, याद रख्खुँगा मैं, दुआओं में| सुंदर अभिव्यक्ति !

20 सितम्बर 2015

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रचनाएँ
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इस आयाम में हिंदी में समाहित क्षेत्रीय ,राष्ट्रीय ,अंतर्राष्ट्रीय ,भाषाओँ से प्रयुक्त शब्दों में रचित-लिखित लेखों का ही सम्मिलन करेंगे |
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ग़ज़ल -बीते लम्हें

13 सितम्बर 2015
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आने वाला वक्त अगर, दोहराएगा बीते लम्हें ,उन्हें पकड़ के रख लूंगा ,जो छूट गए पीछे लम्हें ।रफ्ता-रफ्ता उमींदों की, चादर जब बुन जायेगी ,थोडा रूककर के सुस्तायेंगे ,यादों के मीठे लम्हें ।माँ की उंगली पकड़ ठुमक कर ,चला करेंगे इतराके ,आयेंगे कल बचपन की ,चंचलता के नीचे लम्हें ।अभी वक्त है ठहर जरा तू,बतिया ले

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"घुल जाऊँगा हवाओं में"

20 सितम्बर 2015
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मुझको महफूज़ रख, निगाहों में ,वरना घुल जाऊँगा, हवाओं में ।गर मेरा हाथ ,तुमने छोड़ दिया,ढूंढ ना पाओगे , दिशाओं में|प्रेम-धागों को, यूँ ना तोड़ो यारो,जोड़ दें वो दम नहीं,दवाओं में |तुम जो छू लो ,तो सकूँ आये,याद रख्खुँगा मैं, दुआओं में|दिल में जज्वात ,कुछ संजो लेना ,सिर्फ लुटना नहीं,अदाओं में । "हो गए बा

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