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हिंदी हम सबकी परिभाषा

20 सितम्बर 2015

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कोटि-कोटि कंठों की भाषा, जनगण की मुखरित अभिलाषा, हिंदी है पहचान हमारी, हिंदी हम सबकी परिभाषा । आज़ादी के दीप्त भाल की, बहुभाषी वसुधा विशाल की, सहृदयता के एक सूत्र में, यह परिभाषा देश-काल की । निज भाषा जो स्वाभिमान को, आम आदमी की जुबान को, मानव गरिमा के विहान को, अर्थ दे रही संविधान को । हिंदी आज चाहती हमसे- हम सब निश्छल अंतस्तल से, सहज विनम्र अथक यत्नों से, मांगे न्याय आज से, कल से । कोटि-कोटि कंठों की भाषा, जनगण की मुखरित अभिलाषा, हिंदी है पहचान हमारी, हिंदी हम सबकी परिभाषा । -डा० लक्ष्मीमल्ल सिंघवी
वर्तिका

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सुंदर कविता के लिए बधाई!

21 सितम्बर 2015

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रचनाएँ
kavitayen
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बचपन से अब तक पढ़े पसंदीदा कविताओं को एक जगह संग्रह करने की एक कोशिश
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हिंदी हम सबकी परिभाषा

20 सितम्बर 2015
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कोटि-कोटि कंठों की भाषा,जनगण की मुखरित अभिलाषा,हिंदी है पहचान हमारी,हिंदी हम सबकी परिभाषा ।आज़ादी के दीप्त भाल की,बहुभाषी वसुधा विशाल की,सहृदयता के एक सूत्र में,यह परिभाषा देश-काल की ।निज भाषा जो स्वाभिमान को,आम आदमी की जुबान को, मानव गरिमा के विहान को, अर्थ दे रही संविधान को ।हिंदी आज चाहती हमसे-हम

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हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के (Hum Panchhi Unmukt Gagan Ke) - शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (Shivmangal Singh 'सुमन')

10 अक्टूबर 2015
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हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन केपिंजरबद्ध न गा पाऍंगे,कनक-तीलियों से टकराकरपुलकित पंख टूट जाऍंगे।हम बहता जल पीनेवालेमर जाऍंगे भूखे-प्‍यासे,कहीं भली है कटुक निबोरीकनक-कटोरी की मैदा से,स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन मेंअपनी गति, उड़ान सब भूले,बस सपनों में देख रहे हैंतरू की फुनगी पर के झूले।ऐसे थे अरमान कि उड़तेनील

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