सागर को बांध लो,
नदियों को सींच दो,
उड़ जाओ संग हवा के,
मुड़ जाओ संग दिशा के,
कुछ सपने बुन भी लो,
मन की मंजिल ढूँढ लो ...
क्योँ हो खोये? सोये-सोये?
खुश होकर भी, लगते हो रोये-रोये!
संदेशे सोच लो,
अंदेशे छोड़ दो,
उड़ जाओ संग हवा के,
मुड़ जाओ संग दिशा के,
कुछ सपने बुन भी लो,
मन की मंजिल ढूँढ लो ...
ज़िन्दगी की डगर, क्यूं है अगर-मगर?
राही का शहर है, बनता नया सफ़र!
बुनियादें ओढ लो,
उम्मीदें जोड़ दो,
उड़ जाओ संग हवा के,
मुड़ जाओ संग दिशा के,
कुछ सपने बुन भी लो,
मन की मंजिल ढूँढ लो ...