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नन्हीं 'पाखी' की उड़ान...

5 अक्टूबर 2015

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कितनी ही बार यह सिद्ध हो जाता है कि प्रतिभा का उम्र से कोई नाता नहीं I मेख स्वयं  अपनी एक अलग दुनिया लेकर जन्म लेती है I एक ऐसी ही दीप्ति का नाम है अक्षिता यादव यानि ‘पाखी’ जो एक नन्ही ब्लॉगर हैं I अक्षिता हिन्दी ब्लॉगर कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव की पुत्री हैं। उनके नाम सबसे कम उम्र में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला राष्ट्रीय बाल पुरस्कारपाने का कीर्तिमान है और इसी के साथ उन्हें ब्लॉगिंग के लिए राजकीय स्तर पर प्रथम पुरस्कार पाने का गौरव भी प्राप्त है। उन्हें वर्ष 2010 में वर्ष की श्रेष्ठ नन्ही ब्लॉगर वर्ग में ‘परिकल्पना सम्मान’ और वर्ष 2015 में ‘परिकल्पना कनिष्ठ सार्क ब्लॉगर सम्मान’ प्राप्त है I

25 मार्च, 2007 को कानपुर (उ.प्र.) में एक प्रतिष्ठित परिवार में कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव की प्रथम सुपुत्री के रूप में इनका जन्म हुआ। पिताश्री कृष्ण कुमार यादव उस समय कानपुर मंडल के वरिष्ठ डाक अधीक्षक पद पर कार्यरत थे और माँ आकांक्षा एक कॉलेज में प्रवक्ता थीं। दोनों ही जन चर्चित साहित्यकार, विचारक और ब्लॉगर हैं, ऐसे में ब्लॉगिंग और साहित्य अक्षिता को संस्कारों में प्राप्त हुआ। पिता जी के तबादले के साथ ही अक्षिता की आरम्भिक शिक्षा कई शहरों में हुई। इनमें कानपुर (उ.प्र), पोर्टब्लेयर (अंडमान-निकोबार द्वीप समूह), इलाहाबाद (उ.प्र.) और जोधपुर (राजस्थान) शामिल हैं। अक्षिता की एक बहन अपूर्वा हैं। अक्षिता की रुचियों में चित्र (ड्राइंग) बनाना, कविताएँ लिखना, फोटोग्राफी, ट्रेवलिंग, नेट सर्फिंग, कंप्यूटर गेम आदि शामिल हैं। ब्लॉगिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अक्षिता को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तमाम विभूतियों द्वारा सम्मानित किया गया है। पंचम अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका (25 मई 2015) में अक्षितापरिकल्पना कनिष्ठ सार्क ब्लॉगर सम्मानसे सम्मानित हो चुकी हैं I

अक्षिता एक ऐसी नन्ही ब्लॉगर हैं, जिसके कार्य की आभा किसी परिपक्व  ब्लॉगर से कम नहीं I जिसके भीतर छिपा है एक समृद्ध रचना संसार...जो अपने सृजन को पूरी दुनिया के हृदय तक पहुँचाना चाहती हैं।

 
वर्तिका

वर्तिका

"नन्हीं 'पाखी' की उड़ान", निश्चय ही, नन्हीं 'पाखी' हम सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत है! साझा करने के लिए धन्यवाद!

6 अक्टूबर 2015

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रचनाएँ
lifesketch
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इस आयाम के अंतर्गत आप विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े जाने-माने व्यक्तियों की संक्षिप्त जीवनी की झलक पा सकते हैं ।
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अपराध की घटनाएं अखबारों में पढ़कर व टीवी में देखकर निन्दी ही नहीं बल्कि उसके परिवार का हर सदस्य डर जाता था। निन्दी झुग्गी बस्तियों की तरह तंग जिंदगी जीते हुए हर दिन नरक सा अनुभव करती थी। टॉयलेट जाते समय कभी बस्ती के युवक उसको अपशब्द कहते तो कभी स्कूल जाते समय मनचले उस पर फब्तियां कसते। निन्दी मन मसो

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थोड़ी सीख पटना के भाई गुरमीत सिंह से...

12 अप्रैल 2016
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26 अप्रैल 2016
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