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नीरजा जी

16 अक्टूबर 2015

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पुरानी बात है, कई साल पहले, जी हाँ 1963 के सितम्बर महीने की सातवीं तारिख थी जब एक ब्राह्मण परिवार में नीरजा का जन्म हुआ | चंडीगढ़ के ही स्कूल में पढाई की इस लड़की ने और वहीँ के कॉलेज से अपना ग्रेजुएशन भी पूरा किया | बाईस साल की उम्र में उसकी शादी हुई और किसी खाड़ी देश में अपने पति के साथ वो घर से निकली | ये शादी ज्यादा दिन टिकी नहीं और दो ही महीने बाद वो वापिस मुंबई आ गई | ऐसी कई घटनाओं में जैसा होता है, वैसे ही अपनी जिन्दगी वो अफ़सोस करती भी काट सकती थी, लेकिन उसने ऐसा किया नहीं | Pan Am में उसने एक फ्लाइट अटेंडेंट (एयर होस्टेस) की नौकरी ढूंढ ली | मिआमि से ट्रेनिंग करने के बाद वो लौटी और नौकरी में जुट गई |

उसके तेईसवें जन्मदिन से ठीक दो दिन पहले एक दुर्घटना हो गई | इस एक दुर्घटना ने नीरजा को एक नाम दे दिया, उसके परिवार को गर्व से सर ऊँचा करने की वजह दे दी, और साथ ही कांग्रेस की तत्कालीन सरकार को शर्मिंदगी की एक वजह भी | 5 सितम्बर, 1986 को चार इस्लामिक आतंकियों ने Pan Am की 73 नंबर की फ्लाइट को हाईजैक कर लिया | Frankfurt और उस से आगे New York जाते इस जहाज को इस्लामिक आतंकवादियों ने कराची की तरफ मोड़ दिया | उनके निशाने पर जहाज में मौजूद अमरीकी नागरिक थे |

नीरजा ड्यूटी पर थी चालाकी से उसने जहाज के हाईजैक कोड को चला दिया | कॉकपिट के तीनो सदस्य दरवाजा बंद कर के बचने में कामयाब हुए | मगर जहाज में मौजूद यात्रियों की जान अभी भी खतरे में थी | इस्लामिक आतंकियों से मुकाबला करने के लिए जहाज में कोई हथियार नहीं था |

लेकिन नीरजा के पास सिर्फ एयर होस्टेस की ट्रेनिंग थी | चार चार हथियारबंद इस्लामिक आतंकियों का मुकाबले में वो कहीं से नहीं ठहरती थी | यात्रियों की सुविधा का ख़याल रखने पर उसकी ज़िम्मेदारी ख़त्म होती थी, उनकी जान बचाना या इस्लामिक आतंकियों से लड़ना उसकी ज़िम्मेदारी भी नहीं थी |

मगर ये उसी मिट्टी की बिटिया थी जहाँ रानी पद्मिनी, रानी झाँसी और रानी चेनम्मा जैसे बहादुर जन्मे हैं ! फिसलने वाली एक पट्टी हवाई जहाज के इमरजेंसी एग्जिट के बाहर ही लगी होती है | नीरजा को उसे चलाने और दरवाजे को खोलने की ट्रेनिंग मिली थी | नीरजा ने वो दरवाजा खोलकर यात्रियों को बाहर निकालना शुरू कर दिया | इस्लामिक आतंकियों ने उसकी हरकत देख ली और उसे रोकने के लिए बंदूकें भाग रहे यात्रियों की तरफ घुमा दी |

नीरजा उस वक्त तीन बच्चों को बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी गोलियों और बच्चों के बीच में वो 22 साल की लड़की दरवाजा पकड़े खाड़ी रही | बच्चे निकल गए, इस्लामिक आतंकियों की दर्ज़नों गोलियां अपने बदन पर रोकती लड़की वहीँ शहीद हो गई |

नीरजा भनोत भारत की सबसे कम उम्र की अशोक चक्र विजेता हैं | पकिस्तान ने उन्हें तमगा ए इंसानियत से सम्मानित किया और “Justice for Crimes Award” भी मिला उन्हें | 2004 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक पोस्टल स्टाम्प भी जारी किया है | सिर्फ अपने बारे में सोचने वाले आज के समाज को नीरजा जैसे प्रेरणा श्रोतों की जरुरत है |

हमें हमारी नायिकाएं फिर से चाहिए |

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

अति उत्तम प्रेरक व्यक्तित्व । इस पर बनने वाली फिल्म का इंतज़ार है । फिल्म से निश्चय ही अदिकधिक लोग नीरजा जी के साहस और बहादुरी को अपने जीवन में उतारने हेतु प्रेरित होंगें |

20 अक्टूबर 2015

वर्तिका

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"नीरजा भनोत", सलाम है भारत की बेटी के बहादुरी के जज़्बे को!

17 अक्टूबर 2015

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श्रीधर : कमी को बनाया अपना संबल

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श्रीधर : कमी को बनाया अपना संबलश्रीधर नागप्पा मालागी का एक हाथ एक्सीडेंट के बाद काटना पड़ा। ये घटना है 2006 की। तब उनकी उम्र मात्र छह साल थी। श्रीधर ईर के इस अन्याय से न घबराये न डरे बल्कि इसमें भी कोई भलाई होगी, ये सोचकर अगला कदम बढ़ाने की सोचते। उन्होंने शिक्षा में अव्वल आने का बीड़ा उठाया। लोगों

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16 अक्टूबर 2015
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ये कहानी है गोविन्द जैस्वाल की , गोविन्द के पिता एक रिक्शा -चालक थे , बनारस की तंग गलियों में , एक 12 by 8 के किराए के कमरे में रहने वाला गोविन्द का परिवार बड़ी मुश्किल से अपना गुजरा कर पाता था . ऊपर से ये कमरा ऐसी जगह था जहाँ शोर -गुल की कोई कमी नहीं थी

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चमकौर का युद्ध

17 अक्टूबर 2015
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चमकौर का युद्ध- जहां 10 लाख मुग़ल सैनिकों पर भारी पड़े थे 40 सिक्ख22 दिसंबर सन्‌ 1704 को सिरसा नदी के किनारे चमकौर नामक जगह पर सिक्खों और मुग़लों के बीच एक ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया जो इतिहास में "चमकौर का युद्ध" नाम से प्रसिद्ध है। इस युद्ध में सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के नेतृत्व में 40 सिक्ख

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2005 में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम जब इलाहाबाद आये तो महर्षि भारद्धाज आश्रम देखने की इच्छा उन्होंने प्रगट की और उन्होंने बताया कि महर्षि भारद्धाज ने सर्वप्रथम विमान शास्त्र की रचना की थी। महाकुंभ के अवसर पर देश-देशांतर के सभी विद्धान प्रयाग आते थे और इसी भारद्धाज आश्रम में महीने दो महीने रह

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खूंखार चेतक घोडा और महाराणा प्रताप -- अनालिसिस

9 मई 2016
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318 किलो वजन उठाकर चेतक दुनिया के सबसे फास्ट दौडने वाला और सबसे लंबी छलांग लगानेवाला घोडा था ! माना जाता है कि महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था। महाराणा प्रत

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पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी

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किसी ने सच ही कहा है कि कुछ लोग सिर्फ समाज बदलने के लिए जन्म लेते हैं और समाज का भला करते हुए ही खुशी से मौत को गले लगा लेते हैं. उन्हीं में से एक हैं दीनदयाल उपाध्याय जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी समाज के लोगों को ही समर्पित कर दी। आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की 100वी जय

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