गुरु सों ज्ञान जू लीजिए, सीस दीजिए दान ।
बहुतक भोंदू बहि गए, राखि जीव अभिमान ।।
गुरु से ज्ञान पाने के लिए अपना शीश भी काटकर अर्पित कर दिया जाए तो वह भी कम
है, अर्थात ज्ञान के लिए परम समर्पण आवश्यक है । जो इसके विपरीत सोचते हैं, वे मूर्ख
और अभिमानी होते हैं । उनका कभी उद्धार नहीं होता ।
संत कबीरदास