कुछ कहने और करने की धुन में सब कुछ सह जाता हूँ मैं
तुम कहो या ना कहो फ़िर भी कह जाता हूँ में
नीद की ख़ुमारिया है जो नहीं बीमारियाँ तेरी
कल रह सकूं चाहे कह सकूँ ना कभी
आज इस पल बस तेरा हो जाऊं अभी
लौट कर जाती सदाओं तुम मिलो या ना मिलो
ज़िन्दगी रह गई कही तो हम भी मिलेगे फ़िर कही
जुस्तजू इतनी है अब तुम से मिल ना पाऊँगी
तुझ से मिल ना पाने कि मेरी अकुलाहट ही सही
आराधना राय" अरु"