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कच्छावा राजवंश की कुलदेवी "जमवाय माता"

25 अक्टूबर 2015

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कछवाह राजवंश की कुलदेवी श्री जमवाय माता का 


( संक्षिप्त इतिहास ) 


कछवाह वंश अयोध्या राज्य के सूर्यवंशी राजाओ की एक शाखा है , भगवान श्री रामचन्द्र जी के ज्येष्ठ पुत्र कुश से इस वंश , ( शाखा ) का विस्तार हुआ है ।

कालान्तर में इनकी एक शाखा अयोध्या राज्य से चलकर रोहताशगढ ( बिहार ) व फिर नरवर आई , नरवर (ग्वालियर ) के पास का प्रदेश कच्छप प्रदेश कहलाता था , क्यो कि यहा पर कच्छप नामक नागवंशीय क्षत्रियो की शाखा का राज्य था ।

( महाभारत आदि पर्व श्लोक ७१ ) नागो का राज्य ग्वालियर के आसपास था , इनकी राजधानी पद्मावती थी , जो अब नरवर कहलाती है । अत: स्पष्ट है कि कछवाहो के पूर्वजो ने आकर कच्छपो से युद्द कर उन्हे हराया और इस क्षेत्र को अपने कब्जे में किया । इसी कारण ये कच्छप , कच्छपघात या कच्छपहा कहलाने लगे और यही शब्द बिगडकर आगे चलकर कछवाह कहलाने लगा ।

कछवाह राजवंश के ग्वालियर नरवर राज्य के अंतिम राजा सोढदेव जी के पुत्र दुलहराय जी का विवाह राजिस्थान में दौसा राज्य के मौरा के चौहान शासक की पुत्री से हुआ था, दुलहराय जी ने चौहानो की सहायता से दौसा पर अधिकार कर लिया , दौसा क्षेत्र एंव उसके आसपास मीणा जाति के लोग बहुत थे , उस समय मॉच ग्राम का अधिपति नाथू मीणा था राजा दुलहराय जी का उससे युद्द का मुकाबला हुआ ,

इस युद्द में राजा दुलहराय जी को भारी क्षति उठानी पडी , इस युद्द के दो तरह के लेख मिलते है ।।


१-- राजा दुलहराय जी के इस युद्द में कई योद्दा मारे गये और कई घायल हो गये , और वो स्वयं बुरी तरह से घायल हो कर मूर्छावस्था में गिर पडे , और मीणो की सेना वापिस लौटकर शराब पीने में मस्त हो गयी 

तब मध्यरात्री के समय एक देवी ने उन्हे प्रगट होकर दर्शन दिये और कहा कि उठो जाओ इन मीणो से युद्द करो तेरी विजय होगी , तब राजा दुलहराय जी ने माता से कहा कि माता मेरी तो पूरी सेना घायल अवस्था में पडी है मे युद्द कैसे करू माता , तब माता बोली कि जा तेरी सेना स्वस्थ हो जायेगी , इन मीणो ने मेरे मंदिर को भ्रष्ट कर दिया है । तुम लोग मदिरा मॉस का सेवन मत करना , मेरा नाम बुडवाय माता है , अब तू मुझे बुडवाय माता की जगह जमवाय माता के नाम से अपनी कुलदेवी के रूप में मेरी पूजा करना और इसी घाट पर मेरा नया मंदिर बनबाना ।

जाओ तुम्हारी विजय होगी , माता के अनुसार राजा दुलहराय जी ने मीणो पर पुन: आक्रमण किया और मीणो को हराकर अपना अधिकार पुन: मॉच ग्राम पर जमा लिया ।

दौसा के बाद इन्होने अपनी राजधानी जमवारामगढ ( मॉच) गॉव में बनाई और अपनी कुलदेवी श्री जमवाय माता जी का मंदिर बनवाया ।।

२-- दूसरा लेख यह मिलता है कि जब राजा दुलहराय जी ने दौसा राज्य जीतने के बाद राजा ने सोचा कि हमारी प्रजा के लिये ये राज्य छोटा है इसको और बडाया जाये ये सोच कर उन्होने ढूढाड क्षेत्र पर कब्जा करने की बात सोची ये सोचकर वो एक दिन अपनी रानी और कुछ सैनिको के साथ बुडवाय माता के दर्शन करने के लिये जो मंदिर मॉच गॉव के पास पहले से बना था उसके दर्शन करने के लिये आये थे तो रास्ते में उनको मीणाओ ने घेर लिया और युद्द के लिये ललकारा , राजा दुलहराय जी के सैनिक कम थे फिर भी उन्होने मीणाओ से युद्द किया और राजा दुलहराय जी और उनके सैनिक युद्द करते करते बुरी तरह घायल होकर मूर्छावस्था में गिर पडे । तब राजा दुलहराय जी की रानी किसी तरह बचकर माता के मंदिर में जा पहुची माता से प्राथना करी तब माता ने रानी को गाय के रूप में बरगद के पेड के नीचे दर्शन दिये और कहा कि जाओ मेरा ये दूध बड के पत्तो में ले जाकर छिडक देना तेरा पति और सारी सेना जीवित हो जायेगी , तब रानी ने ऐसा ही किया । तब सारी सेना उठ खडी हुई और मीणाओ को मार भगाया ।

माता ने रानी से ये भी कहा था कि इन मीणाओ ने मेरा मंदिर भ्रष्ट कर दिया है तुम मेरा दूसरा मंदिर इसी बरगद के पेड के नीचे बनवाना और मुझे बुडवाय माता से जमवाय माता के नाम से अपनी कुलदेवी के रूप में मेरी पूजा करना , और जहा पर आमेर बसा है वहा पर खुदाई करने पर जमीन में शिवजी का विग्रह मिलेगा , उसे निकाल कर स्थापित कर वो अम्बिकेश्वर महादेव जी है । उनकी अपने कुलदेवता के रूप में पूजा करना जाओ वही पर अपनी राजधानी बनाना राजा दुलहराय जी ने ढूढाड क्षेत्र मॉच गॉव पर अधिकार कर लिया और अपने ईष्टदेव भगवान श्री रामचन्द्र जी तथा अपनी कुलदेवी श्री जमवाय माता जी के नाम पर मॉच गॉव का नाम जमवारामगढ रखा । जो जयपुर शहर से ३२ कि.मी. की दूरी पर है , 

राजा दुलहराय जी ने अपनी कुलदेवी का मंदिर बनवाया जिसमें जमवाय माता के पृष्ठ भाग में बछडे सहित गौ माता की मूर्ति है बुडवाय माता की पुरानी मूर्ति तथा जमवाय माता की नवीन मूर्ति दौनो माताओ की मूर्ति अब नवीन मंदिर में स्थापित है ।

ये जो आपको मूर्तियॉ दिख रही है इनमें बछडे सहित गौ माता , जमवाय माता , बुडवाय माता ये तीन मूर्तियॉ बनी है ।जहा पर भक्तजन माता के दर्शन करने के लिये रोजाना आते है ।

माता के अनुसार आमेर में अम्बिकेश्वर महादेव जी को जमीन से निकाल कर विधि - विधान से इनकी पूजा अर्चना कर उन्हे अपने कुलदेवता के रूप में स्थापित किया ।तथा नवीन राजधानी आमेर के नाम से जाने जानी लगी ।

जय कुलदेवी श्री जमवाय माता जी

नरेंदर

नरेंदर

जामवाल वंश की कुलदेवी और इस्ट देवता ,कुल गुरु कोन है l

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