माँ कस्तूरबा उन दिनों अस्वस्थ थीं I स्वास्थ्य सुधारने के कितने ही प्रयत्न
निष्फल हो चुके थे I एक दिन गांधी जी ने उन्हें दाल और नमक छोड़ने की सलाह दी I
अपनी बात के समर्थन में उन्होंने ‘बा’ को स्वास्थ्य सम्बन्धी साहित्य के कुछ अंश भी
पढ़कर सुनाए पर वो उनकी बात मानने को तैयार न हुईं I उन्होंने खीझकर कहा, “आप मेरे
इतने पीछे पड़े हैं I दाल और नमक तो आप भी नहीं छोड़ सकते I”
गांधीजी को यह बात चुभ गई I “अच्छी
बात है, तुम नहीं छोड़ना चाहतीं तो मत छोड़ो; मैंने आज से एक वर्ष के लिए दोनों ही
वस्तुएं छोड़ दीं I” गाँधी जी को ‘बा’ के प्रति प्रेम व्यक्त करने का यह अभूतपूर्व
अवसर मिला था, इसे वह सहज छोड़ना नहीं चाहते थे I उन्होंने कहा यदि मैं अस्वस्थ
होता और मेरा चिकित्सक इस प्रकार का परहेज करने के लिए कहता तो मैं ख़ुशी-ख़ुशी
तैयार हो जाता I
गांधीजी की एक साल तक नमक और दाल
छोड़ने की प्रतिज्ञा ने कस्तूरबा को यह समझाने में सफलता प्राप्त की कि संयम से कुछ
भी कठिन नहीं वरन सरल है और लाभदायक भी I
आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D