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प्रश्न

4 नवम्बर 2015

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प्रश्न”  

“आज ये नृशंस क्यों ?

धरती का विध्वंश क्यों ?

टूटता ये अंश क्यों ?

व्यक्ति में ये दंश क्यों ?

बिखरते ये वंश क्यों ?

 

काँपता ये विश्व क्यों ?

भटकता मनुष्य क्यों ?

जीव में उन्माद क्यों ?

हर मन उद्विग्न क्यों ?

जन-जन विक्षिप्त क्यों ?

 

जीवों का विनाश क्यों ?

मनुष्यता का नाश क्यों ?

मानवता का ह्रास क्यों ?

कम ये विश्वास क्यों ?

बिखरती ये आस क्यों ?

 

टूटता ये मन क्यों ?

टूटता ये परिवार क्यों ?

टूटता ये समाज क्यों ?

टूटता ये राष्ट्र क्यों ?

टूटता ये संसार क्यों ?

 

किस लिए ये विश्व है ?

किस लिए सर्वस्व है ?

किस लिए सम्मान हैं ?

किस लिए यह ज्ञान है ?

किस लिए विज्ञान है ?

 

किस लिए हम जी रहे ?

किस लिए हम रह रहे ?

किस लिए हम डर रहे ?

किस लिए हम लड़ रहे ?

किस लिए हम बढ़ रहे ?

 

आज क्यों विनाश है ?

आज क्यों निराश हैं ?

आज क्यों उदास हैं ?

आज क्यों हतास हैं ?

आज क्यों बेहवास हैं ?

 

कौन ये सब कर रहा ?

कौन ये सब करवा रहा ?

कौन ये क्यों कर रहा ?

कौन ये दुख दे रहा ?

कौन अब सुख पा रहा ?

 

कौन शांति से जियेगा ?

कौन शांति से मरेगा ?

कौन ये बतलाएगा ?

कौन ये समझाएगा ?

कौन उत्तर देगा” ?

       

रचनाकार :- गोपालकृष्ण त्रिवेदी

दिनांक :- ६ नवम्बर २०१४

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उत्कृष्ट कविता और सुन्दर प्रस्तुति, बहुत बधाई!

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4 नवम्बर 2015

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रचनाएँ
gopalkrishna
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स्वच्छंद विचारों की अभिव्यक्ति
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स्वच्छंद

4 नवम्बर 2015
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“स्वच्छंद जल स्वच्छंद दावानलस्वच्छंद पवन के झोंकेस्वच्छंद मन स्वच्छंद गगनस्वच्छंद जलधि तरंगेंजब सारा कुछ स्वच्छंद जगत मेंफिर मानव, अपने को क्यों तू रोके ?क्या पायेगा तू इस जग मेंनश्वर शरीर को ढोके ?जीवन के सारे रस पाये स्वच्छंद धरा पर रहके  अब बचे हुये कुछ पल को जी ले स्वच्छंद मगन तू होके”         

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हठपन

4 नवम्बर 2015
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“परिवार के ज्येष्ठ भाई का हठपन” हठपन एक ऐसा शब्द है जिसके सही दिशामें होने से व्यक्ति को महान बना सकता है और विपरीत दिशा में होने से अधोगति काकारण बनता है | अगर हठपन जीवन, समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिएहै तो यह उच्च कोटि का हठपन कहलाया जाएगा और हठपन का स्वरूप इसके विपरीत हुआ तो यहपतन का कारण हो सक

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आँचल

4 नवम्बर 2015
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“वो दिन भी कितने सुन्दर थे जब माँ के आँचल के अन्दर थेमाँ प्यार से हाथ फेरती थींममता का आभास कराती थींहम टुक-टुक देखा करते थेउनके स्नेह की सुन्दर छाया मेंवो दिन भी कितने सुन्दर थे, जब माँ के आँचल के अन्दर थे । दुनिया के सारे सुख भी तो माँ के आँचल में पाते हैंसपनों में हम खो जाते थे जब माँ के आँचल में

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पतंग

4 नवम्बर 2015
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"पतंग"A lifeshould be like a kite.....उड़ो.....खूब उड़ो.....और उड़ो.....जी भर के उड़ो.....A lifeshould be like a kite…..बस उड़ते जाओ.....खूब ऊपर उड़ते जाओ.....सही दिशा में उड़ो.....बस उड़ने की तमन्ना रहे.....A lifeshould be like a kite…..कटना (मरना) तो एक दिन सभी को है.....कटो तो संघर्ष के साथ.....जियो तो उ

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प्रश्न

4 नवम्बर 2015
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“प्रश्न” “आज ये नृशंस क्यों ?धरती का विध्वंश क्यों ?टूटता ये अंश क्यों ?व्यक्ति में ये दंश क्यों ?बिखरते ये वंश क्यों ? काँपता ये विश्व क्यों ?भटकता मनुष्य क्यों ?जीव में उन्माद क्यों ?हर मन उद्विग्न क्यों ?जन-जन विक्षिप्त क्यों ? जीवों का विनाश क्यों ?मनुष्यता का नाश क्यों ?मानवता का ह्रास क्यों ?क

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प्रचार

4 नवम्बर 2015
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11 वर्ष के अध्ययन रूपी विशाल वनवास के बाद मन के अन्त:करण में मनोरंजन देखने की ललक जाग्रत हुई जिस कारण कुछ दिन पहले एक LED TV �� खरीदा फिर क्या था HD वीडियो का लुत्फ़ उठाने लगा । काफी अच्छा लगता था लेकिन जब Advertisement देखते तो दिमाग ठनक जाता क्योंकि एक तरफ प्रधानमंत्री जी 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का

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वोट

5 नवम्बर 2015
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वोट“वोट” एक ऐसा महानतमशब्द है जिसमें समस्त राजनीति का समावेश है इसी से राजनीति करने के अवसर उपलब्ध औरराजनीति का अंत भी इसी के द्वारा होता है और यहाँ तक कि वोट ही राजनीति की मूलसंरचना है |वोट ही राजनीति कामेरुदंड है |भारत के संविधान नेदेश के प्रत्येक व्यक्ति को एक निश्चित आयु को पूर्ण करने के बाद इसक

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मधुमय जीवन

6 नवम्बर 2015
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“मधुर मधुर मधुमय मेरा जीवनकैसेजग बतलाऊँ तुम्हें ?अन्तर्मनके स्वच्छंद प्रवाह को कैसेजग दिखलाऊँ तुम्हें ? स्वर्णभास्कर उदित हुये हैंविराटहृदय के प्रांगण मेंतीव्रप्रखर तेजोमय रवि का कैसेएहसास कराऊँ तुम्हें ?मधुरमधुर मधुमय मेरा जीवनकैसेजग बतलाऊँ तुम्हें ? कल-कलबहती नदियाँ सारी यौवनका उन्माद लिए औषधिपूरि

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अंतर्द्वंद्व

13 नवम्बर 2015
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“मैं अन्तरतम् से बहूँ या बाहरके उद्गारों सेमैं सीधासा शांत दिखूँयाक्रोधाग्नि के ज्वालों से मैंदिग्दिशाओं में बिचरुँया हृदयके स्थिरपन से मैं पावनसा नीर बहूँयाहिमगिरि के स्रोतों से मैंआशाओं से भरा रहूँयानिराशाओं के बादल सेमैंपुष्पों के बीच खिलूँ या कंटकके भोलेपन से मैं एकही राह चलूँ या जियूँकई खयालों

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