गिरिजा नंद झा
अब ना खाने के दौरान किचकिच होगी और ना ही तैयार करने में आनकानी की जाएगी। आखि़र दो मिनट में तैयार होने वाली मैगी बाजार में दाखिल हो चुकी है। महीनों का इंतज़ार लोगों को थकाया जरूर लेकिन, लोग खाना पकाते-पकाते पक पाते, उससे पहले मैगी बाजार में आ गई। हालांकि, नेस्ले की मैगी से पहले रामदेव बाबा की ‘विशुद्ध देसी मैगी’ बाजार में पहले ही आ चुकी है मगर, जो कमाल नेस्ले की मैगी का था, वो बाबा की मैगी में कहां? पहले ही दिन स्नैपडील पर 5 मिनट में जिस तरह से 60,000 किट बिक गई, उससे इस बात पर यकीन करने से मना करने की कोई वज़ह भी नहीं है।
मगर, जरा ठहरिए। अपने और बच्चों की थाली में मैगी परोसने से पहले कुछ बात की पड़ताल कर लीजिए। पांच महीने पहले ही, भारत सरकार के खाद्य सुरक्षा और मानक विभाग ने मैगी को सेहत के लिए ‘जानलेवा’ बता कर उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया था। देखते ही देखते कंपनी को सारे उत्पाद वापस मंगाने पड़े थे। तकरीबन 450 करोड़ रुपये का ‘आर्थिक नुकसान’ उठा कर नेस्ले ने अपने उत्पाद को वापस लेते वक़्त भी यही कहा था कि गड़बड़ी उसके उत्पाद में नहीं, उस मशीन में है जिसने जांच कर बताया कि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इतना ही नहीं, 30,000 टन तैयार मैगी को नष्ट करना पड़ा था। लंबी कानूनी प्रक्रिया को झेला गया और तब जा कर यह फिर से बाजार में वापस लौटी है।
मैगी को बाजार से गायब हुए 48 घंटे भी नहीं बीते थे कि हर मर्ज़ की दवा के रूप में मशहूर बाबा रामदेव बाजार में मैगी के साथ प्रकट हो गए। बाबा की खासियत इस बात में है कि वे स्वभाव से योगी हैं मगर व्यवहार में खांटी कारोबारी हंै। सामान्य शारीरिक क्रियाओं के जरिए स्वस्थ रहने का नुस्खा वे दुनिया को देते हैं और व्यवहार में काला धन से ले कर अकाल तक पर प्रेस कांफ्रेंस कर लेते हैं। दुनियादारी का मोह ऐसा कि बरसों से ‘असुरक्षित’ बाबा को कभी सुरक्षा की जरूरत नहीं पड़ी मगर, कांग्रेस राज में काला धन पर इतना धमाल मचाया कि भाजपा की सरकार में उन्हें जेड प्लस सुरक्षा घेरे में बंद कर दिया गया। अभी हाल ही में अरहर दाल जब लोगों की थाली से गायब होने लगी तो बाबा प्रकट हुए, आयुर्वेद का पाठ याद दिलाया और कहा-अरहर सेहत के लिए खतरनाक है। इससे गठिया रोग हो जाता है। बुढ़ापा बोझिल करना है तो अरहर दाल का सेवन करें वरना, हरी सब्जियां ही इस्तेमाल करें। खानपान के मामले में उनकी आयुर्वेदिक समझ के देशवासी कायल हैं। बाबा, हल्दी, धनिया, मिर्ची सारे मसालों के शहंशाह हैं। नमक बेचना बाकी रह गया है जल्दी ही उसमें भी उनकी दखल हो जाएगी।
मैगी के बारे में जब बताया कि इससे कैंसर हो सकता है तो बहुत सारे लोग सकपका गए थे। यह सोच कर, कि सरकारी प्रयोगशाला ने उनकी जान बचा ली, वरना इस बार आधी नहीं, पूरी की पूरी आबादी निपट जाती। मगर, उस दौरान भी मैंने बताया था कि एक दो महीने का इंतज़ार कीजिए, मैगी-वही स्वाद और उसी ‘व्यवहार’ के साथ आपकी थाली में होगी। बाबा रामदेव लंबे समय से मैगी को बाजार में उतारना चाहते थे मगर, नेस्ले की मैगी की मौजूदगी में कोई कारोबारी नुकसान ना हो जाए, इसीलिए बाजार में आने से परहेज़ कर रहे थे। नेस्ले की मैगी की बाजार में अनुपस्थिति के बीच बाबा बाजार में जिस तेज़ गति से दाखिल हो गए-यह हज़म होने वाली बात तो नहीं हैं। मगर, धंधा है तो सब कुछ जायज़ ही है।
मैगी सेहत के लिए कितना सेहतमंद है, इसका फैसला आप करें। इस भरोसे के साथ कि अपने देश की जांच मशीने काम की नहीं हैं। अब देखिए ना, आप देश के अलग-अलग हिस्सों में शारीरिक जांच करवा लीजिए, हर जगह का नतीजा अलग-अलग होता है। कोई भी दूसरे इलाके की जांच रिपोर्ट पर भरोसा नहीं करता। अब मशीन एक, जांच करने वाला पढ़ा लिखा फिर भी जांच में इतना गंभीर अंतर क्यों? मतलब यह कि जब भी आप किसी मशीनी उत्पाद का इस्तेमाल करते हैं तो यह ध्यान रखते हुए कि सेहत का खयाल आपकी जिम्मेदारी है। जांच में क्या आता है और जांच पड़ताल के कोई मायने भी हैं, इस पर यकीन करने से परहेज करें। बेहतर हो कि लोकलुभान जानकारियों के झांसे में आने से बचें और जो जमीनी उत्पाद है, उसका सेवन खुद भी करें और बच्चों को भी कराने की आदत डालें। कहीं ऐसा ना हो कि दो मिनट की जल्दबाजी जिंदगी पर भारी पड़ जाए।