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जवाहर लाल ।…।.

14 नवम्बर 2015

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जवाहरलाल नेहरू  जी के बारे   मैं कुछ   बातें -------------



भारतीय सिविल सेवा के एम ओ मथाई जिन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल के निजी सचिव के रूप में भी कार्य किया.


 मथाई जी ने एक पुस्तक   “Reminiscences of the Nehru Age”(ISBN-13: 9780706906219) में लिखा है -   


जवाहर लाल नेहरू और माउंटबेटन एडविना    (लुईस माउंटबेटन अंतिम वायसराय की पत्नी)     के बीच गहन प्रेम प्रसंग  था।  

सरोजिनी नायडू की पुत्री पद्मजा नायडू के साथ भी प्रेम प्रसंग चला , जिसे बंगाल के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था।   इस बात का खुलासा भी हुआ है कि जवाहर लाल नेहरु अपने कमरे में पद्मजा नायडू की तस्वीर रखते थे जिसे इंदिरा गाँधी हटा दिया करती थी।

बनारस की एक सन्यासिन शारदा के साथ भी लम्बे समय तक प्रेम प्रसंग चला।  यह सन्यासिन काफी आकर्षक थी और प्राचीन भारतीय शास्त्रों और पुराणों में निपुण विद्वान थी।                                           उस सन्यासिन ने अपने इस रिश्ते को अवैध से वैध बनाना चाहा और नेहरु के सामने शादी का प्रश्न उठाया। नेहरु ने साफ़ जवाब दे दिया क्यूंकि इससे नेहरु के राजनीतिक जीवन पर असर पड़ सकता था।उनके सम्बन्धों से एक बेटा पैदा हुआ था और वह एक ईसाई मिशनरी बोर्डिंग स्कूल में रखा गया था। ऐसे मामलों में convents बच्चे के अपमान को रोकने के लिए गोपनीयता बनाए रखते हैं! हालांकि मथाई बच्चे के अस्तित्व की पुष्टि की,लेकिन उसे खोज निकालने का कभी कोई प्रयास नहीं किया गया।

तेजी बच्चन का प्रेम प्रसंग भी जवाहर लाल नेहरु के साथ था। तेजी उन दिनो इंदिरा गाँधी की प्रिय सहेली थी,  और वो आनंद भवन मैं बद्मिल्तन खेलने जाती थी,  और वंह नेहरु की दृष्टी उनपर पड़ी और वो नेहरु को भा गयी।    कुछ सालो बाद जब उन्हें लगा की अब उनकी शादी करा देनी चाहिए तो उन्हों ने अपने एक शिष्य हरिबंस राय बच्चन को बुला कर तेजी के साथ उनकी शादी करा दी। और हरिबंस राय बचन को किसी शोध के लिए विदेश भेज दिया दस साल के लिए। तब तक तेजी नेहरु के साथ ही प्रधानमंत्री आवास मैं रहा करती थी।

          आैर मौत एडस से हुआ। जिसे देशवासीयों से छुपाया गया।


इस परिवार कि चालाकियों और षड़यंत्र के बारे में संदेह पैदा करने वाली कुछ घटनाए :    


नेताजी सुभाष चंद्र बोस और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत के प्रधानमंत्री के पद के लिए जवाहरलाल नेहरू के प्रतियोगियों में थे और उन दोनों को रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई।

बीजेपी नेता सुब्रमण्यन का कहना है कि नेताजी सुभाष चंद्र की हत्या  रूस में स्टालिन ने कराई थी और इसमें जवाहर लाल नेहरू का हाथ था।   

सुभाष बाबू और उनके परिजनों ने देश की आजादी की लड़ाई लड़ी उनपर आई0बी0 से जासूसी करवाना क्या प्रमाणित करता है ?  पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज अशोक कुमार गांगुली ने मेल टुडे से बात करते हुए कहा, 'हैरानी की बात यह है कि जिस शख्स ने देश के लिए सब कुछ अर्पित कर दिया, सरकार उसके परिजनों की जासूसी कर रही थी।

फ़िरोज़ खान नाम के एक युवक का जो उन दिनों मोतीलाल नेहरु की हवेली में शराब आदि की सप्लाई करने वाले एक पंसारी नवाब खान का बेटा था। इंदिरा का फिरोज खान के साथ एक अवैध संबंध चल रहा था।  इंदिरा ने अपना धर्म फिर से बदल लिया और मुस्लिम धर्म अपना कर फिरोज से लंदन की एक मस्जिद में शादी कर ली।  इंदिरा नेहरु ने नाम बदल कर मैमुना बेगम रख लिया। जवाहर लाल परेशान था क्यूंकि इससे उसके राजनितिक जीवन पर असर पड़ना था।  जवाहर लाल ने फ़िरोज़ खान को उसका उपनाम बदल कर गाँधी रखने को कहा । उसे विश्वास दिलवाया कि सिर्फ उपनाम खान की जगह गाँधी इस्तेमाल करो और धर्म बदलने की भी कोई जरुरत नहीं है।    फ़िरोज़ खान अब फ़िरोज़ गाँधी बन गया।  दोनों ने अपना उपनाम बदल लिया और जब दोनों भारत आये   तो भारत की जनता को बेवकूफ बनाने के लिए हिन्दू विधि विधान से शादी कर दी। 

एक परिवार को खुश करने के लिए कशमीर में धारा 370 लगाई। जो आज भी हिन्दुस्तान के लिए गले की फांस बनी हुई है। 


इस तरह से इंदिरा गाँधी कि आने वाली नसल को एक नया फेंसी नाम गाँधी मिल गया। जो आज तक चल रहा है।  


जनता को बेवकुफ बनाने के लिए कहा गया की गांधी ने फिरोज को गोद ले लिया था। तो आज तक गोदनाम कहा है ?


नेहरु और गाँधी ये दोनों नाम ही इस परिवार के खुद के बनाये हुए उपनाम हैं। जैसे एक गिरगिट अपना रंग बदलता है उसी तरह इस वंश ने अपनी गतिविधयों को छुपाने के लिए अपना धर्म व सरनेम नाम बदलें हैं।



1962 की हार के लिए नेहरू जिम्मेदारः रिपोर्ट 


एक रिपोर्ट में 1962 में चीन के खिलाफ हुए युद्ध में भारत की अपमानजनक पराजय के लिए पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू सरकार और तत्कालीन सैन्य नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया गया है। एक आस्ट्रेलियाई पत्रकार ने हेंडर्सन ब्रुक्स की रिपोर्ट के हवाले से यह दावा किया है। हेंडर्सन ब्रुक्स रिपोर्ट को अभी भी आधिकारिक तौर पर गुप्त रख गया है। इस रिपोर्ट में ‘‘आगे बढ़ने की नीति’’ और उसका पालन करने वाली सेना में गंभीर खामियों की बात कही गई है क्योंकि सेना के पास इसके लिए जरूरी साधन उपलब्ध नहीं थे।


हेंडर्सन रिपोर्ट में तत्कालीन सरकार, सेना और गुप्तचर एजेंसियों की इस धारणा के लिए उनकी आलोचना की है कि चीनी युद्ध को बढ़ावा नहीं देंगे जब सैन्य तरीके से उन्हें इसके ‘‘बिल्कुल विपरीत’’ सोचना चाहिए था। 

रिपोर्ट में विभिन्न उच्च स्तरीय बैठकों का उल्लेख किया गया है, जिसमें वह बैठक भी शामिल है जिसमें नेहरू ने हिस्सा लिया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि सैन्य मुख्यालय और तत्कालीन गुप्तचर ब्यूरो निदेशक का यह विचार था कि चीनी यदि सक्षम हों फिर भी उनके भारतीय चौकियों के खिलाफ बल प्रयोग करने की संभावना नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सैन्य नेतृत्व ने पश्चिमी कमान द्वारा उठायी गई चिंताओं को भी नजरंदाज कर दिया था, जिनमें कहा गया था कि वह नीति को क्रियान्वित करने के लिए तैयार नहीं है और युद्ध की स्थिति में हमें पूरी तैयारी के अभाव में पराजय झेलनी पड़ेगी।

इसमें कहा गया है कि पश्चिमी कमान की स्थिति यथार्थवादी थी लेकिन सैन्य मुख्यालय अप्रत्यक्ष तौर पर अपने इस विचार पर बना रहा कि चीन व्यापक पैमाने पर युद्ध नहीं करेगा। यह धारणा तब धाराशायी हो गई जब चीन की सेना अरुणाचल प्रदेश काफी आगे आ गई और उसने लद्दाख के काफी हिस्से पर कब्जा कर लिया। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘सैन्य मुख्यालय के जनरल स्टाफ ब्रांच द्वारा पश्चिमी कमान की इस चेतावनी पर ध्यान नहीं देने के लिए चीन की प्रतिक्रिया के गलत आकलन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। मुख्यालय में यह सोच थी कि कुछ नहीं होगा।’’



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