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परिवर्तन

30 नवम्बर 2015

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परिवर्तन

परिवर्तन गंगा की धारा बन कर बहता है

परिवर्तन है नियम सृष्टि का कण कण ये कहता है

परिवर्तन के प्रवाह में बह के जो जीवन जीता है

जीवन रूपी अमिट रसों को खुल कर के पीता है

वक्त प्रवाह में पत्थर बन कर जब भी जो अकड़ा है

काल चक्र के बंधन में जा कर के वो जकड़ा है

पीड़ी का अंतर जनरेशन गेप यही कहलाता है

जो भावों के रामघाट पे धुनी यहाँ रमाता है

हर पीड़ी का अधिपति है सबके मन का भाल है

         तीन लोक में रमने वाला हर युग में “महाकाल” है

नृसिंह इनानी

नृसिंह इनानी

आदरणीय शर्माजी,शुक्लजी,वर्तिका जी आपको सादर धन्यवाद

3 दिसम्बर 2015

वर्तिका

वर्तिका

"परिवर्तन है नियम सृष्टि का!" उल्लेखनीय!

2 दिसम्बर 2015

गौरी कान्त शुक्ल

गौरी कान्त शुक्ल

बहुत सुंदर रचना

1 दिसम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अति सुन्दर रचना 'परिवर्तन' !

1 दिसम्बर 2015

नृसिंह इनानी

नृसिंह इनानी

ऋषि गौड़ जी आपको सादर धन्यवाद

1 दिसम्बर 2015

ऋ षि  गौड़

ऋ षि गौड़

परिवर्तन प्रकृति का नियम, नियम धारी महाकाल

30 नवम्बर 2015

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रचनाएँ
mahaklakpavannagar
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सभी विषयों को छूती कलम
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आओ आओ भक्तजनों ये सादर तुम्हे बुलाती है

17 नवम्बर 2015
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बात यहाँ न हिन्दू की है बात नही इस्लाम की भारत माँ के बेटे है हम बात है उस सम्मान की

19 नवम्बर 2015
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महाकाल के अंगने में तो सैफी वाद्य बजाता है /हाथ कगनिया लाख के कंगन मोहम्मद खान पकाता है /ख्वाजा के दर पर तो पूरा भारत शीश झुकाता है /लोटा बना मुरादाबादी गंगाजल भरवाता है /बैठ रहीम की गाड़ी में तो रामेश्वर तक जाता है /बद्रीनाथ टैक्सी ले जाती ऑपरेटर रहमान की /बात यहाँ न हिन्दू की है बात नही इस्लाम की /

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अखिल विश्व में सबसे न्यारा अपना हिंदुस्तान है

19 नवम्बर 2015
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ऋषियों की रहो पे चलना अपनी तो परिपाटी है कण कण  इसका शंकर जैसा ऐसी पावन माटी है जीवन की रहो में जब भी दुःख की पीर सताती है आदि कल से संत ऋषि की वाणी राह दिखाती है हानी लाभ संग सुख और दुःख में जो इनको अपनाता है इन राहों पे चलने वाला जीवन सुखी बनाता है भौतिकता का वैभव तल में शिखर पे चमके ज्ञान है अखिल

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हम अपना ये जीवन करदे भारत माँ के नाम

20 नवम्बर 2015
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हम अपना ये जीवन करदे भारत माँ के नाम

20 नवम्बर 2015
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हम अपना ये जीवन करदे भारत माँ के नाम

20 नवम्बर 2015
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अपना हिंदुस्तान है

28 नवम्बर 2015
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ऋषियों की राहों पर चलना अपनी तो  परिपाटी है कण कण इसका शंकर जैसा ऐसी पावन माटी है जीवन की राहों में जब भी दुःख की पीर सताती है आदिकाल से संत ऋषि की वाणी राह  दिखाती  है हानि लाभ संग सुख और दुःख में जो इसको अपनाता है इन राहों पे चलने वाला जीवन सुखी  बनाता है भौतिकता का वैभव तल में शिखर पे चमके ज्ञान

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परिवर्तन

30 नवम्बर 2015
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परिवर्तनपरिवर्तन गंगा की धारा बन कर बहता हैपरिवर्तन है नियम सृष्टि का कण कण ये कहता हैपरिवर्तन के प्रवाह में बह के जो जीवन जीता हैजीवन रूपी अमिट रसों को खुल कर के पीता हैवक्त प्रवाह में पत्थर बन कर जब भी जो अकड़ा हैकाल चक्र के बंधन में जा कर के वो जकड़ा हैपीड़ी का अंतर जनरेशन गेप यही कहलाता हैजो भावों

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फाग मत गाइये

2 दिसम्बर 2015
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फाग मत गाइएदाडियो में हाथ डाला बंजर में खाद डालासमझाने का इतना लम्बा राग मत गाइएगोली संग होली खेले सीमा पे जवान अपनेसंसद के आहतो में फाग मत गाइएकूट कूट कूटनीति घोल कर पी गये हैजलता कश्मीर मत बांसुरी बजाइएकितने हिसाब बाकि शहीदों के हो गये हैलातो के भूतो को नहीं बातें समझाइये !!

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पापा जी पप्पू से बोले (हास्य छंद)

3 दिसम्बर 2015
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पापा जी पप्पू से बोलेहाथो में ले अंक सूचिपापा जी पप्पू से बोलेसारे विषयों में तुमजीरो जीरो लाये होनाम भी डुबोया मेरा सपनेभी तोड़ डालेतिस पे सेजोरी देखोसामने क्यों आये हो    पापा जी से मम्मी बोली थोड़ी देर चुप रहोंबात बिना बात तुम यूँ हीझल्लाएं होसफाई में अंकसूची आपकीमिली है मुझेहाथ में वही है बिना बात

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