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हर चुनौती में एक बड़ा अवसर छिपा होता है

4 दिसम्बर 2015

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बहुत पुरानी बात है की किसी राज्य में एक राजा हुआ करता था| राजा ने एक बार अपने राज्य के लोगों की परीक्षा लेनी चाही| एक दिन उसने क्या किया कि सुबह सुबह जाकर रास्ते में एक बड़ा सा पत्थर रखवा दिया| अब तो सड़क से जो कोई भी निकलता उसे बड़ी परेशानी हो रही थी लेकिन कोई भी पत्थर हटाने की कोशिश नहीं कर रहा था |

राजा यह सब छुपकर देख रहा था, कुछ देर बाद उसके राज्य के मंत्री और अन्य बड़े बड़े और धनी लोग  भी वहाँ आए लेकिन किसी ने भी पत्थर हटाने की कोशिश नहीं की बल्कि सभी राजा को ही गालियाँ दे रहे थे कि रास्ते में इतना बड़ा पत्थर पड़ा है और राजा इसे हटवा क्यूँ नहीं रहा है|

कुछ देर बाद वहाँ एक ग़रीब किसान आया जिसके सर पे बड़ा सा सब्जी  का गट्ठर रखा हुआ था जब वह पत्थर से गुज़रा तो उसे वजन की वजह से काफ़ी परेशानी हो रही थी| तो उसने अपने सर से सब्जी की गठरी उतारी और पत्थर को पूरी ताक़त  से हटाने में जुट गया| वो पत्थर बहुत बड़ा था लेकिन किसान ने हार नहीं मानी और कुछ ही देर में रास्ते से पत्थर हटा दिया| जैसे ही वो वहाँ से चला उसने देखा की पत्थर वाली जगह पर एक थैला पड़ा हुआ था जोकि राजा ने पत्थर के नीचे छुपा दिया था| किसान ने थैला खोला तो देखा उसमें सोने के 1000 सिक्के थे और एक पत्र था जिसमें लिखा था-“पत्थर हटाने वाले को राजा की ओर से इनाम

”अब तो किसान फूला नहीं समा रहा था|

तो मित्रों इसी तरह से जीवन में आने वाली हर परेशानी भी एक अच्छा अवसर लेकर आती है जो लोग नकारात्मक सोचते (negative thinking) हैं वो इसे समझ नहीं पाते और अवसर खो देते हैं वहीं अच्छी सोच के व्यक्ति चुनौती स्वीकार करते हैं और अवसर का लाभ उठाते है . 


आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत अच्चा व् शिक्षाप्रद प्रसंग है |

20 दिसम्बर 2016

17 दिसम्बर 2015

गीता

गीता

bahut accha laga

5 दिसम्बर 2015

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हर चुनौती में एक बड़ा अवसर छिपा होता है

4 दिसम्बर 2015
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 बहुत पुरानी बात है की किसी राज्य में एक राजा हुआ करता था| राजा ने एक बार अपने राज्य के लोगों की परीक्षा लेनी चाही| एक दिन उसने क्या किया कि सुबह सुबह जाकर रास्ते में एक बड़ा सा पत्थर रखवा दिया| अब तो सड़क से जो कोई भी निकलता उसे बड़ी परेशानी हो रही थी लेकिन कोई भी पत्थर हटाने की कोशिश नहीं कर रहा थ

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एक लम्हा

5 दिसम्बर 2015
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मुझेएक खामोसीकाइंतजर , और वो कह  निकला ......... शायद , ये वही लम्हा था , जो आँखों से बह निकला ..............

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Just read,then think..............: गुस्ताख़ दिल

5 दिसम्बर 2015
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चुनाव

7 दिसम्बर 2015
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मैंने कहा साथ रहो , पर तुम ने तन्हाई चुनी ... मैंने कहा अपनी किस्मत हम खुद बनाएगे , पर तुमने खुदाई चुनी... मैंने कहा शर्म तो संस्कार की नीव है , पर तुमने बेहयाई चुनी ... मैंने कहा वादा निभाओ , पर तुमने बेबफाई चुनी...

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गहराई

12 दिसम्बर 2015
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गहराई समुन्दर की  हो या मन  की कोई फर्क नहीं पड़ता   जो  मयने  रखता है  वो ये  की आप कहा तक जा सकते है ।.      

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माफ़ी

21 दिसम्बर 2015
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कल  फिर  उसने  आकर  मेरे  सीने  में  खंजर भोका ……।   अब मैं  उसे माफ़  न करूँ तो क्या करूँ ….....................।आखिर क्ब्र् में मार कर चोट तो उसे भी लगी  ही होगी ........!

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वक़्त का लम्हा

26 दिसम्बर 2015
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मेने  रोका पर  वो  निकल  गया ..  वो  वक़्त का लम्हा था  और  पानी  सा  फिसल  गया.... 

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गज़ल

29 दिसम्बर 2015
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मोहब्बत की इबादत लिख इंसान की भूली आदत लिख सफर अंतहीन है पैरो मे हिफाज़त लिख कपड़ो को दोष न दे आंखो मे शराफत लिख फेंक दे बिरदरी चोलेनाम से पहले भारत लिख               समीर कुमार शुक्ल

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टुकड़ा

29 दिसम्बर 2015
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जो  हाथो  से  हो  कर  आँखों  तक  जाए  वो  जाम  गलत है ,'barf को पानी कहना' बेशक  ये इल्जात है ।अंत  गलत  हो  तो  दोष  कहानी  का नहीं होता ।और  जो अलग हो  के  वापस  न आए  वो  टुकड़ा  हिमानी  का  नही होता... 

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रौशनी

4 जनवरी 2016
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कुछ लोग तो पानी के रंग में   भी  नहा जाते है , एक हम है,जिन्हे  रौशनी भी सफ़ेद  लगती है………

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लम्हा दर लम्हा

2 फरवरी 2016
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Katra ktra dil                   asuo me pighalta chala gya...Mene hath thama ki shayd vo ruk jae,                 or lmha dr lamha vo nikalta chala gya...

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हल -e - दिल

3 अप्रैल 2016
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कोई समझता ही नहीं मुझे, तो समझउ  क्या ? बहते हुए लहू में भी दिखता नहीं किसी को मेरा दर्द, तो दिखाऊ क्या ? जब कोई सुन ही नहीं सकता तो हल - e-दिल बताओ क्या ? 

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