संप्रदायिकता एवं जातिवाद से निपटने हेतु एक व्यक्तिगत विचार है. सरकार की तरफ से शिक्षा एवं रोजगार सहित प्रत्येक क्षेत्र से यदि सरकारी स्तर पर व्यक्ति की पहचान हेतु उसके धर्म तथा जाति का हिसाब न रखा जाय, उपनाम (surname) का प्रयोग पूर्णतया प्रतिबंधित कर दिया जाय, या उपनाम के लिए अभिभावक का नाम अनिवार्य कर दिया जाय तो एक - दो पीढ़ी के बाद हम इसका सकारात्मक असर देख सकते है. जब तक हम धर्म एवं जाति सूचक शब्दों एवं आकड़ो का प्रयोग करते रहेंगे, ये सामाजिक विकार कम न होंगे. समाज के मन मष्तिष्क से इनका विस्मृत हो जाना ही इसे कम कर सकता है. जब जब ये कहा जाएगा की हिन्दू मुस्लिम एक हैं, तब तब ये भी याद रहेगा की हिन्दू भी है और मुस्लिम भी है अर्थात दो हैं. अब ये कहना ही छोड़ देना उचित है. अब इसका हिसाब रखना ही छोड़ देना उचित है.