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सिर्फ पढ़े - लिखे ही बनें जनप्रतिनिधि

26 दिसम्बर 2015

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      अधिकतर गैर-बीजेपी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय की कटु आलोचना की है, जिसमें उसने पंचायत चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित वाले हरियाणा सरकार के कानून को वाजिब करार दिया है। न्यायालय ने कहा कि ‘यह सिर्फ शिक्षा है जो मनुष्य को सही-गलत, अच्छे-बुरे में भेद करने का सामर्थ्य देती है।’ इस टिप्पणी से सहमत होना कठिन है, पर शिक्षा से व्यक्ति को बेहतर जीवन मूल्य सिखाने की अपेक्षा तो की ही जाती है। साथ ही, राज्य विधानसभा को ऐसा कानून बनाने की शक्ति भी प्राप्त है। अदालत का कहना है कि संविधान में ही कुछ पदों के लिए अयोग्यताओं का वर्णन है। जैसे जिम्मेदार पदों पर मानसिक रूप से अस्थिर या दिवालिया व्यक्ति की नियुक्ति पर रोक है।      

        हरियाणा के कानून में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के साथ-साथ कुछ अन्य शर्तें भी लागू की गई हैं। मसलन, उम्मीदवार को किसी आपराधिक मामले में सजा न हुई हो, उसके ऊपर कोई कर्ज न हो, बिजली बिल बकाया न हो, इसके अलावा घर में शौचालय होना अनिवार्य है। राजस्थान के बाद हरियाणा दूसरा राज्य है जहां पंचायती चुनाव के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की गई है। इस कानून तथा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की तीखी आलोचना इस धारणा पर आधारित है कि यह समाज के एक बड़े वर्ग को चुनावी प्रक्रिया से बाहर रखने का षड़यंत्र है। कहा जा रहा है कि किसी का अशिक्षित रह जाना शासन की विफलता है और शिक्षा तथा देनदारी वे घिनौनी तरकीबें हैं, जिनके द्वारा निरंकुश सरकारें समाज के दबे-कुचले वर्गों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बाहर रखना चाहती हैं।

         कानून की आलोचना इस आधार पर भी हो रही है कि ‘सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों’ को संवैधानिक पहचान मिली हुई है, फिर भी उनके साथ भेदभाव हो रहा है। यह तर्क सही प्रतीत नहीं होता है। ग्रैनविल ऑस्टिन ने लिखा है कि यह मूल रूप से ‘सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों’ था, जिसे बाद में बदल कर ‘आर्थिक’ की जगह ‘शैक्षणिक’ कर दिया गया। कई ऐसे वर्ग हैं जो आर्थिक रूप से काफी सशक्त हो चुके हैं, परंतु प्राथमिकताओं की गड़बड़ी के कारण शैक्षणिक रूप से अभी भी पिछड़े हुए हैं। संविधान सभा में भी सांसदों/विधायकों की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित किए जाने को लेकर बहस हुई थी, किंतु इसे इस कारण छोड़ दिया गया कि इससे कमजोर वर्ग के लोग प्रभावित होंगे। परंतु ऐसा न होने से कुछ विसंगतियां भी पैदा हुई हैं।

       सांसद/विधायक संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा एवं निष्ठा रखने तथा अपने कर्तव्यों का निर्वहन सम्यक रूप से करने की शपथ लेते हैं। सवाल उठता है कि जो व्यक्ति पढ़ भी नहीं सकता, क्या वह संविधान को पढ़े बिना उसके प्रति श्रद्धा एवं निष्ठा रख सकता है? वैसे तो ऐसे कई मंत्री तथा मुख्यमंत्री हुए हैं जिनकी औपचारिक शिक्षा मामूली थी, परंतु वे काफी कुशल एवं सफल प्रशासक माने गए। वे अपवाद हैं और उन्हें औपचारिक शिक्षा भले न मिली हो, किंतु उन्होंने स्वाध्याय के बूते काफी ज्ञान अर्जित किया। हमारे कुछ प्रधानमंत्री भी ऐसे हुए जो बाकायदा ग्रैजुएट नहीं थे, लेकिन इससे उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई। फिर भी कामराज नाडार जैसे बड़े नेता को इसका नुकसान हुआ। वह पीएम बन सकते थे, मगर ऐसा नहीं हो पाया, क्योंकि वह हिंदी और अंग्रेजी, दोनों भाषाएं नहीं जानते थे।

      इस कानून का विरोध कम्युनिस्ट भी कर रहे हैं। उन्हें रूस के पूर्व राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव को याद करना चाहिए, जिनकी औपचारिक शिक्षा-दीक्षा मामूली ही थी, लेकिन बाद में उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के ही एक स्कूल में पढ़ाई की। माओत्से तुंग का भी यही हाल था। उन्होंने भी काफी स्वाध्याय किया। उम्मीदवारों को लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए शपथ लेनी होती है। फिर जीतने के बाद भी वे शपथ लेकर ही सदन में बैठते हैं। इस आधार पर दिल्ली हाई कोर्ट में ‘बलजीत सिंह बनाम चुनाव आयोग’ में दलील दी गई कि शपथ लेने की अनिवार्यता का अर्थ है कि शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की जानी चाहिए। न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया, परंतु संसद चाहे तो ऐसा कानून बना सकती है। संविधान को लागू हुए छह दशक से अधिक हो चुके हैं और परिस्थितियां काफी बदली हैं। इसलिए अब ऐसा कोई कानून बनाया जाता है तो इसे भेदभाव नहीं माना जाना चाहिए।

        हरियाणा के इस कानून को इस आधार पर भी चुनौती दी गई कि यह समानता के मौलिक अधिकार का हनन है। सुप्रीम कोर्ट इस बारे में अपने पूर्व के निर्णयों का विश्लेषण कर इस नतीजे पर पहुंचा कि चुनाव लड़ना संवैधानिक अधिकार जरूर है, पर यह मौलिक अधिकार नहीं है। हालांकि, अदालत ने व्याख्या के दौरान यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(1) के अंतर्गत हर मतदाता को प्रत्याशियों के बारे में जानने का अधिकार है। संघ बनाम एडीआर में न्यायालय ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह प्रत्याशियों से शपथ-पत्र भरवाए कि उनके खिलाफ कितने आपराधिक मामले लंबित है, कितने में उन्हें सजा हुई है तथा उनकी शैक्षणिक योग्यता, संपत्ति एवं देनदारी क्या है? संसद ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन कर धारा 33 ख जोड़कर न्यायालय के निर्णय को पलट दिया। न्यायालय ने पीयूसीएल मामले में इस संशोधन को खारिज कर दिया, पर स्पष्ट किया कि मत देने का अधिकार मौलिक नहीं है। विधानसभा राज्य के हित में चुनाव लड़ने की शर्तें तय कर सकती है। ऐसे में राजस्थान और हरियाणा के कानून पूरे देश के लिए पथ-प्रदर्शक होने चाहिए।

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दम तोड़ती संवेदनाएं …

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       इस बात से हम सभी वाकिफ हैं कि सुबह एक गिलास गुनगुने पानी में नींबू का रस और शहद मिलाकर पीना स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अच्‍छा होता है। शहद को गर्म पानी के साथ लेने से वजन कम होता है। और इसके नियमित सेवन से सेहत से जुड़ी कई समस्याओंसे हमेशा के लिए निजात मिल सकती है। 1. पाचन सुधारे :-अच्छे पाचन के लिए

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जब देश में एक चपरासी के लिए योग्यता तय है , तो नेताओं के लिए योग्यता निर्धारित होनी चाहिए या नहीं …?

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sachin sharma's Knowledge Tonic

25 दिसम्बर 2015
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सिर्फ पढ़े - लिखे ही बनें जनप्रतिनिधि

26 दिसम्बर 2015
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      अधिकतर गैर-बीजेपी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय की कटु आलोचना की है, जिसमें उसने पंचायत चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित वाले हरियाणा सरकार के कानून को वाजिब करार दिया है। न्यायालय ने कहा कि ‘यह सिर्फ शिक्षा है जो मनुष्य को सही-गलत, अच्छे-बुरे में भेद करने का सामर्थ्य

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इन सबको खाने से भला कौन रोक सकता है :-

26 दिसम्बर 2015
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    हे वत्स ! सब नेताओं की नीति एक है। भले ही इनकी पार्टी अलग-अलग है। भले ही इनके झंडे अलग-अलग हैं। भले ही इनकी टोपियां अलग-अलग हैं। भले ही इनके चुनाव चिन्ह भी अलग हैं। तू इनका झंडा, इनकी टोपी, इनका चिन्ह और इनके नाना प्रकार के रंग देखकर भ्रम‌ित मत हो। ये मन कर्म और वचन से एक ही हैं। तू इन्हें बुद्ध

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वयस्क हैं तो अपने स्मार्टफोन में जरूर रखें ये 5 ऐप

28 दिसम्बर 2015
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       ये ऐप उन लोगों के लिए सेहत की चाबी साबित हो सकता है जो अक्सर पानी पीना भूल जाते हैं। कितना और कब पानी पिएं, इस बात की चिंता इस ऐप पर छोड़ दीजिए। प्लांट नैनी एक ऐप है जो आपको आपकी जरूरत के अनुसार पानी पीने के लिए रिमाइंडर देता है। इस ऐप के जरिए एक छोटा प्लांट बडी आपके फोन स्क्रीन पर पानी का रि

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बोर्ड एग्‍जाम में कम नंबर लाने वाले बेटे के नाम पिता का खुला खत

29 दिसम्बर 2015
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    बोर्ड एग्‍जाम में कम नंबर आने से अक्‍सर हम निराशा हो जाते हैं, लेकिन अगर पेरेंट्स बच्‍चे का साथ दें तो मुश्किल आसान हो जाती है. एग्‍जाम में कम नंबर लाने वाले ऐसे ही एक बेटे का नाम पिता का खत :-  मेरे प्रिय बेटे,   आज तुम्‍हारे फोन का इंतजार कर रहा था. हर रोज की तरह तुम मुझसे पूछते हो कि पापा ऑफि

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स्मार्टफोन, कंप्यूटर और फेसबुक के साइड इफेक्ट

30 दिसम्बर 2015
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 शायद तकनीक को ज्यादा इस्तेमाल करने वाले दंपति ऐसा महसूस कर रहे होंगे कि व्हाट्सऐप और फेसबुक ने उनके बीच दूरियां बढ़ा दी है। अपने अपने नेटवर्क में व्यस्त रहना और आपस में संवाद कम करना ही तकनीक का सबसे बड़ा नुकसान है। आजकल कपल्स के बीच तकनीक के चलते जो दूरी आ गई है वो आने वाले दिनों में बढ़ने वाली है

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"बेटियाँ मंदिर की घंटियाँ होती हैं"

1 जनवरी 2016
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बेटियाँ रिश्तों-सी पाक होती हैंजो बुनती हैं एक शालअपने संबंधों के धागे से।बेटियाँ धान-सी होती हैंपक जाने पर जिन्हेंकट जाना होता है, जड़ से अपनीफिर रोप दिया जाता है जिन्हेंनई ज़मीन में।बेटियाँ मंदिर की घंटियाँ होती हैं,जो बजा करती हैंकभी पीहर तो कभी ससुराल में।बेटियाँ पतंगें होती हैंजो कट जाया करती ह

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ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक : कुँअर बेचैन

3 जनवरी 2016
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ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक,चाँदनी चार क‍़दम, धूप चली मीलों तक /प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर,ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक /प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकली,कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक /घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी,ख़ुशबुएँ देती रही नन्हीं

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वर्ना रो पड़ोगे :-

4 जनवरी 2016
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बंद होंठों में छुपा लोये हँसी के फूलवर्ना रो पड़ोगे।हैं हवा के पासअनगिन आरियाँकटखने तूफान कीतैयारियाँकर न देना आँधियों कोरोकने की भूलवर्ना रो पड़ोगे।हर नदी परअब प्रलय के खेल हैंहर लहर के ढंग भीबेमेल हैंफेंक मत देना नदी परनिज व्यथा की धूलवर्ना रो पड़ोगे।बंद होंठों में छुपा लोये हँसी के फूलवर्ना रो पड

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मोदी जी , आपको अपने घर में लगी आग बुझाने का ख़याल नहीं आता ?

5 जनवरी 2016
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'बेकसूर लोग मारे गए और राजनेता तुच्छ बयानबाजी में उलझे रहे.' 26/11 मुंबई आतंकी हमले के बाद एक अंग्रेजी अखबार ने इन्हीं शब्दों में देश के हालात बयां किए थे. साल बदले, सत्ता बदली लेकिन हालात बिल्कुल वैसे ही हैं. देश में आतंकी हमला होता है. जवान शहीद होते हैं. घायल होते हैं. उनका परिवार बिलखता है. देश

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"तनावमुक्ति के उपाय"

7 जनवरी 2016
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   आधुनिक जीवन में तनाव न हो यह संभव नहीं है. जीवन मिला है तो रोजमर्रा की परेशानियां भी मिली हैं. गरीब, मध्यवर्गीय, धनी, धनकुबेर – सभी किसी-न-किसी कारण से चिंतित रहते हैं और तनाव उनके शरीर को खोखला करता रहता है. समस्याओं की प्रतिक्रिया करने से तनाव उपजता है. तनाव जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है. हांला

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10 विचार जो आपको देंगे हर हालत में जीतने का जज्बा

10 जनवरी 2016
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मंजिल पर पहुंचने से पहले का रास्ता थकाने और हिम्मत तोड़ने वाला होता है. ऐसे में कोई भी हार कर बैठ सकता है. लेकिन जो अपने जज्बे को बनाए रखते हैं, वे बाद में किस्मत के धनी कहलाते हैं. अगर आप भी इस श्रेणी में आना चाहते हैं तो दुनिया की कुछ बड़ी हस्तियों की इन 10 बातों को जरूर याद रखें -1. सत्य से बड़ा

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रामजन्मभूमि मुद्दे पर सेमिनार के आयोजन को लेकर "दिल्ली विश्वविद्यालय" सियासी अखाड़े में बदल गया है. क्या एक शैक्षिक संस्थान को विवादों में लाना उचित है ?

10 जनवरी 2016
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मनुबेन की डायरी के अंश: दुनिया जो कहती है वह कहती रहे....

11 जनवरी 2016
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महात्मा गांधी की अंतरंग सहयात्री की हाल ही में मिली डायरी बताती है कि ब्रह्मचर्य को लेकर किए गए उनके प्रयोग ने मनुबेन के जीवन को कैसे बदल डाला. वह भारतीय इतिहास का एक जाना-पहचाना चेहरा है जो आखिरी दो साल में ‘सहारा’ बनकर साये की तरह महात्मा गांधी के साथ रही. फिर भी यह चेहरा लोगों के लिए एक पहेली है.

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आज के दौर में….

14 जनवरी 2016
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ऊँची इमारतों से मकान मेरा घिर गया,कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए।गिन गिन के सिक्के हाथ मेरा खुरदरा हुआजाती रही वो स्पर्श की नरमी,बुरा हुआ।कौन सा शेर सुनाऊँ मैं तुम्हे, सोचता हूँ,नया उलझा है बहुत, और पुराना मुश्किल।सब का ख़ुशी से फासला एक कदम है,हर घर में बस एक ही कमरा कम है।अपनी वज्हे-बर्बादी स

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