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मनुबेन की डायरी के अंश: दुनिया जो कहती है वह कहती रहे....

11 जनवरी 2016

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महात्मा गांधी की अंतरंग सहयात्री की हाल ही में मिली डायरी बताती है कि ब्रह्मचर्य को लेकर किए गए उनके प्रयोग ने मनुबेन के जीवन को कैसे बदल डाला. वह भारतीय इतिहास का एक जाना-पहचाना चेहरा है जो आखिरी दो साल में ‘सहारा’ बनकर साये की तरह महात्मा गांधी के साथ रही. फिर भी यह चेहरा लोगों के लिए एक पहेली है. 1946 में सिर्फ 17 वर्ष की आयु में यह महिला महात्मा की पर्सनल असिस्टेंट बनीं और उनकी हत्या होने तक लगातार उनके साथ रही. फिर भी मनुबेन के नाम से मशहूर मृदुला गांधी ने 40 वर्ष की उम्र में अविवाहित रहते हुए दिल्ली में गुमनामी में दम तोड़ा.

1982 में रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी में मनुबेन किरदार को सुप्रिया पाठक ने निभाया था. मनुबेन के निधन के चार दशक के बाद उनकी दस डायरियां इंडिया टुडे को देखने को मिलीं. गुजराती में लिखी गई और 2,000 पन्नों में फैली इन डायरियों की शुरुआत 11 अप्रैल, 1943 से होती है. गुजराती विद्वान रिजवान कादरी ने इन डायरियों का विस्तार से अध्ययन किया. इनसे पता चलता है कि अपनी सेक्सुअलिटी के साथ गांधी के प्रयोगों का मनुबेन के मन पर क्या असर पड़ा. इनसे गांधी के संपर्क में रहने वाले लोगों के मन में पनपती ईर्ष्या और क्रोध की भावना भी उजागर होती है. इनमें अधिकतर युवा महिलाएं थीं. डायरियों का लेखन उस समय शुरू हुआ जब गांधी के भाई की पोती मनुबेन पुणे में आगा खां पैलेस में नजरबंद गांधी की पत्नी कस्तूरबा की सेवा करने आई थीं. गांधी और कस्तूरबा को 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस पैलेस में नजरबंद रखा गया था. बीमारी के अंतिम दिनों में मनुबेन ने कस्तूरबा की सेवा की. 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने मनुबेन को एक तरफ धकेल कर अपनी 9 एमएम बरेटा पिस्तौल से गांधी पर तीन गोलियां दागी थीं. उसके 22 दिन बाद मनुबेन ने डायरी लिखना बंद कर दिया.

डायरियों में जगह-जगह हाशिये पर गांधी के हस्ताक्षर हैं. इनसे उनके प्रति समर्पित एक लड़की की छवि उभरती है. 28 दिसंबर,1946 को बिहार के श्रीरामपुर में दर्ज प्रविष्टि में मनुबेन ने लिखा है, ‘‘बापू मेरी माता हैं. वे ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के माध्यम से मुझे ऊंचे मानवीय फलक पर ले जा रहे हैं. ये प्रयोग चरित्र निर्माण के उनके महायज्ञ के अंग हैं. इनके बारे में कोई भी उलटी-सीधी बात सबसे निंदनीय है.’’ इससे नौ दिन पहले ही मनुबेन गांधी के साथ आईं थीं. उस समय 77 वर्षीय गांधी तत्कालीन पूर्वी बंगाल में नोआखली में हुई हत्याओं के बाद अशांत गांवों में घूम रहे थे. गांधी के सचिव प्यारेलाल ने अपनी पुस्तक महात्मा गांधी: द लास्ट फेज में इस बात की पुष्टि करते हुए लिखा है, ‘‘उन्होंने उसके लिए वह सब कुछ किया जो एक मां अपनी बेटी के लिए करती है. उसकी पढ़ाई, उसके भोजन, पोशाक, आराम और नींद हर बात का वे ख्याल रखते थे. करीब से देख-रेख और मार्गदर्शन के लिए गांधी उसे अपने ही बिस्तर पर सुलाते थे. मन से मासूम किसी लड़की को अपनी मां के साथ सोने में कभी शर्म नहीं आती.’’ मनुबेन गांधी की प्रमुख निजी सेविका थीं. वे मालिश और नहलाने से लेकर उनका खाना पकाने तक सारे काम करती थीं.

इन डायरियों में डॉ. सुशीला नय्यर जैसी महात्मा गांधी की महिला सहयोगियों के जीवन का भी विस्तार से वर्णन है. प्यारेलाल की बहन सुशीला गांधी की निजी चिकित्सक थीं जो बाद में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनीं. उनके अलावा पंजाबी मुस्लिम महिला बीबी अम्तुस्सलाम भी इन महिलाओं में शामिल थीं. ब्रह्मचर्य के महात्मा के प्रयोगों में शामिल रहीं महिलाओं के बीच जबरदस्त जलन की झलक भी इन डायरियों में मौजूद है. मनुबेन ने 24 फरवरी, 1947 को बिहार के हेमचर में अपनी डायरी में दर्ज किया, ‘‘आज बापू ने अम्तुस्सलाम बेन को एक कड़ा पत्र लिखकर कहा कि उनका जो पत्र मिला है उससे जाहिर होता है कि ब्रह्मचर्य के प्रयोग उनके साथ शुरू न होने से वे कुछ नाराज हैं.’’
2010 में दिल्ली में राष्ट्रीय अभिलेखागार में मिलीं इन डायरियों में यह भी लिखा है कि 47 वर्ष की आयु में भी प्यारेलाल मनुबेन से शादी करने को लालायित थे और सुशीला इसके लिए दबाव डाल रही थीं. 2 फरवरी, 1947 को बिहार के दशधरिया में आखिरकार मनुबेन को लिखना ही पड़ा, ‘‘मैं प्यारेलालजी को अपने बड़े भाई की तरह मानती हूं, इसके अलावा कुछ भी नहीं. जिस दिन मैं अपने गुरु, अपने बड़े भाई या अपने दादा से शादी करने का फैसला कर लूंगी, उस दिन उनसे विवाह कर लूंगी. इस बारे में मुझ पर और दबाव मत डालना.’’

मनुबेन की टिप्पणियों से ब्रह्मचर्य के प्रयोगों को लेकर गांधी के अनुयायियों में बढ़ते असंतोष की झलक भी मिलती है. 31 जनवरी, 1947 को बिहार के नवग्राम में दर्ज प्रविष्टि में मनुबेन ने घनिष्ठ अनुयायी किशोरलाल मशरूवाला के गांधी को लिखे पत्र का उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने मनु को ‘‘माया’’ बताते हुए महात्मा से उसके चंगुल से मुक्त होने का आग्रह किया था. इस पर गांधी का जवाब था: ‘‘तुम जो चाहे करो लेकिन इस प्रयोग के बारे में मेरी आस्था अटल है.’’ मनुबेन और गांधी जब बंगाल में नोआखली की यात्रा कर रहे थे तब उनके दो सचिव आर.पी. परशुराम और निर्मल कुमार बोस गांधी के आचरण से नाराज होकर उनका साथ छोड़ गए थे. यही निर्मल कुमार बोस बाद में भारत की ऐंथ्रोपोलॉजिकल सोसायटी के डायरेक्टर बने. सरदार वल्लभभाई पटेल ने 25 जनवरी, 1947 को लिखे एक पत्र में गांधी से कहा था कि वे यह प्रयोग रोक दें. पटेल ने इसे गांधी की ‘भयंकर भूल’ बताया था जिससे उनके अनुयायियों को ‘गहरी पीड़ा’ होती थी. यह पत्र राष्ट्रीय अभिलेखागार में सरदार पटेल के दस्तावेजों में शामिल है. महात्मा ने मनुबेन के मन पर कितनी गहरी छाप छोड़ी थी, इसकी जबरदस्त झलक 19 अगस्त,1955 को जवाहर लाल नेहरू के नाम लिखे गए मोरारजी देसाई के पत्र से मिलती है. मनुबेन एक ‘‘अज्ञात रोग’’ के इलाज के लिए बॉम्बे हॉस्पिटल में भर्ती थीं. वहां अगस्त में उनसे मिलने के बाद मोरारजी देसाई ने लिखा: ‘‘मनु की समस्या शरीर से अधिक मन की है. लगता है, वे जीवन से हार गई हैं और सभी प्रकार की दवाओं से उन्हें एलर्जी हो गई है.’’

30 जनवरी, 1948 को दिल्ली के बिरला हाउस में शाम 5:17 बजे जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा को गोली मारी, उस समय मनुबेन के अलावा आभाबेन गांधी भी महात्मा की बगल में थीं. आभा उनके भतीजे कनु गांधी की पत्नी थीं. अगले दिन मनुबेन ने लिखा, ‘‘जब चिता की लपटें बापू की देह को निगल रही थीं, मैं अंतिम संस्कार के बाद बहुत देर तक वहां बैठी रहना चाहती थी. सरदार पटेल ने मुझे ढाढस बंधाया और अपने घर ले गए. मेरे लिए वह सब अकल्पनीय था. दो दिन पहले तक बापू हमारे साथ थे. कल तक कम-से-कम उनका शरीर तो था और आज मैं एकदम अकेली हूं. मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है.’’

उसके बाद डायरी में अगली और अंतिम प्रविष्टि 21 फरवरी, 1948 की है, जब मनुबेन दिल्ली से ट्रेन में बैठकर भावनगर के निकट महुवा के लिए रवाना हुईं. इसमें उन्होंने लिखा, ‘‘आज मैंने दिल्ली छोड़ दी.’’ मनुबेन ने गांधी के निधन के बाद पांच पुस्तकें लिखीं. इनमें से एक लास्ट ग्लिम्प्सिज ऑफ बापू में उन्होंने लिखा, ‘‘काका (गांधी के सबसे छोटे बेटे देवदास) ने मुझे चेताया कि अपनी डायरी में लिखी गई बातें किसी को न बताऊं और महत्वपूर्ण पत्रों में लिखी गई बातों की जानकारी भी न दूं. उन्होंने कहा था, तुम अभी बहुत छोटी हो पर तुम्हारे पास बहुत कीमती साहित्य है और तुम अभी परिपक्व भी नहीं हो.’’

बापू: माय मदर नाम से अपने 68 पन्नों के संस्मरण में भी मनुबेन ने गांधी के साथ उनकी सेक्सुअलिटी के प्रयोगों में शामिल रहने के बावजूद उनके बारे में अपनी भावनाओं का कहीं उल्लेख नहीं किया. पुस्तक के 15 अध्यायों में से एक में मनुबेन ने लिखा है कि उनके पुणे जाने के 10 महीने के भीतर कस्तूरबा की मृत्यु हो गई. उसके बाद बापू ने मौन व्रत धारण कर लिया और वे सिर्फ लिखकर ही अपनी बात कहते थे. कुछ ही दिन बाद उन्हें बापू से एक बहुत ही मार्मिक नोट मिला, जिसमें उन्होंने उन्हें राजकोट जाकर अपनी पढ़ाई फिर शुरू करने की सलाह दी थी. इस अध्याय में मनुबेन ने लिखा, ‘‘उस दिन से बापू मेरी माता बन गए.’’
किशोरी मनुबेन ने कराची में पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की थी जहां उनके पिता, गांधी के भतीजे जयसुखलाल सिंधिया स्टीम नैविगेशन कंपनी में काम करते थे. पुणे आने से कुछ दिन पहले ही मनु ने अपनी मां को खोया था इसलिए उन्हें भी मां रूपी सहारे की जरूरत थी.

मनुबेन ने अपने जीवन के अंतिम साल एकदम अकेले काटे. गांधी की हत्या के बाद करीब 21 वर्ष तक वे गुजरात में भावनगर के निकट महुवा में रहीं. वे बच्चों का एक स्कूल चलाती थीं और महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए उन्होंने भगिनी समाज की स्थापना भी की थी. जीवन के अंतिम चरण में मनुबेन की एक सहयोगी भानुबेन लाहिड़ी भी स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार की थीं. समाज की 22 महिला सदस्यों में से एक लाहिड़ी को याद है कि गांधी ने मनु के जीवन पर कितना गहरा असर डाला था. उनका कहना है कि एक बार जब मनुबेन ने अपने एक गरीब अनुयायी के विवाह के लिए उनसे चुनरी ली तो बोल पड़ीं, ‘‘मैं तो खुद को मीरा बाई मानती हूं जो सिर्फ अपने ‘यामलो (कृष्ण) के लिए जीती रही.’’

मनोविश्लेषक और स्कॉलर सुधीर कक्कड़ इन डायरियों के बारे में कहते हैं, ‘‘इन प्रयोगों के दौरान महात्मा गांधी अपनी भावनाओं पर इतने अधिक केंद्रित हो गए थे कि मुझे लगता है कि उन्होंने इन प्रयोगों में शामिल महिलाओं पर उनके प्रभाव को अनदेखा करने का फैसला लिया होगा.
विभिन्न महिलाओं के बीच जलन की लपटें उठने के अलावा हमें नहीं मालूम कि इन प्रयोगों ने उनमें से हर महिला के मन पर कोई प्रभाव डाला था या नहीं.’’
अब मनुबेन की डायरियां मिलने से हम कम से कम यह अंदाजा तो लगा ही सकते हैं कि महात्मा ने अपनी इन सहयोगियों के मन पर किस तरह की छाप छोड़ी थी या इन प्रयोगों का उन पर क्या असर हुआ था.

मधुबेन की डायरियां कैसे जगजाहिर हुईं :-
1. 1969 मनुबेन के निधन तक उनकी डायरियां में महुवा में उनके पास थीं. उन्होंने अपने पिता जयसुखलाल से कहा था कि डायरियां उनकी बहन संयुक्ताबेन की बेटी मीना जैन को सौंप दी जाएं.
2. मुंबई निवासी मीना जैन ने उन्हें मध्य प्रदेश में रीवा में अपने पारिवारिक बंगले में रखने का फैसला किया.
3. 2010 में मीना की बचपन की सहेली वर्षा दास जो उस समय दिल्ली में राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय की निदेशक थीं, मीना के अनुरोध पर रीवा गईं और डायरियां दिल्ली लाकर राष्ट्रीय अभिलेखागार में जमा करवा दीं.

10 नवंबर, 1943 
आगा खां पैलेस, पुणे
एनिमिया के शिकार बापू आज सुशीलाबेन के साथ नहाते समय बेहोश हो गए. फिर सुशीलाबेन ने एक हाथ से बापू को पकड़ा और दूसरे हाथ से कपड़े पहने और फिर उन्हें बाहर लेकर आईं.

21 दिसंबर, 1946
श्रीरामपुर, बिहार 

आज रात जब बापू, सुशीलाबेन और मैं एक ही पलंग पर सो रहे थे तो उन्होंने मुझे गले से लगाया और प्यार से थपथपाया. उन्होंने बड़े ही प्यार से मुझे सुला दिया. उन्होंने लंबे समय बाद मेरा आलिंगन किया था. फिर बापू ने अपने साथ सोने के बावजूद (यौन इच्छाओं के मामले में) मासूम बनी रहने के लिए मेरी प्रशंसा की. लेकिन दूसरी लड़कियों के साथ ऐसा नहीं हुआ. वीना, कंचन और लीलावती (गांधी की अन्य महिला सहयोगी) ने मुझसे कहा था कि वे उनके (गांधी के) साथ नहीं सो पाएंगी.

1 जनवरी, 1947 
कथुरी, बिहार

सुशीलाबेन मुझे अपने भाई प्यारेलाल से शादी करने के लिए कह रही हैं. उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मैं उनके भाई से शादी कर लूं तो ही वे नर्स बनने में मेरी मदद करेंगी. लेकिन मैंने उन्हें साफ मना कर दिया और सारी बात बापू को बता दी. बापू ने मुझसे कहा कि सुशीला अपने होश में नहीं है. उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले तक वह उनके सामने निर्वस्त्र नहाती थी और उनके साथ सोया भी करती थी. लेकिन अब उन्हें (गांधी को) मेरा सहारा लेना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि मैं हर स्थिति में निष्कलंक हूं और धीरज बनाए रखूं (ब्रह्मचर्य के मामले में).

2 फरवरी, 1947 
दशधरिया, बिहार

बापू ने सुबह की प्रार्थना के दौरान अपने अनुयायियों को बताया कि वे मेरे साथ ब्रह्मचर्य के प्रयोग कर रहे हैं. फिर उन्होंने मुझे समझाया कि सबके सामने यह बात क्यों कही. मुझे बहुत राहत महसूस हुई क्योंकि अब लोगों की जुबान पर ताले लग जाएंगे. मैंने अपने आप से कहा कि अब मुझे किसी की भी परवाह नहीं है. दुनिया को जो कहना है वह कहती रहे.

‘‘प्यारेलालजी मेरे प्यार में दीवाने हैं’’

28 दिसंबर, 1946 
श्रीरामपुर, बिहार

सुशीलाबेन ने आज मुझसे पूछा कि मैं बापू के साथ क्यों सो रही थी और कहा कि मुझे इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. उन्होंने मुझसे अपने भाई प्यारेलाल के साथ विवाह के प्रस्ताव पर फिर से विचार करने को भी कहा और मैंने कह दिया कि मुझे उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है, और इस बारे में वे आइंदा फिर कभी बात न करें. मैंने उन्हें बता दिया कि मुझे बापूजी पर पूरा भरोसा है और मैं उन्हें अपनी मां की तरह मानती हूं.

1 जनवरी, 1947 
श्रीरामपुर, बिहार 

प्यारेलाल जी मेरे प्रेम में दीवाने हैं और मुझ पर शादी करने के लिए दबाव डाल रहे हैं, लेकिन मैं कतई तैयार नहीं हूं क्योंकि उम्र, ज्ञान, शिक्षा और नैन-नक्श में भी वे मेरे लायक नहीं हैं. जब मैंने यह बात बापू को बताई तो उन्होंने कहा कि प्यारेलाल सबसे ज्यादा मेरे गुणों के प्रशंसक हैं. बापू ने कहा कि प्यारेलाल ने उनसे भी कहा था कि मैं बहुत गुणी हूं.

31 जनवरी, 1947 
नवग्राम, बिहार

ब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर विवाद गंभीर रूप अख्तियार करता जा रहा है. मुझे संदेह है कि इसके पीछे (अफवाहें फैलाने के) अम्तुस्सलामबेन, सुशीलाबेन और कनुभाई (गांधी के भतीजे) का हाथ था. मैंने जब बापू से यह बात कही तो वे मुझसे सहमत होते हुए कहने लगे कि पता नहीं, सुशीला को इतनी जलन क्यों हो रही है? असल में कल जब सुशीलाबेन मुझसे इस बारे में बात कर रही थीं तो मुझे लगा कि वे पूरा जोर लगाकर चिल्ला रही थीं. बापू ने मुझसे कहा कि अगर मैं इस प्रयोग में बेदाग निकल आई तो मेरा चरित्र आसमान चूमने लगेगा, मुझे जीवन में एक बड़ा सबक मिलेगा और मेरे सिर पर मंडराते विवादों के सारे बादल छंट जाएंगे. बापू का कहना था कि यह उनके ब्रह्मचर्य का यज्ञ है और मैं उसका पवित्र हिस्सा हूं. उन्होंने कहा कि ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उन्हें शुद्ध रखे, उन्हें सत्य का साथ देने की शक्ति दे और निर्भय बनाए. उन्होंने मुझसे कहा कि अगर सब हमारा साथ छोड़ जाएं, तब भी ईश्वर के आशीर्वाद से हम यह प्रयोग सफलतापूर्वक करेंगे और फिर इस महापरीक्षा के बारे में सारी दुनिया को बताएंगे.

2 फरवरी, 1947
अमीषापाड़ा, बिहार

आज बापू ने मेरी डायरी देखी और मुझसे कहा कि मैं इसका ध्यान रखूं ताकि यह अनजान लोगों के हाथों में न पड़ जाए क्योंकि वे इसमें लिखी बातों का गलत उपयोग कर सकते हैं, हालांकि ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के बारे में हमें कुछ छिपाना नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर अचानक उनकी मृत्यु हो जाए तो भी यह डायरी समाज को सच बताने में बहुत सहायक होगी. उन्होंने कहा कि यह डायरी मेरे लिए भी बहुत उपयोगी साबित होगी.

और फिर बापू ने मुझसे कहा कि अगर मुझे कोई आपत्ति न हो तो डायरी की कुछ ताजा प्रविष्टियां प्यारेलालजी को दिखा दूं ताकि वे उसकी भाषा सुधार दें और तथ्यों को क्रमवार ढंग से लगा दें. हालांकि मैंने साफ मना कर दिया क्योंकि मुझे लगा कि अगर प्यारेलाल ने इस डायरी को देख लिया तो इसकी सारी बातें उनकी बहन सुशीलाबेन तक जरूर पहुंच जाएंगी और उससे आपसी वैमनस्य में और इजाफा ही होगा.

7 फरवरी, 1947 
प्रसादपुर, बिहार

ब्रह्मचर्य के प्रयोगों को लेकर माहौल लगातार गर्माता ही जा रहा है. अमृतलाल ठक्कर (गांधी और गोपालकृष्ण गोखले के साथ जुड़े रहे समाजसेवी) आज आए और अपने साथ बहुत सारी डाक लाए जो इस मुद्दे पर बहुत ‘‘गर्म’’ थी. और इन पत्रों को पढ़कर मैं हिल गई.

24 फरवरी, 1947
हेमचर, बिहार

आज मैं बहुत दुखी थी. लेकिन बापू ने कहा कि वे मेरे चेहरे पर मुस्कान दौड़ते देखना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि उनकी जगह अगर कोई और होता तो इस मुद्दे पर किशोरलाल मशरूवाला, सरदार पटेल और देवदास गांधी के तीखे पत्र पढ़कर लगभग पागल जैसा हो जाता. लेकिन उन्हें इस सबसे बिलकुल भी फर्क नहीं पड़ा. एक और बात. आज बापू ने अम्तुस्सलामबेन को एक बहुत कड़ा पत्र लिखकर कहा कि उनका जो पत्र मिला है उससे जाहिर होता है कि वे इस बात से नाराज हैं कि ब्रह्मचर्य के उनके प्रयोग उनके साथ
शुरू नहीं हुए. उन्होंने लिखा कि इस बारे में उनके लिए खेद करना वाकई शर्म की बात है. उन्होंने अम्तुस्सलामबेन से कहा कि अगर वे समझ सकें तो वे समझना चाहते हैं कि आखिर वे कहना क्या चाहती हैं? बापू ने उन्हें लिखा कि यह शुद्धि का यज्ञ है.

26 फरवरी, 1947 
हेमचर, बिहार

आज जब अम्तुस्सलाम बेन ने मुझसे प्यारेलाल से शादी करने को कहा तो मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने कह दिया कि अगर उन्हें उनकी इतनी चिंता है तो वे स्वयं उनसे शादी क्यों नहीं कर लेतीं? मैंने उनसे कह दिया कि ब्रह्मचर्य के ये प्रयोग उनके साथ शुरू हुए थे और अब अखबारों में मेरे फोटो छपते देखकर उन्हें मुझसे जलन होती है और मेरी लोकप्रियता उन्हें अच्छी नहीं लगती.

18 मार्च, 1947
मसौढ़ी, बिहार

आज बापू ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात का खुलासा किया. मैंने उनसे पूछा कि क्या सुशीलाबेन भी उनके साथ निर्वस्त्र सो चुकी है क्योंकि मैंने जब उनसे इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे प्रयोगों का कभी भी हिस्सा नहीं बनी और उनके साथ कभी निर्वस्त्र नहीं सोई. बापू ने कहा कि सुशीला सच नहीं कह रही क्योंकि वह बारडोली (1939 में जब पहली बार वे बतौर फिजीशियन उनके साथ जुड़ी थीं) के अलावा आगा खां पैलेस (पुणे) में उनके साथ सो चुकी थी. बापू ने बताया कि वह उनकी मौजूदगी में स्नान भी कर चुकी है. फिर बापू ने कहा कि जब सारी बातें मुझे पता ही हैं तो मैं यह सब क्यों पूछ रही हूं? बापू ने कहा कि सुशीला बहुत दुखी थी और उसका दिमाग अस्थिर था और इसलिए वे नहीं चाहते थे कि वह इस सब पर कोई सफाई दे.

‘‘मैंने बापू से आग्रह किया कि मुझे अलग सोने दें’’
25 फरवरी, 1947 
हेमचर, बिहार

बापू ने बापा (अमृतलाल ठक्कर को सभी ठक्कर बापा कहते थे) से कहा कि ब्रह्मचर्य धर्म के पांच नियमों में से एक है और वे उसकी परीक्षा को पास करने की भरसक कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह उनकी आत्मशुद्धि का यज्ञ है और वे इसे सिर्फ इसलिए नहीं रोक सकते क्योंकि जनभावनाएं पूरी तरह इसके खिलाफ हैं. इस पर बापा ने कहा कि ब्रह्मचर्य की उनकी परिभाषा आम आदमी की परिभाषा से एकदम अलग है और पूछा कि अगर मुस्लिम लीग को इसकी भनक भी लग गई और उसने इस बारे में लांछन लगाए तो क्या होगा? बापू ने जवाब दिया कि किसी के डर से वे अपने धर्म को कतई नहीं छोड़ेंगे और उन्होंने बिरला (उद्योगपति और जाने-माने गांधीवादी जी.डी. बिरला) को भी यह बता दिया था कि अगर प्रयोग के दौरान उनका मन अशुद्ध रहा तो वे पाखंडी कहलाएंगे और वे तकलीफदेह मौत को प्राप्त होंगे. बापू ने बापा से कहा कि अगर वल्लभभाई (पटेल) या किशोर भाई (मशरूवाला) भी उनका साथ छोड़ देंगे तो भी वे अपने प्रयोग जारी रखेंगे.

2 मार्च, 1947 
हेमचर, बिहार

आज बापू को बापा का एक गुप्त पत्र मिला. उन्होंने इसे मुझे पढऩे को दिया. यह पत्र दिल को इतना छू लेने वाला था कि मैंने बापू से आग्रह किया कि बापा को संतुष्ट करने के लिए आज से मुझे अलग सोने की अनुमति दें. जब मैंने बापा को अपने इस फैसले के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि बापू और मुझसे बात करने के बाद उन्हें प्रयोग के उद्देश्य के बारे में एकदम संतोष हो गया था लेकिन अलग सोने और प्रयोग समाप्त करने का मेरा फैसला पूरी तरह सही था. उसके बाद बापा ने किशोरलाल मशरूवाला और देवदास गांधी को पत्र लिखकर सूचित किया कि वह अध्याय अब खत्म हो गया है.

‘‘बापू सिर्फ मेरे लिए मां समान थे’’

18 जनवरी, 1947 
बिरला हाउस, दिल्ली

बापू ने कहा कि उन्होंने लंबे समय बाद मेरी डायरी को पढ़ा और बहुत ही अच्छा महसूस किया. वे बोले कि मेरी परीक्षा खत्म हुई और उनके जीवन में मेरी जैसी जहीन लड़की कभी नहीं आई और यही वजह थी कि वे खुद को सिर्फ मेरी मां कहते थे. बापू ने कहा: ‘‘आभा या सुशीला, प्यारेलाल या कनु, मैं किसी की परवाह क्यों करूं? वह लड़की (आभा) मुझे बेवकूफ बना रही है बल्कि सच यह है कि वह खुद को ठग रही है. इस महान यज्ञ में मैं तुम्हारे अभूतपूर्व योगदान का हृदय से आदर करता हूं.’’ बापू ने फिर मुझसे कहा, ‘‘तुम्हारी सिर्फ यही भूल है कि तुमने अपना शरीर नष्ट कर लिया है. शारीरिक थकान से ज्यादा तुम्हारी शंकालु प्रवृत्ति तुम्हें खा रही है. मैं खुद को तभी विजेता मानूंगा जब तुम अभी जैसी 70 वर्ष की दिखती हो, उसकी बजाए 17 बरस की दिखो.’’

2 अक्‍टूबर, 1947 
बिरला हाउस, दिल्ली

आज बापू का जन्मदिन था. मैंने ईश्वर से प्रार्थना की कि या तो उन्हें इस दावानल (विभाजन के दंगों की आग जिसे गांधीजी बुझाना चाहते थे) में विजयी बना दे या उन्हें अपने पास बुला ले. बापू ने बहुत जोर लगाया, लेकिन मैं उनकी पीड़ा और नहीं देख सकती. हे ईश्वर! आखिर तू कब तक बापू की परीक्षा लेता रहेगा? मैं रात को सोते या जागते हुए यही प्रार्थना करती हूं कि यह अंतिम सद्कार्य (सांप्रदायिक दंगे समाप्त कराने का) बापू के हाथों संपन्न हो जाए.

14 नवंबर, 1947 
बिरला हाउस, दिल्ली

मैं कई दिनों से बुरी तरह अशांत हूं. बापू ने जब यह देखा तो कहा कि अपने मन की बात कह दो. उन्होंने कहा कि मैं कइयों का पितामह और पिता हूं और सिर्फ तुम्हारी माता हूं. मैंने बापू को बताया कि इन दिनों आभा मुझसे बहुत बेरुखी से पेश आ रही है. यही वजह है. बापू ने कहा कि उन्हें खुशी हुई कि मैंने मन की बात उन्हें बता दी लेकिन अगर न बताती तो भी वे मेरे मन की अवस्था समझ सकते थे. उन्होंने कहा कि मैं अंतिम क्षण तक उनके साथ रहूंगी पर आभा संग ऐसा नहीं होगा. इसलिए वह जो चाहे उसे करने दो. उन्होंने मुझे बधाई दी कि मैंने न सिर्फ उनकी बल्कि औरों की भी पूरी निष्ठा से सेवा की है.

18 नवंबर, 1947, 
बिरला हाउस, दिल्ली
आज जब मैं बापू को स्नान करवा रही थी तो वे मुझ पर बहुत नाराज हुए क्योंकि मैंने उनके साथ शाम को घूमना बंद कर दिया था. उन्होंने बहुत कड़वे शब्दों का इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा, ‘‘जब तुम जीते जी मेरी बात नहीं मानतीं तो मेरे मरने के बाद क्या करोगी? क्या तुम मेरे मरने का इंतजार कर रही हो?’’ यह शब्द सुनकर मैं सन्न रह गई और जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.

बड़े-बड़े खिलाड़ी मनुबेन की डायरी में दर्ज नाटकीय शख्स

प्यारेलाल
(1899-1982)
बाद के वर्षों में गांधी के निजी सचिव रहे.
सुशीला नय्यर
(1914-2000)
प्यारेलाल की छोटी बहन जो गांधी की निजी चिकित्सक थीं और बाद में दो बार केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री रहीं.
मृदुला गांधी उर्फ मनुबेन
(1929-1969)
गांधी के भाई की पोती और अंतिम दो साल में उनके साथ रहीं.
कनु गांधी
(1917-1986)
गांधी के भतीजे जो उनके निजी फोटोग्राफर रहे.
देवदास गांधी
(1900-1957)
गांधी के सबसे छोटे बेटे. 1950 के दशक के प्रख्यात पत्रकार.
आभा गांधी
(1927-1995)
मनुबेन के अलावा गांधी की दूसरी निकटतम सहयोगी और उनके भतीजे कनु की पत्नी.
बीबी अम्तुस्सलाम
(1958 में निधन)
गांधी की पंजाबी मुस्लिम अनुयायी.
किशोरलाल मशरूवाला
(1890-1952)
गांधी के निकट सहयोगी थे.
अमृतलाल ठक्कर
(1869-1951)
ठक्कर बापा के नाम से मशहूर समाजसेवी जो गांधी और गोपाल कृष्ण गोखले के सहयोगी रहे.


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जानिए कैसे पता करें सिलेंडर की एक्सपायरी डेट, कैसे मिलेगा बीमा

10 जुलाई 2015
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आप के घर में इस्तेमाल होने वाले सिलेंडर की एक्सपायरी डेट क्या है? आप की रसोई में लगे गैस सिलेंडर से हादसा हो जाने पर आपको कितना बीमा मिलता है? ये ऐसे सबाल हैं जिनके जबाव सिलेंडर इस्तेमाल करने वाले शायद 1 फीसद उपभोक्ता भी नहीं जानते होंगे। जागरुकता कम होने के कारण ज्यादातर लोग सिलेंडर बिना एक्सपाय

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स्वाभिमान

10 जुलाई 2015
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महाराणा प्रताप ने जंगलों में अपार कष्टों को झलते हुए एक बार मन की कमज़ोरी का अहसास हुआ . वन में बच्चों को बनायीं हुई घास की रोटी भी कोई जानवर उठा ले गया तो वे मानसिक रूप से टूट गए . उस समय उन्होंने खुद को दयनीय स्थिति में पाकर अकबर से संधि कर लेनी चाही. उनके एक भक्त सेवक चारण को इस बात का प

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R.T.I. डालने हेतु पत्र तैयार करने का तरीका - (उदाहरणार्थ - अस्पताल में दवाइयों की कमी)

2 अगस्त 2015
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सेवा में, जन सूचना अधिकारी, विषय- ..................... महोदय, ........स्थित .......अस्पताल के सम्बंध में निम्न सूचनायें उपलब्ध करायें- 1. दिनॉक ......से ........के बीच अस्पताल के लिये कुल कितनी रकम की दवाईयॉ खरीदी गयीं ? दवाईयों के खरीदने व उन्हें अस्पताल / चिकित्सा केन्द्र के स्टॉक में रखे

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तुलसी का महत्व क्या है.....???

12 नवम्बर 2015
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तुलसी का पौधा बता देगा, आप पर कोई मुसीबत आने वाली है।सभी मित्रों के लिए महत्वपूर्ण है ।क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया कि आपके घर, परिवार या आप पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो उसका असर सबसे पहले आपके घर में स्थित तुलसी के पौधे पर होता है। आप उस पौधे का कितना भी ध्यान रखें धीरे-धीरे वो पौधा सूखन

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ये गंदगी तो महल वालो ने फैलाई है “साहिब”

14 नवम्बर 2015
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ये गंदगी तो महल वालो ने फैलाई है “साहिब”वरना गरीब तो सङको से थैलीयाँ तक उठा लेते है ! -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------“समुद्र बड़ा होकर भी,अपनी हद में रहता है,जबकि इन्सान छोटा होकर

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ये गंदगी तो महल वालो ने फैलाई है “साहिब”

23 नवम्बर 2015
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ये गंदगी तो महल वालो ने फैलाई है “साहिब”वरना गरीब तो सङको से थैलीयाँ तक उठा लेते है ! -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------“समुद्र बड़ा होकर भी,अपनी हद में रहता है,जबकि इन्सान छोटा होकर

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यही है अपना प्यारा डिजिटल इंडिया

24 नवम्बर 2015
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मैं स्वप्न-लोक में एक के बाद एक, कई-कई जगहों के कई-कई दृश्य देख रहा था। पहला दृश्य: झमाझम बरसात, न कम और न ज्यादा। दूसरा: हरे-भरे खेत पूर्ण यौवन पर। तीसरा: बालियों से लदे धान के खेत झूमते हुए।सरकारी विज्ञापनों में दिखाया जाने वाला रंगीन पगड़ीधारी किसान नए-नवेले ट्रैक्टर के बगल में खड़ा मुस्कराता हुआ

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आखिर ये बेवफाई और वफ़ा क्या है ....???

5 दिसम्बर 2015
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मेरी मोहब्बत मेरे दिल की गफलत थीमैं बेसबब ही उम्र भर तुझे कोसता रहा…..आखिर ये बेवफाई और वफ़ा क्या हैतेरे जाने के बाद देर तक सोचता रहा……मैं इसे किस्मत कहूँ या बदकिस्मती अपनीतुझे पाने के बाद भी तुझे खोजता रहा….सुना था वो मेरे दर्द मे ही छुपा है कहींउसे ढूँढने को मैं अपने ज़ख्म नोचता रहा…

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ओशो के दस विचार, जो लोगों में आत्मविश्वास भरते हैं :-

15 दिसम्बर 2015
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प्रसिद्ध धर्म गुरु रजनीश ओशो का 11 दिसंबर को जन्मदिन है। रजनीश मूल रूप से फिलॉसफी के टीचर थे। धर्म और दर्शन की स्थापित मान्यताओं से अलग व्याख्या कर वह विवादित हो गए थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि ओशो ने अपने शिक्षण करियर की शुरुआत रायपुर के संस्कृत कॉलेज से की थी, जहां उन्होंने डेढ़ साल साल अपनी सेवाएं

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दम तोड़ती संवेदनाएं …

18 दिसम्बर 2015
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     बारिश का मौसम था, गली में पानी भरा था, सरकारी स्कूलों की छुट्टी हुई थी . गली में कुछ बच्चे हुर्दंग मचाते एक -दूसरे पर पानी के छींटे मारते जा रहे थे . मैं अपने छोटे से बेटे के साथ घर की बालकनी पर खड़ा ये नज़ारा देख रहा था . तभी मैंने एक अजीब सा हाद्सा देखा . खेलते- खेलते एक बच्चा अचानक बेसुध सा हो

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भगवान कृष्ण से सीखें ये 10 सक्‍सेस मंत्र :-

21 दिसम्बर 2015
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श्रीकृष्ण की सिखाई गई बातें युवाओं के लिए इस युग में भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितनी अर्जुन के लिए रहीं. इस बार शि‍क्षक दिवस और जन्माष्टमी एक ही दिन हैं तो जानिए कि उनके दिए व्यवहारिक ज्ञान का सार कैसे आज के प्रतियोगी युग में भी सफलता की गारंटी देता है :-1. कृष्ण हर मोर्चे पर क्रांतिकारी विचारों के

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सुबह गुनगुने पानी में शहद डालकर पीने के लाभ :-

21 दिसम्बर 2015
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       इस बात से हम सभी वाकिफ हैं कि सुबह एक गिलास गुनगुने पानी में नींबू का रस और शहद मिलाकर पीना स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अच्‍छा होता है। शहद को गर्म पानी के साथ लेने से वजन कम होता है। और इसके नियमित सेवन से सेहत से जुड़ी कई समस्याओंसे हमेशा के लिए निजात मिल सकती है। 1. पाचन सुधारे :-अच्छे पाचन के लिए

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जब देश में एक चपरासी के लिए योग्यता तय है , तो नेताओं के लिए योग्यता निर्धारित होनी चाहिए या नहीं …?

23 दिसम्बर 2015
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sachin sharma's Knowledge Tonic

25 दिसम्बर 2015
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सिर्फ पढ़े - लिखे ही बनें जनप्रतिनिधि

26 दिसम्बर 2015
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      अधिकतर गैर-बीजेपी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय की कटु आलोचना की है, जिसमें उसने पंचायत चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित वाले हरियाणा सरकार के कानून को वाजिब करार दिया है। न्यायालय ने कहा कि ‘यह सिर्फ शिक्षा है जो मनुष्य को सही-गलत, अच्छे-बुरे में भेद करने का सामर्थ्य

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इन सबको खाने से भला कौन रोक सकता है :-

26 दिसम्बर 2015
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    हे वत्स ! सब नेताओं की नीति एक है। भले ही इनकी पार्टी अलग-अलग है। भले ही इनके झंडे अलग-अलग हैं। भले ही इनकी टोपियां अलग-अलग हैं। भले ही इनके चुनाव चिन्ह भी अलग हैं। तू इनका झंडा, इनकी टोपी, इनका चिन्ह और इनके नाना प्रकार के रंग देखकर भ्रम‌ित मत हो। ये मन कर्म और वचन से एक ही हैं। तू इन्हें बुद्ध

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वयस्क हैं तो अपने स्मार्टफोन में जरूर रखें ये 5 ऐप

28 दिसम्बर 2015
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       ये ऐप उन लोगों के लिए सेहत की चाबी साबित हो सकता है जो अक्सर पानी पीना भूल जाते हैं। कितना और कब पानी पिएं, इस बात की चिंता इस ऐप पर छोड़ दीजिए। प्लांट नैनी एक ऐप है जो आपको आपकी जरूरत के अनुसार पानी पीने के लिए रिमाइंडर देता है। इस ऐप के जरिए एक छोटा प्लांट बडी आपके फोन स्क्रीन पर पानी का रि

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बोर्ड एग्‍जाम में कम नंबर लाने वाले बेटे के नाम पिता का खुला खत

29 दिसम्बर 2015
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    बोर्ड एग्‍जाम में कम नंबर आने से अक्‍सर हम निराशा हो जाते हैं, लेकिन अगर पेरेंट्स बच्‍चे का साथ दें तो मुश्किल आसान हो जाती है. एग्‍जाम में कम नंबर लाने वाले ऐसे ही एक बेटे का नाम पिता का खत :-  मेरे प्रिय बेटे,   आज तुम्‍हारे फोन का इंतजार कर रहा था. हर रोज की तरह तुम मुझसे पूछते हो कि पापा ऑफि

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स्मार्टफोन, कंप्यूटर और फेसबुक के साइड इफेक्ट

30 दिसम्बर 2015
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 शायद तकनीक को ज्यादा इस्तेमाल करने वाले दंपति ऐसा महसूस कर रहे होंगे कि व्हाट्सऐप और फेसबुक ने उनके बीच दूरियां बढ़ा दी है। अपने अपने नेटवर्क में व्यस्त रहना और आपस में संवाद कम करना ही तकनीक का सबसे बड़ा नुकसान है। आजकल कपल्स के बीच तकनीक के चलते जो दूरी आ गई है वो आने वाले दिनों में बढ़ने वाली है

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"बेटियाँ मंदिर की घंटियाँ होती हैं"

1 जनवरी 2016
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बेटियाँ रिश्तों-सी पाक होती हैंजो बुनती हैं एक शालअपने संबंधों के धागे से।बेटियाँ धान-सी होती हैंपक जाने पर जिन्हेंकट जाना होता है, जड़ से अपनीफिर रोप दिया जाता है जिन्हेंनई ज़मीन में।बेटियाँ मंदिर की घंटियाँ होती हैं,जो बजा करती हैंकभी पीहर तो कभी ससुराल में।बेटियाँ पतंगें होती हैंजो कट जाया करती ह

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ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक : कुँअर बेचैन

3 जनवरी 2016
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ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक,चाँदनी चार क‍़दम, धूप चली मीलों तक /प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर,ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक /प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकली,कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक /घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी,ख़ुशबुएँ देती रही नन्हीं

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वर्ना रो पड़ोगे :-

4 जनवरी 2016
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बंद होंठों में छुपा लोये हँसी के फूलवर्ना रो पड़ोगे।हैं हवा के पासअनगिन आरियाँकटखने तूफान कीतैयारियाँकर न देना आँधियों कोरोकने की भूलवर्ना रो पड़ोगे।हर नदी परअब प्रलय के खेल हैंहर लहर के ढंग भीबेमेल हैंफेंक मत देना नदी परनिज व्यथा की धूलवर्ना रो पड़ोगे।बंद होंठों में छुपा लोये हँसी के फूलवर्ना रो पड

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मोदी जी , आपको अपने घर में लगी आग बुझाने का ख़याल नहीं आता ?

5 जनवरी 2016
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'बेकसूर लोग मारे गए और राजनेता तुच्छ बयानबाजी में उलझे रहे.' 26/11 मुंबई आतंकी हमले के बाद एक अंग्रेजी अखबार ने इन्हीं शब्दों में देश के हालात बयां किए थे. साल बदले, सत्ता बदली लेकिन हालात बिल्कुल वैसे ही हैं. देश में आतंकी हमला होता है. जवान शहीद होते हैं. घायल होते हैं. उनका परिवार बिलखता है. देश

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"तनावमुक्ति के उपाय"

7 जनवरी 2016
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   आधुनिक जीवन में तनाव न हो यह संभव नहीं है. जीवन मिला है तो रोजमर्रा की परेशानियां भी मिली हैं. गरीब, मध्यवर्गीय, धनी, धनकुबेर – सभी किसी-न-किसी कारण से चिंतित रहते हैं और तनाव उनके शरीर को खोखला करता रहता है. समस्याओं की प्रतिक्रिया करने से तनाव उपजता है. तनाव जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है. हांला

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10 विचार जो आपको देंगे हर हालत में जीतने का जज्बा

10 जनवरी 2016
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मंजिल पर पहुंचने से पहले का रास्ता थकाने और हिम्मत तोड़ने वाला होता है. ऐसे में कोई भी हार कर बैठ सकता है. लेकिन जो अपने जज्बे को बनाए रखते हैं, वे बाद में किस्मत के धनी कहलाते हैं. अगर आप भी इस श्रेणी में आना चाहते हैं तो दुनिया की कुछ बड़ी हस्तियों की इन 10 बातों को जरूर याद रखें -1. सत्य से बड़ा

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रामजन्मभूमि मुद्दे पर सेमिनार के आयोजन को लेकर "दिल्ली विश्वविद्यालय" सियासी अखाड़े में बदल गया है. क्या एक शैक्षिक संस्थान को विवादों में लाना उचित है ?

10 जनवरी 2016
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मनुबेन की डायरी के अंश: दुनिया जो कहती है वह कहती रहे....

11 जनवरी 2016
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महात्मा गांधी की अंतरंग सहयात्री की हाल ही में मिली डायरी बताती है कि ब्रह्मचर्य को लेकर किए गए उनके प्रयोग ने मनुबेन के जीवन को कैसे बदल डाला. वह भारतीय इतिहास का एक जाना-पहचाना चेहरा है जो आखिरी दो साल में ‘सहारा’ बनकर साये की तरह महात्मा गांधी के साथ रही. फिर भी यह चेहरा लोगों के लिए एक पहेली है.

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आज के दौर में….

14 जनवरी 2016
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ऊँची इमारतों से मकान मेरा घिर गया,कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए।गिन गिन के सिक्के हाथ मेरा खुरदरा हुआजाती रही वो स्पर्श की नरमी,बुरा हुआ।कौन सा शेर सुनाऊँ मैं तुम्हे, सोचता हूँ,नया उलझा है बहुत, और पुराना मुश्किल।सब का ख़ुशी से फासला एक कदम है,हर घर में बस एक ही कमरा कम है।अपनी वज्हे-बर्बादी स

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