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बसंत

30 जनवरी 2015

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मंजिल। तुफानो से लड़ने वाले राही क्यों पीछे चलना ।मंजिल अब भी दूर बहुत, तुझको है बढ़ते रहना।भोर हुआ उठ आगे चल, जरा सुन कलरव करना।जब तुझको न राह तके, छोड़ न कोशिश करना। गिरने से क्यों डरना राही , लख मकड़ी का घर बुनना ।तेरे वश में कोशिश है , बस कोशिश कोशिश करना ।बना विचारों में मंजिल और सोंच सोंच सबल करना ।शनै: शनै: करना साकार , हिम्मत से बुनते रहना ।कांटो भरी राहों पर, हो जल्दी जल्दी चलना ।राह कठिन उज्ज्वल मंजिल, यह सोंच सोंच चले चलना । राह बदलने वाले राही रुका नहीं समय चलना । कैसे पहुँचे मंजिल राही, जब संसय में हो चलना । निकल दुविधा के दलदल से , तुझको है मंजिल पाना ।। बुलंद इरादों से पर्वत भी , डरते राहें रुक वाना ।। सागर प्रधान चाम्पा छत्तीसगढ़।

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बसंत

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बसंत वर्णन

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बसंत

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सुबह उठा तो देखा  कि बात आज क्या है ? पत्ते खनक  रहे हैं, चिड़िया चहक रहे है । सूरज की तेज से मैं पूछा कि राज क्या है ? भोर के महक का एहसास आज क्या है। अमराईयों के झुरमुट कोई बुला रहा है   बहक गया है कोयल और गीत गा रहा है  सरसों के फूल से मैं पूछा कि राज क्या है? संगीत की समां का अहसास आज क्या है । 

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