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जंगल गाथा

8 फरवरी 2016

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1.

एक नन्हा मेमना

और उसकी माँ बकरी,

जा रहे थे जंगल में

राह थी संकरी।

अचानक सामने से आ गया एक शेर,

लेकिन अब तो

हो चुकी थी बहुत देर।

भागने का नहीं था कोई भी रास्ता,

बकरी और मेमने की हालत खस्ता।

उधर शेर के कदम धरती नापें,

इधर ये दोनों थर-थर कापें।

अब तो शेर आ गया एकदम सामने,

बकरी लगी जैसे-जैसे

बच्चे को थामने।

छिटककर बोला बकरी का बच्चा-

शेर अंकल!

क्या तुम हमें खा जाओगे

एकदम कच्चा?

शेर मुस्कुराया,

उसने अपना भारी पंजा

मेमने के सिर पर फिराया।

बोला-

हे बकरी - कुल गौरव,

आयुष्मान भव!

दीर्घायु भव!

चिरायु भव!

कर कलरव!

हो उत्सव!

साबुत रहें तेरे सब अवयव।

आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,

कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा

उछलो, कूदो, नाचो

और जियो हँसते-हँसते

अच्छा बकरी मैया नमस्ते!

 

इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,

बकरी हैरान-

बेटा ताज्जुब है,

भला ये शेर किसी पर

रहम खानेवाला है,

लगता है जंगल में

चुनाव आनेवाला है।

 

2.

पानी से निकलकर

मगरमच्छ किनारे पर आया,

इशारे से

बंदर को बुलाया.

बंदर गुर्राया-

खों खों, क्यों,

तुम्हारी नजर में तो

मेरा कलेजा है?

 

मगरमच्छ बोला-

नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने

खास तुम्हारे लिये

सिंघाड़े का अचार भेजा है.

 

बंदर ने सोचा

ये क्या घोटाला है,

लगता है जंगल में

चुनाव आने वाला है.

लेकिन प्रकट में बोला-

वाह!

अचार, वो भी सिंघाड़े का,

यानि तालाब के कबाड़े का!

बड़ी ही दयावान

तुम्हारी मादा है,

लगता है शेर के खिलाफ़

चुनाव लड़ने का इरादा है.

 

कैसे जाना, कैसे जाना?

ऐसे जाना, ऐसे जाना

कि आजकल

भ्रष्टाचार की नदी में

नहाने के बाद

जिसकी भी छवि स्वच्छ है,

वही तो मगरमच्छ है.


डॉ० अशोक चक्रधर

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रचनाएँ
Achakradhar
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ससुर जी उवाच

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डरते झिझकतेसहमते सकुचातेहम अपने होनेवालेससुर जी के पासआए,बहुत कुछ कहनाचाहते थेपर कुछ बोल ही नहीं पाए। वे धीरज बँधातेहुए बोले-बोलो!अरे, मुँह तो खोलो। हमने कहा-जी. . . जी जी ऐसा है वे बोले-कैसा है? हमने कहा-जी. . .जी ह़महम आपकी लड़की काहाथ माँगने आएहैं। वे बोलेअच्छा!हाथ माँगने आएहैं!मुझे उम्मीद नहींथी

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कर सके तो इतना कर दे

8 फरवरी 2016
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दो हज़ार सोलहकर सके तो इतना कर दे,ये जो खाइयां-सी खुद गई हैं न दिलों मेंनफ़रत और पराएपन की, इन्हें भर देऔर दे सके तोशासकों में इसके लिए फ़िकर दे,और फ़िकर भी जमकर देभ्रष्टाचारियों को डर दे,और डर भी भयंकर दे।संप्रदायवादियों को टक्कर दे,और टक्कर भी खुलकर देबेघरबारों को घर दे,और घरों में जगर-मगर देज़रूर

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बहुमुखी प्रतिभा के धनी, हास्य-व्यंग्यकार एवं हरफ़नमौला रचनाकार : डॉ० अशोक चक्रधर

8 फरवरी 2016
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टेलीफ़िल्म-धारावाहिक-वृतचित्रलेखक-निर्देशक, नाटककर्मी, अभिनेता, फिल्म निर्माता, मीडियाकर्मी, कवि, लेखकएवं उत्कृष्ट हास्य-व्यंग्यकार इतने सारे बहुआयामी गुणों वाले मूर्धन्य साहित्कारएवं विद्वान का नाम है डॉ॰ अशोक चक्रधर| अशोक चक्रधर जी का जन्म ८ फ़रवरी, सन १९५१ में बुलंदशहर जिले के प्रसिद्ध खु्र्जा शह

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